Friday, December 6, 2024

क्रियायोग - हमे सुख और दुःख की अनुभूति क्यों होती है ?

आज मै आप को यह गहराई से समझाने जा रहा हु की हमे सुख और दुःख की अनुभूति क्यों होती है .

हमे सुख और दुःख की अनुभूति परमात्मा के माध्यम से जो माया का खेल चल रहा है उसके कारण होती है . अर्थात जब हम,  हमारा परमात्मा से अलग अस्तित्व मानकर जीवन जीने लगते है तो अहंकार के कारण हमारा जीव भाव मजबूत होने लगता है और हमे परमात्मा और हमारे बीच एक दूरी का अनुभव होने लगता है . यह दूरी ही हमारे सभी कष्टों का कारण है .

क्रियायोग के निरंतर अभ्यास से हम इस दूरी को धीरे धीरे कम करने में कामयाब होने लगते है . जैसे मुझे आप सभी मेरे ही अंश अनुभव होते हो . क्यों की आप और मै सर्वव्यापी है . यदि आप को यह विश्वास है की परमात्मा आप से कही दूर किसी और जगह है तो इससे यह सिद्ध होता है की आप अभी माया के प्रभाव में जी रहे हो . इसलिए आपने जिस प्रकार के संस्कार संचित कर रखे हैं उसी प्रकार का आप का मन है और वह चीजों को इसी प्रारब्ध प्रोग्रामिंग के अनुसार अनुभव करता है .

इसे मै आप को एक उदाहरण से समझाता हूँ :

जैसे दो व्येक्तियों ने आलू की सब्जी खाई और उनमे से पहले व्यक्ति के सब्जी खाने के कुछ समय बाद पेट में गैस बन गयी और दूसरे व्यक्ति को कोई दिक्कत नहीं हुयी .

ऐसा क्यों हुआ ?

इसके पीछे अनेक कारण होते है . जैसे पहले व्यक्ति  को यह आदत है की उसको आलू की सब्जी से गैस बनती है या उसने पहली बार इस जन्म में आलू की सब्जी खाई है और गैस बन गयी है तो उसके पुराने संस्कार इस सब्जी को खाते ही यह पहचान गए है की अब गैस बनेगी . आप ने कई बार खुद महसूस किया होगा की किसी अनजान व्यक्ति के साथ आप बहुत थोड़ा समय रहते ही घुल मिल जाते हो और किसी दूसरे अनजान व्यक्ति के साथ कई महीने साथ रहने के बावजूद घुलते मिलते नहीं हो . क्यों की जिस व्यक्ति के साथ आप तुरंत घुल मिल जाते हो , अनिवार्य रूप से आप ने पहले कभी ना कभी इस अमुक व्यक्ति के साथ बहुत ही अच्छा समय व्यतित किया है . और जिस व्यक्ति के साथ आप कई महीने गुजारने के बाद भी नहीं घुल मिल पा रहे हो , अनिवार्य रूप से आप ने इस अमुक व्यक्ति के साथ बहुत ही बुरा समय गुजारा है और उस दरमियान आप ने लगातार यह विचार स्वीकार किये है की कैसे भी करके मुझे इस व्यक्ति के साथ रहने से छुटकारा मिल जाए हे भगवान् . अर्थात आप ने खुद ने अपने मन की प्रोग्रामिंग इस प्रकार से की हे जिसे जिस प्रवृति का इनपुट मिलता हे आप का मन वैसा ही आउटपुट देता हे .

इसलिए मन को सुख दुःख की अनुभूति तब तक होती रहेगी जब तक हम यह मानेंगे की हम शरीर हैं, हम मन हैं , हमारे पास बुद्धि हैं इत्यादि .

परन्तु जब हम पूर्ण मनोयोग से क्रियायोग का अभ्यास करते हैं तो हमे यह ज्ञान होने लगता हैं की माया और ब्रह्म दोनों के साथ कैसे रहना हैं . इस अभ्यास से हम वर्तमान में जीने लगते हैं और धीरे धीरे योग की अवस्था प्राप्त होने लगती हैं . हमे अनुभव होने लगता हैं की हम खुद कुछ कर ही नहीं रहे हैं . कोई और शक्ति हमारे से सभी कर्म करवा रही हैं . अर्थात जब आप क्रियायोग का अभ्यास किसी पारंगत गुरु के सानिध्य में करते हैं तो आप को अनुभव होने लगता हैं की आप शरीर नहीं हैं , ना ही आप मन हैं , ना ही आप बुद्धि हैं . आप शुद्ध चैतन्य हैं . परमात्मा स्वयं आप की इस शरीर रचना के रूप में प्रकट हो रहे हैं . इस अभ्यास से आप धीरे धीरे स्थिरप्रज्ञ होने लगते हैं . आप इसी शरीर में रहते हुयी सभी प्रकार के बंधनो से मुक्त होने लगते हैं .

क्यों की क्रियायोग के अभ्यास से आप का यह भौतिक शरीर दिव्य शरीर में रूपांतरित होने लगता हैं .

प्रभु का यह लेख यदि आप को फायदा पहुँचाता है तो आप की यह नैतिक जिम्मेदारी बनती है की आप इस लेख को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक भेजकर हमारे इस सेवा मिशन में अपना अमूल्य योगदान देकर प्रभु के श्री चरणों में अपना स्थान सुनिश्चित करे . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .

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Saturday, November 30, 2024

क्रियायोग - आप दवा लेते है फिर भी बीमारी जाती क्यों नहीं है ?

आज मै आप को परमात्मा का वह रहस्य समझाने जा रहा हूँ जिसे यदि आप ने सही से समझ लिया तो फिर आप को बीमारी को कैसे ठीक करना है यह सही से समझ में आ जायेगा .

अभी आप को यही पता नहीं है की आप के बीमारी क्या है और ना ही आप के चिकित्सक को सही से पता है की आप के क्या बीमारी है . दरअसल होता क्या है की हम हमारे शरीर में जो हमारे माध्यम से किये गए गलत कर्मो के कारण कई प्रकार के परिवर्तन होते है उन्हें सहन नहीं कर पाते है और हम इन तरह तरह के परिवर्तनों से घबराकर मन में कई प्रकार के विचार लगातार पालते पोषते रहते है और समय पाकर यही विचार बीमारी के रूप में घनीभूत होकर हमारे शरीर में प्रकट होने लगते है .

जब हम किसी एक बीमारी का इलाज कराने चिकित्सक के पास जाते है तो वहाँ के वातावरण से दस बीमारी और लेकर आते है . जैसे आप तो सिर दर्द के इलाज के लिए चिकित्सक के पास गए थे और वहाँ आप को माईग्रेन  के तीन मरीज और मिल गए और आप के भीतर उनकी खुद की बीमारी से सम्बंधित कई विचार भर दिए . कुछ समय बाद ये विचार आप को यह विश्वास दिलायेंगे की आप ज्यादा चिंता मत करा करो नयी तो आप को भी माईग्रेन की बीमारी हो जाएगी .

ठीक इसी प्रकार हम चिकित्सक पर तो विश्वास करते है और दवा भी सही से लेते है पर जिन कारणों से यह अमुक बीमारी पैदा हुयी है उनको हम बंद नहीं करते . तो फिर आप ही बताईये आप की बीमारी ठीक कैसे होगी ?.

कई बार बीमारी पुराने संचित कर्मो के कारण भी फलित होती है . तो कई बार हम अमुक बीमारी से पीड़ित व्यक्ति की निंदा करते है , उससे घृणा करते है , खुद को औरो से ज्यादा स्वस्थ समझते है , ज्यादा अहंकार भाव में जीते है तब भी बीमारी हो जाती है .

किसी भी प्रकार के जीव को कष्ट देने से भी बीमारी हो जाती है . अर्थात जिस कारण से बीमारी होती है उसी कारण को ठीक करे बिना बीमारी से पूर्णतया मुक्ति पाना संभव नहीं है . जैसे यदि हम जहरीले रसायनों युक्त खाद्य पदार्थो का सेवन करेंगे और ज्यादा प्रदूषण में रहेंगे तो फिर यह शरीर रुपी मशीन बीमार तो होगी ही . इस संसार के सभी जीवों के अस्तित्व की सुरक्षा के लिए प्राकृतिक संतुलन बहुत आवश्यक है .

आप का सम्बन्ध संसार के हर प्रकार के जीव से इस प्रकार से है जैसे सागर से लहर . इसलिए ब्रह्माण्ड की हर एक घटना आप को प्रभावित अवश्य करती है . इसीलिए तो आप के मन में अचानक से तरह तरह के विचार आने लगते है .

बीमारी का जड़ से इलाज कैसे करे ?

क्रियायोग ध्यान का पूर्ण मनोयोग से पूरी श्रद्धा , भक्ति और विश्वास के साथ अभ्यास करने से आप को आप के वास्तविक स्वरुप का ज्ञान होने लगता है और बीमारी के पीछे छिपे असली कारणों का सही पता लगने लगता है . और फिर धीरे धीरे अभ्यास की निरंतरता से आप की बीमारी हमेशा के लिए ठीक हो जाती है .

प्रभु का यह लेख यदि आप को फायदा पहुँचाता है तो आप की यह नैतिक जिम्मेदारी बनती है की आप इस लेख को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक भेजकर प्रभु के श्री चरणों में अपना स्थान सुनिश्चित करे . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .

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Friday, November 22, 2024

क्रियायोग - पाइल्स (बवासीर) रोग का जड़ से इलाज

आज मै आप को पाइल्स रोग के कारण , इसमें होने वाली पीड़ा और इसका जड़ से इलाज कैसे करे इसके बारे में समझाने जा रहा हूँ .

जब आप पूर्ण मनोयोग से पूरी श्रद्धा , भक्ति और विश्वास के साथ क्रियायोग का अभ्यास करते है तो आप को इस रोग की पूरी सच्चाई का पता चल जाता है . जैसा की इस रोग के नाम में ही इसका प्रकट रूप छिपा है . अर्थात जब व्यक्ति का गुदा मार्ग व्यक्ति की खुद की गलत आदतों के कारण संक्रमित हो जाता है , यह क्षेत्र खराब खानपान और गन्दी आदतों के कारण पक जाता है , इसकी सरंचना असामान्य हो जाती है , गुदा मार्ग के अंदर बाहर मवाद वाले मस्से हो जाते है , कई बार शौच त्याग करते समय अधिक जोर लगाने के कारण गुदा मार्ग जो मल त्याग करके पुन अपनी सामान्य स्थिति में ना आकर इसका मुँह चौड़ा ही रह जाता है . जैसे आप ने जानवरों को गोबर करते हुए देखा होगा , जानवर जब गोबर करने के लिए तैयार होते है तो उनका गुदा मार्ग चौड़ा हो जाता है और गोबर करने के पश्चात वापस भीतर की तरफ सिकुड़ जाता है . यह सभी जीवों में एक सामान्य क्रिया होती है .

परन्तु जब व्यक्ति अपनी वासनाओं पर परमात्मा में विश्वास की कमी के कारण काबू नहीं कर पाता है तो वह अधिक उत्तेजना प्रदान करने वाले भोज्य पदार्थो का सेवन करने लगता है जैसे बहुत ज्यादा गर्म मसालों का प्रयोग करना , अधिक नमक , मिर्च वाले पदार्थ खाना , अप्राकृतिक मैथुन करना , अत्यधिक दवाओं का सेवन करना , अधिक स्वादिष्ट व्यंजनो का दास बन जाना , लगातार इसी बीमारी का चिंतन करना , इस बीमारी से घृणा करना , इस बीमारी से पीड़ित व्येक्तियों की निंदा करना , खुद चाहे प्राकृतिक भोजन करता हो पर इस बीमारी से पीड़ितों का मजाक उड़ाना , इस बीमारी की साइकोलॉजी में फस जाना , इस बीमारी को ही सच मान लेना , मन में यह विश्वास पैदा कर लेना की यह बीमारी मुझे भी होगी , मल के वेग को रोकना , लगातार कब्ज रहना , गैस्ट्रिक समस्या रहना , अधिक नमक के कारण गुदा मार्ग को खुजलाना ऐसे तमाम कारण है जिस वजह से यह बीमारी आज बहुत ज्यादा व्येक्तियों में पाई जाती है .

पाइल्स का जड़ से इलाज कैसे करे ?.

जब आप क्रियायोग का अभ्यास करते है तो आप का मन और शरीर धीरे धीरे प्राकृतिक अवस्था में आने लगता है . इस अभ्यास के माध्यम से जैसे जैसे आप के शरीर और मन के बीच दूरी घटने लगती है तो आप धीरे धीरे शांत होने लगते है और आप को अनुभव होने लगता है की मेरे साथ जो कुछ भी हो रहा है उसके पीछे एक शक्ति लगातार कार्य कर रही है और उस शक्ति का नाम परमात्मा की शक्ति है . इस शक्ति में ही वह ज्ञान छिपा है जो यह समझाता है ही जब आप मल त्याग करे तो किन बातों का ध्यान रखे , इसी ज्ञान के कारण आप के भोजन में मिर्च मसालों की कितनी जरुरत है आप को साफ़ साफ़ पता चलने लगती है क्यों की इस अभ्यास से आप परमात्मा से जुड़ने लगते हो और आप का मन वासनाओं की दिशा (संसार में बाहर भटकना) से मुड़कर अपने स्त्रोत (जिससे मन प्रकट होता है) की तरफ मुड़ने लगता है .

क्रियायोग के अभ्यास से आप खाने पिने को लेकर जाग्रत होने लगते है . उत्तेजना पैदा करने वाले भोजन के परिणाम आप को बिना भोजन करे पहले ही अनुभव होने लगते है , आप को अपनी गन्दी आदतों पर विजय दिलाता है क्रियायोग . आप को पता चलने लगता है की आप को इलाज के लिए पाइल्स का ऑपरेशन कराना चाहिए या नहीं , आप को पता चलने लगता है की कोनसी चिकित्सा पद्द्ति आप के लिए सबसे सही है .

जैसे आप एक प्रयोग करके देख सकते है की २ से ३ दिन तक अच्छा पका हुआ कैला खाये और इसके आगे पीछे २ घंटे तक कुछ भी ना खाये और पिए . तो आप को चमत्कारिक परिणाम देखने को मिलेंगे .

कैसे ?.

शायद आप को ज्ञात हो की कैला ठंडी प्रकृति का होता है और बहुत चिकना , मुलायम , घाव को भरने वाला , मिर्च मसालों से लगी आग को बुझाने वाला होता है . पर यह सब उपाय तभी काम करते है जब आप को क्रियायोग में पूर्ण विश्वास होता है . आप खुद ही अंदाजा लगा सकते है की तेज मिर्च मिसालों के कारण जो गुदा मार्ग में आग लगी है उसको शांत किसी ठंडे भोज्य पदार्थ से ही किया जा सकता है जो मुलायम हो और हल्का चिकना हो . इसलिए यदि आप पूर्ण शुद्ध २ से ३ चम्मच नारियल तेल को एक या २ पके हुए केलों में अच्छी तरह मिलाकर बहुत ही आराम से इसका सेवन करेंगे तो परिणाम आप को आश्चर्य चकित करेंगे ही करेंगे और आप की बीमारी इस अभ्यास और ऐसे प्रयोग से हमेशा के लिए जड़ से समाप्त होगी ही होगी .

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Friday, October 18, 2024

क्रियायोग - विचारों और भोजन में सम्बन्ध

आज मै आप को वह सच बताने जा रहा हूँ जिसे आप ने आज तक इस प्रकार से नहीं समझा है . भोजन विचार का ही घनीभूत रूप है . इसलिए यदि हम मांसाहार करते है और यह मन में विचार करे की यह भोजन सात्विक आहार में बदल जाए अर्थात हमे शक्ति प्रदान करे और हमारे स्वास्थ्य को ठीक रखे तो यह कितना प्रतिशत बदलेगा या नहीं बदलेगा या पूर्ण रूप से बदल जायेगा इस प्रश्न का जवाब मै आप को समझाने जा रहा हूँ .

जिस प्राणी का मांस हम खाते है वह चेतना के किस स्तर पर जी रहा है और हम चेतना के किस स्तर पर जी रहे है यह दोनों पैमाने यह निर्धारित करेंगे की बदलाव किस दिशा में होगा . जैसे जब हम यह मांस पकाते है उस समय हमारे विचार कैसे है और यही भोजन करते समय कैसे है . ठीक इसी प्रकार हमारे परिवार के और सदस्यों के इसी भोजन के प्रति विचार कैसे है और हमारी थाली में इसी भोजन के प्रति और लोगो के विचार कैसे है . अब आप ही सोचिये की जब एक ही विचार को इतनी बार दोहराये की वह पशु या अन्य प्राणी का मांश बन जाए और हम केवल भोजन करते समय यह विचार करे की यह सात्विक आहार में बदल जाए . कितना ज्यादा हम खुद को ही मुर्ख बनाते है . यह हमारा मन हमारे साथ धोखे का खेल खेलता है . आप देखा करो जब हमे किसी विशेष प्रकार के भोजन में अत्यधिक रूचि होती है और हम भूखे होते है और उसी समय वह भोजन हमारे सामने हमारे लिए आ जाये तो हम अत्यधिक प्रसन्न हो जाते है और बड़ी बड़ी ज्ञान की बाते और कई प्रकार के वादे करते है और उस समय हमे कोई जाग्रत व्यक्ति देखे तो वह तुरंत हमारी इस मूर्खता पर भीतर ही भीतर हँसता है और सोचता है की देखो यह अमुक व्यक्ति मन के जाल में किस प्रकार से फंसता जा रहा है .

अर्थात हमारे विचार भोजन को अवश्य प्रभावित करते है और जहरीले भोजन को अमृत में बदलने की शक्ति रखते है पर यह हमारी आत्मशक्ति पर निर्भर करता है की हम परमात्मा से कितना ज्यादा गहरा जुड़ाव महसूस करते है . एक पारंगत संत किसी मांसाहार को सात्विक आहार में तुरंत बदल सकता है पर एक सामान्य व्यक्ति ऐसा करने में बहुत कम सफल हो पाता है.

इसलिए हमारे शरीर और मन को भोजन की प्रकृति अवश्य प्रभावित करती है . इसीलिए तो ग्यानी जन कहते है की परमात्मा में भक्ति बढ़ाने के लिए पहले शरीर का स्वस्थ रहना बहुत जरुरी है और मानव शरीर तभी पूर्ण रूप से स्वस्थ रह पाता है जब इस शरीर को मानव से महामानव बनने के लिए जो परमात्मा ने आहार निर्धारित किया है उसी का हम सेवन करे .

प्रश्न यह आता है की मुझे सही भोजन करने की आदत कैसे विकसित करनी चाहिए या कैसे पता करू की मै भोजन सही कर रहा हूँ या नहीं जबकि मै अपने आप को शारीरिक रूप से पूर्ण स्वस्थ महसूस करता हूँ ?.

क्रियायोग का पूर्ण मनोयोग से जब आप पूरी निष्ठा , सच्ची श्रद्धा , भक्ति और विश्वास के साथ अभ्यास करते है तो आप के भोजन का सही प्रबंध प्रकृति स्वयं करती है . आप को ना तो मांसाहार छोड़ना है और ना ही मांसाहार पकड़ना है . आपको केवल और केवल क्रियायोग का अभ्यास करना है .

जैसे जैसे आप अभ्यास में गहरे उतरेंगे आप सम भाव में जीने लगेंगे . और विचारों और भोजन के बीच जो वास्तविक सम्बन्ध है उसको अनुभव के आधार पर महसूस कर लेंगे , सच जान जायेंगे .

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Wednesday, October 16, 2024

क्रियायोग - मै गलत हूँ या आप ?

आज मै आप को परमात्मा के उस गहरे राज को समझाने जा रहा हूँ जिसे यदि आप ने भीतर उतार लिया तो फिर मेरे और आप के बीच जो यह सही गलत का अज्ञानरूपी पर्दा है , वह हमेशा के लिए हट जायेगा .

जब आप पूर्ण मनोयोग से सच्ची श्रद्धा , भक्ति और विश्वास के साथ क्रियायोग का अभ्यास करते है तो आप को अनुभव हो जायेगा की मै और आप दो अलग अलग व्यक्ति है ही नहीं . मै और आप इस प्रकार से जुड़े है जैसे सागर से लहर और पानी से बूँद . अर्थात मै और आप माया के कारण दो भौतिक शरीरों के रूप में दिखाई देते है , परन्तु इन दोनों दिखाई देने वाले शरीरों और अदृश्य इनके मनो के पीछे सयुक्त रूप से एक ही शक्ति (प्राण , परमात्मा की शक्ति , जीवन शक्ति )   कार्य कर रही है जिससे इनके अस्तित्व सुरक्षित है . पर जिस प्रकार से एक ही प्रकार की विद्युत फ्रीज़ में पानी को ठंडा कर देती है और गीजर में पानी को गर्म कर देती है , ठीक इसी प्रकार से परमात्मा की शक्ति इन दोनों व्येक्तियों के चेहरे , विचार , सोच , याददास्त , रंग रूप , कद काठी इत्यादि अलग अलग प्रकट कर रही है .

अर्थात मेरे और आप के रूप में खुद परमात्मा ही प्रकट होकर अपनी माया लीला का आनंद ले रहे है और यह जो हमे सुख दुःख की अनुभूति होती है यह भी माया ही है . पर परमात्मा की यह माया लीला एक नियम के तहत चलती है ताकि कभी यह नहीं हो जाये की सत्य की जगह या सत्य के साथ साथ असत्य का भी अस्तित्व दिखाई देने लग जाए . केवल सत्य का ही अस्तित्व है .

जैसे मुझे इस पुरे संसार में सभी जीव मेरे ही अंश नज़र आते है पर कई बार मै खुद भी मेरे संचित कर्मो के कारण माया को सच मान बैठता हूँ और किसी मेरे ही प्रिये में दोष देखने लगता हूँ . पर भीतर से मुझे यह अहसास रहता है की मेरा अहंकार ही इन सभी कष्टों का कारण है . इसलिए मै परमात्मा से हर पल यही प्रार्थना करता हूँ की मेरे माध्यम से मेरे सभी मित्रों को परमात्मा से जुड़ने का अवसर मिले ताकि वे सभी हमेशा के लिए हरपल खुश रहने लग जाए . प्रभु का यह लेख यदि आपको फायदा पहुंचाता है तो यह आप की नैतिक जिम्मेदारी बनती है की आप इस लेख को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक भेजकर प्रभु के श्री चरणों में अपना स्थान सुनिश्चित करे . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .

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Monday, October 14, 2024

क्रियायोग - मन को वश में कैसे करे ?

आज मै आपको परमात्मा का वह राज बताने जा रहा हूँ जिस पर यदि आप ने विश्वास कर लिया तो फिर आप का मन आप के वश में होकर ही मानेगा .

सबसे पहले मै यह समझाता हूँ की मन क्या है ?.

इस प्रश्न का उत्तर मै आप को कई प्रकार से दूंगा ताकि आप मन को सही से समझ सके . यह पूरा संसार मन का साकार रूप है . आप का शरीर मन का साकार रूप है . इसके अलावा मन के सूक्ष्म रूप जैसे हमारी भावनाएँ, विचार , स्वाद , गंध , स्पर्श , सुख दुःख की अनुभूति ऐसे अनेक अदृश्य रूप भी मन के ही है .

मन परमात्मा की छाया है . सच तो यह है की मन होता ही नहीं है . फिर हम मन के बारे में इतनी बाते क्यों करते है ?.

परमात्मा की माया के कारण. मन माया है . मन ही कर्ता है और मन ही भोक्ता है . मन ही स्वाद लेता है , मन ही देखता है , मन ही सुनता है , मन ही सबकुछ अनुभव करता है .

हमारा मन इतना चंचल क्यों होता है और यह स्वतंत्र क्यों होना चाहता है या मन को बंधन पसंद क्यों नहीं होते है ?.

क्यों की मन परमात्मा की छाया है और परमात्मा कण कण में द्रश्य और अदृश्य रूप में व्याप्त है . अब आप ही बताइये जो वस्तु कण कण में अर्थात सर्वयापी है तो उसकी छाया किस जगह नहीं होगी ?.

अर्थात हमारा मन भी सर्वव्यापी है . जब मन ही सर्वव्यापी है तो फिर यह मन किसी एक जगह पर कैसे उपस्थित रह सकता है . अर्थात हम यह चाहते है की हमारा मन जब हम ऑफिस में हो तो यह घर पर नहीं होना चाहिए . ऐसा तभी संभव होता जब मन सर्वव्यापी नहीं होता और हमारा घर से कोई कर्म बंधन नहीं होता . आप इसे ऐसे समझे की आप का मन जब ऑफिस में होता है तो यह किसी अनजान व्यक्ति के घर पर नहीं होता है . यह उन उन जगहों पर ही होता है जिन जिन जगहों से आप ने जाने अनजाने में कर्म बंधन बाँध रखे है (अर्थात अभी आप को यह पता नहीं है की आप पूर्व जन्म में क्या थे ).

तो सबसे पहले तो आप यह निश्चित करे की आप को किन किन लोगों से रिश्ता रखना है , कौन कौन से दृश्य आप को पसंद है , किन किन जगहों को आप पसंद करते है , आप जीवन में क्या क्या चाहते है इत्यादि को पहले अपनी इच्छाओं में सम्मलित करे . अर्थात आप कैसा जीवन जीना चाहते है इसे पहचाने और अपने लक्ष्य में इसे सम्मलित करे .

अब यदि आप थोड़े से भी अपने विवेक का इस्तेमाल करेंगे तो आप को पता चलेगा की जब आप मन को ऑफिस समय में ऑफिस में ही रखना चाहते है और शाम को घर में आकर परिवार के साथ सुकून से समय बिताना चाहते है अर्थात आप अपने घर और परिवार को बहुत चाहते है तो आप क्या करेंगे जब अचानक आप के घर पर आप के ऑफिस टाइम में कोई अनहोनी घटना घट जाए जो आप यदि समय पर घर पहुंच जाते तो वह घटना टल सकती थी . अर्थात आप को प्रकृति कैसे संकेत देगी जब आप ऑफिस समय में घर से सम्बन्ध रखना ही नहीं चाहते. या इसे ऐसे समझे की आप ने किसी को ५००० रूपए उधार दिए और अब वह अमुक व्यक्ति पैसे लौटाने आप के पास आया तो क्या आप उससे कहेंगे की मुझे आप किस बात के पैसे दे रहे हो ?.

यह बात आप तभी कहेंगे जब या तो आप की यादास्त चली गयी हो या आप वीतरागी संत बन गए हो . यदि आप इस संसार में एक सामान्य व्यक्ति के जैसा जीवन जीना चाहते है जिसकी सोच महान है तो फिर आप को उधार दिए गए रूपए किसी न किसी माध्यम से आप के मन में याद रखना पड़ेगा . जैसे या तो आप उधार दी गयी रकम को किसी बहीखाते में लिखेंगे या तकनीक के माध्यम से कही और रूप में लिखेंगे .

आप के मन को याद है की आप एक शरीर के माध्यम से कार्य कर रहे है और अपने विवेक से यह सोच रहे है की मेरा मन मुझे बहुत परेशान करता है मै इसे वश में करना चाहता हूँ . अब यदि यही मन आप के शरीर में लगे पैरो को भूल जाए तो क्या आप को पता है जब आप ऑफिस में कुर्सी पर से खड़े होंगे तो आप तुरंत निचे गिर जायेंगे . इसलिए पहले यह समझने का प्रयास करे की मन को वश में करने का प्रश्न ही अप्राकृतिक है .

 अर्थात आप अप्राकृतिक रूप से मन को वश में करना चाहते है जो असंभव है .

तो फिर हम क्या करे की हमारा मन हमारे वश में हो जाये ?.

मन को वश में करने का सही अर्थ है परमात्मा को वश में करना .जो ना कभी संभव था , ना है और ना ही कभी होगा .

मन परमात्मा की शक्ति से कार्य करता है . इसलिए आप को मन को वश में करने के बजाय इसे सही दिशा में कैसे लेकर आया जाए ?.

इसका सही समाधान क्रियायोग का अभ्यास है . जब आप पूर्ण मनोयोग से सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र होकर हर एक क्रिया के प्रति सजग होने लगते है तो आप को मन की कार्य प्रणाली समझ में आने लगती है . आप को इस अभ्यास से समझ में आने लगता है की ९ बजे क्या काम करना है और इस काम के बाद कोनसा काम करना है . आप का मन आप को आप के माध्यम से किये गए संचित कर्मो के हिसाब से नाच नचाता है . पर जब आप क्रियायोग का अभ्यास करते है तो आप के संचित कर्म परमात्मा के प्रकाश में इस प्रकार से पिघलने लगते है की आप के जीवन की गाड़ी पटरी पर आने लगती है . यदि आप ने झूठ बोलने के कर्म किये है तो अब धीरे धीरे झूठ बोलने की आदत सच बोलने में रूपांतरित होने लगती है . आप को कोई बीमारी है तो वह स्वास्थ्य में रूपांतरित होने लगती है .

कुलमिलाकर आप को मन को वश में करने की बजाय मन की शक्ति से सेवा कार्य , कई प्रकार के रचनात्मक कार्य करते हुए (अर्थात इस मन रुपी छाया को पकड़ते हुए इसके मालिक परमात्मा के साथ एक होना है) अपने स्वरुप का दर्शन करना है , खुद से मिलना है , खुद को जानना है , आत्म ज्ञान प्राप्त करना है , प्रभु के दर्शन करना है , जीते जी मोक्ष को प्राप्त करना है .

प्रभु का यह लेख यदि आप को फायदा पहुँचाता है तो आप की यह नैतिक जिम्मेदारी बनती है की आप इस लेख को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक भेजे और हमारे इस सेवा मिशन में आप का अमूल्य योगदान देकर प्रभु के श्री चरणों में अपना स्थान सुनिश्चित करे . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .

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Saturday, October 12, 2024

क्रियायोग - सबकुछ आप के हिसाब से कैसे हो ?

आज मै आप को परमात्मा का वह राज बताने जा रहा हूँ जिस पर यदि आप विश्वास करके अभ्यास शुरू कर दे तो फिर हर काम आप के मन मुताबिक होने लगेगा . जब सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र होने का अभ्यास करते है तो आप को धीरे धीरे सर्वव्यापकता का अनुभव होने लगता है . अर्थात जब आप श्वास के साथ एकता स्थापित करने में सफल होने लगते है तो आप को धीरे धीरे यह समझमे आने लगता है की आप की यह श्वास ही इस दृश्य जगत के रूप में प्रकट हो रही है . आप के लगातार भूमध्य पर एकाग्र होकर ध्यान करने से और सिर के पीछे वाले भाग मेडुला में एकाग्र होने से और फिर धीरे धीरे शरीर के हर एक अंग में एकाग्र होकर ध्यान करने से आप को दूसरे के विचार पढ़ने में मदद मिलने लगती है . और धीरे धीरे आप को यह अनुभव होने लगता है की जो विचार आप के मन में लगातार चल रहा है वही विचार आप के सामने किसी व्यक्ति के माध्यम से प्रकट कर दिया जाता है .

अर्थात आप जब क्रियायोग का गहरा अभ्यास करते है तो आप को यह अनुभव होने लगता है की आप के सामने जितने भी लोग आ रहे है या जीव जंतु आप को दिखाई दे रहे है ये सब आप के अवचेतन मन के विचार ही है जो लगातार कई जन्मों से चलने के कारण अब आप के सामने घनीभूत होकर आप की आँखों के माध्यम से आप को दिखाई दे रहे है .

इसे मै आप को और आसान करके समझाने का प्रयास करता हूँ . जब आप क्रियायोग का गहरा अभ्यास करते है तो आप को यह साफ़ साफ़ दिखाई देने लगता है की पुरे ब्रह्माण्ड में प्रकाश है और यही प्रकाश आप के सिर के पीछे से प्रवेश करता है और शरीर रूप में गोल गोल घूमता हुआ घनीभूत हो रहा है और फिर इसी शरीर से चारो और विभिन्न रचनाओं के रूप में घनीभूत हो रहा है . अर्थात आप पुरे ब्रह्माण्ड के इस प्रकाश से इस तरह से जुड़े हो जैसे सागर से बूँद या समुद्र से लहर.

अब यदि आप चाहते है की आप के पास बंगला, गाड़ी, बड़ी खुद की कंपनी , अच्छा स्वास्थ्य , सुकून भरा परिवार , पूरी दुनिया में आप भ्रमण करे इत्यादि हो .

क्रियायोग से आप उपरोक्त इच्छा को निम्न प्रकार से पूरी कर सकते हो :

सबसे पहले आप आज से ही यह विश्वास करना शुरू करे की मै सब चीजे पढूंगा , सबकी बात सुनुँगा , सब दृश्य देखूंगा , सभी प्रकार के व्यंजनो का स्वाद लूंगा अर्थात एक बहुत ही साधारण मासूम बच्चे की तरह जीवन जीना शुरू करूँगा बिना किसी तर्क वितर्क के , बिना किसी सोच विचार के , बिना किसी वहम के इत्यादि पर शर्त यह है की हर क्रिया मै, सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र होकर करूँगा .

जब आप सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र होकर गीता पढ़ेंगे , कुरान पढ़ेंगे , बाइबिल पढ़ेंगे , महाभारत देखेंगे , रामायण पढ़ेंगे तो आप को इन सबके पीछे जो सत्य छिपा है उसका ज्ञान होने लगेगा . फिर आप को जैसे किसी ने कहा की राम ने रावण को मारा था तो इसका सही अर्थ समझ जायेंगे की इसका सही अर्थ है की मुझे मेरे भीतर के रावण से एकता स्थापित करनी है . आप को यह सच पता चल जायेगा की ये सभी ग्रन्थ मेरे भीतर से प्रकट हो रहे है .

अब आप किसी भी विचार को साकार रूप देने में सफल होने लगेंगे . क्यों की क्रियायोग से आप जाग्रत होने लगते है जिससे आप के मन , बुद्धि विकसित होने लगते है और आप अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण रखने में धीरे धीरे कामयाब होने लगते है . आप को यह समझ आने लगता है की जब आप बंगले की इच्छा को पूरी करने में मेहनत कर रहे हो तो इसी दरमियान गाड़ी की इच्छा को पूरी कब और कैसे करना है . अर्थात अलग अलग इच्छाओं के विचार आप को परेशान नहीं कर पायेंगे. क्यों की अब आप की दृष्टि उज्जवल होने लग गयी है . आप को पहले ही पता चल जाएगा की अमुक इच्छा के साथ साथ दूसरी कोन कोन सी इच्छाओं को फलित किया जा सकता है .

क्रियायोग के गहरे अभ्यास से आप को यह अनुभव होने लगता है की जैसे आज आप को कंपनी में जाकर कोई बड़ा निर्णय लेना है पर अचानक आप के पेट में तेज दर्द शुरू होकर यह संकेत दे देता है अभी आप कंपनी ना जाए क्यों की अभी परमात्मा की इच्छा नहीं है . और आप को कुछ समय बाद पता चल जायेगा की उस दिन कंपनी नहीं आये तो बहुत अच्छा रहा .

क्रियायोग का गहरा अभ्यास आप को इस सच का अनुभव करा देता है की आप के और परमात्मा के बीच दूरी शून्य है और आप की सभी इच्छाये परमात्मा की इच्छाये ही होती है . अर्थात आप को यह क्षमता मिली ही नहीं है की आप प्रभु की इच्छा से अलग कोई अन्य इच्छा जाहिर कर सके . इसलिए क्रियायोग कहता है की ब्रह्मांडीय गतिविधियाँ प्रभु की इच्छा से ही चलती है .

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क्रियायोग - हमे सुख और दुःख की अनुभूति क्यों होती है ?

आज मै आप को यह गहराई से समझाने जा रहा हु की हमे सुख और दुःख की अनुभूति क्यों होती है . हमे सुख और दुःख की अनुभूति परमात्मा के माध्यम से जो...