आज मै आप को यह गहराई से समझाने जा रहा हु की हमे सुख और दुःख की अनुभूति क्यों होती है .
हमे सुख और दुःख की अनुभूति परमात्मा के माध्यम से जो माया का खेल चल रहा है उसके कारण होती है . अर्थात जब हम, हमारा परमात्मा से अलग अस्तित्व मानकर जीवन जीने लगते है तो अहंकार के कारण हमारा जीव भाव मजबूत होने लगता है और हमे परमात्मा और हमारे बीच एक दूरी का अनुभव होने लगता है . यह दूरी ही हमारे सभी कष्टों का कारण है .
क्रियायोग के निरंतर अभ्यास से हम इस दूरी को धीरे धीरे कम करने में कामयाब होने लगते है . जैसे मुझे आप सभी मेरे ही अंश अनुभव होते हो . क्यों की आप और मै सर्वव्यापी है . यदि आप को यह विश्वास है की परमात्मा आप से कही दूर किसी और जगह है तो इससे यह सिद्ध होता है की आप अभी माया के प्रभाव में जी रहे हो . इसलिए आपने जिस प्रकार के संस्कार संचित कर रखे हैं उसी प्रकार का आप का मन है और वह चीजों को इसी प्रारब्ध प्रोग्रामिंग के अनुसार अनुभव करता है .
इसे मै आप को एक उदाहरण से समझाता हूँ :
जैसे दो व्येक्तियों ने आलू की सब्जी खाई और उनमे से पहले व्यक्ति के सब्जी खाने के कुछ समय बाद पेट में गैस बन गयी और दूसरे व्यक्ति को कोई दिक्कत नहीं हुयी .
ऐसा क्यों हुआ ?
इसके पीछे अनेक कारण होते है . जैसे पहले व्यक्ति को यह आदत है की उसको आलू की सब्जी से गैस बनती है या उसने पहली बार इस जन्म में आलू की सब्जी खाई है और गैस बन गयी है तो उसके पुराने संस्कार इस सब्जी को खाते ही यह पहचान गए है की अब गैस बनेगी . आप ने कई बार खुद महसूस किया होगा की किसी अनजान व्यक्ति के साथ आप बहुत थोड़ा समय रहते ही घुल मिल जाते हो और किसी दूसरे अनजान व्यक्ति के साथ कई महीने साथ रहने के बावजूद घुलते मिलते नहीं हो . क्यों की जिस व्यक्ति के साथ आप तुरंत घुल मिल जाते हो , अनिवार्य रूप से आप ने पहले कभी ना कभी इस अमुक व्यक्ति के साथ बहुत ही अच्छा समय व्यतित किया है . और जिस व्यक्ति के साथ आप कई महीने गुजारने के बाद भी नहीं घुल मिल पा रहे हो , अनिवार्य रूप से आप ने इस अमुक व्यक्ति के साथ बहुत ही बुरा समय गुजारा है और उस दरमियान आप ने लगातार यह विचार स्वीकार किये है की कैसे भी करके मुझे इस व्यक्ति के साथ रहने से छुटकारा मिल जाए हे भगवान् . अर्थात आप ने खुद ने अपने मन की प्रोग्रामिंग इस प्रकार से की हे जिसे जिस प्रवृति का इनपुट मिलता हे आप का मन वैसा ही आउटपुट देता हे .
इसलिए मन को सुख दुःख की अनुभूति तब तक होती रहेगी जब तक हम यह मानेंगे की हम शरीर हैं, हम मन हैं , हमारे पास बुद्धि हैं इत्यादि .
परन्तु जब हम पूर्ण मनोयोग से क्रियायोग का अभ्यास करते हैं तो हमे यह ज्ञान होने लगता हैं की माया और ब्रह्म दोनों के साथ कैसे रहना हैं . इस अभ्यास से हम वर्तमान में जीने लगते हैं और धीरे धीरे योग की अवस्था प्राप्त होने लगती हैं . हमे अनुभव होने लगता हैं की हम खुद कुछ कर ही नहीं रहे हैं . कोई और शक्ति हमारे से सभी कर्म करवा रही हैं . अर्थात जब आप क्रियायोग का अभ्यास किसी पारंगत गुरु के सानिध्य में करते हैं तो आप को अनुभव होने लगता हैं की आप शरीर नहीं हैं , ना ही आप मन हैं , ना ही आप बुद्धि हैं . आप शुद्ध चैतन्य हैं . परमात्मा स्वयं आप की इस शरीर रचना के रूप में प्रकट हो रहे हैं . इस अभ्यास से आप धीरे धीरे स्थिरप्रज्ञ होने लगते हैं . आप इसी शरीर में रहते हुयी सभी प्रकार के बंधनो से मुक्त होने लगते हैं .
क्यों की क्रियायोग के अभ्यास से आप का यह भौतिक शरीर दिव्य शरीर में रूपांतरित होने लगता हैं .
प्रभु का यह लेख यदि आप को फायदा पहुँचाता है तो आप की यह नैतिक जिम्मेदारी बनती है की आप इस लेख को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक भेजकर हमारे इस सेवा मिशन में अपना अमूल्य योगदान देकर प्रभु के श्री चरणों में अपना स्थान सुनिश्चित करे . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .