इतनी मेहनत करने के बावजूद आप को ख़ुशी क्यों नहीं मिल रही है ?

क्यों की अभी हम खुद से ही झूठ बोलते है . अभी हमें मन का
इस्तेमाल कैसे करना है इसकी सही ट्रेनिंग मिली ही नहीं है . क्रियायोग ध्यान का
अभ्यास हमारे मन को इस प्रकार से ट्रेंड करता है की हम हर प्रकार की मुसीबत से
बाहर निकलने लगते है और वो भी बहुत आसानी से .

जैसे यदि आप व्यापार को लेकर चिंतित रहते है , कर्मचारी आप का
कहना नहीं मानते है
, माल की उधारी
वापस नहीं आ रही है
, लोग पैसा नहीं
देते है इत्यादि .

इन सभी समस्याओं का शत प्रतिशत कारण आप खुद
ही है . कैसे
?

जब आप ने माल बेचा था तो उसी समय आप के मन में यह भी चल रहा
था की इनके पैसे कहा जायेंगे यदि मै इनको माल दे भी दूंगा तो पैसे तो मै निकलवा
लूंगा . यह तो मेरे परिचित ही तो है . अगर ये पैसे नहीं देंगे तो मै इनके अमुक
रिश्तेदार से कहकर पैसे ले लूंगा . या यह चलता है की ये तो पैसे वाली फर्म है इनका
कोई माल गिरवी रखकर मेरी उधारी वसूल कर लूंगा . या यह चलता है की जितना देर से ये
मेरा उधारी का पैसा देंगे मुझे तो उतना ज्यादा ब्याज ही मिलेगा . इस प्रकार से आप
अनेक ख़याली पुलाव अपने मन में पकाते रहते है और आप इस वास्तविक सत्य से दूर हो
जाते है की वर्तमान में मै यह माल का सौदा सही कर रहा हूँ या नहीं . अर्थात आप यह
नहीं सोचते है की कल किसने देखा मुझे तो भूख अभी लग रही है और होटल वाला कह रहा है
की आप अभी पेमेंट जमा करा दो आप को खाना कल मिल जायेगा . तो क्या आप भूख अभी लग
रही है और कल तक का इन्तजार करेंगे . कभी नहीं .

फिर आप ऐसी गलतियाँ क्यों करते है ?

क्यों की आप क्रियायोग ध्यान का वास्तविक रूप में अभ्यास
नहीं करते है . अर्थात आप कल पैसे आएंगे के लालच में फ़सकर आज की ख़ुशी को दाव पर
लगा देते है और आप को तो पता है ही कल आता ही नहीं है . जीवन तो वर्तमान का नाम है
.

अब प्रश्न आयेगा की फिर तो उधारी बिलकुल भी नहीं
देनी चाहिए
?

नहीं . ऐसा नहीं है . जब आप क्रियायोग ध्यान का गहरा अभ्यास
करते है तो आप को यह सच पता चलने लगता है की किस व्यक्ति को उधार देना चाहिए और
किस व्यक्ति को नहीं .

धन्यवाद जी . मंगल हो जी .

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