किसी भी धर्म या सम्प्रदाय की सही परिभाषा यह होती है

आज मेरे प्यारे साथियों आप के मन से धर्म या सम्प्रदाय को
लेकर जो भी मतभेद है या विचार है या आप की क्या राय है या
  धर्म या सम्प्रदाय का वास्तविक अर्थ क्या है इन
सभी का जवाब इस लेख को बहुत ही ध्यान पूर्वक पढ़ने से मिल जायेगा . इसके बाद आप को
कभी यह विचार परेशान नहीं करेगा की धर्म या सम्प्रदाय क्या है और इसकी कैसे रक्षा
की जाये .

अब आप जब इस लेख को पढ़ रहे है तो सबसे पहले
आप अपने मन की स्थिति को अच्छी तरीके से जांच ले . यदि इस लेख को पढ़ने के समय आप
का मन शांत है और आप एक बहुत ही गहरे आनंद को अनुभव कर रहे है तो आप को यह लेख
बहुत ही शिग्रता से समझ में आ जायेगा .

और यदि अभी आप अशांत है , जल्दबाजी में है , तनाव में है तो
फिर भूल जाइये इसे गहराई से समझना . क्यों की जब तक आप का मन शांत नहीं होता है तब
तक चीजे किस तरीके से दिखाई पड़ रही है
, या आवाज कैसी है इत्यादि वास्तविक रूप में समझ में नहीं आती
है .

हम आशा करते है की आप अब बहुत ही शांति और
एकाग्रता से इस लेख को पढ़ रहे है
:

अब आप अपने शरीर को याद करे की इसमें क्या क्या अंग जुड़े
हुए है . जैसे आप के दो पैर है
, दो हाथ है , एक नाक है . और इन अलग अलग अंगो का अलग अलग काम है जिससे यह
शरीर जिन्दा है . अलग अलग अंग होते हुए भी एक साथ जुड़कर आप के सारे काम कर रहे है
. इसका मतलब यह हुआ की जिस शक्ति से ये सभी अंग जुड़कर एक साथ रहकर आप को एक सही
शरीर का अहसास करा रहे है और आप अपने आप को शरीर मानकर रोजमर्रा के कार्य सुचारु
रूप से कर रहे है . ठीक आप के जैसे ही दूसरे व्यक्ति भी यह सभी अहसास कर रहे है और
अपना जीवन ख़ुशी से व्यतीत कर रहे है .

अब यदि कोई दूसरा व्यक्ति अचानक आकर आप के सिर पर बैठ जाए
तो आप क्या करेंगे
?.

या तो आप गुस्सा करेंगे या आप उसको निचे गिरा देंगे यदि आप
उससे ज्यादा ताकतवर है तो या आप निचे गिर जायेंगे
, या आप परेशान हो जायेंगे या आप उससे झगड़ा
करेंगे . ठीक इसी प्रकार से इस संसार में विभिन्न प्रकार के लोग
, जीव जंतु , नदिया , पहाड़ अर्थात
विविधता ही संसार है . और पूरा संसार उसी शक्ति से प्रकट हो रहा है जिस शक्ति से
आप प्रकट हो रहे है . अब यदि आप की सोच बहुत सारे लोगों से मिल जाती है तो आप उनको
आप जैसा मानने लगते है . और यदि लोगों के अन्य समूहों से आप की सोच नहीं मिलती है
तो आप उनको खुद से अलग मानने लगते है . और होना भी यही चाहिए . क्यों की यही
प्राकृतिक समझ है . पर जब आप अहंकार भाव के कारण खुद के समूह को दूसरे समूह से
श्रेष्ठ मानने लगते है तो उस समूह को भी बुरा लगता है . क्यों
?. 
क्यों की हम सभी एक ही शक्ति से निर्मित है और इसी शक्ति को
अहंकार के कारण हम कई भागों बांटने लगते है . इसलिए सबसे पहले हमे यह स्वीकार करना
चाहिए की हम सभी इसी शक्ति (परमात्मा) की संतान है .

अब आप के मन में यह प्रश्न आयेगा की अमुक
समुदाय के कर्म ठीक नहीं है और वह हमारे समुदाय से ज्यादा हिंसा करता है . तो क्या
हम उस समुदाय विशेष को भी सही मान ले
?

तो इसका जवाब यह है की हमें यह याद रखना चाहिए की हमारे
शरीर में मुँह भी है और मल त्याग के लिए गुदा भी है . हम कभी गुदा से भोजन नहीं कर
सकते और कभी गुदा से मुँह जितना प्रेम नहीं कर सकते है . फिर भी मुँह के समान ही
गुदा को भी हमारे शरीर में साथ ही रखते है ना की शल्य चिकित्सा के माध्यम से शरीर
से अलग करा लेते है . अर्थात हम गुदा से घृणा नहीं करते है .

ठीक इसी प्रकार हम सभी का केवल एक ही धर्म है की हम यह अनुभव
करले की हम सभी ईश्वर की संतान है और अलग अलग रूपों में प्रकट हो रहे है . इसलिए
हमें सभी प्रकार के जीवों का सम्मान करना चाहिए और सत्य – अहिंसा का मार्ग अपनाना
चाहिए . यदि आप इन जात पात
, धर्म – सम्प्रदाय को लेकर बहस करेंगे तो आप कही भी नहीं
पहुँच पायेंगे और आप को अंत में अहसास होगा की आप ने अनमोल जन्म ऐसे ही व्यर्थ गवा
दिया . इसलिए अब जाग्रति का समय आ गया है और हम सभी को मिलकर क्रियायोग ध्यान का
अभ्यास पुरे मनोयोग से करना है . धन्यवाद जी .
मंगल हो जी .

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