सबसे पहले आप एकांत स्थान का चुनाव करले . अब आप अपने शरीर को जिस अवस्था में भी रखने में सहजता महसूस करते है उसमे रख ले . जैसे यदि आप सुखासन में या पद्मासन में या वज्रासन में या खड़े होकर या लेटकर या अन्य कोई स्थिति में आ सकते है .
अब आप धीरे धीरे अपनी आँखे बंद करले . यदि आँखे बंद करने में असहजता महसूस हो तो आंशिक रूप से आँखे बंद करले या फिर ना करे . अब आप अपने मन को जांचे की इस समय उसमे क्या चल रहा है और फिर जैसे ही आप मन को महसूस करे इसका ध्यान आज्ञा चक्र पर लेकर आ जाए . अब मन का ध्यान आज्ञा चक्र के साथ साथ श्वास पर भी लेकर आये . पता करे की अभी श्वास कैसी चल रही है . मन में आने वाले हर एक विचार पर गौर करे की यह कहाँ से उठ रहा है . इसी दौरान आप श्वास को भूलने लगेंगे और फिर आज्ञा चक्र से ध्यान हटने लगेगा क्यों की जैसे ही आप किसी विचार पर गौर करने लगते है तो उसी विचार के साथ साथ आप इससे जुड़े अन्य विचारों में खोने लगते है और फिर आप को एकदम से याद आता है की अरे मुझे तो अपनी श्वास को याद रखना था . मुझे तो आज्ञा चक्र को याद करना था .
इस प्रकार से जब आप मेरे साथ यह अभ्यास नियमित रूप से करेंगे तो धीरे धीरे आप को यह अहसास होने लगेगा की मै शरीर नहीं हूँ . और मै विचार भी नहीं हूँ , मै मन भी नहीं हूँ . सही कहूँ तो मै कुछ हूँ ही नहीं . फिर मै कौन हूँ . ऐसे अनेक विचार मन में उठने लगते है .
यह सब हमारे अहंकार भाव के कारण उठते है . पर जब आप श्वास से जुड़ने लगते है . सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र होने लगते है तो आप को पता चलने लगता है की प्रभु का प्रेम ही आप के रूप में लगातार बह रहा है . यही प्रेम श्वास बन जाता है और फिर यही श्वासे एकत्रित होकर हाड मांश बन जाती है .
अब आप धीरे धीरे यह पता करे की आखिर आप की श्वास नाक के छिद्र से जा कहाँ रही है . क्या यह पेट तक जा रही है या फिर सीने से वापस लौट आती है ?.
ऐसा भी हो सकता है की आप की श्वास पेट से निचे घुटनों तक जा रही हो . वास्तविकता में तो आप की श्वास सिर से लेकर पाँव तक में हर एक सेल तक जा रही है पर आप इस श्वास को जहा जहा महसूस कर रहे है वहाँ वहाँ के ज्ञान के केंद्र ही जाग्रत हो रहे है . ऐसा क्यों ?
क्यों की मन में अनेक विचारों के उठने के कारण आप जो श्वास और शरीर के माध्यम से प्राण ऊर्जा ग्रहण कर रहे हो वह बहुत ही कम मात्रा में होती है . और इसी प्राण ऊर्जा की कमी के कारण आप शरीर के हर हिस्से को महसूस नहीं कर पाते हो .
आप का मन तभी शांत रहता है जब आप की श्वास प्राकृतिक गति से चले . अर्थात जब आप दौड़े तो आपकी श्वास की गति हल्की सी तेज हो जाए और जब आप आराम कर रहे हो तो फिर आप की श्वास भी धीमी हो जाए . और जब आप बहुत ही गहरी शांति में हो जैसे बहुत गहरी नींद में तो फिर आप की श्वास सहजता से चलती हो .
यदि आप अपनी श्वास को पेट तक महसूस नहीं कर पा रहे है तो फिर आप खुद थोड़ा प्रयास करके श्वास को पेट तक भरे और बहुत ही सहजता से छोड़े . ऐसा करने से आप धीरे धीरे अपनी श्वास को पेट तक महसूस करने लग जायेंगे . फिर बाद में आप को बार बार यह अभ्यास नहीं करना पड़ेगा की पेट तक श्वास महसूस करने के लिए आप खुद प्रयास करे .
इसी प्रकार से यदि आप अभी अपनी श्वास को अपने पैरो में महसूस नहीं कर पा रहे है तो फिर आप पहले जमीन पर बैठ जाए या कुर्सी पर बैठ जाए . और फिर पहले बाए पैर को कड़ा ढीला करे या धीरे धीरे ऊपर निचे करे . और यह करते समय आप सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र रहे . तो आप देखेंगे की आप की श्वास की गति बदल गयी है . इससे यह पता चलता है की आप का पूरा शरीर श्वास लेता है .
फिर यही क्रिया दाये पैर के साथ दोहराये . पर जब आप का मन अशांत होता है तो पुरे शरीर को श्वास आवश्यक मात्रा में नहीं मिल पाता है और जो हम श्वास के माध्यम से प्राण ग्रहण कर रहे थे उनकी आपूर्ति बाधित होने लगती है और इसी कारण से हमें बीमारियाँ सताने लगती है . इसलिए आप हर समय अपनी श्वास को याद रखे . तो धीरे धीरे आप मन में उठने वाले विचारों से परेशान नहीं होंगे . क्यों की इस अभ्यास के करने से आप धीरे धीरे विचारों का चुनाव करने में सफल होने लगते है . आप को यह ज्ञान होने लगता है की मेरा मन अभी किस तरीके से शांत होगा . श्वास को साधने के कारण आप चिंता की जड़ों को हमेशा के लिए नये जीवन के अंकुरण की जड़ों में रूपांतरित करने में सफल होने लगते है . क्यों की आप इस अभ्यास से सृजन की शक्ति से जुड़ने लगते है . इस प्रकार से आप का मन आपके नियत्रण में आने लगता है और आप शांत स्वभाव के व्यक्तित्व के धनी हो जाते है . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .