क्रियायोग – आप जो सोचते है वह होता क्यों नहीं है ? भाग १

आज मै आप को क्रियायोग के अभ्यास से यह समझाऊंगा की आप जो
सोचते है वह होता क्यों नहीं है
?.

आप को अभी ठीक से सोचना आता ही नहीं है . आप को यह सही
से पता नहीं है की जो आप देख रहे है
, सुन रहे है , बोल रहे है वह वास्तविक रूप में कितना सच है . आप हमेशा
अपनी बुद्धि से
, मन से , कल्पना से , या किसी से
प्रभावित होकर सोचते है . जब आप पूरी श्रद्धा
, भक्ति और विश्वास
के साथ क्रियायोग का अभ्यास करेंगे तो आप को पता चलेगा की मन
, बुद्धि , और शरीर का
अस्तित्व है ही नहीं . यह सब माया से प्रकट होते है
. अब आप ही
अंदाजा लगा सकते है की जिसका अस्तित्व ही नहीं है उससे सोचेंगे तो चीज जो कुछ भी
है आप को प्राप्त होगी कैसे
?.

आप
को यह समझना पड़ेगा की मन
, बुद्धि और शरीर के पीछे ऐसी कोनसी शक्ति
है जिसके माध्यम से ये कार्य करते है
. इस अभ्यास से आप को
ह्रदय का वास्तविक स्वरुप पता चलने लगेगा . जैसे आप ने सोचा की मै इस अमुक
व्यवसाय में सफल हो जाऊंगा और ५ वर्ष में मेरा व्यवसाय २ करोड़ का हो जायेगा . पर
आप के साथ ऐसा हुआ नहीं . क्यों
?. क्यों की जो
लक्ष्य आप ने बनाया था उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए जितनी प्राण ऊर्जा की
आवश्यकता थी उतनी आप ने एकत्रित करि ही नहीं . इसका अर्थ यह होता है की आप जब कोई
भी लक्ष्य बनाते है तो आप को अपने भीतर की सच्चाई का भी पता रखना चाहिए . जैसे कोई
लक्ष्य साकार रूप धारण करने के लिए
x  मात्रा में ऊर्जा चाहता है और वह आप उचित
समय में एकत्रित नहीं कर पाते है तो आप ही समझ ले की आप को लक्ष्य की प्राप्ति
कैसे होगी .

अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए इस ऊर्जा
को कैसे प्राप्त करे
?

पूरी श्रद्धा , भक्ति और विश्वास के साथ निरंतर क्रियायोग का अभ्यास करके
आप इसे बहुत ही आसानी से प्राप्त कर सकते है . जब आप नियमित रूप से क्रियायोग का
अभ्यास करते है(प्राण ऊर्जा से जुड़ने की क्रिया) तो आप के मन
, बुद्धि विकसित
होने लगते है . अर्थात आप के सोचने समझने की क्षमता बढ़ने लगती है . आप को यह पता
चलने लगता है की लक्ष्य को लेकर आप क्या क्या गलतियाँ कर रहे है . आप को धीरे धीरे यह पता चलने लगता है की जो आप सोच रहे है वह
प्राकृतिक रूप से संभव भी है या नहीं है. अर्थात ब्रह्मांडीय गतिविधियाँ प्रभु की
इच्छा से ही चलती है . यदि आप की इच्छा प्रभु की इच्छाओँ के समुच्य में नहीं आती
है तो आप ऐसी इच्छा को फलित नहीं कर सकते है
.
अर्थात आप केवल सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलकर
, उस इच्छा को फलित करने के लिए सच में मेहनत
करते है
, रात दिन आप यह
महसूस करते है की आप लक्ष्य की और सही गति से आगे बढ़ रहे है . आप के लक्ष्य के
मार्ग में जो भी बाधाएं आ रही है उन्हें आप परमात्मिक अनुभूति मानकर स्वीकार करके
उन बाधाओं को आप के लक्ष्य के रूप में बदलने में सफल हो जाते है तो फिर आप अपने
लक्ष्य की तरफ तीव्र गति से आगे बढ़ने लगते है .

लक्ष्य प्राप्ति में आने वाली बाधाओं को
लक्ष्य के रूप में कैसे बदले
?

यह भी आप को क्रियायोग के और गहरे अभ्यास से पता चलने लगता
है . जैसे आप अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए बाजार में कोई वस्तु लेने गए हो और
आप के पास पैसे कम पड़ गए
,
तो आप अब क्या
करेंगे
?.

यदि आप क्रियायोग का सही से अभ्यास करते है तो आप को यह
अनुभव हो जायेगा की आप को अभी इस अमुक वस्तु की जरुरत नहीं है . और इस सच का पता
आप को बाद में चलेगा की यदि मै यह वस्तु उस दिन लेकर आ जाता तो मेरे आगे के इतने
सारे काम इस वस्तु या वस्तु में लगे पैसो के कारण अटक जाते . इससे आप को पता चलने
लगेगा की लक्ष्य प्राप्ति के लिए परमात्मा आप की हर पल मदद किस किस रूप में आकर कर
रहे है . जब आप पूर्ण मनोयोग से क्रियायोग का अभ्यास करेंगे तो आप को मन की कार्य
प्रणाली समझ में आने लगेगी . आप को धीरे धीरे यह ज्ञान समझ में आने लगेगा की विचार
को वास्तविक रूप में कैसे बदला जाता है . आप अपने मन का नये सिरे से निर्माण करने
में सफल होने लगते है .

क्रियायोग कैसे आप की सोच(अर्थात आप के विचार
को) को साकार रूप देता है
?

जब आप भूमध्य साधना करते है , कूटस्थ(मेडुला) पर ध्यान करते है और ठीक इसी
प्रकार सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र होकर शरीर और मन  की और बाहर की सभी क्रियाओं से जुड़ने लगते
है(अर्थात इन क्रियाओं में एकाग्र होकर इन पर ध्यान करना बहुत ही प्रसन्नता के
साथ) तो आप को धीरे  धीरे अनुभव होने लगेगा
की किस प्रकार परम चेतना ही मानवीय चेतना का रूप धारण कर रही है(अर्थात अब आप
परमात्मा से प्राण ऊर्जा प्राप्त करते हुए अनुभव करने लगते हो) . आप को अनुभव होने
लगेगा की आप का पूरा शरीर परमात्मा के प्रकाश से बन रहा है . आप हाड
, मांश, चमड़ी , खून  नहीं हो . आप को कल्पना करना(अर्थात ठीक से
सोचना) आने लगेगा . और कैसे कल्पना को साकार रूप दे इसका ज्ञान इस प्राण ऊर्जा में
छिपा होता है जिसे अब आप पढ़कर
, अनुभव करके अपनी सोच को साकार रूप देने में तीव्र गति से
सफल होने लगेंगे.

आप को इस ज्ञान का पता चलेगा की आप किस प्रकार अपने
प्रारब्ध को बदलकर लक्ष्य को प्राप्त करे .

अपने
लक्ष्य को प्राप्त करने में आवश्यक शर्ते :

किसी की निंदा ना करे .

किसी की बुराई ना करे.

किसी में दोष ना ढूंढे.

सत्य
और अहिंसा का पालन करे .

सभी जीवों में परमात्मा का स्वरुप ही देखने का अभ्यास करे .

अपने सभी सुखो और दुखो की शत प्रतिशत
जिम्मेदारी खुद पर ले .

आगे के भाग २ में मै आपको और गहराई से समझाऊंगा की विचार
क्या है
, ये कैसे उत्पन्न
होते है
, आप किसी इच्छित
विचार को कैसे उत्पन्न करे और फिर कैसे इस विचार को साकार रूप दे . प्रभु का यह लेख यदि आपको लाभ पहुँचाता है तो आप की यह नैतिक
जिम्मेदारी बनती है की आप इस लेख को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक भेजकर हमारे इस
सेवा मिशन में आप का अमूल्य योगदान देकर प्रभु के श्री चरणों में अपना स्थान
सुनिश्चित करे . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .

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