मेरे प्यारे मित्रों जब हमारे जीवन में ऐसी परिस्थिति आ
जाये की पैसे कमाने के सभी रास्ते बंद हो जाये और घर में रोज रोज इसे लेकर झगड़े
होने लगे और बीमारियाँ घर करने लग जाये , मानसिक तनाव रहने लग जाये , मृत्यु का भय
सताने लग जाये , ऐसे तमाम प्रकार
के संकट खड़े हो जाये तो क्या करे ?
उत्तर : केवल और केवल क्रियायोग ध्यान का अभ्यास करे .
क्रियायोग ध्यान में वह क्षमता है जिससे हम आग में बाग़ और
बाग़ में आग लगा सकते है . हमारे भीतर छिपी शक्तियाँ तभी जाग्रत होती है जब हम
भयंकर संकट के समय भी परमात्मा में विश्वास को नहीं छोड़ते है और पूर्ण आनंद के साथ
हँसते हँसते ऐसे दुःख के समय को स्वीकार कर लेते है . अर्थात परमात्मा के समक्ष
पूर्ण श्रद्धा , सच्ची भक्ति , और पूर्ण मनोयोग
से समर्पण कर देते है तो फिर शुरू होते है चमत्कार . क्यों की यही वह कर्म था जो
हमने हँसते हँसते काट लिया . हमारी ऐसी स्थिति होने का बीज हमने ही कभी न कभी बोया
था . जिसके अब उदय होने का समय आ गया है . अब यह हमारे हाथ में है की आप इस कर्म
फल को किस रूप में स्वीकार करते है . यदि हम इसे परमात्मा के रूप में स्वीकार कर
लेंगे तो हमारे को पीड़ा नहीं होगी . और यदि हमने इसे यह कहकर स्वीकार नहीं किया की
हमने थोड़े ही यह कर्म कभी किया था , हम क्यों इसे भोगे. हमारे इस प्रकार के भाव में एक अहंकार
का भाव छिपा है . यही वह अहंकार का भाव है जो हमारे को भयंकर दर्द दे रहा है .
यदि हम भयंकर गरीबी में भी लगातार क्रियायोग ध्यान का अभ्यास
करते है तो फिर गरीबी अमीरी में बदलने लगती है . क्यों की क्रियायोग ध्यान का
अभ्यास हमें हमारे वास्तविक माता – पिता से मिलाता है .
अब आप ही बताइये जब एक शिशु को भूख लगती है
तो वह क्या करता है ?.
वह दूध पिने के लिए रोने लगता है . और उसके रोने की पुकार
सुनकर उसकी माँ तुरंत सारे काम छोड़कर अपने बच्चे को दूध पिलाने आ जाती है .
ठीक इसी प्रकार हम परमात्मा के बड़े बच्चे है हमारे को एक
शिशु की तरह रोने के बजाये जाग्रत होकर ध्यान करने की जरुरत है . अर्थात हम अकेले में रोकर अपने परमपिता को पुकार सकते है
. पर सड़क पर रोकर पुकारेंगे तो लोग हमारे को पागल खाने भेज देंगे . या हम ऐसे व्यक्ति के पास जाकर रोये जो हमारे दुःख का
इलाज कर सके . परमात्मा के अलावा यहां कोई भी हमारे को दुःख से मुक्त नहीं कर सकता
है .
यह भयंकर गरीबी हमारे को निम्न बाते समझाने
आती है :
हमेशा मेहनत की कमाई ही खानी चाहिए
किसी का दिल दुखाकर हम सुखी नहीं रह सकते है
हर परिस्थिति में समता बनाये रखना चाहिए
हमारा धैर्य अनंत होने लगता है
हमारा आत्मविश्वास बढ़ने लगता है
हमारे भीतर छिपी शक्तियाँ जगने लगती है
कौन हमारा है और कौन पराया है यह समझमे आने लगता है
जीवन जीने की कला समझ में आने लगती है
डर ,
चिंता , अवसाद भागने लगते
है
प्रकृति के प्रति हमारी क्या क्या जिम्मेदारियां है उनका
ज्ञान होने लगता है
शारीरक और मानसिक बीमारियाँ भागने लगती है
क्रियायोग ध्यान के अभ्यास से ऐसा आखिर होता
कैसे है ?
जब हम पुरे सच्चे मन से क्रियायोग ध्यान का अभ्यास करते है
तो हमारे को यह अनुभव होने लगता है की हम कुछ भी नहीं कर रहे है , और कुछ कर भी
नहीं सकते है . हमारे इन शरीर , मन और बुद्धि के माध्यम से खुद परमात्मा यह सब कर रहे है .
फिर हम अनंत से जुड़ने लगते है . अर्थात हमारा परिचय अब असली अमीरी , प्रेम , ख़ुशी , आनंद , वात्सल्य , शक्ति , सुख , संतुष्टि से होने
लगता है .
धन्यवाद जी . मंगल हो जी .