बिना थके हुए काम कैसे करे ?

जब हम क्रियायोग
ध्यान का गहरा अभ्यास करते है तो हमे प्रभु से यह ज्ञान प्राप्त होने लगता है की
आप बिना थके हुए काम को कैसे पूरा कर सकते है . हम काम करते हुए तभी थकते है जब
हमारे मन में यह भाव लगातार रहता है की मै खुद काम कर रहा हूँ . अर्थात मै नाम का
यह अहंकार भाव ही हमारी थकान का वास्तविक कारण है . जब हम सिर से लेकर पाँव तक में
एकाग्र होकर काम करते है तो हमे धीरे धीरे यह अनुभूति होने लगती है की हम एक ऐसी
शक्ति के माध्यम से यह काम कर पा रहे है जो कभी खर्च ही नहीं होती है . इसका मतलब
यह अनंत शक्ति है . यही निराकार शक्ति है और प्राण के रूप में हमारे शरीर में
लगातार बह रही है . पर जैसे ही हमारे पुराने संचित कर्मो के कारण यह भाव आता है की
मै अलग हूँ और आप अलग है . या यह मेरा मित्र है और वह मेरा शत्रु है या यह व्यक्ति
गलत है और वह व्यक्ति सही है या मै बीमार हूँ या वह स्वस्थ है तो फिर यह प्राण
शक्ति शरीर में जिस सम गति से बहनी चाहिए उस सम गति से बह नहीं पाती है . अर्थात
हम खुद ही कर्मबन्धन के कारण वास्तविक ख़ुशी के सामने बाधा बनकर खड़े है . हमे संसार
में हमारे अलावा कोई दूसरा बाधित नहीं कर रहा है . यही परम सत्य है . क्रियायोग का
अभ्यास ही एकमात्र इसका उपाय है की हम बिना थके काम कर सके . यदि हम यह सोचते है
की हमारे कष्टों का कारण माता पिता
, पत्नी , पति या बच्चे या
अन्य जीव है तो अभी हम मन के जाल में फसे है .

फिर हमे यह क्यों
अनुभव होता है की घर या बाहर का यह अमुक व्यक्ति मुझे परेशान करता है
?

क्यों की अभी
हमारी इन्द्रियाँ पूर्ण जाग्रत नहीं है . इसलिए हम झूठ को सच मानकर जीवन व्यतीत कर
रहे है . जैसे घर में बड़े बुजर्ग व्यक्ति ने यह कह दिया है की हमारे तो शुरू से ही
इस अमुक देवता की मान्यता है और आप को वे किसी अन्य देवी देवता की पूजा करने से
रोकते है की यदि आप ऐसा करेंगे तो आप के घर में कुछ भी अनर्थ हो सकता है .

तो हम बिना आत्म
चिंतन किये डर के कारण उनकी बात को ही मानकर हमारे मन को भी उनके मन की तरह ही
प्रोग्राम कर लेते है और जब समय आने पर उनकी यह बात गलत साबित होती है तो फिर हम
खुद ही ऐसे बुजुर्ग व्यक्ति को अपना शत्रु मानने लगते है और फिर धीरे धीरे घर में
परिवार के सदस्यों के बीच मन मुटाव होने लगते है और आगे चलकर रोज घर में लड़ाई झगड़े
होने लगते है .

इससे बेहतर यह
होता की पहली बार जब आप को घर के बुजुर्ग व्यक्ति ने कोई नियम बताया तो आप उनसे
विनम्र भाव में यह कहते की यह आप की मान्यता है मै तो जब तक इसका अनुभव नहीं कर
लेता तब तक किसी अन्य देवी देवता को गलत नहीं कह सकता हूँ . तो आप के इस प्रकार के
व्यवहार से उन्हें थोड़ी देर बुरा लग सकता है पर आप ऐसा करके घर के बुजुर्ग व्यक्ति
को भी सत्य की अनुभूति कराने में मदद करके प्रभु से एकता स्थापित करने में आगे बढ़ते
है और बुजुर्ग व्यक्ति से आप का रिश्ता हमेशा के लिए मधुर बन जाता है. क्यों की सच
सच ही होता है . सच को कभी परास्त नहीं किया जा सकता है . इसलिए आप निरंतर जाग्रत
रहे और प्रकृति की सेवा करे . धन्यवाद जी . मंगल हो जी . 

Subscribe

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *