आप प्रभु से तभी जुड़ पाते है जब आप को किसी अन्य कार्य में ख़ुशी नहीं मिलती है . अर्थात जब आप सब जगहों से थक जाते हो और आप को यह अहसास होने लग जाता है की मेरा अब यहां कोई नहीं है तब आप का मन अपने आप ही प्रभु से जुड़ने लगता है . या आप प्रभु से तब जुड़ते हो जब आप को आपका लक्ष्य पता लग चूका होता है . अर्थात जब आप को यह पता चल जाता है की मेरे करने से कुछ भी नहीं होता है बल्कि मेरे मन को भी कोई और सत्ता ही चला रही है . तब फिर आप को यह डर रहता है की यदि मै कुछ भी सही करने की कोशिश करूँगा या करुँगी तो हो सकता है कुछ गलत हो जाए . क्यों की आप को यह पता चल गया है की मेरे करने से कुछ भी नहीं हो रहा है . अर्थात अब आप जीवन में गिरने के डर से या फिर आप को यह अहसास हो जाता है की कोई और सत्ता मेरे इस मन के माध्यम से यह कठपुतली का खेल खेल रही है , ज्यादा भटकते नहीं है . इसलिए यदि मै इस सत्ता के विरुद्ध में एक कदम भी चला तो मुझे ही मार पड़ेगी .
अर्थात आप या तो हर प्रकार से हार जाने के बाद इस परम सत्ता के समक्ष समर्पण करते हो या फिर सब कुछ जानने के बाद इस सत्ता के साथ एक हो जाते हो .
वरना जब तक आप अज्ञान में जीते हो तब तक आप इस सत्ता से आंशिक रूप से ही जुड़े रहते हो . तभी तो आप रोज रात को सो जाते हो और सुबह उठकर फिर से वही कार्य करते हो और रात होते होते थकने के बाद फिर से सो जाते हो .
आप यह सब क्या कर रहे है ?
आप केवल इतना ही कर रहे है की जब आप की गाडी में तेल होता है तो आप गाडी स्टार्ट करके काम पर निकल जाते हो और फिर जैसे ही गाडी में तेल समाप्त होता है तो गाडी फिर से पेट्रोल पंप पर लेकर आ जाते हो . यह गाडी आप का मन है . पेट्रोल पंप आप की नींद है , स्टार्ट करना मतलब मन के माध्यम से परम सत्ता से प्राप्त प्राण शक्ति से मन से मन को चलाना है .
अर्थात सब कुछ आप का मन कर रहा है . मन ही परम सत्ता से निर्मित हो रहा है और फिर मन ही वापस परम सत्ता में विलीन हो रहा है . पर जब यही परम सत्ता आप के मै भाव (अहंकार ) के बीच में (परमात्मा ओर रचना कार्य के बीच में अभी आप बाधा बनकर खड़े है ) से हटने पर इस मन को इस प्रकार से निर्मित करे की यही मन एक महान रचना के रूप में विकसित होने लगे तो फिर ऐसा मन अब अपने लक्ष्य को प्राप्त कर ही लेता है . अर्थात जब आप अपने मन से कुछ भी करवा लेने में सक्षम हो जाते हो तो फिर आप जब चाहो तब कुछ भी कर सकते हो(केवल सत्य ओर अहिंसा के साथ) . क्यों की अब आप परम सत्ता से पूर्ण रूप से जुड़ चुके हो .
परम सत्ता से जुड़ने का अर्थ ही परमानन्द है . आप को सच्ची ख़ुशी मिलेगी ही तब जब आप निश्वार्थ भाव में जीने लगेंगे . यदि आप को यह भी स्वार्थ है की मुझे परम सत्ता से जुड़ना है तो यह भी तो एक प्रकार की चिंता ही है . यह चिंता में इसलिए बदल जाती है की जैसे ही आप इस विचार को स्वीकृति दे देते हो की मुझे परम सत्ता से जुड़ना है तो फिर एक नया विचार पैदा हो जाता है की परम सत्ता से जुड़ेंगे कैसे या नहीं जुड़ पाए तो क्या होगा ?
और फिर जैसे ही आप इस विचार ‘परम सत्ता से जुड़ेंगे कैसे’ को स्वीकृति दे देते है तो फिर से एक नया विचार प्रकट हो जाता है की प्रभु के नाम का सुमिरन करने से आप परम सत्ता से जुड़ जाएंगे . जब आप इस विचार को स्वीकृति दे देते हो तो फिर से एक नया विचार प्रकट हो जाता है की मुझे मेरे प्रभु का क्या नाम रखना चाहिए ?
इस प्रकार से एक बार फिर आप विचारों के जाल में उलझकर फस जाते है और आप परम सत्ता से सदा आंशिक रूप से ही जुड़े रहते है .
विचारों के इस जाल से बाहर कैसे निकले ?
हर विचार को सकारात्मक रूप में लेने का अभ्यास करके इसे एक दीवार की ईट की तरह सृजन की क्रिया में काम में लेकर विचारों के जाल से आप आसानी से बाहर आ जायेंगे .
ऐसा अभ्यास करने का क्या तरीका है ?
क्रियायोग ध्यान
क्रियायोग ध्यान का पूर्ण विश्वास के साथ निरंतर गहरा अभ्यास ही इसका एक मात्र सबसे सरल और सबसे तीव्र उपाय है . इसके अलावा बाकी सभी रास्ते लम्बी दूरी के है और उनमे अनिश्चितंता बहुत ज्यादा है .
ऐसा क्यों है ?
क्यों की जब आप क्रियायोग ध्यान को गहराई से समझेंगे तो आप को अनुभव होने लगेगा की आप कुछ कर ही नहीं रहे है . आप का मन भी वही परम सत्ता है और आप के विचार भी वही परम सत्ता है और आप खुद भी वही परम सत्ता है और आप भटक भी इसी परम सत्ता के कारण रहे है और आप का लक्ष्य भी यही परम सत्ता तय करती है . अर्थात सब कुछ अपने आप हो रहा है .
आप को जैसे यह लेख कितना पड़ना है यह भी आप के हाथ में नहीं है और आप इस लेख को पड़ने के बाद क्या सोचेंगे यह भी आप के हाथ में नहीं है . यदि परम सत्ता चाहेगी की आप क्रियायोग ध्यान के अभ्यास से ही पूर्ण रूप से मुक्त हो पायेंगे तो फिर आप को ऐसा करने से कोई नहीं रोक सकता है . अर्थात सब कुछ परम सत्ता की योजना के तहत हो रहा है . आप को जीवन में किस किस से मिलाना है , आप की शादी होगी या नहीं , आप के बच्चे कितने होंगे , आप कहाँ कहाँ घूमेंगे , आप के पास कितना धन होगा और आप का कितना धन लोग खा जायेंगे यह सब पहले से तय है .
अब आप सोच रहे होंगे की मुझे अब इस लेख को पढ़ने के बाद क्या करना चाहिए ?
आप फिर से एक नए विचार के जाल में फस गए . कैसे ?
आप केवल अभी इस पर ध्यान लगाओ की इस लेख को पढ़ने के साथ साथ आप के शरीर में सिर से लेकर पाँव तक में क्या क्या परिवर्तन हो रहे है , आप की अभी श्वास कैसी चल रही है , आप के कान अभी क्या सुन रहे है , आप की नाक अभी क्या सूंघ रही है और आप के मन में अभी क्या क्या चल रहा है .
और फिर इन सभी प्रकार की अनुभूतियों को परमात्मिक अनुभूति के रूप में स्वीकार करलो . तो फिर चमत्कार होना शुरू हो जायेंगे .
जैसे इस लेख को पढ़ते हुए कोई आपको आवाज देगा तो अब आप बहुत ही शालीनता से उन सज्जन की बात का जवाब देंगे . और यदि आप को लगेगा की मेरा जवाब देना अभी उचित नहीं है तो फिर आप मोन ही रहेंगे और अपना कार्य पुरे समर्पण भाव से करते रहेंगे .
अर्थात प्रभु के आगे समर्पण करना ही मन का भटकाव का रुकना है . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .