माया से बचने का उपाय यह है

मेरे प्रिये
मित्रों आज मै आपको परमात्मा का वह ज्ञान समझाने जा रहा हूँ जिसे यदि आप पूर्ण
श्रद्धा
, विश्वास और भक्ति के
माध्यम से समझने में सफल हो जाते है तो फिर आप को माया बिलकुल भी परेशान नहीं
करेगी .

यह शत प्रतिशत
संभव केवल और केवल क्रियायोग ध्यान के अभ्यास से ही होता है बाकी सभी अन्य विधिया
आंशिक परिणाम ही देती है . कैसे
?

इसके लिए मै आप
को पहले थोड़ा क्रियायोग के विषय में समझाने जा रहा हूँ . जैसा की इसके नाम से ही
पता चल रहा है की क्रिया से जुड़ना या क्रिया से योग करना . अर्थात हमारे शरीर
,
मन और बुद्धि इत्यादि में हर पल जो कुछ भी हम
अनुभव कर रहे है अर्थात हमारे मन और शरीर में हर समय अनेक क्रियाये निरंतर
सम्पादित हो रही है . जैसे भोजन पचाने की क्रिया हो रही है
, लगातार खून पुरे शरीर में घूम रहा है , लिवर से पित रस स्त्रावित होकर छोटी आंत में
आकर भोजन को पचाने में मदद कर रहा है
, कई बाहरी विचार मन में लगातार उठ रहे है जैसे २ घंटे बाद किसी जरुरी कार्य के
लिए जाना है . इस प्रकार से जब हम सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्रता बढ़ाते है तो
हमे साफ़ साफ़ अनुभव होने लगता है की आखिर हमारे भीतर और बाहर चल क्या रहा है . जब
हमारा ध्यान पेट पर होता है और उसी समय श्वास पर होता है और उसी समय आज्ञा चक्र पर
होता है . अर्थात यह ध्यान पुरे शरीर में अभ्यास के माध्यम से ही एक ही समय पर
होने लगता है . आप को साफ़ साफ़ अनुभव होता है की आप खुद कुछ कर ही नहीं रहे हो .
बल्कि एक ऐसी शक्ति है जो आप को एक शरीर के रूप में अनुभव कराती है और यही शक्ति
अपना रूप बदलकर आप को यह अहसास कराती है की आप के पास एक मन भी है . और ठीक इसी
प्रकार यही शक्ति आप को आप के पास एक बुद्धि है ऐसे अनेक रूपों में प्रकट होकर
अपनी माया लीला रच रही है .

क्रियायोग ध्यान
के अभ्यास से आप को पता चल जाता है की केवल सत्य का अस्तित्व है . आप के साथ वही
हो रहा है जिसे आप खुद भीतर से चाह रहे है . पर
फिर आप को इसका पता क्यों नहीं चल रहा है
?

क्यों की
परमात्मा अभी आप के कर्मो की निर्जरा कर रहे है . अर्थात अभी आप ऑपरेशन मोड में है
. जैसे डॉक्टर मरीज को बेहोश करके उसकी बीमारी का इलाज करते है उस समय मरीज को पता
नहीं रहता है . जबकि मरीज जीवित ही होता है पर दवाओं की मदद से मरीज के दिमाग का
कनेक्शन बीमारी की पीड़ा को अहसास करने वाले मन के तंतुओं से कुछ समय के लिए हटा
दिया जाता है(प्रभु लुख मिचनी खेल रहे है ) .

अर्थात कई बार तो
यह भी होता है की परमात्मा को यदि आप के ही किसी परिचित की आप के रूप में ही मदद
करनी है किसी पुराने कर्म संस्कार के कारण तो फिर आप का ही दूसरा रूप उस परिचित के
पास भी प्रकट हो जायेगा . उस परिचित को लगेगा की आप उसके पास उसकी मदद करने आये है
. अर्थात अभी आप को यह पता नहीं है की आप कितने रूपों में इस संसार में एक साथ
परमात्मा की लीला में किरदार निभा रहे है . शायद आप को पता हो की कई बार आप घर में
कोई सामान कही रखकर भूल जाते है और फिर कुछ समय बाद आप को वह याद आ जाता है . यह
प्रभु ही होते है जो आप को भुला देते है और फिर याद दिला देते है . यह सब लीला
पहले से तय होती है और इसके निर्णय करता खुद परमात्मा ही होते है पर वे सबकुछ करते
हुए भी अकर्ता बने रहते है कैसे
?

क्यों की
परमात्मा कण कण में व्याप्त है और आप भी कण कण में व्याप्त है पर निराकार शक्ति जब
तक यह नहीं चाहेगी की आप को सर्वव्यापकता की अनुभूति हो तो आप को हमेशा यही लगेगा
की आप एक हाड मांश का शरीर है .

क्रियायोग ध्यान
के अभ्यास से आप को माया कैसे चला रही है उसका ज्ञान होने लगता है और फिर आप का मन
धीरे धीरे पवित्र होने लगता है अर्थात अभ्यास के कारण आप की चेतना ऊपर की तरफ उठने
लगती है .

यहां ऊपर की तरफ
उठने का अर्थ है की अब आप संसार रुपी स्वप्न से जाग रहे है . आप को अभ्यास से
अनुभव होगा की माया कही नहीं है बल्कि खुद निराकार शक्ति ही इस संसार के रूप में
प्रकट हो रही है . इसी से आप को जीवन का लक्ष्य पता चलेगा और एक समय आयेगा जब
सबकुछ आप के हिसाब से होने लगेगा . क्यों की क्रियायोग का अभ्यास आप और आपके
परमात्मा के बीच दूरी धीरे धीरे शून्य कर देता है . इसलिए आप निरंतर क्रियायोग
ध्यान का अभ्यास करते रहे और हर अनुभूति को परमात्मिक अनुभूति मानकर बहुत ही आनंद
के साथ स्वीकार करते रहे . धीरे धीरे आप के सभी संचित कर्म ख़ुशी में बदलने लगेंगे
. धन्यवाद जी . मंगल हो जी .

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