मेरे प्रभु आज माया और ब्रह्म को गहराई से समझा रहे है

मै निराकार और साकार दोनों हूँ . मै ही संघनित होकर साकार रचना (माया) का निर्माण कर रहा हूँ . और मै ही लोगों में यह संदेह पैदा करता हूँ की मै अलग हूँ और आप अलग है . तभी तो मै मेरी लीला का आनंद ले पाता हूँ . यदि मै मेरे बच्चे को यह नहीं भूलाऊ की वह ‘बच्चा नहीं खुद परमात्मा है’ तो यह बच्चा मेरे खेल में किरदार को सही से निभा नहीं सकता है .

क्यों ?

क्यों की जैसे एक माँ छोटे बच्चे को स्कूल छोड़ के आती है और बच्चा माँ के साथ ही घर वापस आने की जिद्द करता है तो माँ पहले से ही अध्यापक को यह समझा देती है की आप मेरे बच्चे को अपने स्कूल में रुकने के लिए ही कहना और इसे प्रेम से सिखाना और यदि बच्चा गलती करे तो फिर इसे डाँटना भी . और मै आप के सामने मेरे बच्चे का पक्ष नहीं लूंगी वरना मेरा बच्चा मेरे साथ ही घर वापस (मन का मिटना या मन का परमात्मा में विलय होना या संसार का लुप्त होना या दृश्य अदृश्य में बदलना) आ जायेगा और ऐसे कोई भी बच्चा स्कूल नहीं जा पायेगा . और इस प्रकार से पूरे संसार में अव्यवस्था फ़ैल जायेगी और एक दिन यह पूरा संसार समाप्त हो जायेगा .

पर मुझे तो अभी संसार रुपी खेल का आनंद लेना है . मुझे तो अभी मेरे ज्ञान को अनेक रूपों में प्रकट करना है . अभी तो मै उन सभी चेतनाओं के रूप में कर्म कर रहा हूँ जो कोई तो इस जमीन के लिए लड़ रहा है और कोई धन संग्रह के चक्कर में सत्य और अहिंसा के मार्ग से विचलित है . जब तक मै मेरे बच्चो को यह नहीं सिखाऊंगा की मै कौन हूँ , आप कौन है , यह संसार क्या है , आत्मा क्या है , परमात्मा क्या है , मन क्या है , आप को कष्ट क्यों होते है , मन उदास क्यों होता है , मन एकाग्र क्यों नहीं हो पाता है . ऐसे अनंत प्रश्नों का जवाब मेरा हर एक बच्चा जब तक जान नहीं लेता मै मेरी लीला इसी प्रकार से चालू रखूँगा .

इसलिए सब कुछ मै कर रहा हूँ पर मै किसी को पता नहीं चलने देता . और वैसे भी यदि किसी मेरे बच्चे को पता चल भी जाए तो मेरे से क्या छिपा है मै उसकी मति को ही घुमा देता है .

जैसे मेरे दो बच्चे है . जिनमे एक शारीरिक रूप से कमजोर और दूसरा ताकतवर है . अब यदि आये दिन मेरा तगड़ा बच्चा मेरे इस कमजोर बच्चे पर अत्याचार करेगा तो मै इस ताकतवर बच्चे को सबक सिखाने के लिए ऐसा खेल रचूंगा की मेरा यह ताकतवर बच्चा भी जिंदगी में याद ही रखेगा .

तभी तो मै कहता हूँ की सेर को सवा सेर अवश्य मिलता है और पतले को देखकर लड़ना नहीं और मोटे को देखकर डरना नहीं चाहिए .

पर यह सब कहावते भी मै ही कहलवाता हूँ .

मेरा वह बच्चा जो सब कुछ मेरे ऊपर छोड़ रखा है वह हर पल पूर्ण रूप से सुरक्षित है . मेरे ऐसे बच्चे को मेरी प्रकृति हरपल गौद में खिला रही है और मेरा बच्चा मेरे परमानन्द का स्वाद ले रहा है .

मेरा प्यारा बच्चा धर्म , सम्प्रदाय , उंच नीच , अपना पराया के झगड़ों में नहीं पड़ता है . बल्कि हर जीव में मेरा ही रूप देखता है . पर जो बच्चा अभी इन झगड़ों में पड़ा है वह भी मुझे उतना ही प्रिये है जितना मेरा पहला बच्चा . पर मै इस खेल का आनंद लेने के लिए मेरे एक बच्चे से गलती करवाता हूँ और फिर मेरे दूसरे बच्चे से इसी गलती को ठीक करवाता हूँ . और इसी सही गलत के चक्कर में मेरे दोनों बच्चे लड़ पड़ते है और फिर रोने लगते है और मेरा मनोरंजन हो जाता है . इस मनोरंजन से ही मै मेरे प्यारे प्यारे बच्चो को ज्ञान का पाठ पढ़ाता हूँ . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .

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