यह प्रयोग अभी करे और पाये हर प्रकार के डर से तुरंत मुक्ति

आप अभी जहा कही भी हो , चाहे बैठे हो या खड़े हो या लेटे हो या खाना खा रहे हो या
सफर में चल रहे हो या स्नान कर रहे हो या और कुछ कर रहे हो आप सबसे पहले यह पता
करे की आप के शरीर में सिर से लेकर पाँव तक में किस जगह आप को कैसा अनुभव हो रहा
है .

और साथ ही यह पता करे की अभी आप के मन में कैसे कैसे विचार
चल रहे है और फिर याद कर अभी आप किस जगह पर हो फिर याद करे आप की श्वास अभी कैसी
चल रही है . जैसे ही आप यह सब करेंगे हो सकता है आप के मन में कई तरह के विचार आने
लगे
, इस प्रयोग के
दौरान डर मिटने की जगह बढ़ने लग जाए
, आप के शरीर में कई प्रकार के परिवर्तन होने लग जाए . आप को
श्वास से हर परिस्थिति में जुड़े रहना है और हर परिवर्तन को परमात्मिक अनुभूति
मानकर बहुत ही ख़ुशी के साथ स्वीकार करना है .

आप देखेंगे की अब आप धीरे धीरे शांत हो रहे है . यह प्रयोग
क्रियायोग अभ्यास का ही एक अंग है . इस प्रयोग में आप ने अपने मन को बाहर की सभी
जगहों से हटाकर अपने शरीर पर लेकर आया है तो शरीर में कई प्रकार के परिवर्तन प्रकट
हुए है .
क्यों ?

क्यों की मन भी एक प्रकार से ध्यान की ऊर्जा
ही है या मन भी ध्यान की शक्ति ही है . अर्थात ध्यान की शक्ति ही मन के रूप में
कार्य करती है . जब यह ध्यान ऊर्जा अव्यवस्थित होती है अर्थात इस ऊर्जा की तरंगे
जब किसी विशेष आकृति में नहीं होती है या ऐसे पैटर्न में नहीं होती है जो एक
निश्चित समय के बाद अपने आप को दोहराता हो 
तो यही ध्यान ऊर्जा मन कहलाती है
. अर्थात चंचल ऊर्जा
ही मन है और एकाग्र ऊर्जा ही ध्यान है और ध्यान ही ज्ञान है और ज्ञान ही परमात्मा
है
, सुख है , शांति है , आनंद है , मुक्त है , स्वतन्त्र है .

जब ज्ञान रुपी ध्यान ऊर्जा के माध्यम से(अर्थात चेतना
शक्ति(आत्मा) से जो खुद परम चेतना(परमात्मा) से नियंत्रित है) मन (चंचल ऊर्जा ) को
शरीर पर लाया जाता है  तो पहले इसका हमे
वास्तविक अर्थ समझना जरुरी है .

आप का मन पुरे ब्रह्माण्ड में फैला हुआ है . और यही मन रुपी
चंचल ऊर्जा संघनित होकर शरीर का रूप धारण कर रखी है. इसे आप ऐसे समझ सकते है की
ऊर्जा की एक तरंग गोले में गोले बनाते हुए धीरे धीरे शरीर रुपी आकृति में
रूपांतरित हो रही है और आप खुद चेतना शक्ति के माध्यम से यह तरंगे किस प्रकार से
शरीर रूप में प्रकट हो रही है इसका अनुभव इन परिवर्तनों के रूप में महसूस कर रहे
है .

अर्थात आप खुद ही इस शरीर के रूप में प्रकट हो रहे है और कैसे
प्रकट हो रहे है इसका आप को इस प्रयोग से साफ़ साफ़ पता चल रहा है .

अर्थात जब आप अव्यवस्थित रूप से रहते हो तो आप को सभी
प्रकार के डर
, चिंता , कष्ट अनुभव होते
है और जैसे ही आप अपने शरीर में उतरने लगते है तो अपने आप व्यवस्थित होने लगते है
.

आप को अनुभव होने लगता है 
की जिस कारण से मैं डर रहा था वह तो मेरी ही एक अव्यवस्थित ऊर्जा का रूप है
. और जैसे ही आप सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्रता का अभ्यास करते है तो यह
अव्यव्स्थ्ति ऊर्जा व्यवस्थित होने लगती है और आप का डर ख़ुशी में बदल जाता है .

जैसे आप देखा करो कई बार किसी व्यक्ति के
संपर्क में आते ही हमे डर का अहसास होने लगता है और किसी अन्य व्यक्ति के संपर्क
में आते ही हमे ख़ुशी का अहसास होने लगता है और कई बार तो किसी और व्यक्ति या अन्य
जीव के संपर्क में आते ही हमे खांसी होने लगती है
, चक्कर  आने लगते है, मन
बेचैन होने लगता है और जिस व्यक्ति के आने के बाद आप को खांसी होने लगे और वही
व्यक्ति आप को कहे की आप के तो खांसी बहुत ज्यादा हो रही है किसी डॉक्टर को दिखाओ
या यदि वह गलत तरीके से खांसी की दवा बेचता है तो वह अवश्य ही कहेगा की आप यह दवा
लो बहुत ही सस्ती है आप को खांसी से तुरंत आराम मिल जायेगा .

और आप क्रियायोग ध्यान का अभ्यास नहीं करने के कारण इस झूठी
खांसी के धोखे में आ जाते है और पैसा देकर पिंड छुड़ाते है . और मजे की बात तो यह
है की इस दवा से आप की खांसी का इलाज हो भी जाता है . क्यों
?

वास्तविक रूप में यह एक कर्ज था जो इस अमुक व्यक्ति को आप
से लेना था और माध्यम बनी खांसी . और जैसे ही आप ने खांसी की दवा का पैसा चुकाया
आप के मन में से खांसी वाली स्मृति मिट गयी अर्थात दवा बेचकर यह अमुक व्यक्ति
खांसी वाले संस्कार से बदलकर ख़ुशी वाले संस्कार में रूपांतरित होकर वहा से चला गया
और अब आप की मौज होगई .

इस से यह सिद्ध हो जाता है की आप के पुरे जीवन में आप का
जिन भी व्येक्तियों से या यु कहे उन सभी से 
संपर्क होता है जिनसे आप किसी न किसी कारण से जुड़े है . इसे ही कर्मबन्धन
कहते है . क्रियायोग का अभ्यास कर्मबन्धन से मुक्त करता है . इसलिए हमे खांसी वाले
भैया से घृणा नहीं करनी है बल्कि अनंत प्रेम का अभ्यास करना है . ठीक इसी प्रकार
से डर वाले भैया से भी डरना नहीं है बल्कि अनंत प्रेम करना है . डर वाले भैया आप
के प्रेम को अनुभव करके खुद ही प्रेम तत्व में बदल जायेंगे
. धन्यवाद जी .
मंगल हो जी .

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