मेरे प्रिय साधको
मै आज आपको ऐसे कई तरीके बताने जा रहा हूँ जिनको यदि आप अपनायेंगे तो आप सिर से
लेकर पाँव तक में एकाग्र होकर जीवन की सभी क्रियाये करने लगेंगे और एक दिन आप अपने
स्वरूप को जान जायेंगे . जैसे आप जब यह लेख पढ़ रहे हो तो उसी वक्त अपने आप पर गौर
करे की आप के भीतर और क्या क्या चल रहा है . इसी समय याद करे की आप किस जगह पर
बैठे है . आप की आँखे जब इस लेख को देख रही है तो आँखों में क्या क्या परिवर्तन हो
रहे है . यदि आप यह लेख कुछ पेय पदार्थ पीते हुए पढ़ रहे है तो पता करे की गिलास को
आप ने कितना कसकर पकड़ रखा है . और यदि आप कुछ खाते हुए इस लेख को पढ़ रहे है तो पता
करे की आप ने जो खाया था उसको ढंग से चबाया भी था या नहीं . शुरू में ऐसा करते हुए
आप को बहुत परेशानी होगी यदि आप ने कभी एकांत में केवल पढ़ने का अभ्यास नहीं किया
है तो . क्यों की ज्यादातर लोगों का मत है की यदि हम एक साथ दो काम कर रहे है और
हमे अच्छा महसूस हो रहा है तो यहां यह कहना असंभव है की ये लोग सिर से लेकर पाँव
तक में एकाग्र है या नहीं . यह व्यक्ति विशेष की चेतना पर निर्भर करता है की उसकी
चेतना इस क्षण तक कितनी विकसित हो चुकी है और अगले क्षण उसका कैसा संस्कार फलित
होने वाला है . यदि ऐसा साधक एकाग्रता और ध्यान में पारंगत है तो वह मृत्यु के
संस्कार को भी शिव की शक्ति के माध्यम से उसी शरीर में नए जन्म के संस्कार में
रूपांतरित कर सकता है . जैसे कई महान संत नदी में स्नान करके अपने नये शरीर के साथ
बाहर आते है . यदि आप कोई भी काम कर रहे है जैसे किसी ग्राहक को सामान दे रहे है
तो आप तुरंत पता करे की आप कहा खड़े है , आप के पैरो में कितना सत है , आप के हाथ सामान
उठाते हुए कैसा महसूस कर रहे है , आप के भीतर उस
ग्राहक के प्रति क्या भावनाये चल रही है , आप जब सामान लेकर आ रहे है तब क्या सोच रहे है . क्या आप सामान के साथ चलते
हुए अपने शरीर को अनुभव ठीक से कर पा रहे है . आप के पैर जमीन पर रखे जा रहे है
क्या आप को इस क्षण याद है की आप अपने परमपिता की हथेली पर चल रहे है . और गहरे
मायने में आप के शरीर के रूप में स्वयं परमपिता चल रहे है . पर इस लेवल की
एकाग्रता तब आती है जब आप के दिल में प्रभु के आलावा और किसी के लिए जगह नहीं है .
अर्थात परमात्मा की महिमा का अभ्यास यह सिखाता है की सभी जीवो को आप परमात्मा के
रूप में देखो . इससे होगा क्या की आप सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र होकर ध्यान
करने में धीरे धीरे सफल होने लगेंगे . यदि आप आइसक्रीम खाते हुए एकाग्र हो और
आइसक्रीम पर ध्यान कर रहे हो तो आइसक्रीम के रूप में यह आलंभन आप को प्रभु के रस
से जोड़ देगा और आप के भीतर से यह ज्ञान प्रकट होगा की आइसक्रीम खाने से इस शरीर
रचना में क्या परिवर्तन होते है . और ऐसे लगातार सभी चीजों के साथ आप अभ्यास
करेंगे तो आप धीरे धीरे अनुभव करेंगे की आप की आत्मा विचारों के साथ एक स्थान से
दूसरे स्थान पर चल रही है और सामने वाले भी आप को विचारों के रूप में महसूस होने
लगेंगे . जिससे आप खुद के और दुसरो के विचारों को पढ़ने में सक्षम होने लगेंगे . पर
यदि इस एकाग्रता के साथ आप के भाव निर्मल नहीं है तो आप फिर माया में फसकर प्रभु
से अर्जित की गयी शक्ति का दुरूपयोग कर बैठेंगे . किसी भी छण यदि आप के भाव बिगड़ते
है तो उसी क्षण उस भाव के अनुरूप वह कल्पना साकार रूप में अपने आप को व्यक्त करने
के लिए एक कदम आगे बढ़ जाती है . अर्थात यदि आप बिगड़े भाव के साथ किसी स्त्री को
देखते है तो वह चित्र आप के मानस पटल पर अंकित हो जाता है और विष्णु की शक्ति उस
चित्र को आप को दुबारा दिखाने के लिए सुरक्षित कर देती है . अब आप यह सोच रहे
होंगे की हमने स्त्री को तो एक बार ही देखा था पर मन में वह बार बार क्यों दिखाई
दे रही है . ऐसा इसलिए होता है की हमारे मन के पीछे एक शक्ति लगातार काम कर रही है
और हमारा मन उसी शक्ति को अपनी कल्पना के आधार पर जैसी हमारी भावना होगी वैसे
रूपांतरित करता जाता है . यदि हम मन के पीछे लगी हुयी इस शक्ति को ठीक से
नियंत्रित करना नहीं सीखेंगे तब तक यह अनियंत्रित होकर हमारे से उटपटांग काम कराती
रहेगी और हम गर्त में जाते जायेंगे . अर्थात यह परमात्मा की शक्ति है , इसे प्राण शक्ति भी कहते है . हम अच्छा खाना
खाएंगे , योग ध्यान करेंगे ,
और इससे हमे शक्ति प्राप्त होगी पर हम यदि इसको
आगे किस रूप में विकसित करना है यह लक्ष्य निर्धारित नहीं करेंगे तो फिर हमारा मन
इस शक्ति का प्रयोग अवचेतन मन में संचित प्रोग्रामिंग के आधार पर करने लगता है .
इसलिए जब हम सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र होने लगते है तो हमे यह शक्ति मिलती
हुयी अनुभव भी होती है और किस भाव का संस्कार इस क्षण में फलित होने की कोशिस कर
रहा है . यदि हम अभी आंशिक जाग्रत है और इस क्षण में कोई दुखद घटना का संस्कार
फलित होने की कोशिस कर रहा है तो आप देखेंगे की आप के शरीर में एक कपकपी या धूझनी
छूटने लगती है और आप इसी क्षण भूमध्य पर एकाग्र होकर ध्यान करके इस संस्कार को
प्रभु के रूप में रूपांतरित करने में सफल हो जाते है . और यदि आप पूर्ण जाग्रत है
तो इस संस्कार को बहुत ही आसानी से रचनात्मकता में रूपांतरित कर देते है . पर यदि
आप बिलकुल भी जाग्रत नहीं है तो फिर यह संस्कार अपने भाव के अनुरूप फलित होता ही
होता है . जिसे हम आमतौर पर भाग्य या प्रारब्ध भोग कहते है . इसीलिए मै बार बार
कहता हु की लगातार अभ्यास करे यदि आप हर पल खुश रहना चाहते है तो . आप को क्या पता
अगले क्षण कोनसा संस्कार फलित हो जाए . इसीलिए हमे यदि मृत्यु के भय से हमेशा के
लिए मुक्ति चाहिए तो फिर सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्रता का अभ्यास बढ़ाना चाहिए
. अर्थात जैसे ही हम परमात्मा के साथ एकता का अनुभव करते है तो मृत्यु का भय
समाप्त हो जाता है . और हम सर्वव्यापकता का अनुभव करने लग जाते है . इसलिए फिर हमे
परिवार वाले या बाहर वाले सभी ईश्वर के रूप में दिखाई देने लगते है और हमारा अब
इनसे मायावी जुड़ाव ना होकर प्रेम का सम्बन्ध होता है . और हम यदि किसी अपने परिजन
को खोना नहीं चाहते है तो फिर हमे उससे इतना प्रेम करना सीखना होता है की वह परिजन
भी हमारे बिना ना रह सके . यहां मै निश्वार्थ प्रेम की बात कर रहा हु . अब आप का
परिजन आप चाहेंगे तभी आप को छोड़कर जायेगा . यह है परमात्मा की महिमा के अभ्यास का
चमत्कार . यदि मै यह अभ्यास नहीं कर रहा हु और आप कर रहे है तो यह चमत्कार फिर आप
के साथ ही घटित होगा . अर्थात जो अभ्यास करेगा उसको फायदा मिलेगा . परमात्मा पूर्ण
निष्पक्ष होकर यह संसार चला रहे है . पक्षपात तो हमारा मन कर रहा है . कभी तो कहता
है आप को मानलो इसी पत्थर में भगवान है और कभी कहता है यह पिता नहीं यह तो शैतान
है . अर्थात यदि हम हमारे मन को यह विश्वास दिलाने में कामयाब हो जाते है की सिर
से लेकर पाँव तक की यह जो शरीर रुपी रचना है इसके रूप में परमात्मा खुद प्रकट हो
रहे है तो फिर हम इसमें धीरे धीरे एकाग्र होने लगेंगे . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .