हर पल खुश रहने का अभ्यास पार्ट 1 | परमात्मा की महिमा
जैसे जैसे हम खुद मे एकाग्र होने लगते है सिर से लेकर पांव तक की शारीरिक अनुभूतियों को सुख दुःख ना कहकर उनसे बिना शर्त प्रेम करने लगते है तो धीरे धीरे यह अनुभूतियाँ आनंद मे रूपान्तरित होने लगती है क्यों की इस अभ्यास से हमें सभी जीवों से जो हमारी एकता है उसका अनुभव होने लगता है जो व्यक्ति यह अभ्यास करता है वह अपने स्वरुप को जानने लगता है उसके मन और बुद्धि जगने लगते है वह जीवंत होने लगता है उसका मन निर्मल होने लगता है सभी परेशानियॉ अवसर में रूपान्तरित होने लगती है बीमारियाँ गायब होने लगती है सभी व्यक्तियो से उसके सम्बंध मधूर होने लगते है अभ्यास करने वाला व्यक्ति यदि पुरूष है और शादीशुदा है तो उसकी पत्नी से उसके सम्बंध बहुत ही मधूर और पवित्र होने लगते है
जैसे जैसे हम खुद मे एकाग्र होने लगते है सिर से लेकर पांव तक की शारीरिक अनुभूतियों को सुख दुःख ना कहकर उनसे बिना शर्त प्रेम करने लगते है तो धीरे धीरे यह अनुभूतियाँ आनंद मे रूपान्तरित होने लगती है क्यों की इस अभ्यास से हमें सभी जीवों से जो हमारी एकता है उसका अनुभव होने लगता है जो व्यक्ति यह अभ्यास करता है वह अपने स्वरुप को जानने लगता है उसके मन और बुद्धि जगने लगते है वह जीवंत होने लगता है उसका मन निर्मल होने लगता है सभी परेशानियॉ अवसर में रूपान्तरित होने लगती है बीमारियाँ गायब होने लगती है सभी व्यक्तियो से उसके सम्बंध मधूर होने लगते है अभ्यास करने वाला व्यक्ति यदि पुरूष है और शादीशुदा है तो उसकी पत्नी से उसके सम्बंध बहुत ही मधूर और पवित्र होने लगते है