आज मेरे प्यारे मित्रों मै आप को अकेलेपन से मुक्ति का ऐसा उपाय बताने जा रहा हूँ जिसे यदि आप
एक बार मेरे कहने से अपनाने की कोशिश करेंगे तो फिर जीवन में आप को जब कभी भी अकेलापन
आयेगा तो आप बिलकुल भी डरेंगे नहीं .
सबसे पहले आप अपने को उस जगह पर लेकर जाए जहाँ जिन लोगों से आप दूर भाग रहे हो या खुद
आप अभी एकांत में हो और डर लग रहा हो या मन और शरीर में किसी भी प्रकार की बेचैनी हो तो
अपने शरीर की स्थिति को बदले .
अर्थात मै यहां यह कहना चाहता हूँ की जितना आप का मन और शरीर किसी भी प्रकार की परिस्थिति
को सहन कर पाये उतने समय के लिए ही आप उस परिस्थिति का सामना करे .
मतलब आप अपने मन से यदि बिना इसे रास्ता दिखाए जबरदस्ती करेंगे तो फिर यही मन आप को बहुत अच्छी या बहुत खराब स्थिति में भी लाकर छोड़ सकता है .
पर कई महान लोग कहते है की मन राजी से नहीं माने तो इसे जबरदस्ती से मनाओ क्या यह सही है ?
यह केवल आंशिक सत्य है .
क्या कारण है इसका ?
आप का मन आप की चेतना शक्ति से काम करता है . और यदि आप अभी अपने संचित कर्मो के
कारण निम्न चेतना (जहाँ सोचने समझने का ज्ञान नहीं होता है , विवेकहीन) में जी रहे है तो
जब आप को अकेलापन डराता है तो आप यह नहीं समझ पाते है की आखिर आप को यह डर जैसी अनुभूति क्यों हो रही है .
वास्तविकता में यह अकेलापन नहीं होता है बल्कि आप के ही संचित कर्मो के परिणाम की अनुभूति
होती है .
अकेलापन भी एक प्रकार की ऊर्जा ही होती है . मेने पहले के लेखों में समझाया है की सब कुछ ऊर्जा है.
पर यह ऊर्जा आप के भावों के अनुसार रूप लेती है .
जैसे यही ऊर्जा बिजली का रूप लेकर पंखा , टीवी चलाती है और यही ऊर्जा क्रोध का रूप लेकर क्रोध करने वाले को जलाती है .
अब जब आप को अकेलेपन का भाव महसूस हो रहा है तो आप यह समझने के लिए तैयार रहे की
अब मेरे ही माध्यम से जीवन में कभी किये गए कर्म का फल मुझे अकेलेपन के परिणाम के रूप में
धीरे धीरे महसूस हो रहा है .
अर्थात आप के भीतर से अकेलेपन की ऊर्जा बाहर निकलना चाहती है . अब यदि आप इस ऊर्जा को
जबरदस्ती दबायेंगे या जबरदस्ती किसी भी माहौल में बाहर निकालेंगे तो आप को दोनों ही
परिस्थितियों में यह ऊर्जा परेशान करेगी .
ऐसा क्यों होता है ?
क्यों की ऊर्जा का दमन संभव नहीं है . अर्थात आप ऊर्जा को दबाकर मारने का प्रयास कर रहे है
और आप को मेने पिछले लेखों में समझाया था की कोई भी चीज मरती नहीं है केवल रूप
बदलती है . इसलिए जब आप अकेलेपन के भाव को दबायेंगे तो आप का मन इस ऊर्जा का इस्तेमाल
करके जब आप दमन कर रहे है उस समय आप के मन में जैसे भाव होंगे यह ऊर्जा उन्ही भावों के
अनुसार अपना नया रूप ले लेगी .
और आप को तो यह पता है ही की जब आप अकेलेपन का दमन कर रहे होते है तो उस समय आप के मन में सच्ची ख़ुशी , एक सच्चा हल्कापन या एक सच्ची स्वतंत्रता के भाव तो हो नहीं सकते . बल्कि
दमन के समय आप के भाव घबराहट , चिंता , अवसाद , डर , अभाव इत्यादि के होते है .
इसलिए जब आप अकेलेपन का दमन करते है तो आप फिर से घबराने लगते है , चिंतित होने लगते है ,
डरने लगते है .
और यदि आप अकेलेपन की ऊर्जा को जबरदस्ती किसी भी माहौल में निकालेंगे तो वह माहौल प्रतिक्रिया के रूप में आप को इसकी दुगुनी अकेलेपन की ऊर्जा लोटा देगा . और अब आप पहले से ज्यादा घबराने लगेंगे.
जैसे आप अपना डर दूर करने के लिए किसी ऐसे व्यक्ति के पास पहुँच जाते है जो आप से भी ज्यादा
डरा हुआ महसूस कर रहा है . तो जब आप उस व्यक्ति से मिलकर वापस आयेंगे तो अब आप पहले से ज्यादा डरा हुआ महसूस करेंगे .
क्यों की ऐसा करके आप एक दूसरे की ऊर्जाओं का आदान प्रदान ही तो कर रहे है . जिसके पास जैसी ऊर्जा होगी वैसी ऊर्जा ही तो वह आप को देगा .
आप अपने भीतर झांककर देखना की कभी कभी आप के पास सबकुछ होते हुए भी आप अकेलापन महसूस करते है और कभी कभी आप के पास कुछ भी नहीं होते हुए भी सब अपने लगते है .
ऐसा क्यों होता है ?
ऐसा हमारे संचित कर्मो के कारण हमारे भावों में बदलाव के कारण होता है .
आप एक कल्पना करके देखना की जब आप के किसी परिचित की शादी हो रही है और वह अभी बहुत खुश है और आप अकेलापन महसूस कर रहे है और फिर इस परिचित के पास चले जाते है तो थोड़ी देर तो आप को यह परिचित खुश करने की कोशी करेगा और जब इस परिचित को लगेगा की आप की वजह से इसकी ख़ुशी भी कम हो रही है तो यह परिचित आप से भी दूरी बना लेगा कोई बहाना बनाकर .
क्यों की इस जगत में दुखी कोई भी नहीं रहना चाहता है . इस प्रकार आप का यह परिचित भी आप को अकेला छोड़ देगा .
फिर अकेलेपन से मुक्ति कैसे प्राप्त करे ?
मध्यम मार्ग अपनाकर . जी हां केवल यही एक उपाय है जिससे आप अकेलेपन से हमेशा के लिए मुक्त हो जाते है . इसी को परमात्मा ने स्थिरप्रज्ञ कहा है .
जब आप को अकेलापन परेशान करे तो आप इस अकेलेपन में एकाग्र हो जाये . और जब आप इस अकेलेपन में एकाग्र होंगे तो आप को इसके स्त्रोत का पता चल जायेगा . अर्थात आप को यह ज्ञान प्राप्त होने लगेगा की आखिर यह अकेलेपन की ऊर्जा कहा से उठ रही है और किस दिशा में बह रही है .
आप को वे सभी संचित कर्म दिखाई देने लगेंगे जो अब यह अकेलापन का भाव प्रकट कर रहे है .
और जब आप अपने संचित कर्मो को फलित होते हुए देखेंगे तो अब आप के पास मौका होता है की इस अकेलेपन की ऊर्जा को ख़ुशी में कैसे रूपांतरित करे .
क्यों की जैसे ही आप किसी भी जगह पर एकाग्र होने लगते है तो वहाँ आप अपने भावों के अनुसार रूपांतरण कर रहे होते है . जैसे आप किसी कमरे में एक कोने में एकाग्र होकर बंदर को देखने का भाव करते है तो लगातार अभ्यास के बाद आप को वहाँ बंदर दिखाई देने लग जायेगा .
ठीक इसी प्रकार से जब आप अकेलेपन में एकाग्र होकर जैसा भाव करेंगे आप वैसा ही महसूस करने लगेंगे . यदि आप केवल अपने इष्ट का भाव रखेंगे तो वे आप का मार्गदर्शन करेंगे और आप को बतायेंगे की अब आप को इस स्थिति से बाहर निकलने के लिए क्या करना है .
अर्थात अकेलेपन में एकाग्र होने पर आप की प्रज्ञा (तीसरी आँख) जगने लगती है . जिससे आप का विवेक जाग्रत होने लगता है और आप अब यदि इस अकेलेपन का दमन करेंगे तो आप को इसके दुष्परिणाम का पता चल जाता है और साथ ही आप एक ऐसी शक्ति से जुड़ जाते है जो आप को इस अकेलेपन का दमन करने से रोक देती है .
और साथ ही यही शक्ति आप के इस अकेलेपन को किसके सामने नहीं व्यक्ति करना है उसके लिए भी रोक देती है . और इस प्रकार से आप इन दोनों परिस्थितियों दमनकारी और खराब माहौल से बच जाते है .
और यही शक्ति आप के इस अकेलेपन की ऊर्जा को किसी ऐसी नयी चीज के निर्माण में लगा देती है जिससे आप अकेलेपन से बाहर निकल कर एक सृजन कारी इंसान बन जाते है . अर्थात आप को अकेलेपन से मुक्ति मिलने लगती है .
जैसे आप अकेलेपन के डर के समय मेने जो यह एकाग्रता का अभ्यास बताया है करते है तो आप कुछ ही देर में कोई ऐसा काम करने लगते है या किसी अन्य की मदद करने पहुँच जाते है , या पूजा पाठ करने लग जाते है या बच्चो के साथ खेलने लग जाते है या किसी मित्र से मिलने चले जाते है या कुछ भी अन्य काम करने लगते है जिससे आप की यह अकेलेपन की ऊर्जा सही चीज के निर्माण में काम आ जाती है .
और जब आप की यह ऊर्जा सही चीज का निर्माण कर देती है तो आप को भीतर से एक ऐसी संतुष्टि की अनुभूति होती है जो आप को यह विश्वास दिला देती है की अब आप अकेलेपन से मुक्त हो रहे है .
अर्थात अकेलेपन से मुक्ति लोगों की भीड़ में रहने से या सबकुछ छोड़ कर एक जगह बैठने से मिल भी सकती है और नहीं भी . यह आप की जाग्रति पर निर्भर करता है . अर्थात किसी को समोसा पसंद होता है और किसी को कचोरी . और जब आप अकेलेपन में एकाग्र हो जाते है तो अब आप को समोसा और कचोरी खाने वाले दोनों व्यक्ति पसंद होते है .
अर्थात अब आप इस शरीर और मन और संसार से भागते नहीं है बल्कि आप इनको पहचान जाते है .
आप को पता चल जाता है की आप खुद एक ऊर्जा है शरीर नहीं है .
इस प्रकार आज का यह पूरा लेख ‘स्वरुप दर्शन का अभ्यास अकेलेपन से मुक्ति’ के लिए लिखा गया है .
आप इस लेख को पढ़कर और समझकर और फिर अभ्यास करके यदि आप को फायदा होता है तो इस पर कमेंट करे ताकि किसी भी जरूरतमंद को अकेलेपन से बाहर निकलने में आपका यह कमेंट उसका होंसला बढ़ा सके .
धन्यवाद जी . मंगल हो जी .