काणा,लुल्या ,लंगड्या में खोट
नहीं बहुत गुण होते है परमात्मा के इस राज को ऐसे जाने
समाज में प्रचलित
एक कहावत है की :
काणा ,लुल्या ,लंगड्या में खोट होता है और प्राय लोग यह कहते
मिलेंगे की इनसे बचकर रहना चाहिए . यह भी कहते है की यह बिना बात के ही झगड़ा करने
लगते है , लोगो को परेशान करते है ,
इनकी नज़र लग जाती है ऐसे तमाम प्रकार के मिथ
समाज में प्रचलित है . जब हम परमात्मा की महिमा का अभ्यास करना शुरू करते है
अर्थात सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र होने लगते है और सभी शारीरिक अनुभूतियों से
प्रेम करने लगते है तो हमे यह ज्ञान होता है की इन व्यक्तियो में ईश्वरीय गुण
सामान्य लोगो से ज्यादा होते है अर्थात परमात्मा और इनके बीच की दूरी सामान्य लोगो
से कम होती है . इसका कारण यह होता है की शारीरिक विक्षिप्तता के कारण यह लोग खुद
ही पहले खुद में हीन भावना विकसित कर लेते है और फिर समाज को इसी दृष्टि से देखने
लगते है की कोई भी हमे प्यार नहीं करता है सब हमारे में ही कमीया निकालते है और
फिर धीरे धीरे ये व्यक्ति यह समझने लगती है की यह दुनिया तो बेकार है हमारा तो
परमात्मा ही मालिक है . और फिर धीरे धीरे परमात्मा की तरफ बढ़ने लगते है . परमात्मा
में भक्ति बढ़ने के कारण इनमे ईश्वर्य शक्तिया भी बढ़ने लगती है और इस कारण से जब ये
व्यक्ति किसी को कोई बात दिल से बोल देते है तो वह सच होने लगती है अर्थात इनकी
वाणी में सिद्द्ता आने लगती है . और यदि इनके माध्यम से कही गयी बात नकारात्मक है
तो हम सब यह घोषणा कर देते है की इनकी नज़र लगती है , ये सही नहीं है . परमात्मा का यह पूरा खेल केवल एक
साइक्लोजी मात्र है . परमात्मा की महिमा के अभ्यास से पता चलता है की आखिर इनको
हमारे पर गुस्सा क्यों आता है . क्यों की जो कोई भी आता है और इनको छेड़ के चला
जाता है जैसे कोई इनको काणा कहकर इनका तिरस्कार करता है तो इनको गुस्सा आता है
जैसे चोर को चोर कहेंगे तो उसको गुस्सा आएगा पर साहूकार को साहूकार कहेंगे तो उसको
गुस्सा नहीं आएगा . ऐसा क्यों ? . यही तो माया है .
क्यों की माया के पीछे स्वयं परमात्मा है . इसकी पहचान यह है की कोई भी व्यक्ति
खुद की कमी सुनना नहीं चाहता है क्यों की सत्य तो यह है की हर व्यक्ति अपने आप में
पूर्ण है . पर इस सत्य को पूर्ण रूप से अनुभव नहीं कर रहा है माया के कारण . इसलिए
जब कोई दूसरा व्यक्ति इसको काणा कहता है तो यह मानने को तैयार नहीं होता है. क्यों
की वह खुद ही खुद को स्वीकार नहीं कर रहा है तो दूसरे को कैसे स्वीकार करेगा . और
फिर सबसे बड़े मजे की बात तो यह है की जब परमात्मा सभी को सर्वगुण संपन्न बना देते
तो फिर लीला कैसे करते ?. इसलिए जब तक हम
परमात्मा की महिमा का गहन अभ्यास नहीं करेंगे तब तक यह बीमारिया लगी रहेगी . यह
बात उन व्यक्तियो पर लागू नहीं होती है जो इस शरीर भाव को जान गए है . यह केवल
परमात्मा की लीला के कारण होता है . जैसे हमने कई जगह सुना भी है की नज़र से तो
पत्थर भी फूट भी जाता है . हां यह सही बात है पर आंशिक सत्य है . कैसे ?. जब नज़र डालने वाले व्यक्ति की नकारात्मक ऊर्जा
जिस पर नज़र डाली जा रही है उसकी सकारात्मक ऊर्जा से ज्यादा है तो अवश्य यह व्यक्ति
प्रभावित करेगा . पर यदि नज़र डालने वाला व्यक्ति किसी सिद्द पुरुष पर नकारात्मक
नज़र डाले तो वह उसको प्रभावित नहीं कर पाता है . और कई बार तो यह भी सच हो जाता है
की खुद नज़र लगाने वाला व्यक्ति ही मुसीबत में पड़ जाता है . यह निर्भर करता है
सामने वाले व्यक्ति की भावना पर . यदि वह बहुत दयालु है तो इसको माफ़ कर देगा और
यदि वह इस नज़र लगाने वाले व्यक्ति से बहुत तंग आ चूका है तो फिर वह अपनी शक्ति का
प्रयोग करता है और इसको सबक सिखाता है . पर जो परमात्मा की महिमा का निरंतर अभ्यास
करता है वह नज़र डालने वाले को भी परमात्मा के रूप में देखने लगता है . क्यों की
उसमे इस अभ्यास के कारण सभी को परमात्मा के रूप में देखने की शक्ति प्राप्त होने
लगती है . और हम तो जानते ही है की परमात्मा की तो केवल प्रेम की नज़र होती है .
इसलिए हम देश विदेश में कई जगह देखते है की वहा कुत्तो की भी पूजा की जाती है .
क्यों की परमात्मा को वह भक्त सबसे प्रिये है जो सभी जीवो को समान भाव से देखता है
. पर इसका मतलब यह नहीं है की आप मानव से महामानव की तरफ बढ़ रहे हो और कुत्ते को
साथ लेकर सो रहे हो . इससे समाज में एक प्रकार से अव्यवस्था आ जाती है . क्यों की
यदि एक व्यक्ति कहे की में तो कुत्ते में भी परमात्मा देखता हु इसलिए साथ लेकर
सोता हु . तब यदि यह पुरुष है और शादीसुदा है और इसकी पत्नी को बिल्ली में
परमात्मा दीखता है और वह बिल्ली को साथ लेकर सोती है तो क्या होगा जब ये दोनों पति
पत्नी एक ही बिस्तर पर सोयेंगे . कुत्ता बिल्ली को खा जायेगा और इनके बीच में
युद्द हो जायेगा . क्या ऐसे परिवार में सुख शांति आएगी ? . नहीं ,कभी नहीं . हमे
यह समझना ही पड़ेगा की हर जीव को प्रेम करना है पर उसको प्राकृतिक रूप से स्वतंत्र
रहने देना है . जिस जीव की जो प्राकृतिक जगह है , जो उसका प्राकृतिक भोजन है वही उसको मिलना चाहिए . तभी तो
हम देखते है की तेंदुआ हमारी कॉलोनी में आ गया . अरे भाई तेंदुआ नहीं आया हमने
जंगलो में हमारे लालच के कारण अतिक्रमण कर लिया जिसका प्रकृति हमे भुक्तान कर रही
है . व्यक्ति तब तक इन बातो को नहीं मानता है जब तक वह खुद इन बातो की चपेट में
नहीं आ जाता है . या यु कहे की उसको मनुष्य होने का अहसास ना हो . उसको खुद की
महानता का अहसास ना हो . वह अपना जीवन केवल पशुओ के साथ रहकर ही गुजारना चाहता हो
इंसानो से उसको कोई ख़ास लगाव ना हो किन्ही पुराणी चोटों के कारण जो उसको इंसानो से
मिली हो . जिससे ऐसा व्यक्ति इंसानो से तो घृणा करने लगता है और पशुओ से प्रेम .
इसलिए हमे किसी में भी खोट देखने की जरुरत नहीं है सच में वह खोट हमारे खुद में
होता है पर हमारे संचित कर्मो के कारण हमारे को खुद में खोट नज़र नहीं आता है .
येही तो माया का प्रभाव है . इसलिए यदि हम हमेशा के लिए सुखी होना चाहते है तो
इसका एक ही उपाय है निरन्तर परमात्मा की महिमा का अभ्यास करना .