क्रियायोग – महावीर , बुद्ध , कबीर , ओशो , गुरु नानक , विवेकानंद , राम , कृष्ण, जीसस इत्यादि में किसकी बात माने और किसकी नहीं ?

यह प्रश्न ही ठीक नहीं है . क्यों की उपरोक्त सभी अपने अपने
अनुभव साझा कर रहे है . आप जब इनको पढ़ेंगे तो बार बार पढ़ने से आप धीरे धीरे भ्रमित
होने लगेंगे या यह सच समझने लगेंगे की सभी एक ही बात को अलग अलग तरीके से समझाने
का प्रयास कर रहे है . अर्थात ये सभी परमात्मा को
कैसे जाने इसके अलग अलग रास्ते बता रहे है . अब तय आप को करना है की आप इनके बताये
रास्ते पर चलते है या आप अपना अलग रास्ता चुनते है . क्यों की आप को चुनने का
अधिकार मिला है . बुद्ध के रास्ते से चलेंगे तो आप बुद्ध बन जायेंगे
, महावीर
के रास्ते से चलेंगे तो आप महावीर बन जायेंगे और किसी गुरु के रास्ते से चलेंगे तो
आप गुरु बन जायेंगे और यदि आप खुद का अपना रास्ता बनाकर चलेंगे तो आप खुद परमात्मा
बन जायेंगे .
और अंत में आप को यह अनुभव होगा की केवल परमात्मा का
अस्तित्व है
, परमात्मा के
अलावा कुछ भी नहीं है . आप के भीतर उपरोक्त सभी महान गुरुजन विराजमान है . आप के
और इनके बीच दूरी शून्य है . पर माया के प्रभाव के कारण आप को समय
, दूरी और
द्रव्यमान का अनुभव होता है . ठोकर सबसे बड़ा गुरु है . और यदि आप ठोकर का इन्तजार
करने से बचना चाहते हो तो फिर विश्वास ठोकर से भी बड़ा गुरु है . विश्वास से बड़ा
गुरु ना था
, ना है , और ना होगा .

विश्वास किसमें करे ?

अपनी
आत्मा में
, परमात्मा में या यु कहे की आप यह
विश्वास करले की कण कण में केवल परमात्मा का अस्तित्व है . अर्थात क्रियायोग का
अभ्यास आप को आप से मिलाने का तीव्रतम मार्ग है
. बाकी सबमे
लम्बी यात्रा करनी पड़ती है .

इस अभ्यास के अंतर्गत आने वाली शर्ते :

१. सत्य और अहिंसा का पालन करे

१.१ . खुद से झूठ बोलना बंद करे

२. खुद को बहलाना फुसलाना बंद करे

३. खुद से अनन्य प्रेम करे

४. खुद को समय दे

५. खुद की इज्जत करना शुरू करे

६. खुद किसी की चुगली , निंदा , बुराई ना करे

७. खुद को मुर्ख बनाना बंद करे

८. मान , अपमान के लालच से दूर रहे

९. पूर्ण निश्वार्थ भाव से सेवा करे

१०. पूर्ण समर्पण भाव विकसित करे

११. केवल कर्म करे और यह अनुभव करते हुए करे की आप के रूप
में खुद परमात्मा यह कर्म कर रहे है .

१२. शरीर में होने वाले सभी परिवर्तनों को सुख दुःख कहना
बंद करे

१३. आप यह विश्वास करे की आप शरीर नहीं है बल्कि परमात्मा
आप के शरीर के रूप में प्रकट हो रहे है .

१४. यदि आप कृष्ण के भक्त है तो कण कण में कृष्ण को ही देखे

१५. यदि आप अल्लाह के भक्त है तो कण कण में अल्लाह को ही
देखे

१६. यदि आप राम के भक्त है तो कण कण बोले सीताराम

१७. यदि आप खुद के भक्त है तो कण कण में खुद को ही देखे

१७.१ यदि आप सच्चे राम भक्त है तो फिर आप अल्लाह के भक्त को भी राम भक्त के रूप में देखेंगे 

१७.२ यदि आप सच्चे अल्लाह के भक्त है तो फिर आप राम के भक्त को भी अल्लाह के भक्त के रूप में देखेंगे 

१७.३ अर्थात आप इस संसार में किसी भी जाती , धर्म , सम्प्रदाय , पंथ इत्यादि का बराबर सम्मान करेंगे . 

१७.४ सभी महान अवतारों ने खुद से युद्ध करने की बात कही है ना की बाहर महाभारत करने को कहा है 

१७.५ हम इन अवतारों की बात को हमारी अल्पबुद्धि(अविकसित) से समझने के कारण संसार में बाहर आये दिन युद्ध कर रहे है और हमारा खुद का ही सर्वनाश कर रहे है . जब तक हम सत्य और अहिंसा के मार्ग पर नहीं चलेंगे तब तक हम खुद को नहीं जान पायेंगे.

१८. आप खुद तय करे की आप को साकार की साधना करनी है या
निराकार की

१९. गृहस्थ के लिए साकार की साधना सर्वश्रेष्ठ होती है

२०. वीतरागी संत के लिए निराकार की साधना सर्वश्रेष्ठ होती
है

२१. जैसी आप की मति होगी वैसी आप की गति होगी

२२. यदि आप बीमार है तो आप को पारंगत चिकित्सक से इलाज
करवाना चाहिए यह कहता है क्रियायोग अभ्यास

२३. यदि आप वहमी है तो आप को अपनी श्वास के साथ योग करना
चाहिए वहम से पर्दा उठ जायेगा

२४. यदि आप को चमत्कार देखने में बहुत आनंद आता है तो पहले
यह चमत्कार देखे की आप शरीर नहीं हो और फिर भी अपने आप को शरीर मानकर दिन रात इस
मायाजाल में फसते चले जा रहे हो .

२५. क्रियायोग के अभ्यास से आप को अनुभव होगा की आप खुद
पूरा संसार हो .

प्रभु के इस लेख से यदि आप को फायदा होता है
तो आप की यह नैतिक जिम्मेदारी बनती है की आप इस लेख को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक
भेजे और हमारे इस सेवा मिशन में अपना अमूल्य योगदान देकर प्रभु के श्री चरणों में
अपना स्थान सुनिश्चित करे . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .

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