क्रियायोग – मै गलत हूँ या आप ?

आज मै आप को परमात्मा के उस गहरे राज को समझाने जा रहा हूँ
जिसे यदि आप ने भीतर उतार लिया तो फिर मेरे और आप के बीच जो यह सही गलत का
अज्ञानरूपी पर्दा है
, वह हमेशा के लिए
हट जायेगा .

जब आप पूर्ण मनोयोग से सच्ची श्रद्धा , भक्ति
और विश्वास के साथ क्रियायोग का अभ्यास करते है तो आप को अनुभव हो जायेगा की मै और
आप दो अलग अलग व्यक्ति है ही नहीं . मै और आप इस प्रकार से जुड़े है जैसे सागर से
लहर और पानी से बूँद . अर्थात मै और आप माया के कारण दो भौतिक शरीरों के रूप में
दिखाई देते है
, परन्तु
इन दोनों दिखाई देने वाले शरीरों और अदृश्य इनके मनो के पीछे सयुक्त रूप से एक ही
शक्ति (प्राण
, परमात्मा की शक्ति , जीवन
शक्ति )   कार्य कर रही है जिससे इनके
अस्तित्व सुरक्षित है . पर जिस प्रकार से एक ही प्रकार की विद्युत फ्रीज़ में पानी
को ठंडा कर देती है और गीजर में पानी को गर्म कर देती है
, ठीक
इसी प्रकार से परमात्मा की शक्ति इन दोनों व्येक्तियों के चेहरे
, विचार
, सोच
, याददास्त
, रंग
रूप
,
कद काठी इत्यादि अलग अलग प्रकट कर रही है .

अर्थात मेरे और आप के रूप में खुद परमात्मा ही प्रकट होकर
अपनी माया लीला का आनंद ले रहे है और यह जो हमे सुख दुःख की अनुभूति होती है यह भी
माया ही है . पर परमात्मा की यह माया लीला एक नियम के तहत चलती है ताकि कभी यह
नहीं हो जाये की सत्य की जगह या सत्य के साथ साथ असत्य का भी अस्तित्व दिखाई देने
लग जाए . केवल सत्य का ही अस्तित्व है .

जैसे मुझे इस पुरे संसार में सभी जीव मेरे ही अंश नज़र आते
है पर कई बार मै खुद भी मेरे संचित कर्मो के कारण माया को सच मान बैठता हूँ और
किसी मेरे ही प्रिये में दोष देखने लगता हूँ . पर भीतर से मुझे यह अहसास रहता है
की मेरा अहंकार ही इन सभी कष्टों का कारण है . इसलिए मै परमात्मा से हर पल यही
प्रार्थना करता हूँ की मेरे माध्यम से मेरे सभी मित्रों को परमात्मा से जुड़ने का
अवसर मिले ताकि वे सभी हमेशा के लिए हरपल खुश रहने लग जाए . प्रभु का यह लेख यदि आपको फायदा पहुंचाता है तो यह आप की नैतिक
जिम्मेदारी बनती है की आप इस लेख को ज्यादा से ज्यादा लोगों
तक भेजकर प्रभु
के श्री चरणों में अपना स्थान सुनिश्चित करे . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .

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