‘पेट के रोग क्यों होते है ?’ इस विषय को मै आपको बहुत ही आसान शब्दों में समझाने जा रहा हूँ .
Table Of Contents :
- पेट किसे कहते है
- पेट का रोग किसे कहते है
- पेट के रोग क्यों होते है
- पेट के रोगों के लक्षण
- पेट के रोगों से कैसे बचे
- पेट के रोगों का इलाज कैसे करे
अब हम ‘पेट किसे कहते है‘ के बारे में समझेंगे |
पेट के रोग – पेट किसे कहते है
मनुष्य शरीर का वह हिस्सा जो मुँह से शुरू होता है ओर नाभि के निचे तक जाता है . पेट कहलाता है . अर्थात वास्तविकता में पेट केवल नाभि के चारों तरफ के हिस्से को ही नहीं कहते है . बल्कि हमारा पेट मुँह से ही शुरू हो जाता है . इसलिए हमारी जीभ और लार ग्रंथियाँ भी पेट का ही हिस्सा होती है . पेट भोजन को हमारे शरीर में बदलने का कार्य करता है . और इसी बदलाव में रूकावट से ‘पेट के रोग‘ पैदा होते है .
पेट को संक्षिप्त रूप में समझने के बाद अब हम ‘पेट का रोग किसे कहते है‘ के बारे में समझेंगे |
पेट का रोग किसे कहते है
यहाँ हम पेट के रोगों के विषय पर बात कर रहे है . इसलिए जब हम अज्ञानता के कारण इस शरीर रचना को ठीक से नहीं समझते है तो :
- पेट क्या है ?
- पेट में कैसा भोजन डालना चाहिए ?
- शरीर को स्वस्थ रखने में पेट की भूमिका क्या है ?
जैसे प्रश्नों का उत्तर नहीं जानते है . और फिर इस पेट के साथ हम अप्राकृतिक व्यवहार करने लगते है . जिससे पेट की कार्यप्रणाली में कई प्रकार की रुकावटे आने लगती है . और यही रुकावटे ‘पेट का रोग’ कहलाती है .
अब हम इन रुकावटों अर्थात ‘पेट के रोग क्यों होते है‘ के बारे में समझेंगे |
पेट के रोग क्यों होते है
- पेट के ऊपर विचारों के प्रभाव को नहीं समझना
- मन और पेट के सम्बन्ध की अनुभूति का अहसास नहीं करना
- पेट की प्रकृति को नहीं समझना
- पेट के ऊपर मौसम के प्रभाव को नहीं समझना
- खुद के पेट की तुलना अन्य लोगों से करना
- पेट में लगी भूख और प्यास को ठीक से नहीं समझना
- पेट को ठीक रखने के लिए अत्यधिक दवाओं का सेवन करना
- पेट को साफ़ रखने के लिए अप्राकृतिक तरीके अपनाना
- पेट में अनियमित रूप से भोजन डालना
- भोजन करते ही तुरंत खूब सारा पानी पी जाना
- पेट में भोजन का ठीक से नहीं पचना
- चिंता में रहकर भोजन करना
- अत्यधिक राजसिक भोजन करना
- अत्यधिक तामसिक भोजन करना
- पुराने भोजन के पचने से पहले ही फिर से भोजन कर लेना
- एक बार में ज्यादा भोजन करना
- बहुत कम मात्रा में भोजन करना
- अत्यधिक फ़ास्ट फ़ूड का सेवन करना
- एक ही प्रकार के भोजन की आदत को विकसित कर लेना
- पुराने संचित कर्मो के कारण पेट की कार्यप्रणाली बाधित रहना
- भोजन को लेकर तरह तरह के वहम करना
इस प्रकार पेट के रोगों के लिए और भी बहुत से कारण जिम्मेदार होते है .
जब हमारे पेट में किसी भी प्रकार का रोग होता है तो प्रकृति हमे रोग का अहसास किसी न किसी लक्षण के रूप में अवश्य कराती है . यदि हम एक बहुत ही जाग्रत व्यक्ति है तो फिर आगंतुक रोगों के लक्षण पहले ही पता चल जाते है . फिर भी मै यहां आप को कुछ सामान्य लक्षणों के बारे में बता रहा हूँ .
पेट के रोगों के लक्षण
- पेट में दर्द होना
- जी मिचलाना
- पेट में मरोड़ चलना
- उल्टी दस्त होना
- कब्ज होना
- पेट में गैस बनना
- वजन का बढ़ना
- वजन का घटना
- पेट में पथरी होना
- बवासीर का होना
- खुलकर भूख का नहीं लगना
- खुलकर प्यास नहीं लगना
- पेट में अफारा आना
- थकान रहना
- कमजोरी रहना
- बुखार रहना
- आँखों से कम दिखाई देना
- जाँघो और पिंडलियों में दर्द रहना
- घुटनों में दर्द रहना
- बालों का समय से पहले सफ़ेद हो जाना
- जल्दी उम्र बढ़ना
- दिमाग का कमजोर होना
इस प्रकार से पेट के रोगों के और भी लक्षण कई व्यक्तियो में देखने को मिलते है . अब हम इन ‘पेट के रोगों के लक्षणों‘ के आधार पर ‘पेट के रोगों से कैसे बचे‘ विषय पर बात करते है :
पेट के रोगों से कैसे बचे
- सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्रता का अभ्यास करे अर्थात क्रियायोग ध्यान करे
- मन और शरीर का संतुलन बनाकर शारीरिक श्रम इस प्रकार से करे जो आप को अच्छा लगे
- जितनी भूख हो उससे थोड़ा कम भोजन करे
- जितनी प्यास हो उससे थोड़ा कम पानी पिये
- योग , व्यायाम , प्राणायाम की वे क्रियाये ही करे जो मन को अच्छी लगे
- किसी भी प्रकार के भोजन की आदत ना डाले
- सात्विक भोजन करने का अभ्यास करे
- भोजन करने से पहले मन को शांत करे और प्रभु से प्रार्थना करे
- जो भोजन थाली में आ जाए उसे दो मिनट जाग्रत होकर देखे और विश्वास करे की यही ब्रह्म है
- अपनी दिनचर्या को व्यवस्थित करे
- जरुरत हो तभी संयमित भाषा में जवाब देने का अभ्यास करे
- मन को प्रशिक्षित करने का अभ्यास करे
- पेट के किसी भी रोग से घृणा न करे
- शत प्रतिशत खुद को स्वीकार करे
- क्रियायोग ध्यान से अपने आप रास्ते खुलने लगते है की पेट के रोगों से कैसे बचना है
इस प्रकार से उपरोक्त बचाव के तरीके अपनाकर हम पेट के रोगों से आसानी से बच सकते है . वैसे बचाव के अन्य तरीके भी अपनाये जा सकते है . यह व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है .
अब बात करते है की ‘पेट के रोगों का इलाज कैसे करे ?‘
पेट के रोगों का इलाज कैसे करे
मेरे दोस्त जिस प्रकार से हाथ की पाँचो उंगलियाँ बराबर नहीं होती है . ठीक इसी प्रकार से एक ही इलाज की विधि सभी व्यक्तियो पर नहीं अपनाई जा सकती है . पेट के रोगों का इलाज निम्न स्थितियों पर निर्भर करता है :
- व्यक्ति की प्रकृति (वात ,पित्त,कफ)
- व्यक्ति की सोच
- व्यक्ति का विश्वास
- व्यक्ति का विश्वास किस चिकित्सा पद्द्ति में है
- व्यक्ति के संचित कर्म
- व्यक्ति का आनुवांशिक इतिहास
- व्यक्ति के खान पान की आदतें
- व्यक्ति की दिनचर्या
- व्यक्ति की मानसिक स्थिति
- व्यक्ति की शारीरिक स्थिति
- व्यक्ति की आर्थिक स्थिति
- व्यक्ति का परमात्मा में विश्वास
- व्यक्ति की भाव दशा
- व्यक्ति की मनोदशा
- व्यक्ति का व्यवहार
- व्यक्ति की जीवन को लेकर समझ
- व्यक्ति की संकल्प शक्ति
- व्यक्ति की खुद के प्रति और औरो के प्रति समझ
- व्यक्ति की जागरूकता
- व्यक्ति की लक्ष्य को लेकर समझ
- व्यक्ति चाहता क्या है
- व्यक्ति की खुद को और संसार को देखने की समझ
फिर भी मै आगे के लेखों में सभी प्रकार की बीमारियों का स्थायी समाधान समझाऊँगा. पर ये समाधान केवल उन्ही व्यक्तियो के लिए शत प्रतिशत काम करेंगे जिन्हे परमात्मा के ऊपर शत प्रतिशत विश्वास है . अर्थात जिनका क्रियायोग ध्यान के प्रति पूर्ण समर्पण है . या यूं कहे जो अपने स्वरुप का दर्शन करना चाहते है .