सास और बहू में प्रेम कैसे हो ?

मेरे मित्रों मै आज आप को इस लेख के माध्यम से ‘सास और बहू में प्रेम कैसे हो’ को एक सच्ची घटना के माध्यम से समझाने का प्रयास कर रहा हूँ .
किसी गाँव में एक परिवार में सास और बहू साथ ही रहती थी . बहू की छोटी छोटी गलतियों पर सास हमेशा तीव्र नज़र रखती थी .
जैसे ही बहू कोई छोटी सी भी गलती कर देती तो सास डाँटना शुरू कर देती थी . और डाँटते डाँटते बहू की कई पुरानी गलतियों को बता बता कर बहू को बहूत परेशान करती थी .

कई बार तो सास और बहू में घुसा फाइटिंग(मारपीट) भी हो जाती थी .
बहू ने अपनी सास को बहूत समझाने की कोशिश की पर सास नहीं समझी.
सास के इस प्रकार के बुरे व्यवहार से बहू तंग आ चुकी थी .
अब बहू सास को मारना चाहती थी .

बहू ने सोचा की जब सास ही नहीं रहेगी तो मेरी जिंदगी बहूत अच्छे से गुजरेगी .
मै जीवन का असली आनंद ही मेरी सास के मरने के बाद लुंगी . इस सास के साथ रहकर मेने मेरा जीवन नर्क बना लिया है . अर्थात सास को मारने का मतलब है ‘जब ना रहेगा बांस और ना बजेगी बांसुरी ‘.

इस काम को अंजाम देने के लिए बहू एक वैद्य जी के पास गयी . और वैद्य जी को अपनी सारी परेशानी विस्तार से समझाई .
वैद्य जी भगवान के भक्त थे . और संसार क्या है इसका ज्ञान था . इसलिए वैद्य जी ने बहू को बहूत ही चतुराई से कहा की बेटी तू चिंता मत कर तू अब मेरे पास गयी है इसलिए समझ ले की तेरी यह परेशानी हमेशा के लिए समाप्त हो जायेगी.
मै तुझे जहर की तीस पुड़िया दे रहा हूँ . और तुझे हर रोज इसमें से एक पूड़ी तेरी सास को भोजन में मिलाकर देनी है . तीसवें दिन तेरी सास इस दुनियाँ से अलविदा हो जायेगी .
पर सबसे जरुरी बात यह है की तुझे तेरी सास के साथ प्रेम का नाटक करना है ताकि तेरी सास को यह पता नहीं चले की तू उसे रोज ज़हर दे रही है .
अब बहू वैद्य जी से ज़हर की पुड़िया लेकर घर आ गयी थी .
अब रोज जब भी सास बहू को किसी भी काम को लेकर डाँटती तो बहू प्रतिक्रिया नहीं देती थी . बल्कि हर बार यह कहती जी मांजी गलती हो गयी है आगे से ध्यान रखूंगी .
जब सास बहू को कोई काम बताती तो बहू तुरंत कहती अभी कर देती हूँ . और यदि काम ज्यादा हो तो बहू यह कहती थी की मांजी अभी इस काम को पूरा करने के बाद कर दूंगी .

अब बहू को सास के भोजन में पूड़ी देते हुए पांच दिन बीत गए थे . अब बहू सास को पूछकर उसका खाना लगाती थी . और कई बार तो दोनों सास बहू साथ ही खाना खाती थी .
धीरे धीरे बहू के व्यवहार में परिवर्तन देखकर कभी सास कहती बहू जरा अपन दोनों के लिए चाय बना ले . साथ बैठकर चाय पीयेंगे .
ऐसा करते करते अब पँद्रह दिन बीत गए थे . सास और बहू में प्रेम बढ़ने लग गया था . अब हर रोज सास और बहू साथ साथ ही खाना खाती थी और ज्यादातर साथ ही काम करती थी .
बहू सास को पूड़ी देते हुए बीस दिन समाप्त कर चुकी थी . अब सास का व्यवहार लगभग अस्सी प्रतिशत बदल चूका था . अब सास भी बहू को प्रेम करने लग गयी थी . ऐसे करते करते अब पच्चीस
दिन बीत गए थे . अब सास भी बहू के काम में हाथ बटाने लग गयी थी .

अब बहू को अपनी गलती पर पश्चाताप होने लगा . सास का प्रेम देखकर अब बहू हर समय इस चिंता में रहती थी की मुझे सास को जहर की पुड़िया देते हुए आज कई दिन बीत गये है और अब जल्दी ही मेरी सास की मृत्यु हो जायेगी .

मुझे तो पता ही नहीं था की मेरी सास मेरे लिए इतनी अच्छी थी . और मेने अज्ञान के कारण मेरी सास को दुश्मन मान रखा था . अब मुझे बहूत जल्द मेरी सास को मरने से बचाने के लिए कुछ न कुछ उपाय करना बहूत जरुरी है.
इसलिए बहू अब भागी भागी उन्ही वैद्य जी के पास गयी . और वैद्य जी को बोली साहब आप कैसे भी करके मेरी सास को बचा लो , मेने सास को ज़हर देकर अनर्थ कर दिया है . वह मर जायेगी .
इस दौरान वैद्य जी किसी अन्य मरीज को देख रहे थे और अन्य मरीज लाइन में लगे हुए थे .
तो बहू की घबराहट देखकर वैद्य जी अपने कम्पाउंडर को बोले की इन्हे अंदर बिठाओ मै अभी थोड़ी देर में इनसे बात करता हूँ .
जब बहू तुरंत बात करने को बोली तो फिर वैद्य जी ने कहा की पहले तो अपनी सास को ही मारने के लिए मेरे पास उपाय पूछने आते हो .
और फिर जब अपनी सास बहूत अच्छी लगने लगे तो उसे बचाने के लिए मुझे कहते हो . बहू आप तो बहूत होशियार हो .
अब मै क्या तेरी सास को कोई भी नहीं बचा सकता है . क्यों की तुमने सास को अब तक बहूत सी ज़हर की पुड़िया दे दी है . अब यह ज़हर सास के पूरे शरीर में फ़ैल चूका है . और तेरी सास अब कभी भी मर सकती है .
इतना कहते ही बहू दीवार के अपना सिर पटक पटक के जोर जोर से रोने लगती है .
और कहती है हे भगवान ये मेने क्या कर दिया ?
अब मुझे भगवान कभी माफ़ नहीं करेंगे . लगता है मुझे इसकी बहूत बड़ी सजा मिलेगी . ऐसा कहकर बहू फिर जोर जोर से रोने लगती है .
बहू को इस तरह से विलाप करते हुए देखकर वैद्य जी अपनी सीट से खड़े होकर बहू के पास आकर
बोलते है बेटी तू रो मत , तेरी सास को कुछ नहीं होगा . क्यों की तेरी जैसी परेशानिया लेकर मेरे पास
कई लोग आते है .
यह सब हमारे मन का नाटक है . मेने तुझे जो तीस पुड़िया दी थी , उनमे ज़हर नहीं था बल्कि खट्टा मीठा चूरन था .
उस चूरन से तेरी सास का अब पेट भी साफ़ रहने लग गया है और वह अब पहले से ज्यादा तंदुरुस्त हो गयी है .
और बेटी तू याद कर उस दिन को जब तू बहुत परेशान होकर मेरे पास आयी थी और अपनी सास को मारना चाहती थी . और अब उसी सास को तू बचाने के लिए रो रही है .
अब मेरे प्यारे मित्रो मै आप को इसके पीछे का विज्ञानं समझा रहा हूँ की  सास और बहू में प्रेम कैसे हो ?.

इसे समझने के लिए सबसे पहले आप को यह विश्वास करना पड़ेगा की केवल परमात्मा का अस्तित्व है .
परमात्मा से ही आत्मा प्रकट होती है और आत्मा को अभिव्यक्त करने के लिए परमात्मा से ही चेतना प्रकट होती है . और चेतना की शक्ति से ही हमारा मन प्रकट होता है .
अर्थात जिस शक्ति से हमारा मन काम करता है उसे चेतना शक्ति कहते है .
इसलिए यदि हम केवल यह विश्वास करले की कण कण में केवल परमात्मा का अस्तित्व है तो हम सीधे परमात्मा से जुड़े होने की अनुभूति में आ जाते है . और फिर हम प्रभु की चेतना शक्ति से जुड़ जाते है .
अभी भी हम इसी चेतना शक्ति से जुड़े हुए है पर आंशिक रूप से . अर्थात तारो में विद्युत स्पार्क हो रहा है . कभी बिजली आ जाती है तो हम ख़ुशी से झूम उठते है और बिजली जाने पर हम दुखी हो जाते है .
इसीलिए तो मै कहता हूँ की यदि आप हर पल खुश रहना चाहते है तो फिर हर पल अपने स्वरुप का दर्शन करने का ही अभ्यास करना चाहिए . अर्थात आप हर समय इस अनुभूति में रहे की आप शरीर नहीं है . बल्कि आप परमात्मा की प्रेम ऊर्जा है .
इसलिए जब आप अपनी चेतना शक्ति को झूठे प्रेम करने के नाटक में भी लगायेंगे तो एक समय पर यही प्रेम सच्चे प्रेम में बदलने लगता है .
अर्थात ऐसा करके आप प्रेम को साकार रूप में निर्मित कर रहे है . क्यों की जैसे ही आप खुद के प्रति और इस संसार के प्रति अपने भाव बदलने का अभ्यास करते है तो आप खुद और यह पूरा संसार आप के भावों के अनुसार बदल जाता है .
अर्थात यह पूरा संसार आप के भावों का ही साकार रूप है .

और हमारा मन वह प्रोग्रामर है जो आदत के साथ काम करता है . अर्थात मन को यदि हम कहे की तुझे इस नयी आदत को साकार करना है तो पहले तो हमारा मन पुरानी आदत में ही रहना चाहता है .

पर जब हम अपनी चेतना शक्ति का प्रयोग मन की पुरानी आदतों के पोषण के लिए न करके नयी आदत को साकार करने के लिए करते है तो मन में जमा पुरानी आदते खाद पानी नहीं मिलने के कारण धीरे धीरे रूपांतरित होने लगती है .

इस प्रकार बहू ने अपनी चेतना शक्ति का प्रयोग अपनी सास से परेशान होने वाली आदतों के पोषण में न लगाकर सास को प्रेम करने वाली आदतों के निर्माण में लगा दिया . और अब परिणाम हम सबके सामने है .

धन्यवाद जी . मंगल हो जी . 

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