केवल परमात्मा का अस्तित्व है. परमात्मा सर्वव्यापी है परमात्मा कण कण में विराजमान है. परमात्मा का हर गुण अनंत है जैसे परमात्मा का एक गुण यह भी है की वे एक से अनेक रूपों में प्रकट होते है. निराकार से साकार रूप में प्रकट होना है : सृष्टि की उत्पति अर्थात निराकार से साकार रूप में प्रकट होना ,असंख्य जीव अर्थात एक से अनेक होने का गुण. मानव का लक्ष्य केवल परमात्मा को जानना है , खुद के स्वरूप को जानना है , परमात्मा और हमारे बीच दूरी शून्य है इसका अनुभव करना है , हर पल खुश कैसे रहे इसका अभ्यास करना है
Tuesday, January 30, 2024
इस दवा से कभी नहीं होंगे दाँत और मसूड़ों के रोग
Monday, January 29, 2024
श्वास के माध्यम से मन का राजा बने
Sunday, January 28, 2024
लहुसन प्याज खाना चाहिए या नहीं ? - भाग 1
भाग 1
लहुसन प्याज खाना चाहिए या नहीं ?
परमात्मा की महिमा में इस विषय को परमात्मा बहुत ही वैज्ञानिक तथ्यों के साथ बता रहे है की आखिर क्या है इनके पीछे की सच्चाई . लहुसन और प्याज दोनों ही बीज और फल की श्रेणी में आते है जो की मानव के स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभदायक है यदि इनका उचित मात्रा में प्रयोग करे तो . यदि इनको हम ज्यादा मात्रा में प्रयोग करने लगते है तो प्रजनन से संबधित रोग और मस्तिष्क के रोग होने लगते है पर यदि इनका पूर्ण निषेद कर देते है तो शरीर में कई प्रकार के पोषक तत्वों की कमी होने लगती है ध्यान के मार्ग में आगे बढ़ने के लिए इनका सेवन अनिवार्य है पर उचित मात्रा में . पर अब प्रश्न यह उठता है की :
किस व्यक्ति को
लहुसन प्याज की कितनी मात्रा खाना चाहिए ?
इसका सही जवाब परमात्मा की महिमा करने से ही मिलता है जब आप खुद में एकाग्र होने लगते हो तो आप के मन और बुद्धि जगने लगते है और आप को पता लगने लगता है की यदि में प्याज खाता हु तो मेरे शरीर में क्या परिवर्तन होते है और ऐसे ही जब लहुसन खाता हु तब क्या परिवर्तन होते है पर यह बाते हमारे आसानी से समझ में नहीं आती है क्यों की हम अनंत जन्मो से सुनी सुनाई बातो पर विश्वास करके ही या तो इनका पूर्णतया परित्याग कर देते है या इनका ज्यादा मात्रा में सेवन करना प्रारम्भ कर देते है . और जब हमें इनके सेवन से परेशानी होने लगती है तो फिर हमारा मन यह विचार प्रकट कर देता है की लहुसन और प्याज हमारी आध्यात्मिक उन्नति में बाधक है
किस व्यक्ति को इसकी कितनी मात्रा खानी चाहिए इसका जवाब भी परमात्मा की महिमा से ही मिलता है .
छोटे बच्चो को
लहुसन प्याज की कितनी मात्रा खानी चाहिए ?
जब आप इनका छोटे
बच्चो के साथ प्रयोग करोगे तो आप को बच्चो के व्यवहार से अपने आप पता चल जायेगा की
मेरे बच्चे को इनकी कितनी मात्रा की जरुरत है पर आप को इसका पता तभी चल पायेगा जब
आप निरन्तर परमात्मा की महिमा का अभ्यास कर रहे हो . क्यों की परमात्मा की महिमा
का निरन्तर अभ्यास करने से खुद के साथ साथ आप दुसरो के स्वभाव को भी जानने लग जाते
हो. यही तो परमात्मा की महिमा का चमत्कार है फिर आप को पता लगने लग जाता है की यदि
मै(यदि आप एक बच्चे की माँ है) मेरे बच्चे को इनकी x मात्रा खाने के लिए देती हु तो मेरा बच्चा इनको आसानी से खा
लेता है और खाने के बाद भी अच्छा महसूस करता है आप का बच्चा शिकायत नहीं करता है
की मेरे पेट में दर्द हो जाता है इनको खाने से या कोई और ऐसा अनुभव नहीं बताता है
जो बहुत ही असहनीय हो . और यदि में मेरे बच्चे को इनकी y मात्रा खाने के लिए देती हु तो बच्चा मना करने लगता है और
कई प्रकार की शारीरिक शिकायते करने लगता है. इस प्रकार आप
बहुत ही आसानी से पता कर लेती हो . पर यह सब काम आसान तभी होने लगते है जब आप
निरन्तर परमात्मा की महिमा करते हो. अन्यथा आप को लहुसन प्याज को लेकर बहुत ही
शंकाओ से होकर गुजरना पड़ता है
साधु संत लहुसन प्याज के पूर्ण त्याग के लिए क्यों कहते है ?
परमात्मा की महिमा में इसका जवाब परमात्मा निम्न प्रकार से देते है :
सबसे पहले तो यह समझे की साधु किसे कहते है ?
जो खुद को साध ले
, जिसे खुद की सुध हो ,
जो साधन को समझता हो , जो साध्ये को जानता हो , क्या चीज साधने योग्ये है , जो यह समझ चूका हो की साधक , साधन , और साध्ये ये
तीनो एक ही है ऐसा साधु इनके पूर्ण परित्याग की बात नहीं करता है
क्यों की ऐसे
साधु को यह अनुभव हो चूका होता है की केवल परमात्मा का अस्तित्व है और किसी भी जीव
में या जीव और नदी , पहाड़, समुद्र या वनस्पति जगत में दूरी नहीं है इसलिए
वह लहुसन प्याज से कैसे दूरी बना सकता है .
पर जो अभी परमात्मा को अनुभव करने का अभ्यास कर रहे है या अभी तर्क वितर्क में उलझे हुए है या जो अपनी मन की पुरानी आदतों के कारण सुनी सुनाई बातो पर विस्वास करते हो या पढ़कर याद कर लिया हो या अभी उनके मन और बुद्धि अल्पविकसित है उनके मन में यह प्रश्न उठता है की फिर तो जहर का भी त्याग नहीं करना चाहिए उसे भी भोजन में शामिल कर लेना चाहिए .
इसका जवाब परमात्मा की महिमा में परमात्मा निम्न प्रकार से देते है पुरे वैज्ञानिक तथ्यों के साथ :
यदि हमें मानव से
अवतार में बदलना है या यु कहे की हमें परमात्मा की तरफ बढ़ना है या अपने स्वरूप को
जानना है या परमात्मा को जानना है तो हमें प्रकृति भोजन के रूप में जो भी (बीज और
फल )प्रदान करती है उस भोज्ये पदार्थ का हमारे मन से मिलन अनिवार्य है
लॉ ऑफ़ अट्रैक्शन का राज तो ऐसे ही खुल गया
Saturday, January 27, 2024
भजन से मन को किसी भी काम में लगाए
यहां परमात्मा की महिमा के अभ्यास में आज हम यह बता रहे है की किस प्रकार हम भजन के माध्यम से हमारे मन को किसी भी काम में लगा सकते है . यदि हमारा मन जब किसी ऐसे काम को करने में राजी ना हो और वह काम करना जरुरी हो तो किस प्रकार परमात्मा की महिमा के अभ्यास में हम जब कोई भी भजन सुनते है तो हमे पता चलता है जब हम यही भजन परमात्मा की महिमा के अभ्यास के पहले सुन रहे थे तो हमारा मन एकाग्र नहीं हो रहा था . पर अब हमारा मन भजन को सुनकर भी धीरे धीरे एकाग्र होने लग गया है . क्यों की हर भजन में बहुत गहरे राज छुपे हुए होते है . भजन की एक एक लाइन में बहुत गहरा रस होता है . भजन कैसे हमारा ध्यान बन जाते है हमे पता ही नहीं चलता है . भजन से मन निर्मल होने लगता है . मन और शरीर के बीच दूरी को कम करने में भजन का बहुत बड़ा महत्व होता है . भजन से मन में जो विचारो का ट्रैफिक होता है वह ख़ुशी की अनुभूतियों में रूपांतरित होने लगता है . ऐसे ही किसी कविता के माध्यम से भी मन को शांत किया जा सकता है . भजन , कविता ये मन को प्रभु से जोड़ने में हमारी शुरुआत में बहुत मदद करते है . जब हमारी प्रभु में लगन बढ़ती जाती है तब भजन में रस बढ़ने लगता है और भीतर से एक ऐसा संगीत गूंजता है जिसका आनंद अदभुद होता है
Friday, January 26, 2024
मुसीबतो को आनंद में बदलने वालो को हमारा सलाम | परमात्मा की महिमा
मुसीबत को आनंद में ऐसे बदला इन्होने
एक बार 2 व्यक्ति थे एक का नाम राकेश और दूसरे का नाम
सुनील था . दोनों एक दूसरे के पडोसी थे . दोनों में काफी समय से जमीन का विवाद चल
रहा था . आये दिन वे और उनके घर वाले झगड़ा करते रहते थे . उनके रिश्तेदारों ने भी
उनको समझाने की बहुत कोशिसे की पर विवाद सुलझा नहीं बल्कि कोर्ट केश तक पहुंच गया
. अब तो उनके आपस में बातचीत भी लगभग बंद हो चुकी थी . नौबत यहां तक आ चुकी थी की
उनकी इस आपस की लड़ाई के कारण इनके शादी विवाह और हारी बीमारी और मरण मौत तक के
कार्यो में इन दोनों ने अपने अपने रिश्तेदारों तक को एक दूसरे के जाने से रोक दिया
था . जिससे रिश्तेदारों में भी इन दोनों घर वालो के प्रति गहरी नाराजगी थी . पर
क्या कर सकते थे आखिर रिश्तो में दबना पड़ता है . इनका घर औद्दोगिक क्षेत्र के पास
ही था. राकेश आपातकालीन सुरक्षा सेना में नौकरी करता था और सुनील खेती-बाड़ी का काम
करता था और दिन में 2 घंटे के लिए इसके
घर के पास ही एक प्लास्टिक आइटम बनाने की
फैक्ट्री थी उसमे नौकरी करता था . इनके घर से थोड़ी दूर पर ही एक
प्लास्टिक फैक्ट्री के बगल में गैस का गोदाम था . अचानक से एक दिन
प्लास्टिक फैक्ट्री में आग लग गयी . आग इतनी भीषण थी की 40 -43 दमकल की गाड़िया आ चुकी थी पर आग पर काबू नहीं
पाया जा रहा था . पुलिस की कई गाड़िया आ गयी थी जो आस पास के इलाके को खाली कराने
के लिए बड़े सायरनों और माइको के प्रयोग से पुलिस आवाज लगा रही थी . सेना के जवानो
से भरा एक ट्रक भी आ चूका था . क्यों की सुनील जिस फ़ैक्ट्री में काम करता था वो 4
मंजिल की थी . और ग्राउंड फ्लोर पर ही एक बहुत
बड़ा हॉल बना हुआ था जिसमे एक 9 फिट उचाई पर एक
बड़ी खुली हुयी छत थी जिस पर लगभग 70
व्यक्ति काम करते थे . आग को देखने के लिए लोगो
की भीड़ जमा होती जा रही थी . उनमे से बहुत कम लोग आग भुजाने से सम्बंधित काम कर
रहे थे बाकी केवल तमाशबीन बनकर भगदड़ का माहौल बना रहे थे . जिस समय आग लगी थी उस
समय सुनील भी इसी छत पर था . सभी को यह डर था
की यदि आग पर जल्द से जल्द काबू नहीं पाया गया तो आग पास ही के गैस गोदाम
तक पहुंच सकती है. इसलिए डर के कारण लोगो में भगदड़ मच गयी . छत पर से कई लोग कूदकर भाग के अपनी जान बचाने में जुट गए .
सभी लोग छत से कूदने में सक्षम नहीं थे इसलिए सेना के कई जवान इन लोगो को गोद में
ले लेके निचे उतार रहे थे . इन जवानो में राकेश भी था . और इसी समय सुनील छत पर था
. भगदड़ के बीच जैसे ही राकेश ने अपने हाथ ऊपर उठाये छत से कर्मचारी को उतारने के
लिए तो वह कर्मचारी सुनील था . उस समय जो दृश्य बना वह बहुत ही चमत्कारिक था .
दोनों ने एक दूसरे को तुरंत पहचान लिया . और दोनों में उसी क्षण अपनी दुश्मनी की यादे ताजा हो गयी . पर सुनील मौत के मुँह में
था इसलिए राकेश को दया आ गयी . यह दया राकेश के ह्रदय से आयी थी इसलिए सुनील के मन
के गहरे तल पर जमा दुश्मनी का भाव प्रेम में रूपांतरित हो गया क्यों की मौत के नाम
से अच्छे अच्छे दिग्गजों
में कटुता के भाव पिगलकर प्रेम भाव में बदल जाते है और ऐसी मुसीबत के समय ही हम
सभी को केवल एक परमात्मा समझ में आते है . उस समय जात-पात , अलग अलग धर्म , अलग अलग सम्प्रदाय और सभी पुरानी रंजिशे सब
परमात्मा के रूप में नज़र आने लगती है क्यों की मरता क्या नहीं करता . तो राकेश ने
तुरंत सुनील को गोद में लेकर निचे उतार दिया और सुनील ने वहा से भागकर अपनी जान
बचाई . सुनील अपने घर गया तो वहा कोई नहीं
मिला . पता करने पर ज्ञात हुआ की सभी कॉलोनी वालो को दूर के एक गाँव में पंहुचा
दिया गया था. सुनील भी भागा भागा वहा पंहुचा . और अपने घर वालो को सारी बात बताई .
सुनील की फ़ैक्ट्री में कई लोगो की मौत हो चुकी थी और घर वालो ने सुनील को खुद के
सामने जिन्दा देखकर इसे परमात्मा की महिमा का चमत्कार माना . अब दोनों में जमीन के सारे विवाद समाप्त हो गए और
दोनों परिवारों में अब प्रेम बहुत बढ़ गया . अब ये कोई भी सामाजिक हित में बड़े
निर्णय साथ बैठकर लेते थे . राकेश और सुनील दोनों ही परमात्मा की महिमा का अभ्यास
निरन्तर करते थे और इस चमत्कार के बाद तो इनका परमात्मा में विश्वास और बढ़ गया था
.
Thursday, January 25, 2024
किसी भी काम के लिए मन को कैसे राजी करे ?
Tuesday, January 23, 2024
भक्त और भगवान के बीच बातचीत - भाग 1
भक्त और भगवान के बीच बातचीत
विषय : माया क्या है , विचार क्या है , आकर्षण का सिद्धांत क्या है ऐसे यह भक्त अपने परमपिता परमेश्वर से बहुत कुछ जानना चाहता है
भाग 1
भक्त : हे सर्व शक्तिमान आप मुझे विस्तार से यह समझाए की यह कामवासना क्या होती है और इससे पृथ्वी पर जो पीड़ित मनुष्य है वह कैसे हमेशा के लिए मुक्त हो सकता है ?
भगवान : वत्स मै तुम्हे कामवासना से पहले थोड़ा मेरे बारे में अवगत कराता हु . मैं निराकार हु , मैं अंतर्यामी हु , मैं सर्वव्यापी हु , केवल मेरा ही अस्तित्व है , मेरा हर एक गुण अनंत है. अनंत गुणों मेसे मेरा एक गुण एक से अनेक होने का है . इसी गुण के माध्यम से मैंने सृष्टि की उत्पत्ति की है . अर्थात मैं और यह जो संसार आप देख रहे हो 2 नहीं है . बल्कि सम्पूर्ण सृष्टि मेरा ही स्वरुप है. मैंने मेरी एक शक्ति का प्रयोग करके इस सृष्टि को जन्म दिया है . इस शक्ति का नाम 'काम' है . अर्थात इस सृष्टि की उत्पत्ति कामशक्ति से हुयी है .
भक्त : हे परमात्मा , मुझे तो आप पहले कामवासना के बारे में बताइये . मुझे इसके बारे में ठीक से जानना है .
भगवान : ध्यैर्य रखो वत्स .
भक्त : जी भगवान
भगवान : मैंने मेरी शक्ति का प्रयोग करके माया को प्रकट किया है . जैसे समुद्र में लहरे प्रकट होती है और फिर कुछ समय बाद वापस समुद्र में मिल जाती है . मनुष्य उन लहरों को देखकर बहुत प्रसन्न होता है . तो यहां मनुष्य को एक विषय मिल गया लहरों को देखने का . ठीक इसी प्रकार मै मेरे हर स्वरुप(जैसे मानव , पशु -पक्षी , कीट पतंग , बैक्टीरिया , वायरस ) से अनन्य प्रेम करता हु . और हर स्वरुप मेरे से मिलने को बहुत आतुर रहता है जैसे समुद्र से लहर, परमात्मा से आत्मा , माँ से शिशु , प्रेमी से प्रेमिका इत्यादि .
भक्त : हे अंतर्यामी इसका मतलब तो यह हुआ की जिस माया को आप ने प्रकट किया है वो भी आप से मिलने को बहुत आतुर है ?
भगवान: ठीक समझा
तुमने वत्स . मेने जिस माया को प्रकट किया है वह वापस मुझसे मिलने को बहुत आतुर है
. यदि यह माया वापस मुझमे मिल जाती है तो इसका मतलब यह हुआ की जो में सृष्टि
उत्पन्न करके मेरी माया के माध्यम से जो लीला रचता वह उद्देश्य मेरा पूरा नहीं हुआ . इसलिए माया का अस्तित्व
बना रहे मुझे माया को कोई काम देना जरुरी था . जैसे बिना उद्देश्य के कोई भी मनुष्य ज्यादा समय तक जीवित नहीं रह सकता . हर मनुष्य के
लिए मै कोई ना कोई उद्देश्य अवश्य
निर्धारित करता हु . वह मेरी महिमा का अभ्यास करके (अपने अंतर में झांककर )
अपने उद्देश्य का पता कर सकता है . नहीं तो वह इस संसार में सदा ही भटकता ही रहेगा
. इसलिए मेने मेरी माया से
मन और बुध्दि को प्रकट किया है . अर्थात मन और बुध्दि का अलग से कोई अस्तित्व नहीं
है . यह दोनों ही अज्ञान है केवल में ही ज्ञान हु . मन माया है इसको मेने ऐसा
बनाया है की यदि इसे एक क्षण भी कोई काम
नहीं मिलता है तो यह अपनी माया की शक्ति से कई उपद्रव मचा सकता है या फिर मेरे में
मिल सकता है . इसलिए मन का अस्तित्व बना रहे मेने इन्द्रियों को प्रकट किया है .
जैसे मै मनुष्य की बात करता हु तो मनुष्य के मन के लिए इन्द्रिया है आँख , कान , जीभ , त्वचा , नाक . अर्थात मै स्वयं रचनाकार बनकर मेने इस मनुष्य शरीर की रचना की है . अब
क्यों की मुझे इस मनुष्य शरीर का अस्तित्व बनाये रखना है इसलिए मैंने इसके भोग के
लिए(अर्थात शरीर के माध्यम से किये जाने वाले भोग) विषयों को प्रकट किया है .
भक्त : हे
अंतर्ज्योति, ये विषय क्या है ?
भगवान : वत्स
मुझे बहुत प्रसन्नता है की तुम बहुत ही रूचि के साथ समझ रहे हो . मुझे पूर्ण
विश्वास है की तुम कामवासना को पूरी तरह अनुभव के साथ समझ जाओगे .
भक्त : जी भगवान
भगवान : जैसे आँख
के विषय है भोजन को देखना , पानी को देखना , रास्ते को देखना , इस संसार को देखना , ठीक उसी प्रकार कान के विषय है किसी आवाज को
सुनना , संगीत सुनना इत्यादि . इसलिए मैंने मनुष्य शरीर के भोग के
लिए इस संसार को प्रकट किया है.
भक्त : फिर
बुध्दि को क्यों प्रकट किये मेरे प्रभु ?
भगवान : वत्स
धीरज रखो सब विस्तार से समझाता हु . मन को मेने अँधा बनाया है . मन जीभ के माध्यम
से कोई भी भोजन शरीर को ना खिला दे कही इस शरीर के अस्तित्व को खतरा हो जाये .
इसलिए मेने बुध्दि को प्रकट किया है.
बुध्दि यह पता करती है की कोनसा भोजन इस शरीर के लिए उपयुक्त है ताकि इस शरीर का निरन्तर विकास होता रहे . इसमें कोई बीमारी ना आ जाये . मन को तरह तरह के व्यंजन लुभा सकते है . मन सही गलत की तुलना नहीं कर सकता है . यह कार्य बुध्दि का है . बुध्दि बिना तुलना के कार्य नहीं कर सकती है .
भक्त : हे परमात्मा , मुझे आप यह समझाए की आप ने अभी थोड़ी देर पहले कहा था की मन और बुध्दि दोनों अंधे है , दोनों ही अज्ञान है फिर बुध्दि सही गलत की पहचान कैसे कर सकती है ?
भगवान: मेरे प्रिये बच्चे मुझे ख़ुशी है की आप बहुत ही ध्यान से मेरी बातों को सुन रहे हो . जब मै कोई विचार प्रकट करता हु तो मेरी ही एक शक्ति है जिसे सुरक्षा की शक्ति कहते है संसार में इसे कई नामों से जाना जाता है . उनमे से एक नाम विष्णु शक्ति भी है . अर्थात विष्णु शक्ति जो मेरे माध्यम से प्रकट किये गए विचार की सुरक्षा करती है . जब मै मन के माध्यम से इस विचार की बार बार पुनरावृति करता हूँ तो यह विचार घनीभूत होने लगता है अर्थात दृश्य स्वरुप लेने लगता है या किसी भी अहसास के रूप में अनुभव होने लगता है . विचार एक प्रकार की ऊर्जा है . और जब मन इसका बार बार कम्पन करता है तो यह धीरे धीरे ठोस रूप में बदलने लगता है . या किसी और अहसास में . यह कम्पन की तीव्रता और विचार किस प्रवृति का है या क्या विचार है इस पर निर्भर करता है. अर्थात यह विचार ऊर्जा द्रव्यमान में बदल जाती है . जिसे विज्ञानं की भाषा में e =mc2 से भी जाना जाता है.
आगे के लिए भाग 2 पढ़े. धन्यवाद जी . मंगल हो जी .
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.
Sunday, January 21, 2024
हम बीमार क्यों हो जाते है ?
Saturday, January 20, 2024
गृह क्लेश से हमेशा के लिए मुक्ति
भगवान और भक्त के बीच बातचीत
विषय : गृह क्लेश से मुक्ति
भाग 1
भक्त : हे परमपिता परमेश्वर , हे मेरे आराध्ये, हे मेरे पिता , हे भगवान, मेरे प्रिये पापा , हे मेरी माता , हे मेरे सखा , हे मेरे प्रेमी आप मुझे विस्तार से , आप की महिमा के अभ्यास से किस प्रकार पृथ्वी पर मनुष्ये गृह क्लेश से हमेशा के लिए मुक्त हो सकता है ?
भगवान : मेरे प्रिये नंदन , आप मेरी बातों को बहुत ही ध्यान से सुनो पूरी एकाग्रता के साथ .
भक्त : जी .
भगवान : जिस घर परिवार के सदस्य मेरी महिमा का अभ्यास नहीं करते है अर्थात मेरे से दूरी बनाकर चलते है और यह समझते है की जो भी हमारे घर परिवार में हो रहा है वह हम खुद कर रहे है तो में फिर गृह क्लेश की समस्या के रूप में आता हु और उन तमाम सदस्यों को मेरी याद दिलाता हु . यही मेरी लीला है . जब ये लोग मेरी महिमा का अभ्यास किये बिना रात दिन बहुत मेहनत करके धन अर्जित करते है और फिर उस धन से नया घर बनाते है , शादी विवाह करते है , नया वाहन खरीदते है , जमीन खरीदते है , नया व्यापार शुरू करते है , या मौज मस्ती में धन को उड़ा देते है और इन सब के भोग में इतने अंधे हो जाते है की इनको यह लगने लगता है की यह सब हमने खुद किया है अपनी मेहनत से इसमें परमात्मा क्या करेगा ? इन लोगों का इनके माध्यम से अर्जित की गयी वस्तुओ से इतना गहरा लगाव हो जाता है की यह वस्तुए इनके मन का हिस्सा बन जाती है , चित में बैठ जाती है , शरीर में रम जाती है , इनके शरीर के रोम रोम में बस जाती है . और ये लोग इन सब चीजों को ही सत्ये मान बैठते है . पर ये वस्तुए सत्ये नहीं है . बस यही से गृह क्लेश की शुरुआत हो जाती है .
भक्त : हे परमात्मा ऐसा क्यों होता है ?
भगवान : मेरी माया के कारण .
भक्त : तो क्या इन लोगों को मेहनत करके धन - धान्य , वैभव नहीं बढ़ाना चाहिए ?
भगवान : अवश्य बढ़ाना चाहिए तभी संसार में आनंद और ख़ुशी मिलेगी .
भक्त : कैसे भगवन ?
भगवान : मेरी महिमा का निरन्तर अभ्यास करते हुए सभी काम करे .
भक्त : हे मेरे पिता आप की महिमा का गृह क्लेश से क्या सम्बन्ध है ?
भगवान : मेरे प्रिये वत्स में इसे आप को एक उदाहरण से समझाता हु . एक परिवार में एक पति पत्नी रहते थे और उनके कोई संतान नहीं थी . दोनों बहुत ही सरल स्वभाव के थे और मेहनती भी . उनकी शादी को 2 वर्ष पुरे हो गए थे . दोनों ही नौकरी करते थे . उनकी तन्खाव भी बहुत अच्छी थी . दोनों में प्रेम बहुत था . उन्होंने पैसे जमा करके व्यापार शुरू करने की सोच रखी थी . शादी के 4 साल बाद पति ने नौकरी छोड़कर अपना कपड़े का व्यापार शुरू कर दिया था . पत्नी को भी जब समय मिलता था तो पति की मदद करती थी . उनका व्यापार 2 साल में ही बहुत अच्छा चल निकला . खूब धन इक्कठा कर लिया दोनों ने मिलकर . पर अभी तक उनके कोई संतान नहीं थी . अब उनको यह चिंता होने लगी की आज हमारे पास सब सुख सुविधा है पर हमारे तो कोई संतान ही नहीं है मरने के बाद इस सम्पति का मालिक कोन बनेगा . इसलिए उन्होंने अब बच्चा पैदा करने की सोची . बहुत प्रयास किये पर उनके कोई संतान नहीं हुयी . हर तरीके का इलाज उन्होंने लिया . महँगी महँगी दवाये , बहुत बढ़िया भोजन , कई प्रकार के टोने-टोटके किये और भी बहुत कुछ पर सफलता नहीं मिली .
भक्त : हे परमपिता ऐसा क्यों हुआ उनके साथ सब इतना बढ़िया काम करके भी .
भगवान : मेरे
प्रिये अनुज अब सुनो मेरी बात ध्यान से , उन्होंने जितनी मेहनत
ईमानदारी से करी उतना फल तो मैंने दे दिया पर उनके मन में सदैव यह रहने लग गया की
यह सब वे खुद कर रहे है और उन्होंने धीरे धीरे मेरे से खुद की दूरी बड़ा ली .
भक्त : हे
परमात्मा कैसे ?
भगवान : मेरे
प्रिये लाल , उनको मेरे अहंकार रुपी शत्रु ने घेर लिया .
उनके दिमाग में अहंकार ने अपना डेरा जमा लिया . उनको अब यह लगने लग गया की हम पैसे
से कुछ भी कर सकते है . उनके मन में अहंकार के कारण ऐसे विचार आने लग गए की यह दवा
काम नहीं करेगी तो हम विदेश में हमारा इलाज करवा लेंगे . और वैसे भी आजकल तो
विज्ञानं ने बहुत तरक्की कर ली है हम किसी भी पद्दति से कम से कम एक लड़का तो पैदा
कर ही लेंगे .
भक्त : हे मेरे
पापा उन्होंने लड़की को जन्म देने की नहीं सोची क्या ?
भगवान : मेरे
प्रिये चिराग , अब वो पति पत्नी थोड़े थोड़े समझदार होने लग गए
थे और चतुर भी .
भक्त : कैसे ?
भगवान : मेरे प्रिये
लाड़ले , उन्होंने यह सोचा की यदि हम लड़की होने की कामना करेंगे तो
वह तो एक दिन ससुराल चली जाएगी और हमारा वंश कैसे आगे बढ़ेगा . अब आगे सुनो बहुत ही
ध्यान से . अब उनको संतान नहीं होने की चिंता रोज सताने लग गयी . इसलिए चिंता के
कारण वे दोनों अब बीमार रहने लग गए . रोज रोज दोनों में दिन में कई बार झगड़ा होने
लग गया . उनका व्यापार भी अब धीरे धीरे कम होने लग गया . उन्होंने खुद का इलाज
कराने के लिए खूब भागदौड़ करी पर सफलता
नहीं मिली . आखिर में जब थक हार के बैठ गए तो उनको मेरी याद आयी . क्यों की मुझे
ज्यादातर मनुष्ये भयंकर कष्टों में ही याद
करते है . जब कोई उपाय नहीं बचता है , जब हाथ पाँव जवाब दे देते
है , जब कही से कोई भी भूली बिसरि उम्मीद की भी आस नहीं रहती है , जब यह लगने लग जाता है की इस संसार मेरा कोई नहीं है , तब वह सभी सम्प्रदायों को ,
अलग अलग धर्मों को , अलग अलग जातियों को , और ना जाने कितने अलग अलग मतों को भुलाकर मुझे
याद करता है .
भक्त : फिर क्या
हुआ भगवान ?
भगवान : मेरे
प्रिये पुत्र , कोई मुझे मन से याद करे और में जाऊ नहीं भला यह
कैसे हो सकता है . उन्होंने अब रोज मेरी
महिमा का अभ्यास शुरू कर दिया . हर काम में वे मुझे देखने लग गए . वे यह
सोचकर काम करने लग गए की सारा काम हम नहीं हमारे परमात्मा स्वयं इस शरीर के रूप
में आकर कर रहे है . मेने ‘उनकी मेरे में भक्ति से’ प्रसन्न होकर
उनको संतान के रूप में एक सूंदर तेजस्वी पुत्र दे दिया. अब वे रोज उस
पुत्र के लाड़ -प्यार करने लग गए . पहले की तरह अब उनके घर में वापस खुशिया आ गयी .
बालक धीरे धीरे अब बड़ा होने लगा .
उनका व्यापार अब
पहले की तरह बहुत अच्छा चलने लग गया . अब यह तेजस्वी पुत्र शिक्षा -दीक्षा के लिए
पाठशाला जाने लग गया . पढ़ लिखकर यह नौजवान अब सरकारी नौकरी करने लग गया . अब तक यह
तेजस्वी बच्चा अपने माता-पिता की बहुत देखभाल करता था . अब धीरे धीरे इसके माता
पिता को इसकी शादी की चिंता होने लग गयी . क्यों की अब यह वयस्क नौजवान अपने काम
में इतना व्यस्थ रहने लग गया की इसको दिन रात
अपने नाम की , माता पिता की सेवा की , खूब धन इक्कठा करके नया बंगला बनाने की , कई देशो की सेर करने की
और ना जाने कितने अरमानो की चिंता होने लग गयी . इन सब बातों को लेकर इनके घर में
दुबारा से गृह क्लेश शुरू होने लग गया . सब एक दूसरे की चिंता में , एक दूसरे को समझाने में रोज सुबह सुबह झगड़ा करने लग गए . धीर धीरे शाम को भी
झगड़ा होने लग गया . अब तो ज्यादातर समय झगड़ा ही होता रहता था .
भक्त : हे
अंतर्यामी अब तो यह लोग आप की महिमा का निरन्तर अभ्यास करने लग गए फिर भी इनके घर
में रोज क्लेश क्यों होता था ?
भगवान: नहीं वत्स
इन लोगों ने मेरी महिमा का अभ्यास वापस बंद कर दिया . क्यों की जैसे ही इनके पास
पहले की तरह धन इक्कठा करके खुशिया आने लग गयी और तरह तरह के भोग विलासों में इनको
आनंद आने लग गया तो इनके अहंकार ने एक बार फिर इनके मन मस्तिष्क में डेरा जमा लिया
. और अहंकार के मद में आकर इनको लगने लग गया की यह सब तो हम ही कर रहे है . इनका
अहंकार ऐसे तर्क देने लग गया की देखो यह सब तो हम ही तो कर रहे है . तेजस्वी
नौजवान को तो यह लगने लग गया की देखो आज मैंने कितनी मेहनत करके अपने माता पिता के
लिए कितनी सुविधाओं का इंतजाम कर दिया . और माता -पिता को यह लगने लग गया की बहुत
अच्छा हुआ की हमने पहले बहुत मेहनत करके, बहुत दुःख उठा के हमारे बच्चे के लिए खूब सारी जमीने , कई प्लाट , और ना जाने कितना रोकड़ जमा कर दिया . इसकी तो सात पीढ़ियों को भी नहीं बीतेगा . फिर हम ही कोई बेवकूफ है
क्या जो परमात्मा की महिमा का अभ्यास करे . सारा काम तो हम खुद कर रहे है . हम
नहीं जानते है परमात्मा कोन है . हमने तो
कभी देखा नहीं . ना कभी परमात्मा का अहसास किया . फिर हम कैसे हमारे इतने कीमती
समय मेसे परमात्मा की महिमा के अभ्यास के लिए कुछ क्षण निकाले . ऐसे ऐसे तर्क देता
है मनुष्ये जब वह अहंकार की गिरफ्त में आ जाता है .
भक्त : हे
अंतर्यामी , क्या आप की महिमा के लिए एक गृहस्थ व्यक्ति को
अपने रोजमर्रा के कार्य-कलापो के अलावा अलग से समय निकालकर आप की महिमा का अभ्यास
करना अनिवार्य है ?
भगवान : नहीं
पुत्र, मेरी महिमा तो व्यक्ति कभी भी , कही भी कर सकता है .
भक्त : हे
अंतर्यामी , कोई नया नया साधक मेरी
महिमा का अभ्यास कैसे करे ?
भगवान : वत्स यह
मेने 'नये साधक परमात्मा की महिमा कैसे करे ?' शीर्षक से एक लेख पहले ही संसार के लिए जारी कर
दिया है . जिसको कोई भी व्यक्ति निम्न जगह
पर देख सकता है , पढ़ सकता है :
यूट्यूब : https://www.youtube.com/channel/UCU8SE6VG1ABNO0FkRYjtt3A?sub_confirmation=१
ब्लॉग : https://parmatmakimahima.blogspot.com/2024/01/blog-post_17.html
भक्त : हे
अंतर्यामी , इसका मतलब तो यह हुआ की जिस घर में आप की महिमा
का अभ्यास नहीं होता है वहाँ आप गृह क्लेश करवा देते हो ?
भगवान : नहीं
मेरे बच्चे , में ऐसा कभी नहीं करता जिससे किसी भी जीव को
कष्ठ हो .
भक्त : हे
अंतर्यामी मुझे तो लगता है की आप मुझे भी
अपने माया जाल में उलझा रहे हो . आप साफ़ साफ़ क्यों नहीं कहते है ?.
भगवान : वत्स
इसका राज में आप को अगले भाग में बताऊंगा
.
भक्त : हे
अंतर्यामी आप को मेरा कोटि कोटि नमन .
Friday, January 19, 2024
परमात्मा की महिमा से सिर का दर्द गायब
परमात्मा की महिमा खोलेगी लहुसन प्याज का राज
लहुसन प्याज खाना चाहिए या नहीं ?
परमात्मा की महिमा में इस विषय को परमात्मा बहुत ही वैज्ञानिक तथ्यों के साथ बता रहे है की आखिर क्या है इनके पीछे की सच्चाई . लहुसन और प्याज दोनों ही बीज और फल की श्रेणी में आते है जो की मानव के स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभदायक है यदि इनका उचित मात्रा में प्रयोग करे तो . यदि इनको हम ज्यादा मात्रा में प्रयोग करने लगते है तो प्रजनन से संबधित रोग और मस्तिष्क के रोग होने लगते है पर यदि इनका पूर्ण निषेद कर देते है तो शरीर में कई प्रकार के पोषक तत्वों की कमी होने लगती है ध्यान के मार्ग में आगे बढ़ने के लिए इनका सेवन अनिवार्य है पर उचित मात्रा में . पर अब प्रश्न यह उठता है की :
किस व्यक्ति को लहुसन
प्याज की कितनी मात्रा खाना चाहिए ?
इसका सही जवाब परमात्मा की महिमा करने से ही मिलता है जब आप खुद में एकाग्र होने लगते हो तो आप के मन और बुद्धि जगने लगते है और आप को पता लगने लगता है की यदि में प्याज खाता हु तो मेरे शरीर में क्या परिवर्तन होते है और ऐसे ही जब लहुसन खाता हु तब क्या परिवर्तन होते है पर यह बाते हमारे आसानी से समझ में नहीं आती है क्यों की हम अनंत जन्मो से सुनी सुनाई बातो पर विश्वास करके ही या तो इनका पूर्णतया परित्याग कर देते है या इनका ज्यादा मात्रा में सेवन करना प्रारम्भ कर देते है . और जब हमें इनके सेवन से परेशानी होने लगती है तो फिर हमारा मन यह विचार प्रकट कर देता है की लहुसन और प्याज हमारी आध्यात्मिक उन्नति में बाधक है
किस व्यक्ति को इसकी कितनी मात्रा खानी चाहिए इसका जवाब भी परमात्मा की महिमा से ही मिलता है .
छोटे बच्चो को लहुसन
प्याज की कितनी मात्रा खानी चाहिए ?
जब आप इनका छोटे बच्चो के साथ प्रयोग करोगे तो आप को बच्चो के व्यवहार से अपने आप पता चल जायेगा की मेरे बच्चे को इनकी कितनी मात्रा की जरुरत है पर आप को इसका पता तभी चल पायेगा जब आप निरन्तर परमात्मा की महिमा का अभ्यास कर रहे हो . क्यों की परमात्मा की महिमा का निरन्तर अभ्यास करने से खुद के साथ साथ आप दुसरो के स्वभाव को भी जानने लग जाते हो. यही तो परमात्मा की महिमा का चमत्कार है फिर आप को पता लगने लग जाता है की यदि मै(यदि आप एक बच्चे की माँ है) मेरे बच्चे को इनकी x मात्रा खाने के लिए देती हु तो मेरा बच्चा इनको आसानी से खा लेता है और खाने के बाद भी अच्छा महसूस करता है आप का बच्चा शिकायत नहीं करता है की मेरे पेट में दर्द हो जाता है इनको खाने से या कोई और ऐसा अनुभव नहीं बताता है जो बहुत ही असहनीय हो . और यदि में मेरे बच्चे को इनकी y मात्रा खाने के लिए देती हु तो बच्चा मना करने लगता है और कई प्रकार की शारीरिक शिकायते करने लगता है. इस प्रकार आप बहुत ही आसानी से पता कर लेती हो . पर यह सब काम आसान तभी होने लगते है जब आप निरन्तर परमात्मा की महिमा करते हो. अन्यथा आप को लहुसन प्याज को लेकर बहुत ही शंकाओ से होकर गुजरना पड़ता है
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