भगवान और भक्त के बीच बातचीत
विषय : गृह क्लेश से मुक्ति
भाग 1
भक्त : हे परमपिता परमेश्वर , हे मेरे आराध्ये, हे मेरे पिता , हे भगवान, मेरे प्रिये पापा , हे मेरी माता , हे मेरे सखा , हे मेरे प्रेमी आप मुझे विस्तार से , आप की महिमा के अभ्यास से किस प्रकार पृथ्वी पर मनुष्ये गृह क्लेश से हमेशा के लिए मुक्त हो सकता है ?
भगवान : मेरे प्रिये नंदन , आप मेरी बातों को बहुत ही ध्यान से सुनो पूरी एकाग्रता के साथ .
भक्त : जी .
भगवान : जिस घर परिवार के सदस्य मेरी महिमा का अभ्यास नहीं करते है अर्थात मेरे से दूरी बनाकर चलते है और यह समझते है की जो भी हमारे घर परिवार में हो रहा है वह हम खुद कर रहे है तो में फिर गृह क्लेश की समस्या के रूप में आता हु और उन तमाम सदस्यों को मेरी याद दिलाता हु . यही मेरी लीला है . जब ये लोग मेरी महिमा का अभ्यास किये बिना रात दिन बहुत मेहनत करके धन अर्जित करते है और फिर उस धन से नया घर बनाते है , शादी विवाह करते है , नया वाहन खरीदते है , जमीन खरीदते है , नया व्यापार शुरू करते है , या मौज मस्ती में धन को उड़ा देते है और इन सब के भोग में इतने अंधे हो जाते है की इनको यह लगने लगता है की यह सब हमने खुद किया है अपनी मेहनत से इसमें परमात्मा क्या करेगा ? इन लोगों का इनके माध्यम से अर्जित की गयी वस्तुओ से इतना गहरा लगाव हो जाता है की यह वस्तुए इनके मन का हिस्सा बन जाती है , चित में बैठ जाती है , शरीर में रम जाती है , इनके शरीर के रोम रोम में बस जाती है . और ये लोग इन सब चीजों को ही सत्ये मान बैठते है . पर ये वस्तुए सत्ये नहीं है . बस यही से गृह क्लेश की शुरुआत हो जाती है .
भक्त : हे परमात्मा ऐसा क्यों होता है ?
भगवान : मेरी माया के कारण .
भक्त : तो क्या इन लोगों को मेहनत करके धन - धान्य , वैभव नहीं बढ़ाना चाहिए ?
भगवान : अवश्य बढ़ाना चाहिए तभी संसार में आनंद और ख़ुशी मिलेगी .
भक्त : कैसे भगवन ?
भगवान : मेरी महिमा का निरन्तर अभ्यास करते हुए सभी काम करे .
भक्त : हे मेरे पिता आप की महिमा का गृह क्लेश से क्या सम्बन्ध है ?
भगवान : मेरे प्रिये वत्स में इसे आप को एक उदाहरण से समझाता हु . एक परिवार में एक पति पत्नी रहते थे और उनके कोई संतान नहीं थी . दोनों बहुत ही सरल स्वभाव के थे और मेहनती भी . उनकी शादी को 2 वर्ष पुरे हो गए थे . दोनों ही नौकरी करते थे . उनकी तन्खाव भी बहुत अच्छी थी . दोनों में प्रेम बहुत था . उन्होंने पैसे जमा करके व्यापार शुरू करने की सोच रखी थी . शादी के 4 साल बाद पति ने नौकरी छोड़कर अपना कपड़े का व्यापार शुरू कर दिया था . पत्नी को भी जब समय मिलता था तो पति की मदद करती थी . उनका व्यापार 2 साल में ही बहुत अच्छा चल निकला . खूब धन इक्कठा कर लिया दोनों ने मिलकर . पर अभी तक उनके कोई संतान नहीं थी . अब उनको यह चिंता होने लगी की आज हमारे पास सब सुख सुविधा है पर हमारे तो कोई संतान ही नहीं है मरने के बाद इस सम्पति का मालिक कोन बनेगा . इसलिए उन्होंने अब बच्चा पैदा करने की सोची . बहुत प्रयास किये पर उनके कोई संतान नहीं हुयी . हर तरीके का इलाज उन्होंने लिया . महँगी महँगी दवाये , बहुत बढ़िया भोजन , कई प्रकार के टोने-टोटके किये और भी बहुत कुछ पर सफलता नहीं मिली .
भक्त : हे परमपिता ऐसा क्यों हुआ उनके साथ सब इतना बढ़िया काम करके भी .
भगवान : मेरे
प्रिये अनुज अब सुनो मेरी बात ध्यान से , उन्होंने जितनी मेहनत
ईमानदारी से करी उतना फल तो मैंने दे दिया पर उनके मन में सदैव यह रहने लग गया की
यह सब वे खुद कर रहे है और उन्होंने धीरे धीरे मेरे से खुद की दूरी बड़ा ली .
भक्त : हे
परमात्मा कैसे ?
भगवान : मेरे
प्रिये लाल , उनको मेरे अहंकार रुपी शत्रु ने घेर लिया .
उनके दिमाग में अहंकार ने अपना डेरा जमा लिया . उनको अब यह लगने लग गया की हम पैसे
से कुछ भी कर सकते है . उनके मन में अहंकार के कारण ऐसे विचार आने लग गए की यह दवा
काम नहीं करेगी तो हम विदेश में हमारा इलाज करवा लेंगे . और वैसे भी आजकल तो
विज्ञानं ने बहुत तरक्की कर ली है हम किसी भी पद्दति से कम से कम एक लड़का तो पैदा
कर ही लेंगे .
भक्त : हे मेरे
पापा उन्होंने लड़की को जन्म देने की नहीं सोची क्या ?
भगवान : मेरे
प्रिये चिराग , अब वो पति पत्नी थोड़े थोड़े समझदार होने लग गए
थे और चतुर भी .
भक्त : कैसे ?
भगवान : मेरे प्रिये
लाड़ले , उन्होंने यह सोचा की यदि हम लड़की होने की कामना करेंगे तो
वह तो एक दिन ससुराल चली जाएगी और हमारा वंश कैसे आगे बढ़ेगा . अब आगे सुनो बहुत ही
ध्यान से . अब उनको संतान नहीं होने की चिंता रोज सताने लग गयी . इसलिए चिंता के
कारण वे दोनों अब बीमार रहने लग गए . रोज रोज दोनों में दिन में कई बार झगड़ा होने
लग गया . उनका व्यापार भी अब धीरे धीरे कम होने लग गया . उन्होंने खुद का इलाज
कराने के लिए खूब भागदौड़ करी पर सफलता
नहीं मिली . आखिर में जब थक हार के बैठ गए तो उनको मेरी याद आयी . क्यों की मुझे
ज्यादातर मनुष्ये भयंकर कष्टों में ही याद
करते है . जब कोई उपाय नहीं बचता है , जब हाथ पाँव जवाब दे देते
है , जब कही से कोई भी भूली बिसरि उम्मीद की भी आस नहीं रहती है , जब यह लगने लग जाता है की इस संसार मेरा कोई नहीं है , तब वह सभी सम्प्रदायों को ,
अलग अलग धर्मों को , अलग अलग जातियों को , और ना जाने कितने अलग अलग मतों को भुलाकर मुझे
याद करता है .
भक्त : फिर क्या
हुआ भगवान ?
भगवान : मेरे
प्रिये पुत्र , कोई मुझे मन से याद करे और में जाऊ नहीं भला यह
कैसे हो सकता है . उन्होंने अब रोज मेरी
महिमा का अभ्यास शुरू कर दिया . हर काम में वे मुझे देखने लग गए . वे यह
सोचकर काम करने लग गए की सारा काम हम नहीं हमारे परमात्मा स्वयं इस शरीर के रूप
में आकर कर रहे है . मेने ‘उनकी मेरे में भक्ति से’ प्रसन्न होकर
उनको संतान के रूप में एक सूंदर तेजस्वी पुत्र दे दिया. अब वे रोज उस
पुत्र के लाड़ -प्यार करने लग गए . पहले की तरह अब उनके घर में वापस खुशिया आ गयी .
बालक धीरे धीरे अब बड़ा होने लगा .
उनका व्यापार अब
पहले की तरह बहुत अच्छा चलने लग गया . अब यह तेजस्वी पुत्र शिक्षा -दीक्षा के लिए
पाठशाला जाने लग गया . पढ़ लिखकर यह नौजवान अब सरकारी नौकरी करने लग गया . अब तक यह
तेजस्वी बच्चा अपने माता-पिता की बहुत देखभाल करता था . अब धीरे धीरे इसके माता
पिता को इसकी शादी की चिंता होने लग गयी . क्यों की अब यह वयस्क नौजवान अपने काम
में इतना व्यस्थ रहने लग गया की इसको दिन रात
अपने नाम की , माता पिता की सेवा की , खूब धन इक्कठा करके नया बंगला बनाने की , कई देशो की सेर करने की
और ना जाने कितने अरमानो की चिंता होने लग गयी . इन सब बातों को लेकर इनके घर में
दुबारा से गृह क्लेश शुरू होने लग गया . सब एक दूसरे की चिंता में , एक दूसरे को समझाने में रोज सुबह सुबह झगड़ा करने लग गए . धीर धीरे शाम को भी
झगड़ा होने लग गया . अब तो ज्यादातर समय झगड़ा ही होता रहता था .
भक्त : हे
अंतर्यामी अब तो यह लोग आप की महिमा का निरन्तर अभ्यास करने लग गए फिर भी इनके घर
में रोज क्लेश क्यों होता था ?
भगवान: नहीं वत्स
इन लोगों ने मेरी महिमा का अभ्यास वापस बंद कर दिया . क्यों की जैसे ही इनके पास
पहले की तरह धन इक्कठा करके खुशिया आने लग गयी और तरह तरह के भोग विलासों में इनको
आनंद आने लग गया तो इनके अहंकार ने एक बार फिर इनके मन मस्तिष्क में डेरा जमा लिया
. और अहंकार के मद में आकर इनको लगने लग गया की यह सब तो हम ही कर रहे है . इनका
अहंकार ऐसे तर्क देने लग गया की देखो यह सब तो हम ही तो कर रहे है . तेजस्वी
नौजवान को तो यह लगने लग गया की देखो आज मैंने कितनी मेहनत करके अपने माता पिता के
लिए कितनी सुविधाओं का इंतजाम कर दिया . और माता -पिता को यह लगने लग गया की बहुत
अच्छा हुआ की हमने पहले बहुत मेहनत करके, बहुत दुःख उठा के हमारे बच्चे के लिए खूब सारी जमीने , कई प्लाट , और ना जाने कितना रोकड़ जमा कर दिया . इसकी तो सात पीढ़ियों को भी नहीं बीतेगा . फिर हम ही कोई बेवकूफ है
क्या जो परमात्मा की महिमा का अभ्यास करे . सारा काम तो हम खुद कर रहे है . हम
नहीं जानते है परमात्मा कोन है . हमने तो
कभी देखा नहीं . ना कभी परमात्मा का अहसास किया . फिर हम कैसे हमारे इतने कीमती
समय मेसे परमात्मा की महिमा के अभ्यास के लिए कुछ क्षण निकाले . ऐसे ऐसे तर्क देता
है मनुष्ये जब वह अहंकार की गिरफ्त में आ जाता है .
भक्त : हे
अंतर्यामी , क्या आप की महिमा के लिए एक गृहस्थ व्यक्ति को
अपने रोजमर्रा के कार्य-कलापो के अलावा अलग से समय निकालकर आप की महिमा का अभ्यास
करना अनिवार्य है ?
भगवान : नहीं
पुत्र, मेरी महिमा तो व्यक्ति कभी भी , कही भी कर सकता है .
भक्त : हे
अंतर्यामी , कोई नया नया साधक मेरी
महिमा का अभ्यास कैसे करे ?
भगवान : वत्स यह
मेने 'नये साधक परमात्मा की महिमा कैसे करे ?' शीर्षक से एक लेख पहले ही संसार के लिए जारी कर
दिया है . जिसको कोई भी व्यक्ति निम्न जगह
पर देख सकता है , पढ़ सकता है :
यूट्यूब : https://www.youtube.com/channel/UCU8SE6VG1ABNO0FkRYjtt3A?sub_confirmation=१
ब्लॉग : https://parmatmakimahima.blogspot.com/2024/01/blog-post_17.html
भक्त : हे
अंतर्यामी , इसका मतलब तो यह हुआ की जिस घर में आप की महिमा
का अभ्यास नहीं होता है वहाँ आप गृह क्लेश करवा देते हो ?
भगवान : नहीं
मेरे बच्चे , में ऐसा कभी नहीं करता जिससे किसी भी जीव को
कष्ठ हो .
भक्त : हे
अंतर्यामी मुझे तो लगता है की आप मुझे भी
अपने माया जाल में उलझा रहे हो . आप साफ़ साफ़ क्यों नहीं कहते है ?.
भगवान : वत्स
इसका राज में आप को अगले भाग में बताऊंगा
.
भक्त : हे
अंतर्यामी आप को मेरा कोटि कोटि नमन .
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परमात्मा की महिमा में आप सभी का हार्दिक अभिनन्दन है