Tuesday, January 23, 2024

भक्त और भगवान के बीच बातचीत - भाग 1

 भक्त और भगवान के बीच बातचीत

विषय : माया क्या है , विचार क्या है , आकर्षण का सिद्धांत क्या है ऐसे यह भक्त अपने परमपिता परमेश्वर से बहुत कुछ जानना चाहता है 

भाग 1 

भक्त : हे सर्व शक्तिमान आप मुझे विस्तार से यह समझाए की यह कामवासना क्या होती है और इससे पृथ्वी पर जो पीड़ित मनुष्य है वह कैसे हमेशा के लिए मुक्त हो सकता है ?

भगवान : वत्स मै तुम्हे कामवासना से पहले थोड़ा मेरे बारे में अवगत कराता हु . मैं निराकार हु , मैं अंतर्यामी हु , मैं सर्वव्यापी हु , केवल मेरा ही अस्तित्व है , मेरा हर एक गुण अनंत है. अनंत गुणों मेसे मेरा एक गुण एक से अनेक होने का है . इसी गुण के माध्यम से मैंने सृष्टि की उत्पत्ति की है . अर्थात मैं और यह जो संसार आप देख रहे हो 2  नहीं है . बल्कि सम्पूर्ण सृष्टि मेरा ही स्वरुप है. मैंने मेरी एक शक्ति का प्रयोग करके इस सृष्टि को जन्म दिया है . इस शक्ति का नाम 'काम' है . अर्थात इस सृष्टि की उत्पत्ति कामशक्ति से हुयी है .

भक्त : हे परमात्मा , मुझे तो आप पहले कामवासना के बारे में बताइये . मुझे इसके बारे में ठीक से जानना है .

भगवान : ध्यैर्य रखो वत्स .

भक्त : जी भगवान

भगवान : मैंने मेरी शक्ति का प्रयोग करके माया को प्रकट किया है . जैसे समुद्र में लहरे  प्रकट होती है और फिर कुछ समय बाद वापस समुद्र में मिल जाती है . मनुष्य उन लहरों को  देखकर बहुत प्रसन्न होता है . तो यहां मनुष्य को एक विषय मिल गया लहरों को देखने का . ठीक इसी प्रकार मै मेरे हर स्वरुप(जैसे मानव , पशु -पक्षी , कीट पतंग , बैक्टीरिया , वायरस ) से अनन्य प्रेम करता हु . और हर स्वरुप मेरे से मिलने को बहुत आतुर रहता है जैसे समुद्र से लहर, परमात्मा से आत्मा , माँ से शिशु , प्रेमी  से प्रेमिका  इत्यादि .

भक्त : हे अंतर्यामी इसका मतलब तो यह हुआ की जिस माया को आप ने प्रकट किया है वो भी आप से मिलने को बहुत आतुर है ?

भगवान: ठीक समझा तुमने वत्स . मेने जिस माया को प्रकट किया है वह वापस मुझसे मिलने को बहुत आतुर है . यदि यह माया वापस मुझमे मिल जाती है तो इसका मतलब यह हुआ की जो में सृष्टि उत्पन्न करके मेरी माया के माध्यम से जो लीला रचता वह उद्देश्य  मेरा पूरा नहीं हुआ . इसलिए माया का अस्तित्व बना रहे मुझे माया को कोई काम देना जरुरी था . जैसे  बिना उद्देश्य के कोई भी मनुष्य  ज्यादा समय तक जीवित नहीं रह सकता . हर मनुष्य के लिए मै कोई ना कोई उद्देश्य अवश्य  निर्धारित करता हु . वह मेरी महिमा का अभ्यास करके (अपने अंतर में झांककर ) अपने उद्देश्य का पता कर सकता है . नहीं तो वह इस संसार में सदा ही भटकता ही रहेगा . इसलिए मेने मेरी माया से मन और बुध्दि को प्रकट किया है . अर्थात मन और बुध्दि का अलग से कोई अस्तित्व नहीं है . यह दोनों ही अज्ञान है केवल में ही ज्ञान हु . मन माया है इसको मेने ऐसा बनाया है की यदि इसे  एक क्षण भी कोई काम नहीं मिलता है तो यह अपनी माया की शक्ति से कई उपद्रव मचा सकता है या फिर मेरे में मिल सकता है . इसलिए मन का अस्तित्व बना रहे मेने इन्द्रियों को प्रकट किया है . जैसे मै मनुष्य की बात करता हु तो मनुष्य के मन के लिए इन्द्रिया है आँख , कान , जीभ , त्वचा , नाक . अर्थात मै स्वयं रचनाकार बनकर मेने इस मनुष्य शरीर की रचना की है . अब क्यों की मुझे इस मनुष्य शरीर का अस्तित्व बनाये रखना है इसलिए मैंने इसके भोग के लिए(अर्थात शरीर के माध्यम से किये जाने वाले भोग) विषयों को प्रकट किया है .

भक्त : हे अंतर्ज्योति, ये विषय क्या है ?

भगवान : वत्स मुझे बहुत प्रसन्नता है की तुम बहुत ही रूचि के साथ समझ रहे हो . मुझे पूर्ण विश्वास है की तुम कामवासना को पूरी तरह अनुभव के साथ समझ जाओगे .

भक्त : जी भगवान

भगवान : जैसे आँख के विषय है भोजन को देखना , पानी को देखना , रास्ते को देखना , इस संसार को देखना , ठीक उसी प्रकार कान के विषय है किसी आवाज को सुनना , संगीत सुनना इत्यादि . इसलिए मैंने मनुष्य शरीर के भोग के लिए इस संसार को प्रकट किया है.

भक्त : फिर बुध्दि को क्यों प्रकट किये मेरे प्रभु ?

भगवान : वत्स धीरज रखो सब विस्तार से समझाता हु . मन को मेने अँधा बनाया है . मन जीभ के माध्यम से कोई भी भोजन शरीर को ना खिला दे कही इस शरीर के अस्तित्व को खतरा हो जाये . इसलिए मेने बुध्दि को प्रकट किया है.  

बुध्दि यह पता करती है की कोनसा भोजन इस शरीर के लिए उपयुक्त है ताकि इस शरीर का निरन्तर विकास होता रहे . इसमें कोई बीमारी ना आ जाये . मन को तरह तरह के व्यंजन लुभा सकते है . मन सही गलत की तुलना नहीं कर सकता है . यह कार्य बुध्दि का है . बुध्दि बिना तुलना के कार्य नहीं कर सकती है .

भक्त : हे परमात्मा , मुझे आप यह समझाए की आप ने अभी थोड़ी देर पहले कहा था की मन और बुध्दि दोनों अंधे है , दोनों ही अज्ञान है फिर बुध्दि सही गलत की पहचान कैसे कर सकती है ?

भगवान: मेरे प्रिये बच्चे मुझे ख़ुशी है की आप बहुत ही ध्यान से मेरी बातों को सुन रहे हो . जब मै कोई विचार प्रकट करता हु तो मेरी ही एक शक्ति है जिसे सुरक्षा की शक्ति कहते है संसार में इसे कई नामों से जाना जाता है . उनमे से एक नाम विष्णु शक्ति भी है . अर्थात विष्णु शक्ति जो मेरे माध्यम से प्रकट किये गए विचार की सुरक्षा करती है . जब मै मन के माध्यम से इस विचार की बार बार पुनरावृति करता हूँ तो यह विचार घनीभूत होने लगता है अर्थात दृश्य स्वरुप लेने लगता है या किसी भी अहसास के रूप में अनुभव होने लगता है . विचार एक प्रकार की ऊर्जा है . और जब मन इसका बार बार कम्पन करता है तो यह धीरे धीरे ठोस रूप में बदलने लगता है . या किसी और अहसास में . यह कम्पन की तीव्रता और विचार किस प्रवृति का है या क्या विचार है इस पर निर्भर करता है. अर्थात यह विचार ऊर्जा द्रव्यमान में बदल जाती है . जिसे विज्ञानं की भाषा में e =mc2 से भी जाना जाता है.

आगे के लिए भाग 2 पढ़े. धन्यवाद जी . मंगल हो जी .

 YouTube Facebook Twitter Blog Instagram

 .


No comments:

Post a Comment

परमात्मा की महिमा में आप सभी का हार्दिक अभिनन्दन है

क्रियायोग - हमे सुख और दुःख की अनुभूति क्यों होती है ?

आज मै आप को यह गहराई से समझाने जा रहा हु की हमे सुख और दुःख की अनुभूति क्यों होती है . हमे सुख और दुःख की अनुभूति परमात्मा के माध्यम से जो...