Friday, January 26, 2024

मुसीबतो को आनंद में बदलने वालो को हमारा सलाम | परमात्मा की महिमा

              मुसीबत को आनंद में ऐसे बदला इन्होने

एक बार 2 व्यक्ति थे एक का नाम राकेश और दूसरे का नाम सुनील था . दोनों एक दूसरे के पडोसी थे . दोनों में काफी समय से जमीन का विवाद चल रहा था . आये दिन वे और उनके घर वाले झगड़ा करते रहते थे . उनके रिश्तेदारों ने भी उनको समझाने की बहुत कोशिसे की पर विवाद सुलझा नहीं बल्कि कोर्ट केश तक पहुंच गया . अब तो उनके आपस में बातचीत भी लगभग बंद हो चुकी थी . नौबत यहां तक आ चुकी थी की उनकी इस आपस की लड़ाई के कारण इनके शादी विवाह और हारी बीमारी और मरण मौत तक के कार्यो में इन दोनों ने अपने अपने रिश्तेदारों तक को एक दूसरे के जाने से रोक दिया था . जिससे रिश्तेदारों में भी इन दोनों घर वालो के प्रति गहरी नाराजगी थी . पर क्या कर सकते थे आखिर रिश्तो में दबना पड़ता है . इनका घर औद्दोगिक क्षेत्र के पास ही था. राकेश आपातकालीन सुरक्षा सेना में नौकरी करता था और सुनील खेती-बाड़ी का काम करता था और दिन में 2 घंटे के लिए इसके घर के पास ही एक प्लास्टिक आइटम बनाने की  फैक्ट्री थी उसमे नौकरी करता था . इनके घर से थोड़ी दूर पर ही एक प्लास्टिक  फैक्ट्री के  बगल में गैस का गोदाम था . अचानक से एक दिन प्लास्टिक फैक्ट्री में आग लग गयी . आग इतनी भीषण थी की 40 -43 दमकल की गाड़िया आ चुकी थी पर आग पर काबू नहीं पाया जा रहा था . पुलिस की कई गाड़िया आ गयी थी जो आस पास के इलाके को खाली कराने के लिए बड़े सायरनों और माइको के प्रयोग से पुलिस आवाज लगा रही थी . सेना के जवानो से भरा एक ट्रक भी आ चूका था . क्यों की सुनील जिस फ़ैक्ट्री में काम करता था वो 4 मंजिल की थी . और ग्राउंड फ्लोर पर ही एक बहुत बड़ा हॉल बना हुआ था जिसमे एक 9 फिट उचाई पर एक बड़ी खुली  हुयी छत थी जिस पर लगभग 70 व्यक्ति काम करते थे . आग को देखने के लिए लोगो की भीड़ जमा होती जा रही थी . उनमे से बहुत कम लोग आग भुजाने से सम्बंधित काम कर रहे थे बाकी केवल तमाशबीन बनकर भगदड़ का माहौल बना रहे थे . जिस समय आग लगी थी उस समय सुनील भी इसी छत पर था . सभी को यह डर था  की यदि आग पर जल्द से जल्द काबू नहीं पाया गया तो आग पास ही के गैस गोदाम तक पहुंच सकती है. इसलिए डर के कारण लोगो में भगदड़ मच गयी . छत पर से कई  लोग कूदकर भाग के अपनी जान बचाने में जुट गए . सभी लोग छत से कूदने में सक्षम नहीं थे इसलिए सेना के कई जवान इन लोगो को गोद में ले लेके निचे उतार रहे थे . इन जवानो में राकेश भी था . और इसी समय सुनील छत पर था . भगदड़ के बीच जैसे ही राकेश ने अपने हाथ ऊपर उठाये छत से कर्मचारी को उतारने के लिए तो वह कर्मचारी सुनील था . उस समय जो दृश्य बना वह बहुत ही चमत्कारिक था . दोनों ने एक दूसरे को तुरंत पहचान लिया . और दोनों में  उसी क्षण अपनी दुश्मनी की  यादे ताजा हो गयी . पर सुनील मौत के मुँह में था इसलिए राकेश को दया आ गयी . यह दया राकेश के ह्रदय से आयी थी इसलिए सुनील के मन के गहरे तल पर जमा दुश्मनी का भाव प्रेम में रूपांतरित हो गया क्यों की मौत के नाम से अच्छे  अच्छे दिग्गजों में कटुता के भाव पिगलकर प्रेम भाव में बदल जाते है और ऐसी मुसीबत के समय ही हम सभी को केवल एक परमात्मा समझ में आते है . उस समय जात-पात , अलग अलग धर्म , अलग अलग सम्प्रदाय और सभी पुरानी रंजिशे सब परमात्मा के रूप में नज़र आने लगती है क्यों की मरता क्या नहीं करता . तो राकेश ने तुरंत सुनील को गोद में लेकर निचे उतार दिया और सुनील ने वहा से भागकर अपनी जान बचाई . सुनील अपने घर गया तो वहा  कोई नहीं मिला . पता करने पर ज्ञात हुआ की सभी कॉलोनी वालो को दूर के एक गाँव में पंहुचा दिया गया था. सुनील भी भागा भागा वहा पंहुचा . और अपने घर वालो को सारी बात बताई . सुनील की फ़ैक्ट्री में कई लोगो की मौत हो चुकी थी और घर वालो ने सुनील को खुद के सामने जिन्दा देखकर इसे परमात्मा की महिमा का चमत्कार माना . अब  दोनों में जमीन के सारे विवाद समाप्त हो गए और दोनों परिवारों में अब प्रेम बहुत बढ़ गया . अब ये कोई भी सामाजिक हित में बड़े निर्णय साथ बैठकर लेते थे . राकेश और सुनील दोनों ही परमात्मा की महिमा का अभ्यास निरन्तर करते थे और इस चमत्कार के बाद तो इनका परमात्मा में विश्वास और बढ़ गया था .

इसलिए मित्रो इस सच्ची कहानी को यहां बताने का परमात्मा का यही  उद्दैश्य है की यदि हम  सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र होने का अभ्यास निरन्तर करते है  तो हम  अपने मन को किसी भी काम के लिए राजी कर सकते है  अर्थात हमारे मन में जो ये शिकायते रहती है की मै तो मान रहा हु पर सामने वाला मेरी बात नहीं मान रहा है वे सब धीरे धीरे  समाप्त होने लगती है .और आप के जीवन में हर पल खुशिया आने लगती है .

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