भक्त : हे परमेश्वर विचार का मन और बुध्दि से क्या सम्बन्ध है ?
भगवान : वत्स मेने मन में कई तल बनाये है . जैसे ही मन कोई एक विचार प्रकट करता है वह मन के एक तल पर जाकर जमा हो जाता है . और मन जब इस विचार की लगातार पुनरावृति करता है तो ये सभी विचार मन के इस तल पर जमा होते होते दृश्य रूप लेने लगते है . जैसे मेरे मन में एक विचार आया की मुझे अहिंसा का जीवन जीना है . और अब मेरा मन बार बार इसकी पुनरावृति कर रहा है तो मेरे मन के माध्यम से जिस शरीर की रचना हुयी है उसके जो अंग है उनमे परिवर्तन होना शुरू हो जायेगा . और यह परिवर्तन शिव की शक्ति के माध्यम से होता है . जैसे मन में एक विचार आया तो केवल वह विचार ही मन एक तल पर जमा नहीं होता है बल्कि उस विचार को विष्णु शक्ति के माध्यम से सुरक्षित रखने के लिए मुझे विचार के पोषण के लिए विषय रुपी गुण प्रकट करना पड़ता है . इसे वत्स मै आप को इस उदाहरण से समझाता हूँ . जैसे मन में अहिंसा का विचार आया और मन के एक तल पर सुरक्षित हो गया . पर यह ज्यादा देर तक अस्तित्व में नहीं रहेगा यदि इसे पोषण नहीं मिला तो . इसलिए मेने मन से कहा की अब आप दूसरा विचार प्रकट करो की मै जीभ के माध्यम से किसी भी जीव को मारकर उसको खाने के स्वाद का अनुभव नहीं करूँगा . अर्थात मेरी किसी भी जीव को मारकर खाने में कोई रूचि नहीं है . ठीक इसी प्रकार ऐसी वाणी नहीं बोलूंगा जिससे हिंसा हो . इस प्रकार मन में सभी इन्द्रियों के लिए अहिंसा के विचार उनके विषयों के अनुरूप प्रकट होते जायेंगे .
भक्त : हे परमात्मा फिर बुध्दि क्या करेगी ?
भगवान : बताता
हूँ वत्स . इन विचारों की निगरानी करने के लिए मै बुध्दि को आदेश दूंगा की जो क्रम
मेने मन के माध्यम से प्रकट होने वाले विचारों के लिए तय किया है मन ठीक से उनका
पालन कर रहा है या नहीं . इसलिए बुध्दि के अंदर भी मैंने कई तल बनाये है . बुध्दि
को मैंने मन का नियंत्रक बनाया है . और बुध्दि का नियंत्रक मै खुद हूँ . पर मन का
मुख्य नियंत्रक मै खुद हूँ . अर्थात मन को मै कोई आदेश देदू और और बुध्दि के हिसाब
से वह गलत है फिर भी मन से वह काम में
करवा लेता हूँ . क्यों की मेने बुध्दि को केवल माया का अस्तित्व बना रहे इसके
दायरे में होने वाले कर्मो का नियंत्रण ही
दिया है . कोई मनुष्य मुझे बुध्दि से जाननें का प्रयत्न करे तो यह बुध्दि के बस की
बात नहीं है . क्यों की वास्तविकता में बुध्दि का कोई अस्तित्व नहीं है . मुझे मन
से , बुध्दि से नहीं जाना जा
सकता है . क्यों की यह दोनों ही माया है .
भक्त : हे मायाचारी फिर तो आप मन से कुछ भी अनैतिक कार्य करवा सकते हो और आप ने पहले कहा की बुध्दि सोच समझकर निर्णय लेती है की मनुष्य के हित में क्या है .
भगवान: नहीं वत्स , ऐसा नहीं है . मेरी माया भी मेरे सत्य नियम के तहत ही लीला करती है . अर्थात अकारण इस सृष्टि में कुछ भी नहीं होता है . अर्थात यदि किसी मनुष्य ने किसी भी जीव को कष्ट पहुंचाया है तो मेरी माया उसको सजा अवश्य देती है मेरी माया में अन्याय नहीं होता है बल्कि मनुष्य जैसा कर्म करता है उसको वैसा ही फल मिलता है .
भक्त : हे परमात्मा मै समझा नहीं .
भगवान : वत्स मै
आप को अब और गहराई में ले चलता हु . सबसे पहले मै मेरे निराकार स्वरुप से एक ऊर्जा
कण लेकर उसका जीवन चक्र शुरू करता हु . इस ऊर्जा कण को आप विचार की संज्ञा दे सकते
हो . अर्थात परमाणु से सूक्ष्म उसमे उपस्थित इलेक्ट्रान प्रोटोन उनसे भी सूक्ष्म
होता है एक विचार . वत्स परमाणु का भी कोई अस्तित्व नहीं है और इलेक्ट्रान प्रोटोन
का भी कोई अलग से अस्तित्व नहीं है . ये सब अविध्या , अज्ञान है . आज तक परमाणु को किसी ने नहीं देखा . केवल मेरा
ही अस्तित्व है बाकी सब माया है , अज्ञान है ,
झूट है , छल है , मिथ्या है ,
नश्वर है , भंगुर है , प्रतिक्षण बदल
रहे है .केवल मै अकेला अपरिवर्तनशील हु .
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परमात्मा की महिमा में आप सभी का हार्दिक अभिनन्दन है