एक बार एक व्यक्ति को हल्का हल्का सिर में दर्द होने लगा पर उस व्यक्ति ने ज्यादा गौर नहीं किया फिर धीरे धीरे यह लगातार रहने लग गया | तो एक दिन उसकी पत्नी ने उसको डॉक्टर को दिखाने के लिए कहा तो उसने मना कर दिया पर पत्नी मानी नहीं क्यों की वह उसको बहुत प्रेम करती थी | वह व्यक्ति पत्नी के कहने से डॉक्टर को दिखाने के लिए राजी हो गया | पति पत्नी दोनों साथ ही डॉक्टर को दिखाने के लिए रवाना हो गए . डॉक्टर साहब के पास पहुंचने पर डॉक्टर साहब ने उसकी बीमारी के बारे में पूछा तो उसने बताया की मेरे सिर में लगातार दर्द रहता है डॉक्टर साहब ने चेक करके इलाज शुरू कर दिया | कई दिन बीत गए पर सिर का दर्द नहीं बीता | डॉक्टर ने दवा बदल बदल के , जांचे बदल बदल के उस व्यक्ति के सिर दर्द को दूर करने के लिए कई यत्न करे पर डॉक्टर साहब को सफलता नहीं मिली | डॉक्टर साहब बहुत ही पहुंचे हुए थे क्यों की वे रोज 'परमात्मा की महिमा ' करते थे | डॉक्टर साहब ने उस व्यक्ति से एक दिन अलग से मिलने के लिए कहा और समय निर्धारित कर लिया गया . तय समय पर दोनों की मीटिंग शुरू हो गयी . डॉक्टर साहब ने उस व्यक्ति से उसके मन में जो चल रहा था उसके बारे में विस्तार से पूछना शुरू किया . तो उस व्यक्ति ने बताया की कई महीनो पहले उसकी नयी मोटरसाइकिल चोरी हो गयी थी उसने मोटरसाइकिल को ढूंढने की बहुत कोशिश की पर मिली नहीं इस कारण से उसको सिर में दर्द रहने लग गया था . यह
बात सुनते ही डॉक्टर साहब सबकुछ समझ गए थे की इसका सिर दर्द मोटरसाइकिल आने से जायेगा मेरी दवा से नहीं . फिर डॉक्टर साहब ने उसको परमात्मा की महिमा से जुड़ने को कहा . वह व्यक्ति परमात्मा की महिमा का निरन्तर अभ्यास करना शुरू कर दिया और कुछ ही समय में उसके सिर का दर्द गायब हो गया . यह है परमात्मा की महिमा का चमत्कार.केवल परमात्मा का अस्तित्व है. परमात्मा सर्वव्यापी है परमात्मा कण कण में विराजमान है. परमात्मा का हर गुण अनंत है जैसे परमात्मा का एक गुण यह भी है की वे एक से अनेक रूपों में प्रकट होते है. निराकार से साकार रूप में प्रकट होना है : सृष्टि की उत्पति अर्थात निराकार से साकार रूप में प्रकट होना ,असंख्य जीव अर्थात एक से अनेक होने का गुण. मानव का लक्ष्य केवल परमात्मा को जानना है , खुद के स्वरूप को जानना है , परमात्मा और हमारे बीच दूरी शून्य है इसका अनुभव करना है , हर पल खुश कैसे रहे इसका अभ्यास करना है
Saturday, March 30, 2024
Thursday, March 28, 2024
लॉ ऑफ़ अट्रैक्शन के बारे में परमात्मा क्या कहते है ?
- पूरा ब्रह्माण्ड ही लॉ ऑफ़ अट्रैक्शन के सिध्दांत पर बना है
- आप हर समय जो मन की गहराई के तल पर जो सोच रहे हो वो आप खुद की और आकर्षित कर रहे हो
- यह पूरा संसार आप का ही दृश्य रूप है
- आप जिसकी संगत कर रहे हो उसी की रंगत आप पर चढ़ रही है
- आप को कोई और नहीं hypnotize कर रहा है बल्कि आप खुद ही खुद से hypnotize हो रहे हो
- यह दृश्य जगत आपका ही प्रतिबिम्ब है
- हर जीव आप का ही प्रतिबिम्ब ऐसे है जैसे आप का प्रतिबिम्ब शीशे में दीखता है
- इसलिए यदि आप किसी की निंदा कर रहे हो तो यह सच में समझलो की आप खुद की ही निंदा कर रहे हो
- जो कुछ भी आप किसी दूसरे के लिए सोच रहे हो वह हकीकत में आप खुद के लिए ही सोच रहे हो
- इसलिए आप को इसके अनुभव का पता परमात्मा की महिमा करने से चलने लगता है
- By Default लॉ ऑफ़ अट्रैक्शन आप के संचित कर्मो के आधार पर काम करता है और परमात्मा की महिमा का अभ्यास (सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र होकर अपनी दिनचर्या के सभी काम करना) करने पर यह अब आप के हिसाब से काम करता है .
- यदि आप को अपना खुद का नया घर मैनिफेस्ट करना है तो लॉ ऑफ़ अट्रैक्शन को निम्न प्रकार से प्रयोग में लाना है :
जैसे हम मान लेते है की आप लॉ ऑफ़ अट्रैक्शन का प्रयोग खुद के नए घर के लिए 1 jan 24 से शुरू कर रहे हो . अब आप को इस तारिक से जब भी आप को मौका मिले तो तुरंत कोई भी मकान आप के आस पास दिखे और सोचे क्या आप को ऐसा घर चाहिए . यदि आप कही बाहर जा रहे हो तो वहा आप को आप के मन को भाने वाला घर दिखे तो इसे देखकर खुश हो जाये . और समझे यह आप ही का नया घर है . और यदि आप कुछ अलग ही डिज़ाइन का घर चाहते है जो अभी तक आप ने कही भी देखा नहीं तो फिर किस डिज़ाइनर के पास जाकर अपने नए घर का 3d नक्शा बनाकर अपने जिस घर में आप रह रहे हो वह लगा दे और रोज यह मन की गहराई से महसूस करे की आप के इस नये घर को बनाने की तेयारिया जोरो पर चल रही है . शुरू शुरू में आप को कुछ अटपटा सा लगेगा पर जैसे जैसे आप के मन की यह प्रयोग करने की आदत बनती जाएगी आप का काम बहुत ही आसान होता जायेगा .
परमात्मा आप को आगे से आगे सुझाव देते जायेंगे की अब क्या करना है , आप के मन में अपने आप ऐसे विचार आने लगेंगे की पैसे का इंतजाम कैसे करना है . अपने आप ऐसी परिस्थितिया बनने लगेगी की धीरे धीरे आप को इस नये घर इस इतना प्रेम होने लग जायेगा की आप खुद ही इतनी मेहनत करने लग जाओगे की कब आप का सपना पूरा हो गया आप को पता ही नहीं चलेगा . पर इसमें मेनिफेस्टेशन में सबसे जरुरी बात यह है की आप को निरन्तर परमात्मा की महिमा का अभ्यास करना बहुत जरुरी है . वरना आप अपने लक्ष्य से भटक जाओगे . क्यों की लॉ ऑफ़ अट्रैक्शन से आप के मन मुताबिक़ मेनिफेस्टेशन तभी 100 % saccess होता है जब आप परमात्मा की महिमा का निरन्तर अभ्यास करते हो . नई तो यह मेनिफेस्टेशन तनाव का रूप भी ले सकता है क्यों की आप विचार शक्ति का प्रयोग कर रहे हो और यह शक्ति निरंतर नयी शक्तियों को पैदा करने लगती है जो यदि आप से नहीं सम्भले तो तनाव , चिंता , अवसाद में बदल जाती है .
Tuesday, March 26, 2024
लहुसन प्याज खाना चाहिए या नहीं ? - भाग 3
भाग 3
समझदार गुरु भी अपने शिष्ये को वे सब काम क्यों सीखा रहे है
जो शिष्ये आसानी से कर नहीं सकते ?
परमात्मा की
महिमा में परमात्मा इसका जवाब निम्न प्रकार से देते है :
मेरे प्रिये वत्स
मैं समझदार गुरु को भी मेरी माया में उलझाकर रखता हु . उसको यह अहसास कराता हु की
जैसे तुमने भोजन , पानी , सर्दी , गर्मी आदि पर विजय प्राप्त करली है अब तुम तुम्हारे शिष्यों को भी यह बाते बता
दो की में वर्तमान में क्या क्या कर रहा हु पर गुरु को में उसके द्वारा भूतकाल में
किये गए कठोर तपो को शिष्यों को बताने के लिए भुला देता हु . यही तो मेरी लीला है
. आप ने सुना भी होगा वत्स जब मुझे किसी भी व्यक्ति को उसके द्वारा किये गए पापो की
सजा देनी होती है तो में सबसे पहले उसके विवेक और बुद्धि को हर लेता हु . पर यह
काम मैं मेरे भक्त के लिए नहीं करता हु चाहे उसने कितने ही पाप किये हो . क्यों की
वह भक्त अब पूरी तरह से मेरे को समर्पित हो गया है . मैं केवल प्रकृति
के माध्यम से उन्ही का नाश करता हु जो मेरे बनाये नियमो का पालन नहीं करते है या
मेरे भक्तो को सताते है . में मेरे भक्त के लिए सारे नियम तोड़ देता हु पर किसी और
को मेरे नियमो को नहीं तोड़ने देता हु. अर्थात पूरी प्रकृति मेरे अधीन है मै प्रकृति
के अधीन नहीं हु. पर यदि कोई भी
व्यक्ति मेरे इस उपरोक्त गुरु(जो ऊपर
परमात्मा उदाहरण के माध्यम से बात कर रहे थे ) की निंदा करता है , उससे घृणा करता है तो मैं उसको भी नियमानुसार सजा देता हु . मैं सभी के लिए
निष्पक्ष हु .
लहुसन प्याज के बारे में परमात्मा क्या कहते है ?
जिसने अपने मन पर
विजय प्राप्त करली है वह इनसे अप्रभावित रहता है . खाये तो ठीक , ना खाये तो भी ठीक .
पर जो गृहस्थ
जीवन में है , अपने शरीर को स्वस्थ रखना चाहता है , जिसे बेक्टरीया वायरस से डर लगता है , जो अभी संसार को भोगना
चाहता है , जो अभी परमात्मा की लीला का आनंद लेना चाहता है
, जिसे शारीरिक सुख चाहिए , जो खेती किसानी करता हो , जो शरीर से बहुत परिश्रम करता हो , जो मानसिक कर्म के बजाय
शारीरिक कर्म ज्यादा करता हो , उसको अपने इस शारीरिक अस्तित्व की रक्षा के लिए
लहुसन प्याज का उचित मात्रा में सेवन करना चाहिए. जो की यह सब भोग उसके गुरु पहले
कर चुके है . जब इन गुरुओ को इनकी व्यर्थता का पता लगा तो उनसे लहुसन प्याज अपने
आप छूट गए उनको छोड़ना नहीं पड़ा . पर ये अब अपने शिष्यों से बिना परमात्मा की महिमा
के अभ्यास के लहुसन प्याज छुड़ा रहे है और शिष्ये छोड़ नहीं पा रहे है क्यों की उनकी
चेतना अभी लहुसन प्याज का भोग करना चाहती है .
किसी भी वस्तु का
त्याग उसकी व्यर्थता का पूर्ण अनुभव होने पर स्वत् हो जाता है क्यों की अब ऐसे
व्यक्ति में इस वस्तु का भोग करने वाली चेतना का थोड़ा सा भी अंश नहीं बचा है . यह
अनुभव परमात्मा की महिमा का निरन्तर अभ्यास करने से होता है .
लहुसन प्याज के बारे में जो भी बाते समाज मै प्रचलित है या
वेद शास्त्रों मे वर्णन है क्या वे सभी बाते सही है ?
परमात्मा की महिमा मे परमात्मा इस प्रश्न का उत्तर निम्न प्रकार से देते है :
मेरे प्रिये तनुज
, हां सभी बाते सही है पर
आंशिक सत्य है पूर्ण सत्य नहीं है . कैसे ? मे तुम्हे समझाता हु , जैसे कोई व्यक्ति लगातार लहुसन प्याज का उचित मात्रा से
ज्यादा सेवन करके अपने शरीर का बल बड़ा रहा है और फिर शरीर से अप्राकृतिक भोग कर
रहा है जैसे मारपीट करता है , अय्यासी करता है ,
बिना आवश्यकता के मैथुन करता है , बहुत अधिक शारीरिक श्रम करता है और फिर भी खुश
रहता है तो ऐसा व्यक्ति धीरे धीरे बीमारियों की गिरफ्त मे आने लगता है उसको पता भी
नहीं चलता है की वह अधोगति की तरफ बढ़ रहा है क्यों की इनके अधिक सेवन से दिमाग
कमजोर होने लगता है लहुसन प्याज हमारे पाचनतंत्र के लिए उत्प्रेरक का काम करते है
अर्थात यह स्वाद ग्रंथियों को जगाते है . जैसे हमारी भोजन मे रूचि नहीं है तो ये
भोजन के लिए रूचि पैदा करते है . जैसे भोजन मे रूचि पैदा करने के लिए कई सज्जन आचार का सेवन करते
है जो लहुसन प्याज से भी ज्यादा तीव्र रूचि पैदा करते है . इसलिए इनका सेवन बड़ी
सावधानी के साथ करना चाहिए . पर जो सज्जन परमात्मा की महिमा का अभ्यास निरन्तर
करने लगता है उसको अपनी जीभ के स्वाद पर विजय प्राप्त हो जाती है . फिर वह सुखी
रोटी भी बड़े चाव से खा लेता है . जैसे वत्स एक छोटा बच्चा सुखी रोटी के ग्रास को
मुँह मे रबडता रहता है उसको सुखी रोटी बहुत मीठी लगती है क्यों की अभी उसका मन
निर्मल है उसका मेरे से अभी घनिष्ठ सम्बन्ध है . धीरे धीरे उसको घरवाले और समाज के
लोग ज्ञान के डोज दे देके मुझसे दूर करते जाते है और वह मासूम बच्चा मेरे मायाजाल
मे फंस जाता है पर फिर भी मै उसे निरन्तर मेरी याद दिलाता रहता हु चाहे चोट के रूप
मे, चाहे किसी दर्द के रूप मे , या किसी और कष्ट के रूप मे . वत्स मै मेरे
बच्चो को सँभालने के लिए अनेक रूपों मे आता हु . पर मुझे वो ही बच्चा पहचान पाता
है जिसको केवल मेरे ऊपर पूर्ण विश्वास
होता है . तो मै समझता हु मेरे प्रिये वत्स आज आपको लहुसन प्याज के बारे मे काफी
जानकारी मिल गयी है . आगे भी समय समय पर मै बताता रहूँगा .
Sunday, March 24, 2024
लहुसन प्याज खाना चाहिए या नहीं ? - भाग 2
भाग 2
लहुसन प्याज
कच्चे नहीं होने चाहिए अर्थात इनका जीवन चक्र पूरा हो जाना चाहिए . हरा लहुसन और
हरी प्याज नहीं खानी चाहिए. क्यों की अभी वे
जमीन के अंदर विकसित हो रहे है . परमात्मा स्वयं रचनाकार बनकर उनकी रचना कर रहे है
और आप उस रचना को विकृत करके उसको खा जाते है तो उनको कष्ट होता है इसका अहसास
परमात्मा की महिमा का निरन्तर अभ्यास करने से होता है.
लहुसन और प्याज की जो गंध होती है वह हमें बैक्टीरिया वायरस से बचाती है . इनकी गंध हमारे शरीर को बैक्टीरिया वायरस के बाहरी हमलो से बचाती है और जब हम इनका उचित मात्रा में सेवन करते है तो ये हमें शरीर के भीतर यदि कोई भी संक्रमण है तो उससे बचाते है पर यदि इनका ज्यादा मात्रा में सेवन करने लग जाते है तो यह उत्तेजना पैदा करते है , दिमाग में कई प्रकार के फालतू विचार लाते है और हमारा दिमाग कमजोर होने लगता है . पर यदि हम इनका सेवन बिलकुल भी नहीं करते है तो हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने लग जाती है .
किन व्यक्तियों को लहुसन प्याज का सेवन बड़ी सावधानी से करना
चाहिए ?
जिनको इनके नाम से ही डर लगता हो .
जिनका मन अभी इनको थोड़ा भी स्वीकार नहीं किया हो .
जिनके मन में इनको लेकर तरह तरह के वहम हो .
जो पहले से ही बहुत उत्तेजक स्वभाव के हो.
जिनको इनके थोड़े से सेवन से ही शरीर में किसी भी प्रकार की तकलीफ शुरू हो जाती हो .
ऐसे व्यक्ति जैसे जैसे परमात्मा की महिमा के अभ्यास में आगे बढ़ेंगे इनका मन लहुसन प्याज को स्वीकार करने लग जायेगा . यहाँ सबसे जरुरी बात यह है की परमात्मा की महिमा में, जिसे हम आमतौर की भाषा में शरीर कहते है वह परमात्मा का ही साकार रूप है और निरन्तर इसमें 'शिव की शक्ति' के माध्यम से परिवर्तन हो रहे है और 'विष्णु की शक्ति ' के माध्यम से इस क्षण तक जो परिवर्तन हो चुके है उनकी सुरक्षा हो रही है और जो शरीर में अंग रिपेयर (पुनर्निर्माण ) या किसी अंग को दुबारा से नया बनाना है तो वह काम ब्रह्मा की शक्ति कर रही है . ये तीनो शक्तिया परमात्मा से ही प्रकट होती है . इन शक्तियों को अलग अलग देशो में , अलग अलग धर्म - सम्प्रदायो में अलग अलग नामो से जाना जाता है . यही तो परमात्मा की महिमा की विविधता है अनेकता में एकता . अलग अलग होकर भी हम सब एक है . यही परम सत्य है .
लहुसन प्याज का कई सज्जन विरोध क्यों करते है ?
परमात्मा की महिमा में इसका जवाब परमात्मा निम्न प्रकार से देते है :
सुनो मेरे प्रिये आत्मज मैं मेरी माया में सभी को उलझाकर रखता हु . किसी के मुँह से कहलवा देता हु की लहुसन प्याज मत खा लेना यह तामसिक प्रवृति के है तो किसी के मुँह से यह कहलवाता हु की लहुसन प्याज हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत अनिवार्य है . पर सत्य यह है की जो नंदन (आत्मज , पुत्र , सुवन ) किसी भी भोजन के साथ आसानी से रह लेता है ऐसा भक्त मुझे बहुत प्रिये है क्यों की वह भोजन के रूप में भी मुझे ही देखता है, वह देश, काल और परिस्थिति के अनुकूल खुद को ढाल लेता है या परिस्थिति को खुद के अनुकूल बना लेता है . वह हर समय स्थिर रहता है बहुत खुश रहता है चिंता मुक्त रहता है क्यों की अब उसकी सारी व्यवस्थाएं मैं खुद करता हु. पर यह बात तो मेरे अनन्य भक्त की हुयी है .
पर जो अभी मेरे
से विमुख है मेरी महिमा के बारे में ज्यादा अनुभव के साथ नहीं जानता है केवल किसी
और के अनुभवों पर ही आश्रित है ,
जिसने ज्ञान की किताबे
रटली है , जिसे कोई कुछ भी कह दे तो उसी को आधार मानके
आगे बढ़ जाता है , जो सही गलत की पहचान नहीं कर पाता है , जो हमेशा द्वन्द में रहता है ,
जिसका मन अभी स्थिर नहीं
है ऐसा व्यक्ति लहुसन प्याज को लेकर भी भ्रमित रहता है . उसे डर लगता है की कही
मैंने यदि लहुसन प्याज खा लिए तो मेरे मन में वासना के विचार आ जायेंगे , कोई बीमारी हो जाएगी , वह यह भी तर्क देता है की मेरे गुरु इतने महान
है उनको भूख , प्यास , सर्दी , गर्मी नहीं लगती है उन्होंने ने मुझे नियम दिलाया है की तुम लहुसन प्याज का
त्याग करदो वरना तुम्हे वासनाये सताएगी , बीमारिया हो जाएगी , तुम्हे क्रोध ज्यादा आने लग जायेगा , और ना जाने क्या क्या
तर्क देते है और यह सब बाते ऐसे व्यक्ति के दिमाग में फिट बैठ जाती है . पर वह
व्यक्ति यह अर्थ नहीं लगा पाता है की मेरे जिन गुरु ने मुझे यह सब सिखाया है वो
उन्होंने खुद ने कैसे किया है . क्यों की जब वह व्यक्ति खुद को ही नहीं जानता है
तो गुरु को कैसे जानेगा . और गुरु बहुत ही समझदार है फिर भी वह ऐसी बाते अपने शिष्ये
को क्यों सीखा रहे है जो शिष्ये कर नहीं सकता . इसको निम्न प्रश्न के रूप में
लिखते है : ....
आगे के लिए भाग 3 पढ़े
Friday, March 22, 2024
आप की चिंता की जड़े यहां छिपी है
Wednesday, March 20, 2024
मोक्ष कैसे मिलती है ?
Monday, March 18, 2024
सबकुछ होते हुए भी हम संतुष्ट क्यों नहीं होते है ?
Saturday, March 16, 2024
भक्त और भगवान के बीच बातचीत - भाग 9
भाग 9
भक्त : हे न्यायकारी पर हर क्षण इसी भावना में रहना तो बहुत मश्किल काम है आप मुझे किसी दूसरे उपाय के बारे में बताओ प्रभु .
भगवान : वत्स मै बहुत ही गुणवान ,तेजस्वी , सूंदर , सुशिल कन्या के जन्म के योग के बारे में बता रहा था . पर इसका मतलब यह भी नहीं है की यह कन्या योग पूरी तरह निष्क्रिय हो जायेगा . कन्या तो इनके घर जन्म लेगी पर डीएनए लेवल पर इस कन्या के गुणों में परिवर्तन आ जायेगा . पर यदि फिर भी यह जोड़ा परमात्मा की महिमा का निरन्तर अभ्यास करता है तो इनका डीएनए भी रूपांतरित हो जायेगा . अर्थात परमात्मा की महिमा के अभ्यास से आप कुछ भी बदल सकते हो डीएनए हो या जीन्स , मन हो या शरीर , स्वभाव हो या चरित्र सबकुछ . एक कहावत है 'ज्याकी रही भावना जैसी उनको दिखे मूरत वैसी'.
Thursday, March 14, 2024
भक्त और भगवान के बीच बातचीत - भाग 8
भाग 8
भक्त : हे परमात्मा अब आप मुझे कन्या के जन्म के योग(पति -पत्नी कन्या चाहते है लड़का नहीं ) के लिए पत्नी की क्या क्या जिम्मेदारियां है उनके बारे में बताइए.
भगवान: वत्स जिस प्रकार मैंने आपको पति की जिम्मेदारियों के बारे में बताया है उसी प्रकार से पत्नी की भी कन्या योग के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां है . पति के लिए बताई गयी सभी जिम्मेदारियों मेसे वे सभी जिम्मेदारियां जो एक महिला निभा सकती है उनको इस पत्नी को भी निभाना है . पर इनके अलावा भी वत्स मै आपको और जिम्मेदारियां बता रहा हु जिनको इस पत्नी को निभाना बहुत आवश्यक है यदि ये इनके घर में बहुत ही सूंदर , सुशिल , गुणवान कन्या को जन्म देना चाहते है . पत्नी अपने शरीर के पेट वाले भाग को ज्यादा से ज्यादा अनुभव करे और मन में यह विचार निरन्तर प्रकट करे की मेरी प्यारी सी , सूंदर सी नन्ही परी का आगमन इसी क्षेत्र से होने जा रहा है . वह हर काम करते हुए हमेशा यही सोचे की इस पेट वाले क्षेत्र में जो भी अनुभूतिया हो रही है वह मेरे परमपिता परमेश्वर मेरे लिए एक सूंदर और गुणवान कन्या की रचना के लिए पैदा कर रहे है . इसलिए मुझे इन अनुभूतियों को सुख दुःख नहीं कहना है बल्कि मेरी कन्या के स्वागत में बहुत ही मधुर संगीत बज रहा है . वत्स यह इतना आसान नहीं है की जिस समय पेट में दर्द हो और यह पत्नी इसे मधुर संगीत का अनुभव समझे . पर सत्य यह भी है की ऐसी कन्या योग के लिए और कोई दूसरा उपाय नहीं है . यदि इस पत्नी को केवल सामान्य कन्या ही चाहिए विलक्षण प्रतिभा की धनि कन्या नहीं चाहिए तब तो इतनी मेहनत नहीं करनी होती है .
भक्त : हे सर्व शक्तिमान क्या यह सब जिम्मेदारियां इस पति -पत्नी को कन्या योग के लिए शारीरिक सम्बन्ध बनाने से पहले निभानी है ?
भगवान : हां वत्स .
भक्त : हे परमपिता परमेश्वर अब आप मुझे इस पति -पत्नी को शारीरिक सम्बन्ध बनाने के दौरान और इसके बाद 9 माह तक क्या क्या जिम्मेदारियां निभानी है उनके बारे में बताइए .
भगवान: अवश्य
बताता हु वत्स ध्यान से सुनो . अब इन दोनों के भाव इतने पवित्र होने चाहिए की यह
दोनों एक सूंदर , सुशिल कन्या की
रचना के लिए परमात्मा की कृपा से शारीरिक सम्बन्ध बनाने जा रहे है . इनको यह विचार
अपने मन में लाना चाहिए की यह काम परमात्मा स्वयं हमारे रूप में आकर कर रहे है तो
किसी भी प्रकार की त्रुटि होने की सम्भावना नहीं रहती है . क्यों की आप जब सबकुछ
परमात्मा को समर्पित करते हुए कोई भी काम करते हो तो वह काम बहुत ही उत्तम होता है
. और यदि यह पति -पत्नी शारीरिक सम्बन्ध बनाते समय अंधे भोग में रमे होते है ,
उस समय इनकी भावना बहुत ही मायावी अर्थात
बेहोशी में हो या यह कहे की इस शारीरिक सम्बन्ध को अपने भोग का चरम साधन मानते हो
तो फिर सूंदर , सुशिल , गुणवान कन्या के जन्म को भूलकर इनको ऐसी संतान
की उत्पत्ति से संतोष करना पड़ेगा की वह आगे चलकर इनको आयेदिन परेशान करेगी .
यह कन्या गृह क्लेश को निमंत्रण देगी चाहे इसका पीहर हो या ससुराल .
भक्त: हे परमात्मा ऐसा क्यों होगा जबकि इस पति -पत्नी ने शारीरिक सम्बन्ध बनाने से पहले तो अपने विचारो में बहुत निर्मलता लेकर आयी है और इनके भाव भी इस दौरान बहुत अच्छे थे , और पति ने वे सभी जिम्मेदारियां निभाई थी जिनका उल्लेख आप ने ऊपर किया है , और पत्नी ने भी आपके माध्यम से बताई गयी सभी जिम्मेदारियां निभाई थी फिर केवल शारीरिक सम्बन्ध के दौरान ही इतनी छोटी सी गलती की इतनी बड़ी सजा कैसे प्रभु ?
भगवान : वत्स मै अब आपको मेरे एक और राज की बात बताता हु . जीवन तो इस क्षण का नाम है. जिस क्षण जो भाव आप के मन के गहरे तल में होता है उसी भाव के अनुरूप वह भाव मूर्त रूप लेता है . अर्थात शारीरिक सम्बन्ध के दौरान मै कन्या की रचना को तैयार करने के लिए कन्या का DNA सेट कर रहा था . और इन्ही डीएनए के आधार पर इस कन्या के जीन्स को मुझे विकसित करना होता है . इसलिए यदि इस समय यदि कोई पति -पत्नी सतर्क नहीं रहता तो फिर जिस कोटि की इनकी जाग्रति होती है उसी कोटि का परिणाम मै इनकी झोली में डालता हु . हालांकि गहरे भोग से होश आने के बाद यह पति पत्नी पश्चाताप करते है और फिर मुझे याद करते है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है .
भक्त : हे परमात्मा इसका मतलब तो यह हुआ की यदि इस पति -पत्नी को कन्या ही को जन्म देना है तो इसके विचारो के अलावा और फालतू के विचारो को LET GO करना ही पड़ेगा वरना यह कन्या योग फलित नहीं होगा .
भगवान : तुमने ठीक समझा वत्स , ऐसा ही होता है .Tuesday, March 12, 2024
भक्त और भगवान के बीच बातचीत - भाग 7
भाग 7
भक्त : हे परमात्मा क्या कन्या ही पैदा हो इसके लिए कोई कर्म काण्ड भी आप ने निर्धारित कर रखा है ?
भगवान : हां वत्स मैंने कन्या योग के लिए कई कर्म काण्ड निर्धारित कर रखे है . यह कर्म काण्ड मैंने मेरे उन भक्तो के लिए बनाये है जो अभी मेरे में भक्ति बढ़ाने का प्रयत्न कर रहे है . क्यों की बिना इन कर्म काण्डो के इनके मन का रूपांतरण संभव नहीं है .
भक्त : ऐसा क्यों भगवन ?
भगवान : क्यों की ऐसे व्यक्ति के मन की मेरे से दूरी बहुत ज्यादा है . ऐसा व्यक्ति कई जन्मो से कई प्रकार के कर्मो को अपने मन के गहरे तलो में संचित करके चलता है . वह उन कर्म बंधनो के कारण परमात्मा की महिमा का अभ्यास आसानी से नहीं कर पता है . अर्थात जैसे ही ऐसा व्यक्ति सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र होने की कोशिस करता है तो उसके संचित कर्म उसको ऐसा करने से रोकते है .
भक्त : ऐसा क्यों परमेश्वर ?
भगवान : वत्स मेरी विष्णु शक्ति के कारण ऐसा होता है . जो कोई भी व्यक्ति कोई भी विचार प्रकट करता है तो मेरी विष्णु शक्ति उस विचार की सुरक्षा करती है . यह प्रकृति का नियम है . इसलिए मैंने साधारण मनुष्य के लिए कई प्रकार के कर्म काण्ड बनाये है ताकि उन कर्म काण्डो की मदद से वह मनुष्य अपने मन में संचित कर्मो के नमूनों (pattern) को परिवर्तित कर सके . क्यों की मैंने मनुष्य के मन को अदभुद शक्तियॉ दी है . मनुष्य के मन के पास ब्रह्म शक्ति है . इस शक्ति से वह कुछ भी निर्मित कर सकता है . विष्णु की शक्ति से निर्मित की गयी वस्तु की सुरक्षा कर सकता है . और इस वस्तु को आगे विकसित करना हो तो शिव की शक्ति से इसमें परिवर्तन (mind transformation) कर सकता है .
भक्त : हे न्यायकारी आप मुझे कर्म काण्ड को किसी उदाहरण से समझाने की कृपा करे .
भगवान : अवश्य वत्स . जैसे ऊपर बताये गए पति को कन्या चाहिए . अब वह कोई भी मंत्र अपने गुरु से लेता है जिसके पूरी निष्ठा के साथ जाप करने से कन्या ही जन्म लेती हो . तो यह मंत्र इस पति के मन में संचित नमूनों को (memory patterns) परिवर्तित करने में इसकी मदद करता है . वत्स यहां ध्यान देने योग्य एक बात यह है की किसी भी memory pattern को आप मार नहीं सकते केवल परिवर्तित कर सकते हो . इस सृष्टि में मृत्यु का अस्तित्व नहीं है . निर्माण , सुरक्षा , परिवर्तन के आधार पर यह सृष्टि चक्र चलता है . क्यों की बिना मंत्र के ऐसा सामान्य व्यक्ति मुझ में सीधा एकाग्र नहीं हो पाता है . मन की अनंत शक्तियो को ऐसा सामान्य व्यक्ति आसानी से सही दिशा नहीं दे पाता है , शक्तियॉ उसके वश में नहीं रह पाती है इसलिए मंत्रो का सहारा लेना पड़ता है . यह लॉ ऑफ़ अट्रैक्शन में ऐसे ही है जैसे उसमे कई व्यक्ति 21 दिन तक रोज रात को डायरी में अपनी किसी इच्छा को लिखकर सो जाते है और पूरी रात वह इच्छा उसके मन में अपना घर बनाने का काम करती है. डायरी में लिखी इच्छा को मन एक मंत्र के रूप में , या एक विचार के रूप में लेकर पूरी रात स्पंदित करता है. बार बार इस इच्छा रुपी विचार ऊर्जा कण के स्पंदनो से इच्छानुसार वस्तु अस्तित्व में आने लगती है .
भक्त : हे अंतर्ज्योति, इसका मतलब तो यह हुआ की लॉ ऑफ़ अट्रैक्शन तो हर समय काम कर रहा है क्यों की बिना डायरी में लिखे भी हम कई विचार मन में लेकर रात को सोते है .
भगवान : अवश्य
वत्स . इसलिए तो मै कहता हु की जिस व्यक्ति का मन दिन रात जो सोचता है , रात दिन जो विचार उसके मन में चलते है वैसा ही
वह व्यक्ति बनता जाता है . इसलिए यदि कोई व्यक्ति परमात्मा की महिमा का अभ्यास किसी
भी लेवल पर नहीं करता है अर्थात अपनी गतिविधियों के प्रति जाग्रति नहीं रखता है और
अपने आप को उसके मन के हवाले छोड़ देता है तो ऐसा व्यक्ति अपना प्रारब्ध ही भोग रहा
होता है . उसमे परिवर्तन की कोई सम्भावना नहीं रहती है . और यदि उसके प्रारब्ध में
मेरे को प्राप्त होना नहीं लिखा है तो ऐसा व्यक्ति एक पशु की भांति अपना जीवन
गुजार के इस पृथ्वी से चला जाता है .
इसलिए वत्स लॉ ऑफ़
अट्रैक्शन तो हर समय काम कर रहा है चाहे आप जाग्रत हो या नहीं . इसलिए हम वापस
अपनी उस बात पर आते है जिसमे मै तुम्हे बता रहा था की यदि एक पति -पत्नी कन्या को
जन्म देना चाहते है तो पति की क्या क्या जिम्मेदारियां है . पति की आगे की
जिम्मेदारियों के बारे में बताता हु . पति का यदि कर्म काण्डो में विश्वास है तो
अपने किसी गुरु से कोई भी टोटका लेकर उसको पूरी ईमानदारी के साथ गुरु के माध्यम से
बताये गए काम को करने से कन्या के जन्म का योग बनने लगता है . पर वत्स ये जितने भी
टोने टोटके है मेरे भक्तो को प्रभावित नहीं कर पाते है . कई बार व्यक्ति इनका गलत
इस्तेमाल करने की कोशिस करता है तो यह उसके खुद के लिए ही घातक साबित होते है .
क्यों की केवल मै ही सत्य हु और सत्य के सामने झूठ टिकता नहीं है . माया झूठी है
और मै सच्चा हु .
Sunday, March 10, 2024
भक्त और भगवान के बीच बातचीत - भाग 6
भाग 6
भक्त : हे परमात्मा जब आप यह समझा रहे हो की इस दम्पति के एक संतान पैदा हो तो साथ ही यह भी समझा दो की यदि यह दम्पति संतान के रूप में एक कन्या को जन्म देना चाहता हो तो इनको क्या करना चाहिए ?
भगवान : मेरे प्रिये लाल मुझे तो लगता है अब आप समझदार होने लग गए हो . क्यों की इस संसार में हर कोई यह राज जानना चाहता है की लड़का होने का योग क्या है और लड़की होने का योग क्या है ?. देखो वत्स यदि पति -पत्नी दोनों बहुत सरल स्वभाव के है और मुझ पर पूर्ण विश्वास है तब तो यह राज बहुत आसान है . पर यदि पति -पत्नी का स्वभाव मुझसे दूरी का है अर्थात उनको यह लगता हो की हर काम वो खुद कर रहे है और भौतिक संसाधनों से उनका बहुत ही गहरा चिपकाव है , माया में बहुत गहरे फंसे है तब यह राज बहुत कठिन है. पर असंभव कुछ भी नहीं है . अब मै यह राज बताने जा रहा हु बहुत ध्यान लगाकर सुनना समझना .
भक्त : जी भगवान .
भगवान : वत्स यदि कोई पति पत्नी यह चाहता हो की उनके कन्या (लड़की) का ही जन्म हो . तो पति -पत्नी शारीरिक संबन्ध बनाने से पहले निम्न यम , नियमो का पालन पूरी निष्ठा के साथ करे .
मै पहले आपको पति की जिम्मेदारियों के बारे में बताने जा रहा हु . पति को चाहिए की वह हर कन्या का सम्मान शुरू करे . उसके घर परिवार, समाज में जहा कही भी किसी कन्या को बहुत ही मदद की जरुरत पड़ रही हो जैसे कोई कन्या बीमार हो , पड़ना चाहती हो , अपनी रोजी रोटी के लिए काम की तलाश कर रही हो या किसी भी प्रकार की नैतिक आवश्यकता पड़ रही हो तो इस पति को अपनी सच्ची सामर्थ्य के साथ इस कन्या की मदद करनी चाहिए अहंकार रहित होकर . अर्थात मदद का समाज में ढिंढोरा नहीं पीटना है . बहुत ही गोपनीय रूप से यह काम करना होता है . जैसे समाज में कई सज्जन कहते भी है की दान इस हाथ से ऐसे करो की दूसरे हाथ को भी मालूम ना चले . तब वह दान फलित करता हु मै वत्स . पति को दूसरा काम यह करना है की वह हर कन्या को अपनी बेटी के रूप में पूरी सच्चाई के साथ देखे , अनुभव करे . हर कन्या के रूप को बहुत ही सूंदर , अलौकिक समझे , मेरा रूप उसमे देखे .
पति निरन्तर परमात्मा की महिमा का अभ्यास करे . अपने मन को इस प्रकार परिवर्तित करने का अभ्यास करे की उसको खुद को यह लगने लग जाये की अब मै नारी का सम्मान सच में करने लग गया हु . पति को कन्या भक्त होना पड़ता है . अर्थात इस पति को मेरी भक्ति मेरे को हर कन्या के रूप में मानकर करनी होती है . उसके मन में हर पल उसकी आने वाली बेटी के सपनो को उसको(पति) कैसे पूरा करना है इसको लेकर एक बहुत ही साफ़ छवि पुरे द्रढ़ संकल्प के साथ होनी चाहिए . यदि यह पति यह सब काम बिना लिखे नहीं कर सकता है तो उसको एक सूंदर डायरी में लिखने का अभ्यास करना चाहिए .
भक्त : हे सर्व शक्तिमान मुझे तो लगता है की आप एक बहुत ही तेजस्वी , सुशिल , सूंदर , गुणवान कन्या के जन्म का योग पुरुष के लिए बता रहे हो ?
भगवान : हां वत्स तुमने बहुत सही समझा . पर यदि इस पति की मेरे में भक्ति कम है इसके लिए हर कन्या को मेरे रूप में देखना कठिन है या यह पति मेरे किसी साकार रूप को देवता मानकर पूजा -भक्ति करता है तो इसके मन जो मेरे इस देवता रूप के बारे में ज्ञान संचित है तो उस ज्ञान के अनुसार ही मै इसको इसके देवता में स्थापित कर देता हु . अर्थात कोई व्यक्ति यदि देवताओ को पूजता है तो उस देवता से संबंधित गुण उस व्यक्ति में आने लगते है . अर्थात जो जिसकी शरण में जाता है मै उसको उसी के गुणों से फलित करता हु . जैसे कोई व्यक्ति पूरी निष्ठा के साथ हनुमान जी की भक्ति करता है तो उस व्यक्ति में हनुमान जी के गुण आने लगते है . और यदि कोई व्यक्ति राक्षसों को पूजता है तो उसमे राक्षसों के गुण आने लगते है . पर यदि कोई परमात्मा की महिमा का अभ्यास करता है तो उसमे मेरे गुण अर्थात सर्वगुण संपन्न आने लगते है . अर्थात जिसकी जैसी मति वैसी उसकी गति . परमात्मा की महिमा करने वाला व्यक्ति देवता और राक्षस दोनों का बराबर सम्मान करता है .Friday, March 8, 2024
भक्त और भगवान के बीच बातचीत - भाग 5
भाग 5
भक्त : हे सर्व शक्तिमान अब आप मुझे कर्मयोगी के बारे में बतायें.
भगवान : वत्स
कर्मयोगी उस व्यक्ति को कहते है जो चाहे गृहस्थ मै हो या सन्यासी हो संसार में
रहते हुए अपने सभी कर्मो को करते हुए मुझसे जुड़ा हो . वह कर्म इतनी एकाग्रता के
साथ करता है की वह अपने हर कर्म के माध्यम से मेरे से जुड़ता जाता है . अर्थात धीरे
धीरे वह उसके माध्यम से किये जाने वाले सभी कर्मो को ही मेरी भक्ति मान लेता है .
इसको वत्स मै आपको इस उदाहरण से समझाता हु . जैसे एक व्यक्ति गृहस्थ मै है और उसको
आज के दिन के लिए अपने बच्चो के लिए भोजन की व्यवस्था करनी है और अभी इस समय उसके
पास नातो घर में अनाज है और ना ही भोजन के पैसे है . तो ऐसा कर्मयोगी बिना समय
गवाए और बिना इस बात की परवाह किये की आज मै जो भी काम करूँगा उसके बारे में समाज
के लोग क्या कहेंगे सीधा काम की तलाश में घर से निकल जायेगा और बाहर जो भी उसको
काम मिलेगा उसको वह पूरी लगन , मेहनत , और ईमानदारी के साथ करके
अपने बच्चो के लिए भोजन की व्यवस्था कर लेगा . पर यदि इसकी जगह कोई भक्ति योग की
साधना करने वाला व्यक्ति होता तो यह जरुरी नहीं है की वह काम की तलाश में घर से
बाहर जाता और अपने बच्चो के लिए भोजन की व्यवस्था करता .
भक्त : हे भगवान
जब ऐसा भक्ति योग वाला व्यक्ति कर्म ही
नहीं करेगा तो उसके बच्चो के लिए भोजन की व्यवस्था कैसे होगी ?
भगवान : मै करता
हु वत्स मेरे ऐसे भक्त के लिए सभी इंतजाम . और वैसे मै आप को एक बात और समझाता हु
वत्स , इस संसार में कोई भी मनुष्य एक पल के लिए भी बिना कर्म किये
नहीं रह सकता है . जैसे स्वास लेना भी एक कर्म ही है पर वह इसके प्रति इतना जाग्रत
नहीं है इसलिए उसको लगता है की स्वास लेनी नहीं पड़ती है यह तो अपने आप चलती है .
पर हां यहां ध्यान देने योग्य एक बात अवश्य है वत्स .
भक्त : वह बात
क्या है भगवान :
भगवान : जब कोई
मनुष्य मुझ में पूर्ण रूप से एकाग्र हो जाये अर्थात भक्ति योग की चरम स्थिति में आ
जाये तो अब स्वास लेना उसकी मजबूरी नहीं है . वह स्वास पर भी विजय प्राप्त कर लेता
है . उसका स्वास पर पूर्ण नियंत्रण हो जाता है . वह चाहे तो स्वास ले या ना चाहे
तो स्वास ना ले . अर्थात वह मनुष्य स्वास के बंधन से मुक्त हो जाता है .
भक्त : हे
अंतर्यामी फिर ऐसे मनुष्य का शरीर जीवित कैसे रहता है ?
भगवान : मेरे ऐसे
भक्त के लिए स्वास और शरीर दोनों एक होते जाते है . अर्थात स्वास ही शरीर के रूप
में प्रकट रहता है . या ऐसे समझे की अनगिनित स्वासे इक्कठी होकर शरीर का रूप ले
लेती है . इसे और गहराई से मै बाद में समझाऊंगा वत्स .
भक्त : जी भगवान.
भगवान : वत्स अब मै तुम्हे आकर्षण के सिध्दांत (law of attraction) के बारे में और गहराई से बताने जा रहा हु . मेरी पूरी माया ही law of attraction से काम करती है . जब मै एक मनुष्य शरीर की रचना की बात करता हु तो कैसे एक माँ के गर्भ में शिशु का जन्म होता है और धीरे धीरे वह शिशु उस माँ के गर्भ में बड़ा होता जाता है और एक समय बाद उसके माँ के गर्भ से बाहर आने का समय आ जाता है . वत्स यह संसार मन ही है . मन ही सब कुछ करता है , मन ही शिशु के रूप में जन्म लेता है और मन ही फिर गर्भ में विकसित होता जाता है .
भक्त : हे अन्तर्यामी तो क्या मन ही शरीर है ?
भगवान : ठीक समझा वत्स आपने , व्यक्ति के मन में निरन्तर जो विचार पुरे मनोयोग से मन की गहराई तक पुरे विश्वास के साथ चलते है उन्ही विचारो का घनीभूत रूप है यह शरीर . जैसे मैंने पहले आप को बताया था एक उदाहरण के माध्यम से की मैंने पति पत्नी का किरदार निभाने के लिए 2 व्यक्तिओ की रचना करी और वे अब एक दूसरे को पति पत्नी मानकर अपना जीवन यापन कर रहे है . अब मैंने इच्छा प्रकट की , की इस विवाहित जोड़े के जीवन चक्र (life cycle ) को आगे विकसित करने के लिए इनके एक संतान होनी चाहिए .Wednesday, March 6, 2024
भक्त और भगवान के बीच बातचीत - भाग 4
भाग 4
भक्त : हे
परमात्मा ये आकर्षण का सिद्धांत(law of
attraction ) क्या है?
भगवान : मेरे
प्रिये वत्स आपने बहुत अच्छा प्रश्न किया है . आकर्षण के सिद्धांत में मेने पृथ्वी
पर लगभग सभी मनुष्यों को उलझा रखा है . हर वह चीज़ जो व्यक्ति मन से हर पल सोच रहा
है (मन की गहराई के तल पर) उसको समय के
साथ खुद की और आकर्षित कर रहा है . किसी भी व्यक्ति को कोई दूसरा व्यक्ति सम्मोहित
नहीं कर रहा है बल्कि अपनी खुद की पुरानी सोच के कारण वह खुद ही खुद से सम्मोहित
हो रहा है . अर्थात उसके मन में जो अनंत जन्मो से सोचने के नमूने (pattern) मन की भीतरी सतहों पर अंकित है (जैसे मेमोरी चिप में डाटा
जमा होता है) उन नमूनों के आधार पर ही वह मनुष्य खुद के संसार की रचना कर रहा है .
इन नमूनों को संचित कर्म भी कहा जाता है और प्रारब्ध भी कहा जाता है . और कई बार
इनको कर्म फल भी कहा जाता है .
भक्त : हे न्यायकारी इनको कर्म फल कब कहा जाता है ?
भगवान : वत्स जब किसी व्यक्ति के माध्यम से कोई कर्म इतनी तल्लीनता के साथ किया गया हो की उसके परिणाम और काम करने की शैली में बहुत कम अंतर हो (बहुत कम दूरी हो ). जैसे बहुत ही प्रगाड़ भक्ति भाव से किया गया कोई कर्म . ऐसे कर्म के फल को घटित होने में ज्यादा समय नहीं लगता है . ऐसे व्यक्ति की मुझसे दूरी बहुत ही कम होती है . ऐसा व्यक्ति हर पल मेरे बारे में ही सोचता है . वह काम करते हुए यह महसूस करता है की यह काम मै नहीं मेरे परमात्मा कर रहे है और उसको यह चिंता नहीं रहती है की इसका परिणाम क्या होगा . क्यों की वह धीरे धीरे मुझ में रमने लगता है . इसलिए उसको कोई भी काम करते हुए बहुत ही सुख और शांति का अनुभव होता है . ऐसे व्यक्ति का मन बहुत निर्मल होने लगता है . उसके मन में ज्यादा गहरे तल नहीं होते है अर्थात उसके मन के भीतर जो संचित कर्मो का नमूना होता है वह बहुत ही साफ़ सुथरा होता है उसके मन के भीतर ज्यादा प्रकार के संचित कर्म नहीं होते है . उसकी छवि बहुत ही साफ़ सुथरी होती है .
भक्त : हे निराकार क्या आप मुझे एक कर्मयोगी के बारे में बता रहे हो ?
भगवान : ठीक समझा तुमने मेरे बच्चे . कर्मयोगी वह होता है जो अपना कोई भी काम इतनी एकाग्रता के साथ करता है की वह कर्मो और उनके फलों का बोझ अपने सिर पर लेकर नहीं चलता है . अर्थात अपने मन में मेरे शिवा किसी और की चाहत नहीं रखता है . वह मेरे लिए कर्म करता है . उसको मेरे लिए कर्म करने में ही इतना आनंद आता है की उस आनंद की अनुभूति के कारण वह उस कर्म का फल ही भूल जाता है . इसलिए उसके जीवन में उसके संचित कर्मो का कोई खास प्रभाव नहीं होता है अर्थात वह सुख दुःख से ऊपर उठ जाता है .
भक्त : हे सर्वज्ञ आप मुझे भक्तियोग और कर्मयोग के बारे में विस्तार से समझाए .
भगवान : वत्स धीरज रखो मै तुम्हे अब भक्तियोग और कर्मयोग के बारे में विस्तार से समझाता हु . यदि संसार में कोई भी व्यक्ति भक्तियोग के माध्यम से मुझे जानना चाहता है तो वह हर पल मेरे बारे में ही चिंतन करता है . ऐसे व्यक्ति को पूर्ण रूप से मेरे को समर्पित होना होता है . उसकी मुझे पाने के अलावा कोई और इच्छाये नहीं होती है . वह भोजन , पानी , मौसम , देश , काल , परिस्थिति इत्यादि से अप्रभावित रहता है . वह संसार के सभी जीवों को एक सामान दृष्टि से देखता है . वह सभी जीवों में मेरा ही रूप देखता है यदि वह मेरी भक्ति मेरा साकार रूप मानकर करता है . और यदि वह मुझे निराकार मानकर मेरी भक्ति करता है तब तो वह वायु , आकाश , अग्नि , पृथ्वी जैसे मेरे सभी साकार रूपों और इनके अलावा जो शेष बचता है उन सभी में मुझे ही देखता है . वह यह चिंता नहीं करता है की उसका परिवार कैसे चलेगा , कल क्या होगा. उसको किसी भी काम की चिंता नहीं रहती है . उसको खुदके भोजन पानी के बंदोबस्त की भी चिंता नहीं रहती है . ना संसार में किसी से उसको डर लगता है . वह पूर्णतया निष्फिक्र हो जाता है .
भक्त : हे अंतर्यामी फिर ऐसे व्यक्ति को जीवित रहने के लिए भोजन पानी समय पर कैसे मिलेगा ?भगवान : मेरे लाल आप तो उसके जीवित रहने के लिए भोजन पानी के बारे में ही सोच रहे हो मै तो उसकी हर जरूरत का इंतजाम उसको जरुरत महसूस हो उससे पहले ही कर देता हु . जैसे वह किसी कारणवश अपने साथियो के साथ जंगल में फंस गया हो और मौसम खराब हो और उनको एक नदी पार करके ही अपने घर आना पड़े और उस भक्त के अलावा और सभी उसके दोस्त तैरना जानते हो तो वे सब तो तैरकर अपने अपने घर चले जायेंगे और वह भक्त जंगल में ही रह जाये . तो मै उसके लिए मौसम को ही बदल देता हु ताकि वह अपने रोजमर्रा के रास्ते से ही जंगल से घर चले जाये . या फिर मै कोई और व्यवस्था करता हु . यह मै प्रकृति के सभी नियमों को देखकर करता हु . यदि मुझे ऐसे भक्त के लिए प्रकृति का नियम भी बदलना पड़े तो मै उसमे भी देर नहीं करता हु . क्यों की मै प्रकृति के अधीन नहीं हु , प्रकृति मेरे अधीन है .
क्रियायोग - हमे सुख और दुःख की अनुभूति क्यों होती है ?
आज मै आप को यह गहराई से समझाने जा रहा हु की हमे सुख और दुःख की अनुभूति क्यों होती है . हमे सुख और दुःख की अनुभूति परमात्मा के माध्यम से जो...
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