Tuesday, March 26, 2024

लहुसन प्याज खाना चाहिए या नहीं ? - भाग 3

 

भाग 3

समझदार गुरु भी अपने शिष्ये को वे सब काम क्यों सीखा रहे है जो शिष्ये आसानी से कर नहीं सकते ?

परमात्मा की महिमा में परमात्मा इसका जवाब निम्न प्रकार से देते है :

मेरे प्रिये वत्स मैं समझदार गुरु को भी मेरी माया में उलझाकर रखता हु . उसको यह अहसास कराता हु की जैसे तुमने भोजन , पानी , सर्दी , गर्मी आदि पर विजय प्राप्त करली है अब तुम तुम्हारे शिष्यों को भी यह बाते बता दो की में वर्तमान में क्या क्या कर रहा हु पर गुरु को में उसके द्वारा भूतकाल में किये गए कठोर तपो को शिष्यों को बताने के लिए भुला देता हु . यही तो मेरी लीला है . आप ने सुना भी होगा वत्स जब मुझे किसी भी व्यक्ति को उसके द्वारा किये गए पापो की सजा देनी होती है तो में सबसे पहले उसके विवेक और बुद्धि को हर लेता हु . पर यह काम मैं मेरे भक्त के लिए नहीं करता हु चाहे उसने कितने ही पाप किये हो . क्यों की वह भक्त अब पूरी तरह से  मेरे को समर्पित हो गया है . मैं केवल प्रकृति के माध्यम से उन्ही का नाश करता हु जो मेरे बनाये नियमो का पालन नहीं करते है या मेरे भक्तो को सताते है . में मेरे भक्त के लिए सारे नियम तोड़ देता हु पर किसी और को मेरे नियमो को नहीं तोड़ने देता हु. अर्थात पूरी प्रकृति मेरे अधीन है मै प्रकृति के अधीन नहीं हु. पर यदि कोई भी व्यक्ति  मेरे इस उपरोक्त गुरु(जो ऊपर परमात्मा उदाहरण के माध्यम से बात कर रहे थे ) की निंदा करता है , उससे घृणा करता है तो मैं उसको भी नियमानुसार सजा देता हु . मैं सभी के लिए निष्पक्ष हु .

 

लहुसन प्याज के बारे में परमात्मा क्या कहते है ?

जिसने अपने मन पर विजय प्राप्त करली है वह इनसे अप्रभावित रहता है . खाये तो ठीक , ना खाये तो भी ठीक .

पर जो गृहस्थ जीवन में है , अपने शरीर को स्वस्थ रखना चाहता है , जिसे बेक्टरीया वायरस से डर लगता है , जो अभी संसार को भोगना चाहता है , जो अभी परमात्मा की लीला का आनंद लेना चाहता है , जिसे शारीरिक सुख चाहिए , जो खेती किसानी करता हो , जो शरीर से बहुत परिश्रम करता हो , जो मानसिक कर्म के बजाय शारीरिक कर्म ज्यादा करता हो , उसको अपने इस शारीरिक अस्तित्व की रक्षा के लिए लहुसन प्याज का उचित मात्रा में सेवन करना चाहिए. जो की यह सब भोग उसके गुरु पहले कर चुके है . जब इन गुरुओ को इनकी व्यर्थता का पता लगा तो उनसे लहुसन प्याज अपने आप छूट गए उनको छोड़ना नहीं पड़ा . पर ये अब अपने शिष्यों से बिना परमात्मा की महिमा के अभ्यास के लहुसन प्याज छुड़ा रहे है और शिष्ये छोड़ नहीं पा रहे है क्यों की उनकी चेतना अभी लहुसन प्याज का भोग करना चाहती है .

किसी भी वस्तु का त्याग उसकी व्यर्थता का पूर्ण अनुभव होने पर स्वत् हो जाता है क्यों की अब ऐसे व्यक्ति में इस वस्तु का भोग करने वाली चेतना का थोड़ा सा भी अंश नहीं बचा है . यह अनुभव परमात्मा की महिमा का निरन्तर अभ्यास करने से होता है .

 

लहुसन प्याज के बारे में जो भी बाते समाज मै प्रचलित है या वेद शास्त्रों मे वर्णन है क्या वे सभी बाते सही है ?

परमात्मा की महिमा मे परमात्मा इस प्रश्न  का उत्तर निम्न प्रकार से देते है :

मेरे प्रिये तनुज , हां सभी बाते सही है पर आंशिक सत्य है पूर्ण सत्य नहीं है . कैसे ? मे तुम्हे समझाता हु , जैसे कोई व्यक्ति लगातार लहुसन प्याज का उचित मात्रा से ज्यादा सेवन करके अपने शरीर का बल बड़ा रहा है और फिर शरीर से अप्राकृतिक भोग कर रहा है जैसे मारपीट करता है , अय्यासी करता है , बिना आवश्यकता के मैथुन करता है , बहुत अधिक शारीरिक श्रम करता है और फिर भी खुश रहता है तो ऐसा व्यक्ति धीरे धीरे बीमारियों की गिरफ्त मे आने लगता है उसको पता भी नहीं चलता है की वह अधोगति की तरफ बढ़ रहा है क्यों की इनके अधिक सेवन से दिमाग कमजोर होने लगता है लहुसन प्याज हमारे पाचनतंत्र के लिए उत्प्रेरक का काम करते है अर्थात यह स्वाद ग्रंथियों को जगाते है . जैसे हमारी भोजन मे रूचि नहीं है तो ये भोजन के लिए रूचि पैदा करते है . जैसे भोजन मे रूचि  पैदा करने के लिए कई सज्जन आचार का सेवन करते है जो लहुसन प्याज से भी ज्यादा तीव्र रूचि पैदा करते है . इसलिए इनका सेवन बड़ी सावधानी के साथ करना चाहिए . पर जो सज्जन परमात्मा की महिमा का अभ्यास निरन्तर करने लगता है उसको अपनी जीभ के स्वाद पर विजय प्राप्त हो जाती है . फिर वह सुखी रोटी भी बड़े चाव से खा लेता है . जैसे वत्स एक छोटा बच्चा सुखी रोटी के ग्रास को मुँह मे रबडता रहता है उसको सुखी रोटी बहुत मीठी लगती है क्यों की अभी उसका मन निर्मल है उसका मेरे से अभी घनिष्ठ सम्बन्ध है . धीरे धीरे उसको घरवाले और समाज के लोग ज्ञान के डोज दे देके मुझसे दूर करते जाते है और वह मासूम बच्चा मेरे मायाजाल मे फंस जाता है पर फिर भी मै उसे निरन्तर मेरी याद दिलाता रहता हु चाहे चोट के रूप मे, चाहे किसी दर्द के रूप मे , या किसी और कष्ट के रूप मे . वत्स मै मेरे बच्चो को सँभालने के लिए अनेक रूपों मे आता हु . पर मुझे वो ही बच्चा पहचान पाता है जिसको केवल मेरे ऊपर  पूर्ण विश्वास होता है . तो मै समझता हु मेरे प्रिये वत्स आज आपको लहुसन प्याज के बारे मे काफी जानकारी मिल गयी है . आगे भी समय समय पर मै बताता रहूँगा .

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