भाग 4
भक्त : हे
परमात्मा ये आकर्षण का सिद्धांत(law of
attraction ) क्या है?
भगवान : मेरे
प्रिये वत्स आपने बहुत अच्छा प्रश्न किया है . आकर्षण के सिद्धांत में मेने पृथ्वी
पर लगभग सभी मनुष्यों को उलझा रखा है . हर वह चीज़ जो व्यक्ति मन से हर पल सोच रहा
है (मन की गहराई के तल पर) उसको समय के
साथ खुद की और आकर्षित कर रहा है . किसी भी व्यक्ति को कोई दूसरा व्यक्ति सम्मोहित
नहीं कर रहा है बल्कि अपनी खुद की पुरानी सोच के कारण वह खुद ही खुद से सम्मोहित
हो रहा है . अर्थात उसके मन में जो अनंत जन्मो से सोचने के नमूने (pattern) मन की भीतरी सतहों पर अंकित है (जैसे मेमोरी चिप में डाटा
जमा होता है) उन नमूनों के आधार पर ही वह मनुष्य खुद के संसार की रचना कर रहा है .
इन नमूनों को संचित कर्म भी कहा जाता है और प्रारब्ध भी कहा जाता है . और कई बार
इनको कर्म फल भी कहा जाता है .
भक्त : हे न्यायकारी इनको कर्म फल कब कहा जाता है ?
भगवान : वत्स जब किसी व्यक्ति के माध्यम से कोई कर्म इतनी तल्लीनता के साथ किया गया हो की उसके परिणाम और काम करने की शैली में बहुत कम अंतर हो (बहुत कम दूरी हो ). जैसे बहुत ही प्रगाड़ भक्ति भाव से किया गया कोई कर्म . ऐसे कर्म के फल को घटित होने में ज्यादा समय नहीं लगता है . ऐसे व्यक्ति की मुझसे दूरी बहुत ही कम होती है . ऐसा व्यक्ति हर पल मेरे बारे में ही सोचता है . वह काम करते हुए यह महसूस करता है की यह काम मै नहीं मेरे परमात्मा कर रहे है और उसको यह चिंता नहीं रहती है की इसका परिणाम क्या होगा . क्यों की वह धीरे धीरे मुझ में रमने लगता है . इसलिए उसको कोई भी काम करते हुए बहुत ही सुख और शांति का अनुभव होता है . ऐसे व्यक्ति का मन बहुत निर्मल होने लगता है . उसके मन में ज्यादा गहरे तल नहीं होते है अर्थात उसके मन के भीतर जो संचित कर्मो का नमूना होता है वह बहुत ही साफ़ सुथरा होता है उसके मन के भीतर ज्यादा प्रकार के संचित कर्म नहीं होते है . उसकी छवि बहुत ही साफ़ सुथरी होती है .
भक्त : हे निराकार क्या आप मुझे एक कर्मयोगी के बारे में बता रहे हो ?
भगवान : ठीक समझा तुमने मेरे बच्चे . कर्मयोगी वह होता है जो अपना कोई भी काम इतनी एकाग्रता के साथ करता है की वह कर्मो और उनके फलों का बोझ अपने सिर पर लेकर नहीं चलता है . अर्थात अपने मन में मेरे शिवा किसी और की चाहत नहीं रखता है . वह मेरे लिए कर्म करता है . उसको मेरे लिए कर्म करने में ही इतना आनंद आता है की उस आनंद की अनुभूति के कारण वह उस कर्म का फल ही भूल जाता है . इसलिए उसके जीवन में उसके संचित कर्मो का कोई खास प्रभाव नहीं होता है अर्थात वह सुख दुःख से ऊपर उठ जाता है .
भक्त : हे सर्वज्ञ आप मुझे भक्तियोग और कर्मयोग के बारे में विस्तार से समझाए .
भगवान : वत्स धीरज रखो मै तुम्हे अब भक्तियोग और कर्मयोग के बारे में विस्तार से समझाता हु . यदि संसार में कोई भी व्यक्ति भक्तियोग के माध्यम से मुझे जानना चाहता है तो वह हर पल मेरे बारे में ही चिंतन करता है . ऐसे व्यक्ति को पूर्ण रूप से मेरे को समर्पित होना होता है . उसकी मुझे पाने के अलावा कोई और इच्छाये नहीं होती है . वह भोजन , पानी , मौसम , देश , काल , परिस्थिति इत्यादि से अप्रभावित रहता है . वह संसार के सभी जीवों को एक सामान दृष्टि से देखता है . वह सभी जीवों में मेरा ही रूप देखता है यदि वह मेरी भक्ति मेरा साकार रूप मानकर करता है . और यदि वह मुझे निराकार मानकर मेरी भक्ति करता है तब तो वह वायु , आकाश , अग्नि , पृथ्वी जैसे मेरे सभी साकार रूपों और इनके अलावा जो शेष बचता है उन सभी में मुझे ही देखता है . वह यह चिंता नहीं करता है की उसका परिवार कैसे चलेगा , कल क्या होगा. उसको किसी भी काम की चिंता नहीं रहती है . उसको खुदके भोजन पानी के बंदोबस्त की भी चिंता नहीं रहती है . ना संसार में किसी से उसको डर लगता है . वह पूर्णतया निष्फिक्र हो जाता है .
भक्त : हे अंतर्यामी फिर ऐसे व्यक्ति को जीवित रहने के लिए भोजन पानी समय पर कैसे मिलेगा ?भगवान : मेरे लाल आप तो उसके जीवित रहने के लिए भोजन पानी के बारे में ही सोच रहे हो मै तो उसकी हर जरूरत का इंतजाम उसको जरुरत महसूस हो उससे पहले ही कर देता हु . जैसे वह किसी कारणवश अपने साथियो के साथ जंगल में फंस गया हो और मौसम खराब हो और उनको एक नदी पार करके ही अपने घर आना पड़े और उस भक्त के अलावा और सभी उसके दोस्त तैरना जानते हो तो वे सब तो तैरकर अपने अपने घर चले जायेंगे और वह भक्त जंगल में ही रह जाये . तो मै उसके लिए मौसम को ही बदल देता हु ताकि वह अपने रोजमर्रा के रास्ते से ही जंगल से घर चले जाये . या फिर मै कोई और व्यवस्था करता हु . यह मै प्रकृति के सभी नियमों को देखकर करता हु . यदि मुझे ऐसे भक्त के लिए प्रकृति का नियम भी बदलना पड़े तो मै उसमे भी देर नहीं करता हु . क्यों की मै प्रकृति के अधीन नहीं हु , प्रकृति मेरे अधीन है .
No comments:
Post a Comment
परमात्मा की महिमा में आप सभी का हार्दिक अभिनन्दन है