Saturday, April 27, 2024

संसार में बहुत आनंद है - दिव्य वाणी

ताम्बा कांसी के बर्तनों का सही प्रयोग | परमात्मा की महिमा 
इस वीडियो में पुरे व्येज्ञानिक तथ्यों के आधार पर ताम्बा कांसी के बर्तनों का सही प्रयोग कैसे करे यह समझाया गया है . ताम्र पात्र के जल के फायदे , ताम्र पात्र के जल के नुकसान, कांसी की थाली के प्रयोग , कांसी की थाली में भोजन के फायदे , कांसी धातु का प्रयोग , पूजा पाठ में कांसी की थाली , भगवान को सबसे उत्तम भोग क्या पसंद है , भगवान के चांवल क्यों चढ़ाते है , भगवान के मूंग क्यों चढ़ाते है , शनिदेव के उड़द की दाल क्यों चढ़ाते है , शंकर भगवान के फल क्यों चढ़ाते है , मानव के लिए उत्तम आहार क्या है . धन्यवाद जी . मंगल हो जी . 

Wednesday, April 24, 2024

ये पीजिये अमृत तुल्य चाय

ये पीजिये अमृत तुल्य चाय | परमात्मा की महिमा 
इस वीडियो में एक ऐसी चाय बनाने की विधि बताई है जो प्राकृतिक है , प्रभु को प्यारी है , शक्तिवर्धक चाय है , रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली चाय , पेट साफ़ करने वाली चाय , बॉडी सेल्स को रिपेयर करने वाली चाय , साइड इफेक्ट्स को ख़त्म करने वाली चाय , बॉडी को डीटॉक्स करने वाली चाय, गैस कब्ज दूर करने वाली चाय , अहिंसात्मक चाय , गुणकारी चाय , ताकतवर चाय , चाय से सिर दर्द दूर करे , मूड खुश करने वाली चाय , बिना दूध की चाय , स्वादिष्ट चाय , पोस्टिक चाय , गजब की चाय , इस चाय के पिने के फायदे , शुगर दूर करने वाली चाय , बीमारियों से बचाने वाली चाय , ह्रदय को पवित्र करने वाली चाय , इस चाय से हाथ पैरो का दर्द गायब , इस चाय से शरीर में चमक , इस चाय से आँखों की ज्योति बढ़ती है , इस चाय से मन शांत होता है , इस चाय से जरुरी भूख लगती है , इस चाय से पाचनतंत्र मजबूत होता है . धन्यवाद जी . मंगल हो जी . 

Tuesday, April 23, 2024

आप के प्रश्नों का सही जवाब इस अभ्यास से मिलता है

आप के प्रश्नों का सही जवाब इस अभ्यास से मिलता है | परमात्मा की महिमा 
इस वीडियो में एक ऐसा योगाभ्यास दिया गया है जिसे यदि कोई भी साधक विश्वास करके अभ्यास शुरू करता है तो ऐसे साधक को धीरे धीरे पता चलने लगता है की उसके कष्टों का कारण क्या है , पुराना बचपन कैसे लोटे , बुरे कर्मफलों से कैसे बचे , विवादों से कैसे निपटे , चेहरे पर सच्ची मुस्कान कैसे लाये , शरीर में दर्द क्यों होता है , सबसे शुद्ध दवा कोनसी है , चंचल मन को कैसे शांत करे , खुद को कैसे पहचाने , नकारात्मक शक्तियों से कैसे बचे , हर पल खुश कैसे रहे , सच्चा दोस्त कैसे मिले , पाचनतंत्र कैसे ठीक हो , कमरदर्द कैसे ठीक हो , पेट साफ़ कैसे हो , त्वचा रोगों से कैसे बचे , चक्कर आना , सिर घूमना , आंधा शीशी , शुषुम्ना नाड़ी में कैसे प्रवेश करे , ध्यान कैसे करे , प्रभु से कैसे मिले , प्रभु को कैसे याद करे , प्रभु कहा मिलेंगे , क्या स्वर्ग नरक होते है , स्वर्ग में कैसे प्रवेश करे , लाभ हानि के मोह से कैसे बचे , लालच से कैसे दूर हो . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .

Friday, April 19, 2024

सास बहु की दुश्मनी प्रेम में बदल गयी

सास बहु की दुश्मनी प्रेम में बदल गयी | परमात्मा की महिमा ➤इस वीडियो में एक सच्ची घटना के माध्यम से यह समझाया गया है की यदि आप खुद सच में भीतर से यह चाहते हो की मै घर में कैसे खुश रहु, सबसे मिलकर खुश कैसे रहु , मुझे सभी लोग पसंद करे , मै खुद से और दुसरो से शिकायते कैसे बंद करू , मेरी किसी से दुश्मनी ना हो , मै सभी प्रकार के डरो से कैसे मुक्त होऊ , सास बहु का झगड़ा कैसे ख़त्म हो ,घर की लड़ाई कैसे बंद हो , घर में सभी लोग राजी कैसे रहे , घर को समृद्द कैसे बनाये , सास बहु का प्रेम , सास बहु की अनबन , सास का बहु को परेशान करना , बहु का सास को परेशान करना . ➤ सास की शिकायत पति से करना , बहु की शिकायत पति से करना , सास और बहु की कहानी , सास और बहु की परेशानी , सास बहु में शंका , सास से परेशान बहु , बहु से परेशान सास , सास बहु से परेशान पति , सास बहु की पिटाई , बहु की पिटाई , सास की पिटाई , सास बहु की मित्रता आदि के बारे में सच्चा ज्ञान . ➤आप सभी मित्रों से हमारा विनम्र निवेदन है की आप इस चैनल से एक टीवी एपिसोड की तरह जुड़े और परमात्मा की महिमा का अभ्यास निरन्तर करे . धीरे धीरे आप को पता चलने लगेगा की आप सर्वव्यापी हो और आप को हर पल ख़ुशी का अनुभव होने लगेगा . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .

Wednesday, April 17, 2024

इस अभ्यास से मन को एकाग्र होना ही पड़ता है

इस अभ्यास से मन को एकाग्र होना ही पड़ता है | परमात्मा की महिमा ➤इस वीडियो में यह समझाया जा रहा है की किस प्रकार मन को एकाग्र करे , मन की कार्य प्रणाली को कैसे समझे , मन किसे कहते है , मन को कैसे जाने , मन को किसी एक काम पर कैसे लगाए , मन एक काम पर क्यों नहीं रुकता है , किसी को अपनी बात कैसे समझाए , मन में उठने वाले विचारो को कैसे शांत करे , शुद्ध खाने पर भी बीमार क्यों होते है ,सबकुछ होते हुए हम अशांत क्यों होते है , प्रभु को कैसे प्रसन्न करे , भक्ति के लिए मन को कैसे मनाये . ➤ पुराने पापों से कैसे मुक्त हो , प्राकृतिक खेती कैसे करे , बुरे कर्मो से कैसे बचे , मन को आज्ञा चक्र पर कैसे लाये , घर में शांत कैसे रहे , कार्यक्षेत्र पर खुश कैसे रहे , सच्ची ख़ुशी कैसे मिले , लड़ाई को प्रेम में कैसे बदले , खुद के साथ कैसे खुश रहे , संसार में खुश कैसे रहे , मन की शक्ति को कैसे जगाये , सभी डरो से कैसे मुक्ति मिले , चिंतामुक्त जीवन कैसे जीए , सही धन कैसे कमाए , दुसरो को कैसे सुधारे . ➤आप सभी मित्रों से हमारा विनम्र निवेदन है की इस चैनल से एक टीवी एपिसोड की तरह जुड़े और निरन्तर परमात्मा की महिमा का अभ्यास करके खुद के स्वरूप को जाने . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .

Monday, April 15, 2024

हर परिस्थिति में खुश रहने का विज्ञानं

हर परिस्थिति में खुश रहने का विज्ञानं | परमात्मा की महिमा 
इस वीडियो में पुरे व्येज्ञानिक तथ्यों के साथ यह समझाया जा रहा है की कैसे हम हर परिस्थिति में खुश रहे , हमारी ख़ुशी की चाबी किसके पास है , ख़ुशी को कैसे पैदा किया जाता है , अपमान का बदला कैसे ले , ख़ुशी का रसायन कैसे बनता है , ख़ुशी का रहस्य , संचित कर्मो को कैसे बदले , दुःख को सुख में कैसे बदले , डर को ख़ुशी में कैसे बदले , घर का माहौल खुशनुमा कैसे करे , घर में शांति कैसे लाये , ईर्ष्या को प्रेम में कैसे बदले , सबको खुश कैसे करे , खुद को पवित्र कैसे करे , बीमारी और ख़ुशी का सम्बन्ध , प्रभु से प्रेम कैसे करे , घरेलु झगड़ो से कैसे मुक्ति मिले , जहर को अमृत में कैसे बदले , खून को शुद्ध कैसे करे , स्वभाव को मीठा कैसे करे , परिवार में खुश कैसे रहे , सबसे मिलकर कैसे रहे , खुश रहने के उपाय , हमे दुखी कोन करता है , खुश रहने के चमत्कार , खुश रहने के फायदे , ख़ुशी का शरीर पर प्रभाव , क्या हमें कोई दुसरा दुःख पहुंचाता है . आप सभी मित्रों से हमारा विनम्र निवेदन है की इस चैनल से एक टीवी एपिसोड की तरह जुड़े . क्यों की यह चैनल आप को परमात्मा से जोड़ता है यदि आप इसका निरन्तर अभ्यास करते है तो . धन्यवाद जी . मंगल हो जी . 

Saturday, April 13, 2024

परमात्मा की महिमा का अभ्यास - अध्याय 3

अध्याय  3 में जिन साधकों ने अध्याय 2 में समझाये गये अभ्यास को सफलतापूर्वक सिद्द कर लिया है वे ही इस आगे के अभ्यास को बहुत ही सहजता और ख़ुशी के साथ सिखने में सफल होते है . और जो साधक बीच बीच में से अध्यायों में बताये गये अभ्यासों को करते है उनको आंशिक सफलता ही मिलती है . क्यों की हमें लगता है की यह तो मुझे आता है , वह भी मुझे आता है पर क्या वाकई में आता है इसका पता साधक को उस क्षण चलता है जब साधक समय पड़ने पर स्थिरप्रज्ञ रहता है , शांत रहता , प्रभु में लीन रहता है , खुश रहता है . अब बात करते है आगे के अभ्यास के बारे में . जब हम धीरे धीरे श्वास पर ध्यान देने लगते है जैसे कोई काम करते हुए श्वास को भी अनुभव कर रहे होते है , बैठे है तब भी श्वास की अनुभूति करते है , तेज दौड़ते है तब भी श्वास की गति को अनुभव करते है , भूमध्य(आज्ञाचक्र) को याद रखते हुए कोई काम करते है साथ ही श्वास को भी अनुभव कर रहे होते है , पैर कहा है , हाथ कहा है , सिर कहा है , कमर कहा है इस प्रकार शरीर के ज्यादा से ज्यादा हिस्सों को अनुभव करने लग जाते है , या कभी अचानक से कोई विचार आ जाये तो अब हम इससे चकित होने के बजाये इसको ध्यान से देखने में सक्षम हो जाते है , हमारा मन अपने आप बैठकर ध्यान करने के लिए राजी होने लगता है . क्यों की हमारा मन आदत के साथ काम करता है . एक बार कोई भी आदत मन को भा जाती है तो हमारा मन उसको बार बार दोहराता है(दोहराना मन की स्वभाविक प्रकृति है) . इसलिए इस अभ्यास में सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र होकर हम यह पता करने में सफल होते जाते है की किस आदत को रूपांतरित करना है . यह अभ्यास हमें सभी प्रकार की गुलामी से मुक्त कर देता है . जैसे हमे ज्यादा खाने की आदत कई वर्षो से पड़ी हुयी है तो हम सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र होकर इस आदत के बीज को खोज निकालते है और बहुत ही प्रेम और श्रद्धा , भक्ति से इसे हम जिस किसी रूप में भी हम चाहते है उसमे आसानी से बदल देते है . क्यों की सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र होने का अर्थ है परमात्मा की छाया से जुड़ना और इस छाया को पकड़ते पकड़ते हम अपने परम पिता परमेश्वर (परमात्मा) को पकड़ने में 100 % सफल हो जाते है . जब हम मन को भूमध्य पर एकाग्र करके और श्वास को अनुभव करते हुए शांति से बैठकर भोजन करते है तो धीरे धीरे हमें पता लगने लगता है की मुझे कितना भोजन खाना है . हमें ज्यादा भोजन करने के बाद होनी वाली परेशानियों का अनुभव पहले से होने लगता है और परमात्मा स्वयं बताते है की मेरे बच्चे अब भोजन करने की क्रिया को विश्राम देवे आप के शरीर को स्थायी रूप से स्वस्थ रखने के लिए उचित और उपयुक्त आहार आप ने कर लिया है . जब साधक अपने भीतर से परमात्मा की यह आवाज सुनता है तो वह बहुत ही ख़ुशी के साथ आगे भोजन करने की क्रिया को रोक देता है और इसके बाद दिन भर स्फूर्ति महसूस करता है . ऐसा क्यों ? . क्यों की साधक ने जबरदस्ती अपने मन को मारकर ज्यादा भोजन करने की क्रिया को नहीं रोका है बल्कि अपने मन को जगाया है की हे मेरे प्रिये मन आप हमारे परम पिता की आवाज को सुने ,देखो वे क्या कह रहे है ?. जब बात परमात्मा की आ जाती है तो मन की हिम्मत नहीं की वह अपने मालिक की बात ना सुने .  मन अपने मालिक (परमात्मा) की बात तभी सुनता है जब हम (चेतना) मन पर निगरानी रखते है अर्थात मन का जो घनीभूत रूप शरीर है उसमे सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र होकर कोई भी क्रिया करते है तब हमारा मन हमारी बात मानने लग जाता है . फिर तो यह मन हमारी ऐसी ऐसी मदद करता है जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते . यह मन ही हमारे शरीर का सॉफ्टवेयर है , मन ही इस शरीर का निर्माता है , मन ही भोजन करता है , मन ही पानी पीता है , मन ही सभी सुख सुविधाएं भोगता है अर्थात मन ही संसार है , मन ही माया है , मन ही हमें भगवान से मिलाता है . अर्थात मन को पकड़ लो परमात्मा पकड़ में आ जायँगे . मन को पकड़ने की सर्वोच्च एवं सबसे सरल विधि है सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र होना . क्यों की सिर से लेकर पाँव तक की यह जो रचना है जिसे संसारी भाषा में शरीर कहते है यह मन का ही ठोस रूप है और सूक्ष्म रूप में हमारा मन पुरे ब्रह्माण्ड में फैला हुआ है . अब पुरे ब्रह्माण्ड में तो आसानी से एकाग्र हुआ नहीं जा सकता है . क्यों की जब हम हमारे शरीर के बाहर किसी दूसरी वस्तु में एकाग्र होते है तो उस वस्तु में एकाग्र होना इसलिए कठीन होता है की वह वस्तु दृश्य रूप में हर पल हमारे साथ नहीं रहती है . इसलिए जितनी देर तक हम उस वस्तु में एकाग्र होते है उससे हमारा मन कुछ समय के लिए तो एकाग्र हो जाता है पर जैसे ही कोई तीव्र विचार आता है हमारी एकाग्रता भंग हो जाती है अर्थात हमारे शरीर में जो परिवर्तन होता है उसको हम ख़ुशी के साथ स्वीकार नहीं कर पाते है. क्यों की हमने शरीर में होने वाले इन परिवर्तनों के प्रति जाग्रत होने का तो अभ्यास किया ही नहीं हमने तो उस बाहरी वस्तु को देखकर या मन में कल्पना करके हमारा ध्यान उस वस्तु पर लगाते है या यू कहे लगातार हमारा मन उस वस्तु पर ही रहे यह विचार करते है . पर इस विधि की आंशिक सफलता का कारण यह है वस्तु और शरीर दोनों ही हर पल परिवर्तित हो रहे है . जब हम हमारे पास वाली वस्तु(शरीर) में होने वाले परिवर्तनों को ही ठीक ठीक समझने में कठिनाई का अनुभव करते है तो जो वस्तु हमारे शरीर से दूर है या हमारी कल्पना में है उसमे होने वाले परिवर्तनों को समझने में तो और भी ज्यादा कठिनाई अनुभव करेंगे . इसलिए परमात्मा की महिमा का अभ्यास कहता है की सबसे बड़ी भक्ति सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र होते हुए जीवन की सभी क्रियाये करे तो जीवन में हर पल आनंद की अनुभूति होना शुरू हो जाती है . यह है परमात्मा की महिमा के अभ्यास का चमत्कार . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .

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Thursday, April 11, 2024

परमात्मा की महिमा का अभ्यास - अध्याय 2

परमात्मा की महिमा का अभ्यास - अध्याय 2 | परमात्मा की महिमा ➤यदि आप ने अभी तक अध्याय 1 में समझाये गए अभ्यास को सही से नहीं समझा है तो पहले 'परमात्मा की महिमा का अभ्यास - अध्याय 1' वीडियो देखे . इस वीडियो में हम परमात्मा की महिमा का अभ्यास आगे बढ़ा रहे है . बास्या थूक के चमत्कार , शरीर से गंध का जड़ से इलाज , आँखों में दर्द का रामबाण इलाज , खुद के भीतर उजाला कैसे करे , दवा लेना गलत या सही , दवा की आदत से मुक्ति , विचारों के द्वन्द से मुक्ति . ➤बीमारी के डर से मुक्ति , खुद में एकाग्र कैसे हो , आकर्षण के सिद्धांत के पीछे का विज्ञानं , लॉ ऑफ़ अट्रैक्शन ऐसे काम करेगा , अप्रिय दृश्य को भी आप प्यार करेंगे , आप कुछ भी प्राप्त कर सकते हो , जीवन की जंग को जीतने का सबसे आसान तरीका , बीमारी कितनी भी भयंकर हो आप को डर नहीं लगेगा , आप को सच्चा प्यार ऐसे मिलेगा , दांतो को मजबूत करे , हड्डियों को मजबूत करे आदि इस अभ्यास से 100 % संभव है . ➤हमारा आप सभी मित्रों से यह विनम्र निवेदन है की इस चैनल से एक टीवी एपिसोड की तरह जुड़े और नियमित अभ्यास करे . पहले बहुत ध्यान से इसके वीडिओज़ को देखे और इसके आर्टिकल्स को ध्यान से पड़े . बार बार देखने और पड़ने से अभ्यास करने का मन होने लगता है और जैसे ही आप बहुत ही ख़ुशी के साथ सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र होने का अभ्यास करने लगेंगे तो फिर धीरे धीरे आप को स्थायी ख़ुशी की अनुभूति होने लगेगी . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .

Tuesday, April 9, 2024

परमात्मा की महिमा का अभ्यास - अध्याय 1


परमात्मा की महिमा का अभ्यास - अध्याय 1 | परमात्मा की महिमा ➤इस वीडियो में हम परमात्मा की महिमा का अभ्यास शुरू से समझा रहे है की किस प्रकार एक नया साधक इस अभ्यास को शुरू करे . इसमें अभ्यास दिया जा रहा है की कैसे हम आँखों का सदुपयोग करे , कानो का सही प्रयोग कैसे करे , स्पर्श का प्रयोग सही कैसे करे , घृणा से मुक्ति कैसे मिले , कर्कश आवाज को कैसे सहन करे , आँखों में ठंडक कैसे लाये , आँखों की सभी बीमारियों से कैसे बचे , कान के रोगो को कैसे ठीक करे . ➤ शरीर की ऊर्जा कैसे बढाए , शत्रुता को मित्रता मे कैसे बदले , मन को भूमध्य पर कैसे लाये , मन को श्वास पर कैसे लाये , मन को कुठस्थ पर कैसे लाये , शुषुम्ना नाड़ी क्या है , दुबलेपन को कैसे दूर करे , मोटापे को कैसे दूर करे , संसार में सुखी कैसे रहे , शरीर को स्वस्थ कैसे करे , मन को स्वस्थ कैसे करे , बीमारियों का इलाज कैसे करे , शांत कैसे रहे , शांति से कैसे बैठे , मन की शक्ति को कैसे बचाये , मन की शक्ति को कैसे बढाए , सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र कैसे हो . ➤ हमारा आप सभी मित्रों से यह विनम्र निवेदन है की इस चैनल से एक टीवी एपिसोड की तरह जुड़े और नियमित अभ्यास करे . पहले बहुत ध्यान से इसके वीडिओज़ को देखे और इसके आर्टिकल्स को ध्यान से पड़े . बार बार देखने और पड़ने से अभ्यास करने का मन होने लगता है और जैसे ही आप बहुत ही ख़ुशी के साथ सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र होने का अभ्यास करने लगेंगे तो फिर धीरे धीरे आप को स्थायी ख़ुशी की अनुभूति होने लगेगी . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .

Sunday, April 7, 2024

परमात्मा की महिमा का अभ्यास - अध्याय 1

अध्याय 1 में हम जानेंगे की किस प्रकार एक नया साधक इस योग का अभ्यास अपने गुरु के मार्गदर्शन में करता है ?. सबसे पहले इसमें गुरु अपने इन नए साधको के आचरण को परखता है , उनकी जीवन शैली को समझता है , वे माया में कितने गहरे उलझे है इसका पता करते है . उनकी मनोदशा को पड़ता है . इन साधको का खुद में कितना विश्वास है , परमात्मा में कितना विश्वास है , इनका ह्रदय कठोर है या मुलायम है . गुरु यह पता करता है की इन साधको की शरीर को लेकर क्या मान्यता है , वे संसार की भौतिक वस्तुओ को किस दृष्टि से देखते है , गुरु इनके स्वभाव का पता करता है . इस प्रकार जरुरी जानकारी पता करके गुरु इनको इनकी सुविधानुसार यह योगाभ्यास सिखाता है . जैसे कोई नया साधक बहुत ही ज्यादा चंचल है और हर काम बहुत तेजी में करता है तो गुरु जान जाता है की यह वायु दोष से पीड़ित है . तो फिर परमात्मा की महिमा के अभ्यास में ऐसे साधक को वे क्रियाये ही कराई जाती है जिनके करने से उसका यह दोष समता में आ जाये अर्थात योग के नाम पर उसको शुरू में शीर्षासन नहीं कराया जाता है . उसको तेज गति वाले दण्डबैठक नहीं कराये जाते है . ऐसे साधक को शुरू में उसकी रूचि अनुसार कोई काम भी करने को दिया जा सकता है ताकि उस काम के माध्यम से उसका मन , उसके शरीर के नजदीक आने लग जाये . और यदि गुरु खुद इस अभ्यास में पारंगत नहीं है और ऐसे साधक को जल्दी फायदा पहुंचाने के चक्कर में ऐसी क्रियाये कराने लग जाए की उसका वायु दोष बढ़ने लगे तो फिर साधक को यह योग करने में डर लगने लगता है और ऐसा साधक बाहर जाकर सब को कहने लगता है की यह योग सही नहीं है . इसलिए इस योगाभ्यास की पहली शर्त ही यह है की गुरु खुद इसमें 100 % पारंगत हो या फिर जितना प्रतिशत उसको यह अभ्यास आता है उतना ही सिखाये . नए साधको को पहले बैठना सिखाया जाता है . उनको गुरु केवल बैठने के लिए कहता है और फिर यह चेक करता है की ये साधक शांति से बैठे है या बार बार हिल रहे है , इधर उधर देख रहे है , या कुछ भी ऐसा कर रहे है जिससे गुरु तुरंत यह भाप लेता है की ये साधक अभी सहज स्थिति में नहीं है . और कोशिस भी नहीं कर रहे है की इनको खुद पर विश्वास होने लग जाए . ऐसे साधको के मन और शरीर में जो दूरी है उसको तीव्र गति से कम करने के लिए इनको कोई ऐसी चीज़ खिलाई जाती है जो इनको बहुत पसंद हो या फिर कोई ऐसा काम , या कोई दृश्य दिखाया जाता है जो इनको बहुत प्रिय हो . परमात्मा की महिमा के योगाभ्यास में कुल 1008 शारीरिक  क्रियाये  होती है .  

नया साधक L K  G / U K G का विध्यार्थी भी हो सकता है और बड़ी उम्र का पुरुष या महिला भी . यह अभ्यास इतना सरल और आनंददायक है की कोई भी इसे आसानी से कर सकता है पर सिखाने वाला गुरु और सिखने वाला शिष्य दोनों की इस अभ्यास में गहन रुचि होनी चाहिए . अध्याय 1 में पैदल चलना , कोई सामान्य काम करना , आपस में बात करना , ध्यान से सुनना , ध्यान से देखना , ध्यान से सूंघना और भी ऐसे तमाम प्रकार के कार्यो का अभ्यास कराया जाता है जिनको नए साधक ख़ुशी के साथ कर सके . क्यों की इस अभ्यास की दूसरी बड़ी शर्त यह है की अध्याय 1 के अभ्यास के दौरान शरीर और मन में चाहे कैसा भी परिवर्तन हो उसे पूर्ण मनोयोग से सच्ची ख़ुशी के साथ परमात्मा की अनुभूति मानकर ह्रदय से स्वीकार करना होता है . क्यों की कण कण में केवल परमात्मा का अस्तित्व है इसलिए ये परिवर्तन भी परमात्मा के अनुभव ही है . जब नया साधक सिर से लेकर पाँव तक में  एकाग्र होकर चलता है तो शुरू में बहुत अजीब सा लगता है और मन में तरह तरह के विचार उठने लगते है जैसे यह मै कैसे चल रहा हूँ , जो मुझे देख रहे है वे क्या सोचेंगे , ऐसे तो मै तेज चल ही नहीं सकता , कही में गिर नहीं जाऊँ , चक्कर आने जैसा लगने लगता है और भी कई प्रकार के परिवर्तन होने लगते है . पर यदि साधक दृढ़ संकल्प करले और दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ इन सभी परिवर्तनों को बहुत ही ख़ुशी के साथ स्वीकार करले की येही परमात्मिक अनुभूति है तो ऐसा साधक अध्याय 2 के अभ्यास के लिए तैयार हो जाता है. वरना अभी और मेहनत करने की जरुरत होती है . इस प्रकार अध्याय 1 समाप्त हुआ . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .

Friday, April 5, 2024

कर्म हमारा पीछा कैसे करते है ? youtube video

कर्म हमारा पीछा कैसे करते है ? | परमात्मा की महिमा 
इस वीडियो में यह समझाया गया है की कर्म हमारा पीछा कैसे करते है , प्रारब्ध किसे कहते है , भाग्य को कैसे बदले , खुद का भाग्य खुद कैसे लिखे , अपने भाग्य का निर्माता कैसे बने , मन को एकाग्र कैसे करे , भूमध्य पर मन को कैसे लाये ,  अच्छे कर्म क्या क्या है , बुरे कर्म क्या क्या है , क्या कर्म काटने ही पड़ते है , कर्मो की रेखा को कैसे बदले , कर्मो की गुत्थी को कैसे सुलझाए , कर्मो का लेखा झोखा , कर्मो के रोग , कर्म की पहचान , कर्मो का हिसाब किताब , पिछले कर्मो को कैसे जाने , गलत कर्मो को कैसे सही करे , कर्म से भाग्य को कैसे बदले , आगंतुक कर्मो को कैसे जाने , कर्म कैसे उलझाते है, बुरे कर्मो से कैसे बचे , अच्छे कर्मो की आदत कैसे बनाये , हम अच्छे इंसान कैसे बने , कर्मो को पवित्र कैसे करे , बुरे फल से कैसे बचे , प्रारब्ध भोगने से कैसे बचे , क्या प्रारब्ध भोगना ही पड़ता है , प्रारब्ध के डर से कैसे बचे , कर्मबंधन से कैसे मुक्ति मिले , कर्म किसे कहते है , हमारा भाग्य कैसे बनता है . आप सभी मित्रों से हमारा विनम्र निवेदन है की इस चैनल से एक टीवी एपिसोड की तरह जुड़े और इसे बहुत ही ध्यान से देखे , सुने , समझे और चिंतन मनन करके परमात्मा की महिमा का अभ्यास शुरू करे . क्यों की इस अभ्यास से ही हम हमेशा के लिए सुखी हो जाते है . धन्यवाद जी. मंगल हो जी . 

Wednesday, April 3, 2024

कर्म हमारा पीछा कैसे करते है ?

जब हम इस क्षण में किसी भी रूप में कैसा भी कर्म करते है तो उसकी स्मृति हमारे मानस पटल पर अंकित हो जाती है . और हमारा मन उस क्षण की घटना को सच मान लेता है . अब यदि उस क्षण कर्म करने से हमारे मन को सुखद अनुभूति हुयी है तो हमारा मन चाहता है की वह इस अनुभूति को दुबारा अनुभव करे और हमे फिर से वही कर्म करने को प्रेरित करता है . यदि हम उस कर्म के प्रति चेतना के स्तर पर सजग है तो उसी क्षण हम यह भी देखेंगे की यदि इस कर्म को करने से मुझे सच्ची ख़ुशी मिली है और यह मेरी आत्मा के कल्याण में सहायक है तो फिर से उस कर्म को हम दोहराएंगे, नहीं तो नहीं दोहराएंगे. 

और यदि हम उस कर्म के प्रति चेतना के स्तर पर सजग नहीं है तो भी उस कर्म को हम दोहराएंगे क्यों की हमें मन की किसी पुरानी आदत के कारण सुखद अनुभूति हुयी है . हमारा मन शुरू से अँधा है , माया है, अल्पविकसित है  तो यह सच्ची सुखद अनुभूति को नहीं पहचानता है . मन आदत के साथ काम करता है . मन को जो सुखद और दुखद अनुभूतियाँ होती है वे दोनों ही मायावी है और हमारी चेतना जब इन अनुभूतियों से बँध जाती है तो इसे ही कर्म का बंधन अर्थात कर्मबन्धन कहते है . हमारा मन प्रति क्षण काम करता है और हमारी जाग्रति के स्तर पर मानस पटल(अवचेतन मन में , मेमोरी चिप में , सुषुम्ना में ) पर इन अनुभूतियों को बहुत ही सूक्ष्म रूप में (ऊर्जा तरंगो के रूप में) अंकित करता जाता है जिन्हे स्मृतियाँ भी कहते है . और लगातार मन की इन स्मृतियों के कारण हमारा मन  इन कर्मो की  पुनरावृति करता है . मन इनकी पुनरावृति इसलिए करता है की जैसे हम रास्ते मे चलते हुए  आँखों  से हमारे पीछे एक कुत्ते को आते हुए देख लेते है और फिर सीधे चलते हुए भी वह कुत्ता हमारे मन में दीखता रहता है और हम सोचते है की कही यह कुत्ता मुझे काट नहीं ले . इसलिए हम दुबारा पीछे मुड़कर उस कुत्ते को देखते है तो इस बार वह कुत्ता और नजदीक आते हुए दीखता है तो हम सीधे चलते हुए अबकी बार मन में सोचते है की कही यह कुत्ता मुझे सच में काट नहीं ले . फिर पीछे मुड़कर हम उस कुत्ते को देखते है तो कुत्ता दूसरी दिशा में अर्थात हमारे से दूर जाते हुए दिखाई देता है . पर फिर भी मन में यह शंका बनी रहती है की कही यह कुत्ता वापस मेरे पीछे नहीं आ जाये . तो हम फिर मुड़कर देखते है तो पता चलता है की अब कुत्ता नहीं दिख रहा है . इसका मतलब यह हुआ है जब कुत्ता हमारे पीछे से पूर्ण रूप से जा चूका था तब भी हमारे मन में कुत्ते वाला दृश्य छप चूका था और हमारे मन में कुत्ते के प्रति यह स्मृति पहले से थी की कुत्ता काटता है इसलिए हम बार बार पीछे मुड़कर देख रहे थे अर्थात हमारा मन कल्पनाओ में जीता है . क्यों की मन खुद एक कल्पना मात्र है इसका अस्तित्व नहीं है केवल परमात्मा का अस्तित्व है .  इस पुनरावृति को ही कर्म का पीछा करना कहते है . धीरे धीरे ये स्मृतियाँ सघन रूप लेने लगती है जिसे बोलचाल की भाषा में शरीर कहते है . अर्थात हमारा शरीर हमारे मन का ही एक विस्तार रूप है . जो की हाड मांश के रूप में दीखता है जबकि सच्चाई यह है की यह हमारे संचित कर्मो का सघन रूप है . अर्थात यह सच में हाड मांश नहीं है . यह सब परमात्मा की माया के कारण होता है और स्वयं परमात्मा यह काम करते है और खुद का एक से अनेक होने का गुण प्रकट करते है अर्थात रचनाकार स्वयं इस शरीर रुपी रचना के रूप में प्रकट हो रहे है . जब हम परमात्मा की महिमा का अभ्यास करते है अर्थात सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र होकर जीवन की सभी क्रियाये करते है तब हमे इस सच का अनुभव होने लगता है और हमे लगने लगता है की मेरा खुद का अलग से कोई अस्तित्व नहीं है , मै शरीर नहीं हु , प्रभु स्वयं इस शरीर के रूप में कार्य कर रहे है और हम जागने लगते है , हमारी प्रभु से एकता स्थापित होने लगती है . अर्थात जब हम परमात्मा की महिमा का अभ्यास करने लगते है तो हमे हमारा मन दिखने लगता है , उसमे क्या क्या स्मृतिया जमा है अर्थात हमारे संचित कर्म हमे साफ़ साफ़ दिखाई देने लगते है और हमे यह मालूम चलने लगता है की कैसे हमारे मन में विचार एक्टिव होते है . अर्थात किस समय कोनसा विचार आ जाये अब यह हमारे वश में होने लगता है . हम विचारो को देखने लगते है .और हमे साफ़ साफ़ पता लगने लगता है कोनसा विचार मुझे किधर लेकर जा रहा है . जब हमारा मन पर पूर्ण नियंत्रण में आ जाता है तो हम हमारे मन को हमारी इच्छानुसार फिर से नए रूप में निर्मित करने में सक्षम हो जाते है . कैसे विचार को ऊर्जा में और ऊर्जा को परमाणु में और परमाणु को अणु में और अणु को तरंग में और तरंग को सघन रूप में अर्थात शरीर रूप में बदल सकते है . अर्थात जैसा हम शरीर , बाहरी भौतिक वस्तुए , सांसारिक वैभव , धन धान्य चाहते है , को मन के माध्यम से कल्पना करके बार बार अनुभव करके दृश्य जगत के रूप में प्रकट कर सकते है . क्यों की जब हम जैसा चाहते है वैसा हो चूका है ऐसा बार बार फील(अनुभव) करते है तो हमारा मन अपने आप उस अनुभव को अस्तित्व में लाने के लिए काम करने लगता है . जैसे यदि हम पतले है और मोटे होना चाहते है तो पहले हम यह अनुभव करना शुरू करते है की हम मोटे चुके है . हम हमारे शरीर को देखकर हमारे मन को यह विश्वास दिलाते है की देखो मेरा शरीर कितना मोटा हो गया है . हाथो को देखकर बहुत खुश अनुभव करते है की हाथ अब में जैसा चाहता था या चाहती थी वैसे हो गए है . ऐसी एक्टिंग करनी होती है यदि हमें हमारी दुबलेपन की पुरानी यादास्त को मोटेपन की यादास्त में रूपांतरित करना है तो . अब हमारी आत्मा(चाहे परमात्मा कहो) से हमें यह निर्देश प्राप्त होने लगते है की इस रूपांतरण के लिए मुझे क्या क्या कर्म करने बहुत जरुरी है . जैसे एक निर्देश यह प्राप्त होता है की इस क्षण में आप के शरीर का जो रूप है वह बहुत खूबसूरत है . अर्थात हमें खुद को पूर्ण रूप से स्वीकार करना होता है . क्यों की हमारे शरीर को जो हम आँखों से देख रहे है वो सच नहीं है बल्कि जो हम अनुभव कर रहे है वो सच है . यदि हम हमारे को बीमार अनुभव कर रहे है तो हम सच में बीमार नहीं है तो भी कुछ समय बाद बीमार होने लग जायेंगे . इसलिए हमें तुरंत सतर्क हो जाना चाहिए की हमारी चेतना किस अनुभव को अस्तित्व में लाने जा रही है . इसलिए हमारे मन को हमेशा एकाग्र रखने के लिए हमारा ध्यान हमेशा भूमध्य पर रहना चाहिए . यह दिव्य इच्छाशक्ति का केंद्र है और मन में यह कल्पना निरन्तर चलती रहनी चाहिए की मेरा शरीर जैसा में चाहता हु वैसा हो चूका है . तो इस एकाग्रता के साथ कल्पना के कारण मन की पुरानी स्मृतिया (शरीर में परिवर्तन) विलीन या नयी कल्पनाओं में रूपांतरित होने लगती है जिससे मन में (शरीर में ) कई प्रकार के परिवर्तन होने लगते है . क्यों की जब हम सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र होते हुए जीवन की सभी क्रियाये करते है तो जिन स्मृतियों को हम अब नहीं चाहते है उनकी हम पुनरावृति नहीं करते है और लगातार काफी समय तक इनकी पुनरावृति नहीं होने के कारण इनको आगे विकसित होने के लिए पोषण नहीं मिलता है और ये अनवांछित स्मृतिया निराकार में विलीन होने लगती है. यदि हम इन परिवर्तनों को बहुत ही प्रेम से स्वीकार कर लेते है तो हमारा यह रूपांतरण (ट्रांसफॉर्मेशन) 100 % सफल हो जाता है . इस ट्रांसफॉर्मेशन के दौरान जो कुछ भी स्टेप्स हमें लेने होते है वे सभी दिशा निर्देश हमें हमारी आत्मा से (परमात्मा) साफ़ साफ़ प्राप्त होते है . इसलिए ट्रांसफॉर्मेशन में आने वाली सभी शंकाये समाप्त हो जाती है क्यों की अब हम परमात्मा से जुड़ गए है . हमारे और परमात्मा के बीच दूरी शून्य है इसका हमें अनुभव होने लग गया है . और हमारा खुद पर विश्वास बढ़ने लगता है . क्यों की अब जीवन में हम जो चाहते है वह प्राप्त होने लगता है . इस अभ्यास में ध्यैर्य की बहुत जरुरत है . किस व्यक्ति को रूपांतरण में कितना समय लगेगा यह उसका परमात्मा में कितना विश्वास है इस पर निर्भर करता है . अर्थात यदि हम परमात्मा की महिमा का अभ्यास नहीं करते है तो हम यंत्रवत चलते है (पुराने संचित कर्मो के आधार पर ) और यदि हम परमात्मा की महिमा का अभ्यास करते है तो हम हमारी मर्जी से चलते है . इसलिए यदि हमें मोक्ष चाहिए तो परमात्मा की महिमा का अभ्यास करना अनिवार्य है . यह हमने पतले से मोटे होने के ट्रांसफॉर्मेशन का उदाहरण दिया है . इसी प्रकार हम बीमारी से स्वास्थ्य में रूपांतरण , मोटे से पतले में , गौरे से काले में , काले से गौरे में , गरीब से अमीर में अर्थात जैसा भी रूपांतरण हम चाहते है वह हम 100 % प्राप्त कर लेते है . अर्थात चाहे हमने पहले कैसे भी कर्म किये हो यदि हम परमात्मा के समक्ष पूर्ण समर्पण कर देते है और फिर यह अभ्यास पुरे मनोयोग से करते है तो हमें 100 % सफलता मिलती है . क्यों की अब यह अभ्यास परमात्मा स्वयं कर रहे है . इसलिए हमारे मन से घृणा , निंदा , चुगली , बुराई , छल कपट , ईर्ष्या इत्यादि के विचार सद्गुणों में परिवर्तित होने लगते है . और हमारा मन एक दिव्य शरीर का निर्माण करने लग जाता है . इसी को सच्चा कर्मयोगी कहा जाता है . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .

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Monday, April 1, 2024

नमक का सबसे सही प्रयोग यह है

नमक का सबसे सही प्रयोग यह है | परमात्मा की महिमा 
इस वीडियो में यह समझाया गया है की हमे नमक कितना खाना चाहिए , क्या हमे नमक खाना जरुरी है , ज्यादा नमक के नुकसान, नमक खाने के फायदे , नमक कब नहीं खाना चाहिए , किन रोगों में नमक नहीं खाना चाहिए , क्या नमक बिलकुल नहीं खाना चाहिए , क्या नमक से खुजली चलती है , ऑपरेशन में नमक के लिए मना क्यों किया जाता है , क्या नमक से क्रोध ज्यादा आता है , क्या नमक से रक्तचाप कम होता है , क्या नमक से रक्तचाप ज्यादा होता है , क्या नमक से हार्ट अटैक आता है , क्या नमक से टाके पक जाते है , क्या नमक से कब्ज दूर होती है , क्या नमक से एसिडिटी दूर होती है , हमे ज्यादा मिर्च मशाले क्यों नहीं खाना चाहिए , क्या नमक एक जहर है , क्या हम नमक के बिना जिन्दा रह सकते है , नमक खाने के नुकसान , नमक की कितनी मात्रा खाये , नमक खाना बंद कैसे करे , ज्यादा नमक खाने की आदत को कैसे छोड़े , क्या नमक खाने से हिंसा बढ़ती है , साधु संत नमक क्यों नहीं खाते है , गाय को बिना नमक की रोटी क्यों देते है , मंदिर में नमक क्यों नहीं चढ़ाया जाता है . हमारा सभी मित्रों से विनम्र निवेदन है की इस चैनल से एक टीवी एपिसोड की तरह जुड़े और इसे बहुत ही चिंतन मनन के साथ देखे , सुने , समझे और अभ्यास शुरू करना बहुत ही जरुरी है . अभ्यास के बिना फायदा नहीं होगा . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .

क्रियायोग - हमे सुख और दुःख की अनुभूति क्यों होती है ?

आज मै आप को यह गहराई से समझाने जा रहा हु की हमे सुख और दुःख की अनुभूति क्यों होती है . हमे सुख और दुःख की अनुभूति परमात्मा के माध्यम से जो...