Sunday, May 26, 2024

भयंकर दर्द में भी हँसे कैसे ? | परमात्मा की महिमा - भाग 1

 मेरे प्रिये साथियो मै आप को आज वह राज बताने जा रहा हु जब हमारे किसी बीमारी के कारण या किसी चोट के कारण या किसी तनाव के कारण या किसी पिछले कर्म फल के कारण शरीर में भयंकर दर्द हो रहा हो और हमे कई सारे काम करने बहुत जरुरी हो तब कैसे हँसे और अच्छा महसूस करे क्यों की मैंने बताया था की जो हम महसूस करते है वही हम है और वही चीज़े हम आकर्षित करते है . मैंने कुछ वीडिओज़ में यह भी बताया था की जो हम इच्छा करते है या प्रार्थना करते है वह हमे नहीं मिलता है . इसको मै अब अच्छे से समझाता हु . जब प्रार्थना शुद्ध अंतकरण से की जाती है तब वह फलित होती है . आमतौर पर जब हम प्रार्थना करते है तो प्रार्थना के अनुकूल हम महसूस नहीं करते है . जैसे प्रार्थना तो हमने सुबह करली और दिनभर हम प्रार्थना के विपरीत सोच रहे है और फिर विपरीत ही महसूस कर रहे है . तो फिर प्रार्थना कैसे फलित होगी ?. ठीक इसी प्रकार जब हम इच्छा करते है तो यदि वह भी शुद्ध अंतकरण से नहीं होगी तो कैसे फलित होगी ?. इसलिए अब बात आती है अच्छा महसूस कैसे करे जब शरीर में भयंकर दर्द हो रहा हो ? या सभी परिस्थितियाँ विपरीत हो ? . बहुत आसान है यदि आप को यह विश्वास है की कण कण में केवल परमात्मा का अस्तित्व है .  अर्थात दर्द के रूप में भी परमात्मा ही प्रकट हो रहे है और परमात्मा का स्वरूप आनंद है , सुख है , शांति है . फिर हमे दर्द क्यों महसूस होता है ?. क्यों की हम सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र नहीं रहते है . हमारे शरीर में छोटे छोटे असहनीय परिवर्तन होते है उनको हम सुख दुःख कहते है . इसलिए लगातार इनको सुख दुःख कहने से ये परिवर्तन अपनी तीव्रता को बढ़ाते है . कैसे ? . जैसे पत्थर पर दिनभर और कई दिनों तक चलने से पत्थर भी घिसने लग जाता है ठीक उसी प्रकार मै दुखी हु , मै दुखी हु , मै दुखी हु ऐसा हर समय कहने और महसूस करने और ऐसे ही वातावरण मे रहने और ऐसा ही लगातार सोचने से मन के गहरे तलो में इस भाव के खांचे बन जाते है और धीरे धीरे शरीर के रूप में प्रकट होने लगते है . फिर हमारा मन इन खाँचो के अनुसार ही जीवन में क्या करना चाहिए उसका दिशा निर्देश देता है . और ऐसे करते करते यह गहरे संस्कार मे बदल जाते है जो जन्म दर जन्म हमारे(आत्मा) साथ चलते है . अर्थात जब हमारी आत्मा एक शरीर से दूसरे शरीर में जाती है तो मृत्यु के समय अपने साथ मन , बुध्दि , और संस्कार साथ लेकर जाती है . पर यदि शरीर में हमारे पुराने संचित कर्मो के कारण उठने वाली इन संवेदनाओं के प्रति हम जाग्रत है , इन पर एकाग्र है और फिर इन पर ध्यान लगाते है अर्थात प्रभु की शक्ति लगाते है या यु कहे हमारी चेतना शक्ति का प्रयोग करते है तो ध्यान की इस अग्नि में इन संस्कारो के जो बीज है वे जलकर पवित्र ऊर्जा के रूप में परिवर्तित हो जाते है या हम इन संवेदनाओं को जिस रूप में महसूस करते है उनमे बदल जाते है(अर्थात ध्यान में बीमारी को बढ़ा भी सकते है और घटा भी सकते है, यह ध्यान के पीछे लगी हुयी भावना पर निर्भर करता है(यदि भावना में केवल परमात्मा है और जिस रूप में आप उनको अपने मन में कल्पना के माध्यम से देखते है तो वह बीमारी उसी रूप में बदल जाती है ) )

. आगे का भाग कल शाम 5 से पढ़े……..

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