हम सब जानते है की हमें ख़ुशी चाहिए , सफलता चाहिए, अपने सपनों को पूरा करना है तो फिर हम इन संवेदनाओं पर एकाग्र होकर ध्यान की शक्ति का प्रयोग इस भाव के साथ करते है की हमे जो चाहिए वह मिल जाए . इसलिए यदि हमारे भयंकर दर्द हो रहा हो तो हमे उस दर्द वाले स्थान पर पहले एकाग्र होना है और फिर उस पर जो चाहिए उस भाव के साथ ध्यान की शक्ति का प्रयोग करना है . अर्थात हमे जो चाहिए उसका विचार अपने आप ही हमारे मन में आएगा और उस विचार पर ध्यान की शक्ति लगाएंगे तो वह विचार इस ध्यान की शक्ति के कारण करोड़ों बार पुनरावृत होगा अर्थात मन में वह विचार बार बार दोहराया जाएगा और फिर बार बार दोहराने के कारण वह विचार सघन रूप लेने लगेगा . यहां बहुत ही मजेदार बात यह है की जब हम अच्छा महसूस करते है तो इसका वास्तविक अर्थ क्या है ? . इसका वास्तविक अर्थ यह है की अच्छा महसूस करने का जो विचार है वही तो बार बार दोहराया जा रहा है मन के माध्यम से . तभी तो हम अच्छा महसूस कर पा रहे है . क्यों की भूमध्य पर एकाग्र होते हुए जब हम दर्द पर एकाग्र होकर ध्यान की शक्ति का प्रयोग करते है तो इच्छाशक्ति के जगने के कारण हम ख़ुशी के विचार(शुद्ध परमात्मिक चेतना ) को दर्द में भी पहली बार लाने में कामयाब हो जाते है और जैसे ही इस विचार के अस्तित्व में आने की कारण हमारे कूटस्थ में जो विष्णु की शक्ति होती है वह इस विचार की रक्षा करती है . इस ख़ुशी के विचार की रक्षा होने के कारण यह विचार अब हमारे अवचेतन मन में बीज रूप में सुरक्षित रूप से जमा हो जाता है और इसके अवचेतन मन में जाने के कारण अब हम दूसरी बार ख़ुशी को महसूस करने में पहली बार से ज्यादा आसानी का अनुभव करते है(न्यूटन की गति नियम) . क्यों की पहली बार ख़ुशी के विचार को लाने के लिए हमे एकाग्र होकर ध्यान लगाना पड़ा था जिससे हमारा चेतन मन सो गया था और हम चेतन मन के निचले तल पर पहुंचकर जो अवचेतन मन है वहा पहले से मौजूद दर्द रुपी विचार बीज को ध्यान की अग्नि से जलाकर नष्ट करके उसकी जगह ख़ुशी रुपी विचार बीज को प्रतिस्थापित कर दिया था . इसलिए जब हम गहरे ध्यान में उतरते है तो हमारा चेतन मन सो जाता है और हमारा संपर्क हमारे संचित कर्मो से होने लगता है . अब जिस व्यक्ति के संचित कर्म जैसे होंगे उसको वैसे ही तो अनुभव महसूस होंगे और उसके जीवन में वैसी ही घटनाओं का आगमन होगा . इसीलिए तो कई व्यक्तियो को ध्यान के दौरान डर लगना, झटके लगना , शरीर का कांपना , शरीर का हिलना , धूजणी छूटना , पसीना आना , चक्कर आना , सिर में दर्द होना , सिर घूमना , पुरानी बाते याद आना , पिछले जन्म की बाते याद आना ऐसे तमाम प्रकार के अनुभवों का सामना करना पड़ता है . जो साधक इन अनुभवों से डर जाता है वह ध्यान करना छोड़ देता है और अपने भाग्य के भरोसे जीवन को यंत्रवत जीता है और कहता है की समय से पहले और भाग्य से ज्यादा कभी नहीं मिलता है . और जो साधक इन अनुभवों से (परिवर्तनों से ) नहीं घबराता है वह अपने आप को बदलकर ही दम लेता है . यदि वह परिवर्तनों को सहन नहीं कर पा रहा है तो ऐसा ज्ञानी साधक अपने मन और शरीर को ऐसी अवस्था में ले जाता है जो उसके मन को अच्छी लगे . और फिर जैसे ही इन परिवर्तनों का प्रभाव ख़त्म हो जाता है ऐसा ज्ञानी साधक फिर से ध्यान करना शुरू कर देता है .
आगे का भाग कल
शाम 5 से पढ़े……..
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परमात्मा की महिमा में आप सभी का हार्दिक अभिनन्दन है