मेरे प्रिये साधको आज मै आप को परमात्मा के इस नियम को बहुत ही सरल भाषा में समझाने जा रहा हु और आप जब इस नियम को ठीक से समझ जायेंगे तो फिर आप को चिंता मुक्त होने से कोई भी नहीं रोक सकता चाहे अभी आप की कैसी भी स्थिति हो . जब एक व्यक्ति के कैंसर होता है तब उसे उसके जीवन की कीमत का पता चलता है . और जब वह उस कैंसर से जंग जीत जाता है तो सम्मान उन चिकित्सको और व्यज्ञानिको और इस व्यक्ति की कठीन समय में सेवा करने वाले उन तमाम परिवार जनो और रिश्तेदारों इत्यादि को ही मिलता है और यह व्यक्ति आगे चलकर अपने जीवन में वे महान कार्य कर जाता है जिन्हे करने की एक सामान्य स्वस्थ व्यक्ति सोच भी नहीं सकता है . पर हम सब यह भूल जाते है की कैंसर पैदा करने वाले वे जीवाणु अपनी इतनी ताकत नहीं लगाते और इलाज के दौरान आसानी से अपनी हार मान लेते और कैंसर को यह व्यक्ति आसानी से हरा देता तो इस व्यक्ति को कैंसर से कभी डर नहीं लगता और यह व्यक्ति फिर से अपने जीवन में वे सभी अप्राकृतिक कार्य करना शुरू कर देता जिनसे इसको कैंसर हुआ था . और जिंदगी इस व्यक्ति के लिए एक मजाक बनकर रह जाती . ये कभी महान व्यक्ति नहीं बन पाता. इसलिए हमे सम्मान उन कैंसर जीवाणुओं का भी करना है जिन्होंने इस व्यक्ति को खुद के भीतर से जगा दिया और एक महान व्यक्ति बना दिया . जब आप भयंकर चिंता में हो तो इस लेख को पढ़कर थोड़ा एकांत में आ जाए और विचार करे की आप देख सकते है और संसार में ऐसे भी व्यक्ति है जो अभी देख नहीं सकते और अपनी आँखों की रौशनी को पाने की लिए दिन रात परमात्मा से प्रार्थना करते है और इलाज के लिए पूरी दुनिया का चक्कर लगाते है और करोड़ों रूपए खर्च करते है और फिर भी यह विश्वास नहीं है की उनकी आँखों की रौशनी लौट आएगी . अर्थात मै यह कहना चाहता हु की अभी वर्तमान में आप के पास जो कुछ भी है वह अनमोल है उसकी कीमत संसार में कोई भी नहीं चूका सकता . इसलिए एकांत में चिंतन करे की क्या आप उन सब चीजों का आनंद ले पा रहे है जो अभी इसी पल आप के पास मौजूद है . जैसे आप सुन सकते है , आप समझ सकते है , आप देख सकते है , आप चल सकते है , आप के संतान है , आप के पास आज का खाना है , अभी आप जिन्दा है . और संसार में ऐसे कई व्यक्ति है जिनके पास यह सब नहीं है . फिर आप अपने जीवन में परमात्मा की महिमा का अभ्यास अर्थात सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र होकर अपने महान लक्ष्य की तरफ आगे बढ़ने से क्यों डर रहे है . आप को किस बात का डर है . यह डर आप के अहंकार के कारण है . इसलिए जब तक आप का अहंकार पिघलेगा नहीं तब तक लक्ष्य की तरफ बढ़ने के लिए रौशनी दिखेगी नहीं . यहां परमात्मा हमारे साथ यह सब इसलिए करते है ताकि हम कोई महान कार्य करके अपने परम पिता को खुश कर सके . इसलिए वे हमे जीवन में इस प्रकार की कठीन परिक्षाओं से गुजारते है ताकि हम तपकर सोना बन जाए . और दूसरे शब्दों में कहे तो हमारे जीवन में परेशानियॉ हम खुद ही पैदा करते है परमात्मा नहीं कैसे ? . परमात्मा से जो हमे कर्म करके अपना भाग्य बदलने की स्वतंत्र शक्ति मिली है उसकी तीव्रता इतनी ज्यादा होती है की हम इस शक्ति को संभाल नहीं पाते है . जैसे हमारे एक शुक्राणु और एक अंडाणु से एक महान मनुष्य का जन्म होता है और हमारे शरीर में इनकी सख्या खरबों में है . इसलिए हम संस्कार वान संतान को जन्म देने के बजाय इस शक्ति का प्रयोग अपनी कामेच्छा (वासनाओं) की पूर्ति के लिए करते है जो कभी भी पूरी नहीं हो सकती है . और ऐसा बार बार करके हम निम्न योनियों में भटकते रहते है और हम संसार में जीने से डरने लगते है . लोगों की नज़रो से गिरने लगते है . क्यों की परमात्मा ने जो हमे अनमोल धन दिया है उसको हम संभाल नहीं पाए और चिंताग्रस्त रहने लगते है . आप जब यह एकाग्रता और ध्यान का अभ्यास करोगे तो आप को पता चलेगा की सब कुछ अपने आप बह रहा है. हमारा अहंकार रुकावट पैदा करता है . कैसे ? . आप प्रयोग करके देखे अपने घर में . आप घर में किसी से शिकायत ना करे और ना ही किसी से अपेक्षा रखे और जितना आप खुश होकर अपने घर वालो की सेवा कर सके वह करे . तो आप को पता चलेगा की धीरे धीरे आप के घर वाले आप को इतना प्रेम करने लगेंगे जिसकी आप अभी कल्पना नहीं कर सकते . फिर प्रश्न आएगा की जैसे मेरा बच्चा रास्ते में चल रहा है और आगे गहरा खड्डा है तो क्या मै उसको रोकू नहीं . इसका जवाब आप के खुद के पास है . जब आप सही बात के लिए घर में किसी को समझाते है तो वे कभी भी आप की बात का बुरा नहीं मानते है क्यों की सबको अपना जीव प्यारा होता है मरना कोई नहीं चाहता है . पर सही क्या है और गलत क्या है पहले हम यह तो समझे . इसे समझने के लिए परमात्मा की महिमा का अभ्यास अनिवार्य है . अर्थात सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र होकर जीवन की सभी क्रियाये करे .
केवल परमात्मा का अस्तित्व है. परमात्मा सर्वव्यापी है परमात्मा कण कण में विराजमान है. परमात्मा का हर गुण अनंत है जैसे परमात्मा का एक गुण यह भी है की वे एक से अनेक रूपों में प्रकट होते है. निराकार से साकार रूप में प्रकट होना है : सृष्टि की उत्पति अर्थात निराकार से साकार रूप में प्रकट होना ,असंख्य जीव अर्थात एक से अनेक होने का गुण. मानव का लक्ष्य केवल परमात्मा को जानना है , खुद के स्वरूप को जानना है , परमात्मा और हमारे बीच दूरी शून्य है इसका अनुभव करना है , हर पल खुश कैसे रहे इसका अभ्यास करना है
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परमात्मा की महिमा में आप सभी का हार्दिक अभिनन्दन है