मेरे प्रिये साथियो मै आप को आज उस सच से रूबरू करवाऊंगा जिसको यदि आप ने समझ लिया तो मोटापे का यह रोग हमेशा हमेशा के लिए दूर हो जायेगा और आपका शरीर एकदम सूंदर , सुडौल और अपने अनिवार्य वजन में रूपांतरित हो जायेगा . दूसरा मै आप को इस लेख में वह विधि भी बताऊंगा जिसको पूरी ईमानदारी से अपना कर आप 100 % मोटापे को जड़ से दूर कर देंगे . मेरे प्रिये साधको जब हम अपने आप को शरीर मानते है और मोटा पतला कहते है तो जो हमे प्राण शक्ति मिलती है वह बाधित होती है और हमारी कभी भी ठीक से रोग प्रतिरोधक क्षमता नहीं बढ़ पाती है . पर सच बात यह है की हम ऐसा कहते क्यों है . ऐसा हम पुराने संचित कर्मो के कारण कहते है . या तो पूर्व जन्म में हमने ऐसा आचरण किया है जिसमे हमने खूब खा खाकर हमने अपने आप को इतना मोटा कर लिया था की उस समय के सब लोग हमारे को मोटा कहकर पुकारते थे या इस जन्म में या फिर किसी अन्य जन्म में . अर्थात कुल मिलाकर हमने ऐसी चेतना को मूर्त रूप दे दिया था जिससे अब हम ऊब चुके है और इस पुरानी चेतना से हम मुक्ति चाहते है . जब तक हम इस मोटापे वाली चेतना से मुक्त नहीं होंगे तब तक चाहे आप भूखे रहने लग जाओ, कैसा भी इलाज करा लो , आप का वजन कम नहीं होगा . क्यों की भोजन तो हम एक बार खाते है पर हमारा मन इस क्रिया को दिन में हज़ारो बार दोहराता है . अर्थात मन जिस क्रिया को एक बार कर लेता है उसको वह बार बार करना चाहता है यदि उसका बीज पहले से अवचेतन मन में बहुत ही बलवान होकर बैठा है तो . तो फिर प्रश्न यह उठता है की जैसे हमारे अवचेतन मन में मोटापे का प्रारब्स बीज जमा है और हम रोज खाना खाकर उसको पोषित कर रहे है तो फिर तो हम इस मोटापे की चेतना से कभी मुक्त ही नहीं होंगे . ऐसा नहीं है . जब हम सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र होकर मन की पूरी शक्ति , बुद्धि की पूरी शक्ति , भावना की पूरी शक्ति , विवेक की पूरी शक्ति , सभी इन्द्रियों की पूरी शक्ति लगाकर ध्यान करते है तो हमारे भीतर द्रष्टद्युम की शक्ति प्रकट होती है अर्थात हमे एक ऐसी शक्ति का अनुभव होता है जो हमे बहुत अच्छी लगती है और इस शक्ति से आगे फिर दो शक्तियाँ प्रकट होती है पहली द्रुपद चेतना और दूसरी द्रोपदी चेतना . यह शक्तियाँ परमात्मा के ही विभिन्न चैतन्य रूप है . या इन्हे हम दिव्य शक्तियाँ भी कह सकते है . इनका नामकरण परमात्मा इनको जो कार्य सोपते है उसके आधार पर होता है . द्रुपद चेतना इस शरीर को उस रूप में परिवर्तित कर देती है जिसमे इसे होना चाहिए अर्थात इसका सही वजन कितना होना चाहिए . पर यदि साधक खुद कितना वजन कम करना चाहता है तो फिर साधक को चाहिए की जब वह गहरे ध्यान में उतरे तो उस समय हमारा चेतन मन सो जाता है और अवचेतन का रास्ता खुल जाता है . अब इसमें साधक अपनी कल्पना शक्ति का प्रयोग करके जितना वजन चाहता है उसको महसूस करना है . बार बार महसूस करने का यह विचार साधक के अवचेतन मन में चला जाता है और मोटापे के बीज का स्थान ले लेता है . अर्थात अब मोटापे की चेतना से मुक्ति मिल जाती है . यह कार्य एक अभ्यास में नहीं हो सकता है . क्यों की यह निर्भर करता है साधक के अवचेतन मन में मोटापे के बीज कितनी मात्रा में जमा है और एक साथ इनके रूपांतरण से होने वाले परिवर्तन साधक सहन नहीं कर पाता है. पर यहां ध्यान देने योग्य बात यह है की साधक दोनों मेसे कोई एक तरीका ही पुरे अभ्यास काल में अपना सकता है . अर्थात या तो साधक द्रष्टद्युम चेतना में जिए और जो शरीर का अनिवार्य वजन हो उसको स्वीकार करे या फिर खुद की विचार शक्ति से जितने वजन का होना चाहता है उस विधि का अभ्यास करे . केवल इस अभ्यास से ही पूरा काम नहीं होगा . साधक को अपने भोजन पर भी विचार करना बहुत जरुरी है . क्यों की यदि साधक ज्यादा फैट वाली चीजों का अभी भी ज्यादा मात्रा में लगातार सेवन कर रहा है तो इसका मतलब यह हुआ की वजन बढ़ाने वाली चेतनाये वह अपनी आत्मा में जोड़ता जा रहा है और अभ्यास से वजन बढ़ाने वाली चेतनाओं को रूपांतरित करता जा रहा है . इससे साधक का मन असमंजस की स्थिति में चला जाता है और यह साधना सही तरीके से लाभ नहीं पंहुचा पाती है . यह ऐसे ही है जैसे हम बीमारी के इलाज के लिए दवा लेते रहे और बीमारी की जड़ को खाद पानी देते रहे . तो बीमारी ऊपर से कटती रहेगी और नीचे से बीमारी की जड़े फूटती रहेगी . मोटापे से ग्रसित साधक को अपने मन को इस प्रकार ट्रेंड (तैयार) करना है की जब उसको समाज में या घर परिवार में कही भी मोटा कहे तो साधक पहले उस शब्द को सुने और अपने मन को आदेश दे की इन्होने मुझे संतुलित वजन वाला व्यक्ति बोला है . यह तभी संभव होगा जब साधक परमात्मा की महिमा का अभ्यास निरंतर करेगा . मन को आदेश देने के बाद साधक इन लोगो को या तो धन्यवाद दे या मुस्कराये और महसूस करे की मेरा वजन जो मै चाहता था वह मुझे मिल गया है . जब साधक की तरफ से इस प्रकार की प्रतिक्रियाएं जाएगी तो इसका अर्थ यही तो है की मोटापे की पुरानी चेतनाओं से मुक्ति मिल रही है . जो यह लोग आप को मोटा कहकर पुकारते है, यह लोग ही तो आप के अवचेतन मन में जमा मोटापे की चेतनाये है जो इन लोगो के रूप में प्रकट हो रही है . ऐसे साधक ऐसे कपड़े पहने जिसमे उनको मोटापा कम महसूस हो , ऐसे व्यायाम करे ,ऐसे चले , ऐसे खाये , ऐसे पिए , ऐसे सोये , ऐसे बोले , ऐसे सोचे , ऐसे देखे , ऐसे सुने , ऐसे सूंघे , ऐसे स्पर्श करे जिससे मोटापा आप कम महसूस कर पाए . ऐसे वातावरण में रहे जहा आप को ऐसे लोग मिले जो आप को आप के ज्ञान से जाने ना की आप की शारीरिक बनावट से . इन सब उपायों में समय लगता है , आप के धैर्य की परीक्षा होती है . अनवांछित चेतनाओं से मुक्ति और उच्च चेतनाओं की तरफ बढ़ना ही तो भक्ति है . आप जब रात दिन अपने आप को सही वजन का महसूस करेंगे तो आप को पता भी नहीं चलेगा की आप कब सही वजन में आ गए . साधक को दृढ़ संकल्प की आवश्यकता है . बस एक बार ठानना है . ऐसी गलती मत करना की २ दिन अभ्यास करे और अपना वजन चेक करने लग जाए . इसका मतलब अभी आप को अपने महसूस करने पर विश्वास नहीं हुआ है . आप को भोजन इतना करना है की जैसे जैसे खाना खाते हुए स्वाद की अनुभूति कम होने लग जाए भोजन करने की क्रिया रोक दे . अर्थात हमेशा भूखा रहे , भूख को ख़त्म ना करे , इसी प्रकार पानी पिए . परमात्मा की महिमा के अभ्यास की शर्त ही यह है की इस अभ्यास के लिए 100 % अहिंसा के नियम का पालन करना होता है . पूरा पेट भर के खाना खाने का मतलब है की हमने भूख को मार दिया है . जब आप गहरा अभ्यास करते है और कूटस्थ में मन को लाने में कामयाब हो जाते है और सुषुम्ना में मन को गमन करा सकते है तब आप एक क्षण में मोटे और पतले हो सकते है . क्यों की उस अवस्था में आप एक ऐसी शक्ति के साथ होते है जिसे जिस भी विचार पर लगाते है वह तुरंत फलीभूत हो जाता है . पर यह थोड़ा कठीन होता है . इसलिए आप धीरे धीरे अपने शरीर को रूपांतरित कर सकते है . जिससे आप को अभ्यास से बोरियत नहीं होती है और तनाव पैदा नहीं होता है . क्यों की गृहस्थ साधक के लिए यह दूसरा तरीका ज्यादा अनुकूल होता है . चाहे आप का मोटापा किसी बीमारी के कारण से हो या किसी अन्य कारण से यह विधि काम करती ही करती है . क्यों की यह विधि D N A को बदलने की क्षमता रखती है . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .
केवल परमात्मा का अस्तित्व है. परमात्मा सर्वव्यापी है परमात्मा कण कण में विराजमान है. परमात्मा का हर गुण अनंत है जैसे परमात्मा का एक गुण यह भी है की वे एक से अनेक रूपों में प्रकट होते है. निराकार से साकार रूप में प्रकट होना है : सृष्टि की उत्पति अर्थात निराकार से साकार रूप में प्रकट होना ,असंख्य जीव अर्थात एक से अनेक होने का गुण. मानव का लक्ष्य केवल परमात्मा को जानना है , खुद के स्वरूप को जानना है , परमात्मा और हमारे बीच दूरी शून्य है इसका अनुभव करना है , हर पल खुश कैसे रहे इसका अभ्यास करना है
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परमात्मा की महिमा में आप सभी का हार्दिक अभिनन्दन है