मेरे प्रिये साथियो मै आज अपने परम पिता परमेश्वर का वह राज बताने जा रहा हु जिस पर यदि आप ने विश्वास कर लिया तो आप अपने जीवन में आगे होने वाले बड़े नुकसानों से 100 % बच जायेंगे . जब हमारे किसी प्रारब्ध अर्थात पुराने संचित कर्म के कारण कोई नुकसान भविष्य में होने वाला है तो आप परमात्मा की महिमा का अभ्यास करके उस नुकसान से बच जायेंगे . कैसे ? . इसे हम एक उदाहरण से समझते है . जब कोई व्यक्ति हमारे पास पैसे उधार लेने आता है तो हम सबसे पहले यह सोचते है की यह समय पर वापस देगा या नहीं . ऐसा हम थोड़ा उस व्यक्ति पर गौर (ध्यान करना ) करने के कारण सोच पाते है . उस व्यक्ति पर गौर हम परमात्मा की शक्ति के माध्यम से कर पाते है और गौर करने का कारण हम पैसे से बहुत प्रेम करते है . इसलिए सोचते है की कही मेरी मेहनत का पैसा नहीं चला जाये . अर्थात जब हम किसी चीज से बहुत प्रेम करते है तो हम हमारे परमात्मा को यही कह रहे होते है की हे परम पिता मेरी यह चीज कोई भी नहीं लेकर जाए . और यह बात हम दिल से महसूस भी करते है . जब कोई इच्छा हम दिल से महसूस करते है तो हमारे परम पिता हमारी पुकार को तुरंत सुन लेते है और हमारी मदद के लिए किसी न किसी रूप में वे खुद आते है . अब चाहे आप इन्हे दिव्य शक्तियाँ कहो या साधारण जीव . तो जैसे ही उस व्यक्ति को उधार देने में हम पहला संकोच करते है तभी हमारे सबसे ज्यादा हितेषी अर्थात घर वाले या मित्र या कोई रिश्तेदार कहते है की इस व्यक्ति को उधार पैसे मत दे देना यह वापस नहीं लौटाएगा . यह जो हितेषी बनकर आया है वे खुद परमात्मा ही होते है . पर हम इन हितेषियों की बात इसलिए नहीं मानते है की हमारा पुराना संचित कर्म इतना बलवान होता है की हमारी बुध्दि और विवेक को खा जाता है क्यों की अभी हम ज्यादा ध्यान का अभ्यास नहीं कर रहे होते है . अर्थात अभी हम परम पिता से गहरे रूप से नहीं जुड़े है . और यदि हम ध्यान में गहरे उतरे होते तो जो हितेषी हमारे को उस व्यक्ति को पैसे देने से मना कर रहा है हम उसकी बात पर गहराई से चिंतन करते . क्यों की गहरा ध्यान करने वाला व्यक्ति हर किसी की बात को बहुत ही ध्यान से सुनता है समझता है और परखता है फिर निर्णय पर पहुँचता है . और सामान्य व्यक्ति चीजों को बहुत ही हलके में लेता है इसलिए नुकसान उठाता रहता है क्यों की वह ज्यादातर यंत्रवत चलता है अर्थात प्रारब्ध ही भोग रहा होता है . जब हम गहरा ध्यान करते है तो हमारे को परम पिता से एक ऐसी टोर्च मिल जाती है जिसको उधार मांगने वाले व्यक्ति की तरफ करते है तो इस टोर्च की रौशनी में उसकी सच्चाई का पता चल जाता है की यह पैसे वापस देगा या नहीं . अर्थात यह व्यक्ति झूठ बोल रहा है या सच . इसलिए हमे निरंतर परमात्मा की महिमा का अभ्यास करना बहुत ही अनिवार्य है . ठीक इसी प्रकार जब हम रोड़ पर गाडी चला रहे है या कही ऐसी जगह फस गए है जहा सामान्य व्यक्ति हमारी मदद के लिए नहीं आ सकता है . तब परमात्मा दिव्य शक्ति के रूप में आकर हमारी मदद करते है . जैसे हम किसी दुर्घटना में बाल बाल बच जाते है . यह मदद दिव्य शक्ति करती है . परमात्मा खुद निराकार है और सर्वव्यापी है इसलिए उनकी शक्ति इतनी ज्यादा तीव्र है की वे बड़े रूप में नहीं आ सकते . आ जाये तो हमारा शरीर उनके तेज प्रकाश की आग में जलकर राख हो जाए . इसलिए वे किसी दिव्य शक्ति या सामान्य व्यक्ति या किसी अन्य जीव या किसी अन्य भौतिक पदार्थ के रूप में ही आते है . जब हम परमात्मा की महिमा का अभ्यास अर्थात सिर से पाँव तक में एकाग्र होकर गहरा ध्यान करते हुए जीवन की सभी क्रियाये करते है और मन में यह गीत लगातार बजता रहे की यह सब मै नहीं मेरे पिता इस शरीर रचना के रूप में कर रहे है और संचित कर्मो के बीजो पर जब परमात्मा का प्रकाश गिरता है तो यह संचित बीज धीरे धीरे नष्ट होने लगते है और जिस भाव में हम उस क्षण होते है उसमे यह बीज रूपांतरित होते जाते है . जैसे हम पेट में दर्द से परेशान है और इसका इलाज करा करा के थक गए है फिर भी पेट दर्द दूर नहीं हो रहा है . तो फिर परमात्मा की महिमा का अभ्यास ही एक मात्र इसका जड़ से इलाज करने वाला उपाय है . जब हम यह अभ्यास करते है तो अभ्यास के दौरान हम मन को भूमध्य पर एकाग्र करते है , श्वास पर एकाग्र होते है , सिर के पीछे मेडुला पर एकाग्र होते है और फिर पेट में दर्द वाले स्थान पर एकाग्र होते है . कभी कभी तेज दर्द हो तो यह क्रम बदल भी सकते है . अर्थात सबसे पहले ध्यान पेट दर्द वाले स्थान पर ही जायेगा . अब दर्द वाले स्थान पर एकाग्र होकर ध्यान करते है और मन ही मन यह महसूस करते है की इस स्थान की सभी कोशिकाएं(प्रारब्ध के कारण रुग्ण बीज ) परमात्मा से प्राप्त शक्ति से ख़ुशी , विवेकशील , ताकतवर , समृद्ध , ज्ञानवान , पूर्ण स्वस्थ , उचित वजन इत्यादि में रूपांतरित हो गयी है . पर याद रखे यह कार्य तेज दर्द के कारण एक बार के अभ्यास में नहीं होगा . क्यों की विष्णु की शक्ति इन रुग्ण कोशिकाओं की रक्षा करती है और शिव की शक्ति इनको रूपांतरित करती है . पर यदि यह रूपांतरण एक ही अभ्यास में हो जाए तो यह शरीर रचना में तीव्र परिवर्तन हम सहन नहीं कर पाएंगे और हो सकता है कुछ ऐसा परिवर्तन हो जाए की हम डर जाए . क्यों की परमात्मा की शक्ति को ज्यादा मात्र में सहन करने के लिए हमारे मन में बहुत गहरा विश्वास होना चाहिए अर्थात हमारा मन किसी भी परिवर्तन से डरना नहीं चाहिए . इसलिए मै कहता हु की अभ्यास ऐसा करे जो मन को अच्छा लगे . क्यों की मन की स्वीकृति के बगैर अभ्यास करने पर सफलता नहीं मिलती है . इस अभ्यास के दौरान जब हम शंकाओ से घिर जाते है और अपने परम पिता को पुकारते है तो वे या तो सपने में या किसी दिव्य शक्ति के अहसास के रूप में या किसी अन्य रूप में आकर हमारा मार्गदर्शन करते है की आप यह गलती कर रहे है और इसको इस तरीके से ठीक करना है . यह हमारी आत्मा की आवाज ही होती है . आत्मा और परमात्मा दोनों एक ही है . आत्मा को निर्देश परमात्मा से ही मिलते है . आत्मा का पिता है परमात्मा . कण कण में केवल परमात्मा का ही अस्तित्व है . पर माया की शक्ति के कारण हम यह अनुभव नहीं कर पाते है . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .
केवल परमात्मा का अस्तित्व है. परमात्मा सर्वव्यापी है परमात्मा कण कण में विराजमान है. परमात्मा का हर गुण अनंत है जैसे परमात्मा का एक गुण यह भी है की वे एक से अनेक रूपों में प्रकट होते है. निराकार से साकार रूप में प्रकट होना है : सृष्टि की उत्पति अर्थात निराकार से साकार रूप में प्रकट होना ,असंख्य जीव अर्थात एक से अनेक होने का गुण. मानव का लक्ष्य केवल परमात्मा को जानना है , खुद के स्वरूप को जानना है , परमात्मा और हमारे बीच दूरी शून्य है इसका अनुभव करना है , हर पल खुश कैसे रहे इसका अभ्यास करना है
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परमात्मा की महिमा में आप सभी का हार्दिक अभिनन्दन है