परमात्मा की महिमा के अभ्यास में हमे विचारों का विज्ञानं समझना बहुत जरुरी है . क्यों की एक विचार से ही इस सृष्टि की उत्पत्ति हुयी है . विचार एक मायावी शक्ति है जो ईश्वर से प्रकट होती है . अर्थात परमात्मा के अनंत गुणों में से एक गुण विचार प्रकट करना भी है . प्रभु अपनी लीला रचने के लिए विचारों का बहुत ही विधि विधान से प्रयोग करते है . जब एक ही विचार प्रभु से बार बार स्पंदित होता है तो यह विचार सघन रूप लेने लगता है . फिर यही सघन रूप ईश्वर से लगातार संपर्क में रहने के कारण एक शक्ति के संपर्क में रहता है जिसे साधारण भाषा में विश्व शक्ति भी कहते है . अर्थात इस सघन रूप को ईश्वर से यह ज्ञान रुपी शक्ति मिलने के कारण यह अपना एक अलग अस्तित्व मानने लगता है जिसे जीव भाव या अहंकार भाव कहते है . जीव की यह ज्ञान रुपी शक्ति अनेक गुणों में बदल सकती है . जैसे जीव एक ही विचार पर इस शक्ति का लगातार प्रयोग करके उस विचार के अनुरूप इच्छा शक्ति को पैदा कर सकता है . अर्थात जैसे हम अभ्यास के दौरान यह बताते है की यदि आप अच्छा महसूस करते है तो आप अच्छा ही आकर्षित कर रहे होते है . और यदि आप बुरा महसूस करते है तो आप बुरा ही आकर्षित कर रहे होते है . तो फिर बुरे महसूस को अच्छे महसूस में कैसे बदले . यह काम हम विचार शक्ति का प्रयोग करके आसानी से कर सकते है यदि हम इस ऊपर बताये गए ईश्वर के सिद्दांत पर विश्वास करते है तो . बिना खुद की आत्मा पर विश्वास के विचार शक्ति का प्रयोग सफल नहीं होता है . क्यों की विचार ईश्वर से प्रकट होते है तो इनको समझने के लिए ईश्वर पर विश्वास होना अनिवार्य शर्त है . क्यों की ईश्वर ही हमे वह ज्ञान देते है जिससे हम एक विचार को समझकर उसके प्रयोगों को समझने में सफल होते है . ईश्वर मन प्रकट करके जीव को दे देते है . जीव इस मन रुपी सॉफ्टवेयर से विचारों के प्रयोग को समझकर हार्डवेयर पैदा करता है . जिसे साधारण भाषा में शरीर कहते है . अर्थात हमारा शरीर विचारों का सघन रूप है जो सूक्ष्म रूप में एक जन्म से दूसरे जन्म में सूक्ष्म शरीर के रूप में यात्रा करते है . और इनकी यात्रा की सम्पूर्ण जिम्मेदारी कारण शरीर की होती है . अर्थात जीव को अस्तित्व में लाने के लिए ईश्वर एक कारण को पैदा करते है . और उस कारण के समाधान के लिए जीव को ज्ञान रुपी शक्ति प्रदान करते है जिसे हम साधारण भाषा में कर्म करने की स्वतंत्रता कहते है . पर यहां बहुत ही रोचक बात यह है की इस स्वतंत्र शक्ति की तीव्रता इतनी ज्यादा होती है की जीव इसे आसानी से संभाल नहीं सकता है . क्यों की माया के इस खेल के मैदान में जीव सभी जीवों को एक जैसा देखने लगता है . अर्थात जैसे एक व्यक्ति को सभी व्यक्ति एक जैसे लगते है यानी हाथ पैर वाला प्राणी लगता है . पर हकीकत यह नहीं है . इस मनुष्य रुपी शरीर में शैतान का वास भी हो सकता है , कोई बदमाशी प्रकृति वाला व्यक्ति भी हो सकता है या कोई बहुत ही दयालु व्यक्ति भी हो सकता है . इसलिए माया के इस खेल में जीव जिस कारण से इस दुनिया में आया है उसके समाधान के लिए बहुत संघर्ष करता है और जन्म दर जन्म बीतते जाते है और जीव इस जन्म मृत्यु के चक्र में फस जाता है . इसका एक ही उपाय है परमात्मा की महिमा का निरंतर अभ्यास .
केवल परमात्मा का अस्तित्व है. परमात्मा सर्वव्यापी है परमात्मा कण कण में विराजमान है. परमात्मा का हर गुण अनंत है जैसे परमात्मा का एक गुण यह भी है की वे एक से अनेक रूपों में प्रकट होते है. निराकार से साकार रूप में प्रकट होना है : सृष्टि की उत्पति अर्थात निराकार से साकार रूप में प्रकट होना ,असंख्य जीव अर्थात एक से अनेक होने का गुण. मानव का लक्ष्य केवल परमात्मा को जानना है , खुद के स्वरूप को जानना है , परमात्मा और हमारे बीच दूरी शून्य है इसका अनुभव करना है , हर पल खुश कैसे रहे इसका अभ्यास करना है
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परमात्मा की महिमा में आप सभी का हार्दिक अभिनन्दन है