केवल परमात्मा का अस्तित्व है. परमात्मा सर्वव्यापी है परमात्मा कण कण में विराजमान है. परमात्मा का हर गुण अनंत है जैसे परमात्मा का एक गुण यह भी है की वे एक से अनेक रूपों में प्रकट होते है. निराकार से साकार रूप में प्रकट होना है : सृष्टि की उत्पति अर्थात निराकार से साकार रूप में प्रकट होना ,असंख्य जीव अर्थात एक से अनेक होने का गुण. मानव का लक्ष्य केवल परमात्मा को जानना है , खुद के स्वरूप को जानना है , परमात्मा और हमारे बीच दूरी शून्य है इसका अनुभव करना है , हर पल खुश कैसे रहे इसका अभ्यास करना है
Monday, June 17, 2024
अपने आप को चुम्बक बनाने का अभ्यास
बीमारी के रोगाणुओं को स्वास्थ्य में बदले
Saturday, June 15, 2024
पंख होते तो उड़ आती रे से ईश्वर में भक्ति
Friday, June 14, 2024
माया का विज्ञानं ऐसे काम करता है
Thursday, June 13, 2024
सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र कैसे होवे ?
मेरे प्रिय साधको मै आज आपको ऐसे कई तरीके बताने जा रहा हूँ जिनको यदि आप अपनायेंगे तो आप सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र होकर जीवन की सभी क्रियाये करने लगेंगे और एक दिन आप अपने स्वरूप को जान जायेंगे . जैसे आप जब यह लेख पढ़ रहे हो तो उसी वक्त अपने आप पर गौर करे की आप के भीतर और क्या क्या चल रहा है . इसी समय याद करे की आप किस जगह पर बैठे है . आप की आँखे जब इस लेख को देख रही है तो आँखों में क्या क्या परिवर्तन हो रहे है . यदि आप यह लेख कुछ पेय पदार्थ पीते हुए पढ़ रहे है तो पता करे की गिलास को आप ने कितना कसकर पकड़ रखा है . और यदि आप कुछ खाते हुए इस लेख को पढ़ रहे है तो पता करे की आप ने जो खाया था उसको ढंग से चबाया भी था या नहीं . शुरू में ऐसा करते हुए आप को बहुत परेशानी होगी यदि आप ने कभी एकांत में केवल पढ़ने का अभ्यास नहीं किया है तो . क्यों की ज्यादातर लोगों का मत है की यदि हम एक साथ दो काम कर रहे है और हमे अच्छा महसूस हो रहा है तो यहां यह कहना असंभव है की ये लोग सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र है या नहीं . यह व्यक्ति विशेष की चेतना पर निर्भर करता है की उसकी चेतना इस क्षण तक कितनी विकसित हो चुकी है और अगले क्षण उसका कैसा संस्कार फलित होने वाला है . यदि ऐसा साधक एकाग्रता और ध्यान में पारंगत है तो वह मृत्यु के संस्कार को भी शिव की शक्ति के माध्यम से उसी शरीर में नए जन्म के संस्कार में रूपांतरित कर सकता है . जैसे कई महान संत नदी में स्नान करके अपने नये शरीर के साथ बाहर आते है . यदि आप कोई भी काम कर रहे है जैसे किसी ग्राहक को सामान दे रहे है तो आप तुरंत पता करे की आप कहा खड़े है , आप के पैरो में कितना सत है , आप के हाथ सामान उठाते हुए कैसा महसूस कर रहे है , आप के भीतर उस ग्राहक के प्रति क्या भावनाये चल रही है , आप जब सामान लेकर आ रहे है तब क्या सोच रहे है . क्या आप सामान के साथ चलते हुए अपने शरीर को अनुभव ठीक से कर पा रहे है . आप के पैर जमीन पर रखे जा रहे है क्या आप को इस क्षण याद है की आप अपने परमपिता की हथेली पर चल रहे है . और गहरे मायने में आप के शरीर के रूप में स्वयं परमपिता चल रहे है . पर इस लेवल की एकाग्रता तब आती है जब आप के दिल में प्रभु के आलावा और किसी के लिए जगह नहीं है . अर्थात परमात्मा की महिमा का अभ्यास यह सिखाता है की सभी जीवो को आप परमात्मा के रूप में देखो . इससे होगा क्या की आप सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र होकर ध्यान करने में धीरे धीरे सफल होने लगेंगे . यदि आप आइसक्रीम खाते हुए एकाग्र हो और आइसक्रीम पर ध्यान कर रहे हो तो आइसक्रीम के रूप में यह आलंभन आप को प्रभु के रस से जोड़ देगा और आप के भीतर से यह ज्ञान प्रकट होगा की आइसक्रीम खाने से इस शरीर रचना में क्या परिवर्तन होते है . और ऐसे लगातार सभी चीजों के साथ आप अभ्यास करेंगे तो आप धीरे धीरे अनुभव करेंगे की आप की आत्मा विचारों के साथ एक स्थान से दूसरे स्थान पर चल रही है और सामने वाले भी आप को विचारों के रूप में महसूस होने लगेंगे . जिससे आप खुद के और दुसरो के विचारों को पढ़ने में सक्षम होने लगेंगे . पर यदि इस एकाग्रता के साथ आप के भाव निर्मल नहीं है तो आप फिर माया में फसकर प्रभु से अर्जित की गयी शक्ति का दुरूपयोग कर बैठेंगे . किसी भी छण यदि आप के भाव बिगड़ते है तो उसी क्षण उस भाव के अनुरूप वह कल्पना साकार रूप में अपने आप को व्यक्त करने के लिए एक कदम आगे बढ़ जाती है . अर्थात यदि आप बिगड़े भाव के साथ किसी स्त्री को देखते है तो वह चित्र आप के मानस पटल पर अंकित हो जाता है और विष्णु की शक्ति उस चित्र को आप को दुबारा दिखाने के लिए सुरक्षित कर देती है . अब आप यह सोच रहे होंगे की हमने स्त्री को तो एक बार ही देखा था पर मन में वह बार बार क्यों दिखाई दे रही है . ऐसा इसलिए होता है की हमारे मन के पीछे एक शक्ति लगातार काम कर रही है और हमारा मन उसी शक्ति को अपनी कल्पना के आधार पर जैसी हमारी भावना होगी वैसे रूपांतरित करता जाता है . यदि हम मन के पीछे लगी हुयी इस शक्ति को ठीक से नियंत्रित करना नहीं सीखेंगे तब तक यह अनियंत्रित होकर हमारे से उटपटांग काम कराती रहेगी और हम गर्त में जाते जायेंगे . अर्थात यह परमात्मा की शक्ति है , इसे प्राण शक्ति भी कहते है . हम अच्छा खाना खाएंगे , योग ध्यान करेंगे , और इससे हमे शक्ति प्राप्त होगी पर हम यदि इसको आगे किस रूप में विकसित करना है यह लक्ष्य निर्धारित नहीं करेंगे तो फिर हमारा मन इस शक्ति का प्रयोग अवचेतन मन में संचित प्रोग्रामिंग के आधार पर करने लगता है . इसलिए जब हम सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र होने लगते है तो हमे यह शक्ति मिलती हुयी अनुभव भी होती है और किस भाव का संस्कार इस क्षण में फलित होने की कोशिस कर रहा है . यदि हम अभी आंशिक जाग्रत है और इस क्षण में कोई दुखद घटना का संस्कार फलित होने की कोशिस कर रहा है तो आप देखेंगे की आप के शरीर में एक कपकपी या धूझनी छूटने लगती है और आप इसी क्षण भूमध्य पर एकाग्र होकर ध्यान करके इस संस्कार को प्रभु के रूप में रूपांतरित करने में सफल हो जाते है . और यदि आप पूर्ण जाग्रत है तो इस संस्कार को बहुत ही आसानी से रचनात्मकता में रूपांतरित कर देते है . पर यदि आप बिलकुल भी जाग्रत नहीं है तो फिर यह संस्कार अपने भाव के अनुरूप फलित होता ही होता है . जिसे हम आमतौर पर भाग्य या प्रारब्ध भोग कहते है . इसीलिए मै बार बार कहता हु की लगातार अभ्यास करे यदि आप हर पल खुश रहना चाहते है तो . आप को क्या पता अगले क्षण कोनसा संस्कार फलित हो जाए . इसीलिए हमे यदि मृत्यु के भय से हमेशा के लिए मुक्ति चाहिए तो फिर सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्रता का अभ्यास बढ़ाना चाहिए . अर्थात जैसे ही हम परमात्मा के साथ एकता का अनुभव करते है तो मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है . और हम सर्वव्यापकता का अनुभव करने लग जाते है . इसलिए फिर हमे परिवार वाले या बाहर वाले सभी ईश्वर के रूप में दिखाई देने लगते है और हमारा अब इनसे मायावी जुड़ाव ना होकर प्रेम का सम्बन्ध होता है . और हम यदि किसी अपने परिजन को खोना नहीं चाहते है तो फिर हमे उससे इतना प्रेम करना सीखना होता है की वह परिजन भी हमारे बिना ना रह सके . यहां मै निश्वार्थ प्रेम की बात कर रहा हु . अब आप का परिजन आप चाहेंगे तभी आप को छोड़कर जायेगा . यह है परमात्मा की महिमा के अभ्यास का चमत्कार . यदि मै यह अभ्यास नहीं कर रहा हु और आप कर रहे है तो यह चमत्कार फिर आप के साथ ही घटित होगा . अर्थात जो अभ्यास करेगा उसको फायदा मिलेगा . परमात्मा पूर्ण निष्पक्ष होकर यह संसार चला रहे है . पक्षपात तो हमारा मन कर रहा है . कभी तो कहता है आप को मानलो इसी पत्थर में भगवान है और कभी कहता है यह पिता नहीं यह तो शैतान है . अर्थात यदि हम हमारे मन को यह विश्वास दिलाने में कामयाब हो जाते है की सिर से लेकर पाँव तक की यह जो शरीर रुपी रचना है इसके रूप में परमात्मा खुद प्रकट हो रहे है तो फिर हम इसमें धीरे धीरे एकाग्र होने लगेंगे . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .
Wednesday, June 12, 2024
विश्वास करके यह अभ्यास करो आप की बीमारी को जाना ही पड़ेगा
Friday, June 7, 2024
यह तरीका अवचेतन मन में घुसकर ही दम लेता है
आदत को रूपांतरित करने का विज्ञानं
Thursday, June 6, 2024
मन को एकाग्र करने का अभ्यास - भाग 2
Wednesday, June 5, 2024
मन को एकाग्र करने का अभ्यास - भाग 1
Monday, June 3, 2024
आँखों का विज्ञानं ऐसे काम करता है - भाग 1
Sunday, June 2, 2024
आत्मा से मन अलग होते ही आप की दुनिया ख़त्म हो जाती है
मेरे प्रिये साथियो मै आज आप को आप का इस संसार से जो सम्बन्ध है उसके विषय में बताने जा रहा हु . आप एक शुद्ध आत्मा हो , आप अजर अमर अविनाशी हो . जब आप के परम पिता आप के लिए अपनी माया से मन को प्रकट करते है तो आप को यह संसार दिखने लगता है . अर्थात आप की आत्मा ही ईश्वर के माध्यम से आप को जो मन दिया गया है उससे इस संसार रुपी स्वप्न की यात्रा करती है . जिस जिस क्षण आप आत्मस्वभाव में रहते है तब तब आप को यह संसार साफ़ साफ़ दिखाई पड़ता है अर्थात संसार में आप को यात्रा करते हुए कोई भी डर नहीं लगता है . ना आप संसार से विरक्ति चाहते है . क्यों की उन क्षणों में आप ईश्वर के साथ एकता का अनुभव कर रहे होते है . परन्तु जब माया मन के माध्यम से अपना प्रभाव दिखाना शुरू करती है तो आप की यात्रा की गति तेज हो जाती है . अर्थात अब आप को संसार की स्वप्न रुपी वस्तुओं और खुद के बीच में एक दूरी का अनुभव होने लगता है . माया के प्रभाव के कारण अब आप अपने आप को जो पहले आत्मस्वभाव में यात्रा कर रहे थे , शरीर मानने लगते हो . माया आप को इस तरीके से कैद करती है की मन के माध्यम से आप की आत्मा के चारो तरफ एक शरीर रुपी घेरा बना लेती है . अर्थात माया की शक्ति के कारण आप का संपर्क ईश्वर से कम होता जाता है और इस संसार रुपी छाया से घनिष्ठ होता जाता है . और यह माया की शक्ति आप के पास ही होती है . परमात्मा खुद आप की आत्मा को यह यात्रा करने की शक्ति स्वतंत्र रूप से दे देते है पर इसके साथ कुछ विशिष्ठ नियम भी लागू कर देते है . इसे हम कर्म करने की शक्ति भी कहते है . जो लगातार परमात्मा से हमे मिलती है . जब आत्मा इस शक्ति का अनुभव करती है तो उसमे एक अहंकार भाव यात्रा करते हुए इस प्रकार से पैदा होता है की आप को लगने लगता है की इस संसार में मै तो आसानी से यात्रा कर सकता हु . अर्थात व्यक्ति माया रुपी मन के चंगुल में फसकर यह सोचने लगता है की मै संसार का बादशाह हु . और मै कुछ भी कर सकता हु . पर अचानक जैसे ही ऐसा व्यक्ति विशिष्ठ नियमो को तोड़ता है तो उसको यह यात्रा करने से डर लगने लगता है और वह अपने पिता को याद करता है . तब हमारे परमपिता इस व्यक्ति को कहते है आओ आओ बच्चा किधर जा रहे हो , आप के ही दूसरे मित्रों(भाई , बहीन, पशु -पक्षी , पेड़ पौधे , जल , पृथ्वी इत्यादि ) को आप खुद से अलग कर रहे हो . अर्थात जब ऐसे व्यक्ति के मन में यह विचार आने लगते है की मै अलग हु और दूसरे जीव जंतु अलग है तो इस दूरी बढ़ाने वाले विचार के कारण प्रकृति में असंतुलन आने लगता है और प्रकृति के इस खेल को जारी रखने के लिए परमात्मा माया को आदेश देते है की अपना संतुलन कैसे भी करके बनाये . अर्थात हमारे परम पिता ही पहले माया को यह दूरी बढ़ाने वाला विचार इस अमुक व्यक्ति के मन में डालने के लिए कहते है और फिर परमात्मा ही माया को अपने खेल का संतुलन बनाये रखने के लिए इस व्यक्ति के मन में डर , चिंता , और गलती का अहसास कराने के विचार डालते है . और ऐसा लुका छुपी का खेल तब तक चलता रहता है जब तक यह व्यक्ति हताश , निराश , लाचार , और असहाय महसूस नहीं कर लेता है . जब यह व्यक्ति इस खेल में थक हार के बैठ जाता है अर्थात अपने मन की ऊपरी सतह की सारी शक्ति खर्च कर देता है और इसे कुछ भी नहीं सूझता है तो यह धीरे धीरे खुद की तरफ लौटने लगता है अर्थात बाहर की उठापटक बंद होते ही यह भूमध्य की तरफ लोट आता है यानी प्रभु का इसे अहसास होने लगता है की इतने समय से जो मै , बकरी की तरह मै मै मै कर रहा था वह सब झूठ था . यह सब तो मेरे इस शरीर के माध्यम से कोई अदृश्य शक्ति कर रही थी . जो स्वयं परमात्मा है . अर्थात माया पूरी तरह से परमात्मा से ही नियंत्रित है . या यु कहे ब्रह्मांडीय गतिविधियां प्रभु की इच्छा से ही चलती है . जब यह व्यक्ति भूमध्य पर ध्यान करता है और सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्रता का अभ्यास करता है तो यह अपने ऊपर चढ़े इस माया के परदे को हटाने में कामयाब हो जाता है . और फिर यही व्यक्ति माया के साथ जीने में भी ख़ुशी महसूस करता है . क्यों की अब यह जाग्रत होकर यह खेल खेल रहा है . इसका मन इसके खुद के नियंत्रण में आ चूका है . अब इस व्यक्ति को इन्द्रियाँ भटका नहीं सकती क्यों की अब इसने प्रभु से एकता करली है . और अपने परम पिता से प्राप्त निर्देशों के आधार पर यह व्यक्ति अपने लक्ष्य तक पहुँचता है . अर्थात इस व्यक्ति को पता चल जाता है की मेरा लक्ष्य क्या है और मै किस काम के लिए यहां आया हु और मेरा यह काम कैसे पूरा होगा . और कब मुझे प्रभु के पास वापस लौटना है . विचार माया है और परमात्मा की छाया है और सब जगह है . इसलिए जब हम सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र होकर अपने जीवन की यात्रा में आगे बढ़ते है तो हम इन्द्रियों से क्या देखे और क्या नहीं इसका ज्ञान होने लगता है . फिर हम माया को समझने लगते है , मन को समझने लगते है और अंत में हमे पता चलता है की यह सब धोखे थे केवल परमात्मा का ही अस्तित्व है . माया परमात्मा की छाया है . इस अभ्यास से हम विचार को समझने में सफल होने लगते है और विचार पर कैसे ध्यान की शक्ति को लगाकर विचार को मूर्त रूप दे सकते है . अर्थात किसी भी विचार को दृश्य जगत में लाने की कला हम सिख जाते है . जैसे शरीर में अंगो को फिर से नया कैसे करे , नया शरीर कैसे निर्मित करे , बाहर की वस्तुओं को कैसे प्राप्त करे . बीमारी के परमाणुओं को स्वस्थ परमाणुओं में कैसे रूपांतरित करे ऐसे तमाम प्रकार के रचनात्मक कार्य करने में हम सक्षम हो जाते है पर ईश्वर्य नियमों के अंतर्गत . पर ऐसा व्यक्ति जब केवल अपने परमात्मा से ही जुड़ता है और मन की इच्छाओ को पूरी नहीं करता है अर्थात माया और ब्रह्म साथ साथ रहने के नियम का पालन नहीं करता है (शरीर के अस्तित्व को बनाये रखने के लिए जरुरी चीजों का भोग नहीं करता है ) तो ऐसे व्यक्ति का मन मिटने लगता है और उसकी दुनिया ख़त्म होने लगती है और एक समय बाद पूरी तरह उसकी दुनिया ख़त्म हो जाती है . अर्थात ऐसा व्यक्ति निराकार परमात्मा में विलीन हो जाता है . इसलिए हर व्यक्ति का अपना एक अलग संसार है . आप जैसा संसार चाहते हो वैसा संसार आप रच सकते हो . इसके लिए परमात्मा की महिमा का अभ्यास अनिवार्य है . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .
भयंकर गर्मी में भी अपने आप को ठंडा कैसे रखे ? | परमात्मा की महिमा
परमात्मा की महिमा के अंतर्गत मै आज आपको उस विज्ञानं के बारे में बताने जा रहा हु जिसे यदि आप ने गहराई से समझकर अपने अहसास में लेकर आ गए तो फिर भयंकर गर्मी में भी आप अपने आप को ठंडा रख पाएंगे ओर आप गर्मी के मौसम से कभी भी परेशान नहीं होंगे . मेरे प्रिये साधको हमे गर्मी लगती क्यों है ?. क्यों की हम शुरू से सर्दी के मौसम को बहुत पसंद करते है . इसका मतलब यह हुआ की हम गर्मी से घृणा करते है . दूसरा यदि हम खाने के बहुत शौकीन है तो हम अपना मनचाहा भोजन गर्मियों में नहीं खा सकते है . तीसरा हम ऐसे वातावरण में रहते है जहा हमारे काम करने का तरीका , लोगों का व्यवहार , आस पास की प्रकृति आदि बहुत गरम लगता है . जैसे आप ऐसी मशीनो के कारखाने में या कोई अन्य काम करते है जहा गर्मी के मौसम के अलावा आप के काम के कारण भी गर्मी ओर पैदा होती है ओर जिससे ना तो आप को ठीक से भूख लगती है ओर ना ही अच्छी नींद आती है . जब हम हर समय पंखे , कूलर , ओर ac का प्रयोग करते है तो हम गर्मी से घृणा करने के अहसास को ओर बढ़ा रहे होते है . जिससे प्राकृतिक रूप से हमारे शरीर के अस्तित्व की रक्षा के लिए जितनी गर्मी की आवश्यकता होती है उसकी पूर्ती नहीं हो पाती है .ओर आवश्यक पसीना नहीं निकलने के कारण शरीर के भीतर के अनावश्यक तत्व जो पसीने के माध्यम से ही बाहर निकलने चाहिए थे वे किसी अन्य रूप में बाहर निकलने को मजबूर होते है ओर जाने अनजाने में हम कई प्रकार के रोगो से ग्रसित हो जाते है . अर्थात हमारी को गर्मी खाना बहुत आवश्यक है . जब आप सही तरीक से गर्मी से योग करने में सक्षम हो जाते हो तो एक समय बाद पसीना आना बंद होकर एक अलग ही ठण्ड का आप को अनुभव होता है . ओर फिर शरीर को जरुरत होने पर पसीना आकर फिर ठंडक का अनुभव होता है . पर हम क्या गलती करते है की पसीने से घृणा करते है ओर कई प्रकार के पाउडर ओर अन्य उपाय करते है ओर पसीने की उच्च अवस्था तक हम पहुंचते ही नहीं उससे पहले ही बीमार होने के डर से हम ठण्ड का इंतजाम करने लग जाते है . अब मेरे प्यारे साथियो आप ही बताये की जब पानी गन्दा हो जाता है तो हम उबाल कर उसको शुद्ध करते है ठीक इसी प्रकार हमारा शरीर भी गर्मी के मौसम में खुद को उबाल कर शुद्ध करता है अर्थात शरीर खुद अपने अस्तित्व की रक्षा करना चाहता है . पर हमारा मन इसमें बाधा बनकर बीच में आ जाता है . आप देखा करो जब हमारे बुखार होती है तो शरीर बहुत गर्म हो जाता है . इसका मतलब यह होता है की शरीर के भीतर अभी उबालने की प्रक्रिया चल रही है ओर अनावश्यक जीवाणु कीटाणु को खुद शरीर ही मारकर अच्छे तत्वों में या बाहर निष्कासित कर देता है . पर हम इन परिवर्तनों को सहन नहीं करने के कारण गर्मी से परेशान रहते है . तो क्या हमे इन संसाधनों का प्रयोग नहीं करना चाहिए . अवश्य करना चाहिए पर बुद्धि ओर विवेक के साथ . हर समय एकाग्र होते हुए इनका प्रयोग करे . आप देखा करो एक छोटा बच्चा भयंकर गर्मी में भी बिना कूलर पंखे के अकेला खेलता रहता है . क्यों की वह अपने खेल को इतना प्रेम करता है की उसको गर्मी का अहसास ही नहीं होता है . क्यों की उसका ध्यान खेल में है गर्मी पर नहीं . पर यह तरीका सब जगह लागू नहीं होता है . क्यों की जब हम किसी ऐसे तकनीकी उपकरण के साथ काम कर रहे हो जिसे एक समय सीमा के बाद गर्मी नुक्सान पंहुचा सकती है जैसे मोबाइल बैटरी , गीजर इत्यादि तो हमे यह याद रखना चाहिए की हम क्या काम कर रहे है . इसीलिए परमात्मा की महिमा का अभ्यास आप को गर्मी से जगाता है भगाता नहीं . जब आप को धीरे धीरे गर्मी का अहसास होने लगे तभी से इसमें एकाग्र होकर गर्मी के कारण होने वाले परिवर्तनों पर ध्यान करते हुए जीवन की सभी क्रियाये करने लगेंगे तो आप को पता चलेगा सच में गर्मी थी ही नहीं वह तो एक गर्म अनुभव होने का हमारे मन को वहम था . पर यह कार्य एक दिन में नहीं होगा . इसमें साधक के अभ्यास के प्रति निरंतरता और खुद में दृढ़ विश्वास अनिवार्य है . पर जब यह अभ्यास करने से आप को गर्मी नहीं लगने लगे तो आप को गर्मी को प्रकट करना होगा अर्थात आप को जानबूझकर ऐसा कार्य करना होगा जिससे आप के मन को गर्मी का अहसास हो जैसे कोई प्राकृतिक शारीरिक श्रम का सेवा कार्य , व्यायाम , घर की साफ़ सफाई , अपने खेत में काम , अपनी फैक्ट्री में काम इत्यादि . ऐसा क्यों ?. क्यों की गर्मी रुपी माया को प्रकट किये बिना हमारे शरीर का अस्तित्व लम्बे समय तक सुरक्षित नहीं रह सकता है . ऐसा क्यों ?. क्यों की हमारे शरीर में यह जो परिवर्तन प्रकट होते है जैसे गर्मी लगना , सर्दी लगना, भूख लगना इत्यादि , इन्ही का यह सघन रूप शरीर है . इसीलिए तो जो संत एकांत में बैठकर ध्यान साधना करते है , एक समय बाद उनका शरीर चलने लायक नहीं रहता है और धीरे धीरे उनका शरीर एक ज्योति के रूप में परिवर्तित हो जाता है . इसीलिए यह अभ्यास केवल बैठकर साधना करने के एकल पक्ष में नहीं है . बल्कि ब्रह्माण्ड का एक मात्र ऐसा अभ्यास है जिसमे शरीर के अस्तित्व को जब तक चाहे तब तक सुरक्षित रखते हुए और अपने स्वरूप को जानकर हर प्रकार की क्रिया में एकाग्र होना होता है . इसलिए जब हम गर्मी से योग करने में (अर्थात गर्मी से हमारा मिलन ) सफल हो जाते है तो फिर हम गर्मी को प्रकट कर सकते है और गायब कर सकते है . पर यहां भी अभ्यास की गहराई में जाने के बाद गर्मी को प्रकट करने की आवश्यकता नहीं होती है . पर साधक यदि अपने आप को सामान्य लोगो के साथ रखना चाहता है तो फिर उसको गर्मी को प्रकट करना आवश्यक होगा वरना ऐसे व्यक्ति से सामान्य लोग डरकर दूर भागने लगेंगे . अर्थात यदि आप को इस संसार में हर प्रकार की इच्छा को पूरा करना है तो आप परमात्मा की महिमा का गहरा अभ्यास करके अपने आप को बहुत ही साधारण व्यक्ति के रूप में समाज में पेश कर सकते है . जैसे परमात्मा किसी की मदद करने आते है तो वे अत्यंत साधारण वेशभूषा में आते है ताकि लोग उनसे डरे नहीं या अत्यधिक प्रभावित होकर खुद के स्वरूप नहीं भूल जाए . इसलिए गर्मी गायब करने के लिए ज्यादा से ज्यादा हरियाली रखना आवश्यक है और गर्मी प्रकट करने के लिए ज्यादा से ज्यादा शारीरिक श्रम करना बहुत ही जरुरी है . इससे पर्यावरण में संतुलन बना रहेगा और हमारा अस्तित्व सुरक्षित रहेगा . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .
इन्द्रियों पर नियंत्रण कैसे करे ?
Saturday, June 1, 2024
प्राकृतिक आपदा से मुक्ति का उपाय
मेरे प्रिये साधकों मै आज आपको परमात्मा की महिमा के अंतर्गत अपने परमपिता परमेश्वर के अगले राज के बारे में बताने जा रहा हु . आंधी , तूफ़ान , भूकंप , सुनामी , अतिवृष्टि , ओलावृष्टि , प्रलय क्यों आते है ?. और हम सभी को इनके नाम से ही डर लगने लगता है . सामना करेंगे तो हमारा क्या हाल होगा ?. इसको हम भलीभांति जानते है . पर ऐसा क्या करे की ये आये ही नहीं और आये तो हमे बिलकुल भी प्रभावित ना कर सके अर्थात हम इनसे डरे नहीं और हमारे जीवन में ये आये नहीं . इसका उपाय बहुत आसान है यदि हम इसके पीछे के विज्ञानं को हमारे भीतर अनुभव करले . तब हम इन आपदाओं से हमेशा के लिए मुक्त हो जायेंगे . होता क्या है मेरे प्यारे साथियों हमारे परमात्मा हमे खुद की शक्ति देकर इस पृथ्वी पर भेजते है हमारे शरीरों के माध्यम से लीला देखने के लिए . पर हमे यह स्वतंत्र शक्ति मिलने के कारण हम अप्राकृतिक कार्य करके कई प्रकार के अहंकारो को पैदा कर लेते है . एक स्वतंत्र शक्ति मिलते ही हमारे में अहंकार का जन्म हो जाता है . आप देखा करे जब आप का मूड बहुत अच्छा होता है और शरीर और मन में आप बहुत अच्छा महसूस करते है तब आप अपने आप ही बड़ी बड़ी बाते करने लगते है . उस समय हमारे पास कोई समस्या लेकर आते है तो हम उसे कहते है यह कोई समस्या है जो आप इतना परेशान हो रहे हो . यह तो मेरे बाये हाथ का खेल है . यहां बाये हाथ का खेल इसलिए कहा गया है की ज्यादातर लोग दाए हाथ से काम करते है और उसी को ज्यादा ताकतवर मानते है . इसका मतलब यह हुआ की हम अहंकार के कारण यह कहते है की यह तो मेरे बाये हाथ का खेल है दाए हाथ से तो पता नहीं मै क्या क्या कर सकता हु ?. अब हम परमात्मा से मिली इस कर्म करने की स्वतंत्र शक्ति से हमारे अहंकार के लालन पालन के लिए पाप और पुण्य के जाल में फस जाते है . जैसे हम कोई बड़ा उद्योग या कंपनी शुरू करते है और ऐसी चीजों का निर्माण करते है जिनका ज्यादा प्रयोग मनुष्य जाती और अन्य प्रजातियों को प्रकृति के विरुद्ध ले जाता है . अर्थात हम विलासिता का जीवन जीने लगते है . अपार धन सम्पदा इन कंपनियों , अप्राकृतिक खेती , और सभी अन्य अप्राकृतिक कार्यो से एकत्रित करते है . जिसके लिए हम हरे पेड़ों को काटते है , जल प्रदुषण पैदा करते है , वायु प्रदुषण , मिट्टी प्रदुषण , विचारों का प्रदुषण और ऐसे अन्य तमाम प्रकार के विघटन पैदा करते है जो प्रकृति को अपना संतुलन बनाने में बहुत ही ज्यादा बाधा पहुंचाते है . हम खुद को बढ़ते मान सम्मान , अपार धन सम्पदा के कारण और जीवों से अलग और बड़ा मानने लगते है . हम अहंकार के कारण अंधे होकर हमारे परम पिता से इतने दूर चले जाते है की हमे माया ही सच दिखाई पड़ती है और हमारे भीतर सभी जीवों से एकता अनुभव करने की शक्ति धीरे धीरे समाप्त होने लगती है . क्यों की सच रूप में तो हम परमात्मा की डोर से बंधे हुए थे पर अपने कर्मो के कारण हमने खुद ही उनसे दूरी बना ली . और जब एक पिता का बहुत ही लाडला बच्चा उससे दूर जाता है तो पिता उसको कैसे भी करके खुद के पास ले आते है . कोन पिता अपने बच्चे को खोना चाहेगा . हम सच रूप में सभी जीव केवल परमात्मा के बच्चे है . इसलिए जब हम मारकाट करते है , जीवों को सताते है , हिंसा करते है , हमेशा दुसरो की बुराई करते है , निंदा करते है , जीवों से घृणा , खुद से घृणा करते है , खुद को बड़ा दुसरो को छोटा मानते है , मान सम्मान के प्यासे होते है , पृथ्वी पर अत्याचार फैलाते है, और ग्रहो पर भी हमारा आधिपत्य जमाते है तो हमारे पाप का घड़ा भरने लगता है . और जब आप समझते हो की हमारे पाँव में कोई फोड़ा हो जाये तो उसको ठीक करने के लिए कीटाणु , जीवाणु हमला करते है और उस फोड़े को खा जाते है . अर्थात शिव की शक्ति के माध्यम से फोड़ा ठीक होता है . शिव परिवर्तन की शक्ति है . ठीक इसी प्रकार हमारे परम पिता हमे यह अहसास दिलाने के लिए की आप अन्य जीवों से , और अन्य सभी ब्रह्माण्ड की वस्तुओं से अलग नहीं हो , इसलिए हमे अपनी एकता का अनुभव कराने के लिए प्रकृति के माध्यम से इन आपदाओं को जन्म देते है . जैसे हम पृथ्वी पर गहरे तहखाने और खाईया खोदकर और पर्वत और पहाड़ो को तोड़कर नए नए निर्माण करते है तो पृथ्वी अपना संतुलन बनाने के लिए भूकंप जैसे परिवर्तन पैदा करती है . क्यों की यहां हमने अपनी धरती माता से एकता का अनुभव नहीं किया था इसीलिए हमने इसमें छेद ही छेद कर दिए अपने अहंकार की तृप्ति के लिए . इसलिए हमारे परम पिता ने हमे भूकंप का अहसास कराके यह सन्देश दिया है की बच्चो आप और पृथ्वी अलग अलग नहीं हो . आप पृथ्वी से इसी प्रकार जुड़े हो जैसे गुलाब से उसकी खुशबु . ओर जैसे खेत में अधिक पैदावार या अन्य किसी लालच के कारण हम इसमें जहरीले कीटनाशक , खतरनाक रसायनो का प्रयोग करते है , बीजों से विकास के नाम पर छेड़छाड़ करके उनकी नश्ल को अप्राकृतिक करते है , ठीक इसी प्रकार जब एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से विचारों में गहरे मतभेद रखता है और एक दूसरे के प्रति हिंसा के भाव रखता है तो प्रकृति हमे हमारी एकता का अनुभव कराने के लिए ऐसी घटनाओं को जन्म देती है जिनसे व्यक्ति को उसकी गलती का अहसास होकर दूसरे व्यक्तियो के साथ रहने में उसको अच्छा लगने लगे . अब इन आपदाओं से मुक्ति का मै आप को उपाय बताने जा रहा हु . आप सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र होकर जीवन की सभी क्रियाये करे , पेड़ों की सेवा करे , मानव जाती की सेवा करे , खुद की सेवा करे , प्रकृति से प्रेम करे और ज्यादा से ज्यादा ध्यान करते हुए सेवा कार्यो में लगे रहे . पर शर्त यह है की सेवा के बदले में आप कुछ भी अपेक्षा ना रखे . क्यों की आप को केवल कर्म करने की स्वतंत्रता है . क्यों की फल की अपेक्षा रखने का अर्थ है आप अभी परमात्मा को समर्पित नहीं हुए हो . जब समर्पण घटित होता है तो आप को सबकुछ मिल जाता है . प्रभु के आगे समर्पण के लिए ही यह अभ्यास कराया जाता है . अभ्यास के वीडिओज़ मै समय समय पर यूट्यूब और अन्य websites पर डालता रहता हु और मेरे लेख ब्लोग्स पर भी मिलते है . आप परमात्मा की महिमा नाम से पता कर सकते है . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .
क्रियायोग - हमे सुख और दुःख की अनुभूति क्यों होती है ?
आज मै आप को यह गहराई से समझाने जा रहा हु की हमे सुख और दुःख की अनुभूति क्यों होती है . हमे सुख और दुःख की अनुभूति परमात्मा के माध्यम से जो...
-
इस दवा से कभी नहीं होंगे दाँत और मसूड़ों के रोग | परमात्मा की महिमा जब हम हमारे मुँह की बदबू से घृणा करते है और अपने दांतो और मसूड़ों की बीम...
-
भक्त और भगवान के बीच बातचीत विषय : माया क्या है , विचार क्या है , आकर्षण का सिद्धांत क्या है ऐसे यह भक्त अपने परमपिता परमेश्वर से बहुत कुछ...
-
परमात्मा की महिमा क्या है ? परमात्मा की महिमा का अर्थ है की कैसे हम अपने स्वरूप को जाने , परमात्मा को जाने , हमारे और परमात्मा के बीच दू...