मेरे प्रिये साधकों मै आज आपको परमात्मा की महिमा के अंतर्गत अपने परमपिता परमेश्वर के अगले राज के बारे में बताने जा रहा हु . आंधी , तूफ़ान , भूकंप , सुनामी , अतिवृष्टि , ओलावृष्टि , प्रलय क्यों आते है ?. और हम सभी को इनके नाम से ही डर लगने लगता है . सामना करेंगे तो हमारा क्या हाल होगा ?. इसको हम भलीभांति जानते है . पर ऐसा क्या करे की ये आये ही नहीं और आये तो हमे बिलकुल भी प्रभावित ना कर सके अर्थात हम इनसे डरे नहीं और हमारे जीवन में ये आये नहीं . इसका उपाय बहुत आसान है यदि हम इसके पीछे के विज्ञानं को हमारे भीतर अनुभव करले . तब हम इन आपदाओं से हमेशा के लिए मुक्त हो जायेंगे . होता क्या है मेरे प्यारे साथियों हमारे परमात्मा हमे खुद की शक्ति देकर इस पृथ्वी पर भेजते है हमारे शरीरों के माध्यम से लीला देखने के लिए . पर हमे यह स्वतंत्र शक्ति मिलने के कारण हम अप्राकृतिक कार्य करके कई प्रकार के अहंकारो को पैदा कर लेते है . एक स्वतंत्र शक्ति मिलते ही हमारे में अहंकार का जन्म हो जाता है . आप देखा करे जब आप का मूड बहुत अच्छा होता है और शरीर और मन में आप बहुत अच्छा महसूस करते है तब आप अपने आप ही बड़ी बड़ी बाते करने लगते है . उस समय हमारे पास कोई समस्या लेकर आते है तो हम उसे कहते है यह कोई समस्या है जो आप इतना परेशान हो रहे हो . यह तो मेरे बाये हाथ का खेल है . यहां बाये हाथ का खेल इसलिए कहा गया है की ज्यादातर लोग दाए हाथ से काम करते है और उसी को ज्यादा ताकतवर मानते है . इसका मतलब यह हुआ की हम अहंकार के कारण यह कहते है की यह तो मेरे बाये हाथ का खेल है दाए हाथ से तो पता नहीं मै क्या क्या कर सकता हु ?. अब हम परमात्मा से मिली इस कर्म करने की स्वतंत्र शक्ति से हमारे अहंकार के लालन पालन के लिए पाप और पुण्य के जाल में फस जाते है . जैसे हम कोई बड़ा उद्योग या कंपनी शुरू करते है और ऐसी चीजों का निर्माण करते है जिनका ज्यादा प्रयोग मनुष्य जाती और अन्य प्रजातियों को प्रकृति के विरुद्ध ले जाता है . अर्थात हम विलासिता का जीवन जीने लगते है . अपार धन सम्पदा इन कंपनियों , अप्राकृतिक खेती , और सभी अन्य अप्राकृतिक कार्यो से एकत्रित करते है . जिसके लिए हम हरे पेड़ों को काटते है , जल प्रदुषण पैदा करते है , वायु प्रदुषण , मिट्टी प्रदुषण , विचारों का प्रदुषण और ऐसे अन्य तमाम प्रकार के विघटन पैदा करते है जो प्रकृति को अपना संतुलन बनाने में बहुत ही ज्यादा बाधा पहुंचाते है . हम खुद को बढ़ते मान सम्मान , अपार धन सम्पदा के कारण और जीवों से अलग और बड़ा मानने लगते है . हम अहंकार के कारण अंधे होकर हमारे परम पिता से इतने दूर चले जाते है की हमे माया ही सच दिखाई पड़ती है और हमारे भीतर सभी जीवों से एकता अनुभव करने की शक्ति धीरे धीरे समाप्त होने लगती है . क्यों की सच रूप में तो हम परमात्मा की डोर से बंधे हुए थे पर अपने कर्मो के कारण हमने खुद ही उनसे दूरी बना ली . और जब एक पिता का बहुत ही लाडला बच्चा उससे दूर जाता है तो पिता उसको कैसे भी करके खुद के पास ले आते है . कोन पिता अपने बच्चे को खोना चाहेगा . हम सच रूप में सभी जीव केवल परमात्मा के बच्चे है . इसलिए जब हम मारकाट करते है , जीवों को सताते है , हिंसा करते है , हमेशा दुसरो की बुराई करते है , निंदा करते है , जीवों से घृणा , खुद से घृणा करते है , खुद को बड़ा दुसरो को छोटा मानते है , मान सम्मान के प्यासे होते है , पृथ्वी पर अत्याचार फैलाते है, और ग्रहो पर भी हमारा आधिपत्य जमाते है तो हमारे पाप का घड़ा भरने लगता है . और जब आप समझते हो की हमारे पाँव में कोई फोड़ा हो जाये तो उसको ठीक करने के लिए कीटाणु , जीवाणु हमला करते है और उस फोड़े को खा जाते है . अर्थात शिव की शक्ति के माध्यम से फोड़ा ठीक होता है . शिव परिवर्तन की शक्ति है . ठीक इसी प्रकार हमारे परम पिता हमे यह अहसास दिलाने के लिए की आप अन्य जीवों से , और अन्य सभी ब्रह्माण्ड की वस्तुओं से अलग नहीं हो , इसलिए हमे अपनी एकता का अनुभव कराने के लिए प्रकृति के माध्यम से इन आपदाओं को जन्म देते है . जैसे हम पृथ्वी पर गहरे तहखाने और खाईया खोदकर और पर्वत और पहाड़ो को तोड़कर नए नए निर्माण करते है तो पृथ्वी अपना संतुलन बनाने के लिए भूकंप जैसे परिवर्तन पैदा करती है . क्यों की यहां हमने अपनी धरती माता से एकता का अनुभव नहीं किया था इसीलिए हमने इसमें छेद ही छेद कर दिए अपने अहंकार की तृप्ति के लिए . इसलिए हमारे परम पिता ने हमे भूकंप का अहसास कराके यह सन्देश दिया है की बच्चो आप और पृथ्वी अलग अलग नहीं हो . आप पृथ्वी से इसी प्रकार जुड़े हो जैसे गुलाब से उसकी खुशबु . ओर जैसे खेत में अधिक पैदावार या अन्य किसी लालच के कारण हम इसमें जहरीले कीटनाशक , खतरनाक रसायनो का प्रयोग करते है , बीजों से विकास के नाम पर छेड़छाड़ करके उनकी नश्ल को अप्राकृतिक करते है , ठीक इसी प्रकार जब एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से विचारों में गहरे मतभेद रखता है और एक दूसरे के प्रति हिंसा के भाव रखता है तो प्रकृति हमे हमारी एकता का अनुभव कराने के लिए ऐसी घटनाओं को जन्म देती है जिनसे व्यक्ति को उसकी गलती का अहसास होकर दूसरे व्यक्तियो के साथ रहने में उसको अच्छा लगने लगे . अब इन आपदाओं से मुक्ति का मै आप को उपाय बताने जा रहा हु . आप सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र होकर जीवन की सभी क्रियाये करे , पेड़ों की सेवा करे , मानव जाती की सेवा करे , खुद की सेवा करे , प्रकृति से प्रेम करे और ज्यादा से ज्यादा ध्यान करते हुए सेवा कार्यो में लगे रहे . पर शर्त यह है की सेवा के बदले में आप कुछ भी अपेक्षा ना रखे . क्यों की आप को केवल कर्म करने की स्वतंत्रता है . क्यों की फल की अपेक्षा रखने का अर्थ है आप अभी परमात्मा को समर्पित नहीं हुए हो . जब समर्पण घटित होता है तो आप को सबकुछ मिल जाता है . प्रभु के आगे समर्पण के लिए ही यह अभ्यास कराया जाता है . अभ्यास के वीडिओज़ मै समय समय पर यूट्यूब और अन्य websites पर डालता रहता हु और मेरे लेख ब्लोग्स पर भी मिलते है . आप परमात्मा की महिमा नाम से पता कर सकते है . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .
केवल परमात्मा का अस्तित्व है. परमात्मा सर्वव्यापी है परमात्मा कण कण में विराजमान है. परमात्मा का हर गुण अनंत है जैसे परमात्मा का एक गुण यह भी है की वे एक से अनेक रूपों में प्रकट होते है. निराकार से साकार रूप में प्रकट होना है : सृष्टि की उत्पति अर्थात निराकार से साकार रूप में प्रकट होना ,असंख्य जीव अर्थात एक से अनेक होने का गुण. मानव का लक्ष्य केवल परमात्मा को जानना है , खुद के स्वरूप को जानना है , परमात्मा और हमारे बीच दूरी शून्य है इसका अनुभव करना है , हर पल खुश कैसे रहे इसका अभ्यास करना है
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परमात्मा की महिमा में आप सभी का हार्दिक अभिनन्दन है