Sunday, June 2, 2024

भयंकर गर्मी में भी अपने आप को ठंडा कैसे रखे ? | परमात्मा की महिमा

परमात्मा की महिमा के अंतर्गत मै आज आपको उस विज्ञानं के बारे में बताने जा रहा हु जिसे यदि आप ने गहराई से समझकर अपने अहसास में लेकर आ गए तो फिर भयंकर गर्मी में भी आप अपने आप को ठंडा रख पाएंगे ओर आप गर्मी के मौसम से कभी भी परेशान नहीं होंगे . मेरे प्रिये साधको हमे गर्मी लगती क्यों है ?. क्यों की हम शुरू से सर्दी के मौसम को बहुत पसंद करते है . इसका मतलब यह हुआ की हम गर्मी से घृणा करते है . दूसरा यदि हम खाने के बहुत शौकीन है तो हम अपना मनचाहा भोजन गर्मियों में नहीं खा सकते है . तीसरा हम ऐसे वातावरण में रहते है जहा हमारे काम करने का तरीका , लोगों का व्यवहार , आस पास की प्रकृति आदि बहुत गरम लगता है . जैसे आप ऐसी मशीनो के कारखाने में या कोई अन्य काम करते है जहा गर्मी के मौसम के अलावा आप के काम के कारण भी गर्मी ओर पैदा होती है ओर जिससे ना तो आप को ठीक से भूख लगती है ओर ना ही अच्छी नींद आती है . जब हम हर समय पंखे , कूलर , ओर ac का प्रयोग करते है तो हम गर्मी से घृणा करने के अहसास को ओर बढ़ा रहे होते है . जिससे प्राकृतिक रूप से हमारे शरीर के अस्तित्व की रक्षा के लिए जितनी गर्मी की आवश्यकता होती है उसकी पूर्ती नहीं हो पाती है .ओर आवश्यक पसीना नहीं निकलने के कारण शरीर के भीतर के अनावश्यक तत्व जो पसीने के माध्यम से ही बाहर निकलने चाहिए थे वे किसी अन्य रूप में बाहर निकलने को मजबूर होते है ओर जाने अनजाने में  हम कई प्रकार के रोगो से ग्रसित हो जाते है . अर्थात हमारी को गर्मी खाना बहुत आवश्यक है . जब आप सही तरीक से गर्मी से योग करने में सक्षम हो जाते हो तो एक समय बाद पसीना आना बंद होकर एक अलग ही ठण्ड का आप को अनुभव होता है . ओर फिर शरीर को जरुरत होने पर पसीना आकर फिर ठंडक का अनुभव होता है . पर हम क्या गलती करते है की पसीने से घृणा करते है ओर कई प्रकार के पाउडर ओर अन्य उपाय करते है ओर पसीने की उच्च अवस्था तक हम पहुंचते ही नहीं उससे पहले ही बीमार होने के डर से हम ठण्ड का इंतजाम करने लग जाते है . अब मेरे प्यारे साथियो आप ही बताये की जब पानी गन्दा हो जाता है तो हम उबाल कर उसको शुद्ध करते है ठीक इसी प्रकार हमारा शरीर भी गर्मी के मौसम में खुद को उबाल कर शुद्ध करता है अर्थात शरीर खुद अपने अस्तित्व की रक्षा करना चाहता है . पर हमारा मन इसमें बाधा बनकर बीच में आ जाता है . आप देखा करो जब हमारे बुखार होती है तो शरीर बहुत गर्म हो जाता है . इसका मतलब यह होता है की शरीर के भीतर अभी उबालने की प्रक्रिया चल रही है ओर अनावश्यक जीवाणु कीटाणु को खुद शरीर ही मारकर अच्छे तत्वों में या बाहर निष्कासित कर देता है . पर हम इन परिवर्तनों को सहन नहीं करने के कारण गर्मी से परेशान रहते है . तो क्या हमे इन संसाधनों का प्रयोग नहीं करना चाहिए . अवश्य करना चाहिए पर बुद्धि ओर विवेक के साथ . हर समय एकाग्र होते हुए इनका प्रयोग करे . आप देखा करो एक छोटा बच्चा भयंकर गर्मी में  भी बिना कूलर पंखे के अकेला खेलता रहता है . क्यों की वह अपने खेल को इतना प्रेम करता है की उसको गर्मी का अहसास ही नहीं होता है . क्यों की उसका ध्यान खेल में है गर्मी पर नहीं . पर यह तरीका सब जगह लागू नहीं होता है . क्यों की जब हम किसी ऐसे तकनीकी उपकरण के  साथ काम कर रहे हो जिसे एक समय सीमा के बाद गर्मी नुक्सान पंहुचा सकती है जैसे मोबाइल बैटरी , गीजर इत्यादि तो हमे यह याद रखना चाहिए की हम क्या काम कर रहे है . इसीलिए परमात्मा की महिमा का अभ्यास आप को गर्मी से जगाता है भगाता नहीं .  जब आप को धीरे धीरे गर्मी का अहसास होने लगे तभी से इसमें एकाग्र होकर गर्मी के कारण होने वाले परिवर्तनों पर ध्यान करते हुए जीवन की सभी क्रियाये करने लगेंगे तो आप को पता चलेगा सच में गर्मी थी ही नहीं वह तो एक गर्म अनुभव होने का हमारे मन को वहम था . पर यह कार्य एक दिन में नहीं होगा . इसमें साधक के अभ्यास के प्रति निरंतरता और खुद में दृढ़ विश्वास अनिवार्य है . पर जब यह अभ्यास करने से आप को गर्मी नहीं लगने लगे तो आप को गर्मी को प्रकट करना होगा अर्थात आप को जानबूझकर ऐसा कार्य करना होगा जिससे आप के मन को गर्मी का अहसास हो जैसे कोई प्राकृतिक शारीरिक श्रम का सेवा कार्य , व्यायाम , घर की साफ़ सफाई , अपने खेत में काम , अपनी फैक्ट्री में काम इत्यादि . ऐसा क्यों ?. क्यों की गर्मी रुपी माया को प्रकट किये बिना हमारे शरीर का अस्तित्व लम्बे समय तक सुरक्षित नहीं रह सकता है . ऐसा क्यों ?. क्यों की हमारे शरीर में यह जो परिवर्तन प्रकट होते है जैसे गर्मी लगना , सर्दी लगना, भूख लगना इत्यादि , इन्ही का यह सघन रूप शरीर है . इसीलिए तो जो संत एकांत में बैठकर ध्यान साधना करते है , एक समय बाद उनका शरीर चलने लायक नहीं रहता है और धीरे धीरे उनका शरीर एक ज्योति के रूप में परिवर्तित हो जाता है . इसीलिए यह अभ्यास केवल बैठकर साधना करने के एकल पक्ष में नहीं है . बल्कि ब्रह्माण्ड का एक मात्र ऐसा अभ्यास है जिसमे शरीर के अस्तित्व को जब तक चाहे तब तक सुरक्षित रखते हुए और अपने स्वरूप को जानकर हर प्रकार की क्रिया में एकाग्र होना होता है . इसलिए जब हम गर्मी से योग करने में (अर्थात गर्मी से हमारा मिलन ) सफल हो जाते है तो फिर हम गर्मी को प्रकट कर सकते है और गायब कर सकते है . पर यहां भी अभ्यास की गहराई में जाने के बाद गर्मी को प्रकट करने की आवश्यकता नहीं होती है . पर साधक यदि अपने आप को सामान्य लोगो के साथ रखना चाहता है तो फिर उसको गर्मी को प्रकट करना आवश्यक होगा वरना ऐसे व्यक्ति से सामान्य लोग डरकर दूर भागने लगेंगे . अर्थात यदि आप को इस संसार में हर प्रकार की इच्छा को पूरा करना है तो आप परमात्मा की महिमा का गहरा अभ्यास करके अपने आप को बहुत ही साधारण व्यक्ति के रूप में समाज में पेश कर सकते है . जैसे परमात्मा किसी की मदद करने आते है तो वे अत्यंत साधारण वेशभूषा में आते है ताकि लोग उनसे डरे नहीं या अत्यधिक प्रभावित होकर खुद के स्वरूप नहीं भूल जाए . इसलिए गर्मी गायब करने के लिए ज्यादा से ज्यादा हरियाली रखना आवश्यक है और गर्मी प्रकट करने के लिए ज्यादा से ज्यादा शारीरिक श्रम करना बहुत ही जरुरी है . इससे पर्यावरण में संतुलन बना रहेगा और हमारा अस्तित्व सुरक्षित रहेगा . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .

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