Friday, August 23, 2024

मैं कौन हूँ ?

 आप ईश्वर की संतान है . हाँ यही सत्य है . 

कैसे ? 

मैं आज आप को पुरे व्येज्ञानिक तथ्यों के आधार यह सिद्ध करके बताऊंगा की आप ईश्वर की संतान है और परमात्मा के अलावा कुछ भी नहीं है . आप किसी से भी सच बोलकर देखो आप झगड़े में फस जायेंगे यदि सामने वाला खुद को हर समय ईश्वरीय अनुभूति में अनुभव नहीं करता है तो . क्यों की जब आप किसी से सच बोलते है और वह माया में फसा हुआ है तो उसमे एक अहंकार भाव रहता है जो उससे यह कहलवाता है की वह खुद सही है और बाकी सब गलत है . यह पूरा संसार इसी सिद्धांत पर कार्य करता है . अर्थात यह पूरा संसार आप का ही दृश्य स्वरूप है . आप एक विचार है . जिसका घनीभूत रूप यह शरीर है और सूक्ष्म रूप आपका मन है . 

मन ही शरीर है . कैसे ?. 

जब आप के पेट में अफारा आ जाता है तो आप का पेट फूल जाता है और आप का मन अच्छा महसूस नहीं करता है . अर्थात जैसा आप का मन होगा आपका शरीर का स्वास्थ्य वैसा ही होगा . और जैसा आपका शरीर होगा वैसा ही आपका मन भी होगा . क्यों की सूक्ष्म रूप में दोनों एक ही है . परमात्मा ने यह संसार एक नियम के तहत रचा है . परमात्मा निर्देशक है और आप कलाकार है . वे जैसे निर्देश देते है आप को वैसी ही कला दिखानी होती है . जब आप अपना अलग अस्तित्व मानने की गलती करते है माया के प्रभाव के कारण तो आप को सुख दुःख की अनुभूति होती है . परन्तु जब आप परमात्मा के साथ एकता का अनुभव करते है तो आप हर परिस्थिति में आनंद की अनुभूति में रहते है . प्रभु कृपा से मैं जो आप को योग सिखाता हु उसे क्रियायोग कहते है , इसके नियमित अभ्यास से आप एक दिन पूर्ण रूप से प्रभु से एकता स्थापित करने में सफल हो जाते है . क्रियायोग करने से आप कौन है इसका शत प्रतिशत सही जवाब आप को मिल जाता है की आप और परमात्मा के बीच दूरी शून्य है . फिर प्रश्न यह आता है की हमने पृथ्वी पर जन्म क्यों लिया है . इसका सही जवाब यह है की परमात्मा आप को उनके अनुभव का ज्ञान कराने के लिए यह लीला रचते है . क्यों की परमात्मा की हर चीज़ अनंत है . 

आप का लक्ष्य अपने स्वरुप का दर्शन करना है . पर करे कैसे ?. 

आप को जो यह शरीर मिला है इसके माध्यम से करे . 

कैसे ?.

 सेवा करना आपका लक्ष्य है . पृथ्वी की सेवा , पेड़ों की सेवा , मानव की सेवा , जीव जन्तुओं की सेवा और सबसे पहले खुद की सेवा . कैसे ?. आप स्नान करते है . कभी पता करने की कोशिस की की आप स्नान क्यों करते है आप तो ईश्वर की संतान है और पवित्र है . आप को पानी से योग करना होता है . क्यों की आप का शरीर पृथ्वी , जल , अग्नि , वायु और आकाश से निर्मित हुआ है . यदि आप पानी से सही से योग करना नहीं सीखेंगे तो आप को जल से संबंधित बीमारियाँ होगी . जैसे यदि शरीर में जल तत्व संतुलित नहीं है तो आप के शरीर की हड्डियों में लचीलापन नहीं होगा , आप की वाणी में लचीलापन नहीं होगा . जब हम स्नान करते है तो शरीर पर यदि कोई भी बिना जरुरत के तत्व जमे है जैसे अतिरिक्त पसीना , गंदगी इत्यादि तो पानी के माध्यम से हम इन्हे पृथ्वी को दान कर देते है और ठीक इसी प्रकार मल मूत्र का त्याग करके हम पृथ्वी को दान कर देते है , अंत में हम हमारे शरीर का त्याग कर देते है जैसे मृत शरीर को मिट्टी में गाड़ दिया जाता है जो कई वर्षो बाद पूरा शरीर मिट्टी में बदल जाता है . इस प्रकार पृथ्वी का अस्तित्व बचाये रखने में हम हमारा महत्वपूर्ण योगदान देते है . ठीक इसी प्रकार पृथ्वी भी हमे दान के रूप में अनाज, फल , सब्जियाँ इत्यादि देती है . इससे यह सिद्ध होता है की हम सब एक दूसरे की सेवा में लगे हुए है . परन्तु मानव को परमात्मा से और जीवों की अपेक्षा कुछ विशेष शक्तियाँ मिली है जिसका हम अहंकार के कारण दुरूपयोग कर बैठते है और हमारा सर्वनाश हो जाता है . क्यों की परमात्मा ने प्रकृति के विरुद्ध जाने का अधिकार किसी को नहीं दिया है चाहे वह कितना ही बड़ा सिद्ध हो . प्रकृति के विरुद्ध जो भी जायेगा प्रकृति उसको उसके कर्म की सजा अवश्य देती है . परन्तु जब आप शत प्रतिशत परमात्मा की शरण में आ जाते है तो आप सभी पापों से मुक्त हो जाते है . 

क्या संसार में रहते हुए शत प्रतिशत परमात्मा की शरण में आया जा सकता है ?. हाँ कैसे ?.

 किसी भी पारंगत गुरु के सानिध्य में क्रियायोग का नियमित अभ्यास करने से . पारंगत गुरु वह है जिसने खुद के स्वरुप को जान लिया है . और जिसने जान लिया है वह आप को बताएगा नहीं . आप को उस पर विश्वास करना पड़ेगा . अब आप उन पर विश्वास कैसे करे ?. उनके स्वभाव , उनकी वाणी , सरलता.  काम , क्रोध , मद , लोभ , आलस्य , निद्रा , भय , मैथुन इत्यादि पर पारंगत गुरु विजय प्राप्त कर लेता है . धन्यवाद जी . मंगल हो जी . 

क्रियायोग - हमे सुख और दुःख की अनुभूति क्यों होती है ?

आज मै आप को यह गहराई से समझाने जा रहा हु की हमे सुख और दुःख की अनुभूति क्यों होती है . हमे सुख और दुःख की अनुभूति परमात्मा के माध्यम से जो...