Monday, September 30, 2024

क्रियायोग - महावीर , बुद्ध , कबीर , ओशो , गुरु नानक , विवेकानंद , राम , कृष्ण, जीसस इत्यादि में किसकी बात माने और किसकी नहीं ?

यह प्रश्न ही ठीक नहीं है . क्यों की उपरोक्त सभी अपने अपने अनुभव साझा कर रहे है . आप जब इनको पढ़ेंगे तो बार बार पढ़ने से आप धीरे धीरे भ्रमित होने लगेंगे या यह सच समझने लगेंगे की सभी एक ही बात को अलग अलग तरीके से समझाने का प्रयास कर रहे है . अर्थात ये सभी परमात्मा को कैसे जाने इसके अलग अलग रास्ते बता रहे है . अब तय आप को करना है की आप इनके बताये रास्ते पर चलते है या आप अपना अलग रास्ता चुनते है . क्यों की आप को चुनने का अधिकार मिला है . बुद्ध के रास्ते से चलेंगे तो आप बुद्ध बन जायेंगे , महावीर के रास्ते से चलेंगे तो आप महावीर बन जायेंगे और किसी गुरु के रास्ते से चलेंगे तो आप गुरु बन जायेंगे और यदि आप खुद का अपना रास्ता बनाकर चलेंगे तो आप खुद परमात्मा बन जायेंगे . और अंत में आप को यह अनुभव होगा की केवल परमात्मा का अस्तित्व है , परमात्मा के अलावा कुछ भी नहीं है . आप के भीतर उपरोक्त सभी महान गुरुजन विराजमान है . आप के और इनके बीच दूरी शून्य है . पर माया के प्रभाव के कारण आप को समय , दूरी और द्रव्यमान का अनुभव होता है . ठोकर सबसे बड़ा गुरु है . और यदि आप ठोकर का इन्तजार करने से बचना चाहते हो तो फिर विश्वास ठोकर से भी बड़ा गुरु है . विश्वास से बड़ा गुरु ना था , ना है , और ना होगा .

विश्वास किसमें करे ?

अपनी आत्मा में , परमात्मा में या यु कहे की आप यह विश्वास करले की कण कण में केवल परमात्मा का अस्तित्व है . अर्थात क्रियायोग का अभ्यास आप को आप से मिलाने का तीव्रतम मार्ग है . बाकी सबमे लम्बी यात्रा करनी पड़ती है .

इस अभ्यास के अंतर्गत आने वाली शर्ते :

१. सत्य और अहिंसा का पालन करे

१.१ . खुद से झूठ बोलना बंद करे

२. खुद को बहलाना फुसलाना बंद करे

३. खुद से अनन्य प्रेम करे

४. खुद को समय दे

५. खुद की इज्जत करना शुरू करे

६. खुद किसी की चुगली , निंदा , बुराई ना करे

७. खुद को मुर्ख बनाना बंद करे

८. मान , अपमान के लालच से दूर रहे

९. पूर्ण निश्वार्थ भाव से सेवा करे

१०. पूर्ण समर्पण भाव विकसित करे

११. केवल कर्म करे और यह अनुभव करते हुए करे की आप के रूप में खुद परमात्मा यह कर्म कर रहे है .

१२. शरीर में होने वाले सभी परिवर्तनों को सुख दुःख कहना बंद करे

१३. आप यह विश्वास करे की आप शरीर नहीं है बल्कि परमात्मा आप के शरीर के रूप में प्रकट हो रहे है .

१४. यदि आप कृष्ण के भक्त है तो कण कण में कृष्ण को ही देखे

१५. यदि आप अल्लाह के भक्त है तो कण कण में अल्लाह को ही देखे

१६. यदि आप राम के भक्त है तो कण कण बोले सीताराम

१७. यदि आप खुद के भक्त है तो कण कण में खुद को ही देखे

१७.१ यदि आप सच्चे राम भक्त है तो फिर आप अल्लाह के भक्त को भी राम भक्त के रूप में देखेंगे 

१७.२ यदि आप सच्चे अल्लाह के भक्त है तो फिर आप राम के भक्त को भी अल्लाह के भक्त के रूप में देखेंगे 

१७.३ अर्थात आप इस संसार में किसी भी जाती , धर्म , सम्प्रदाय , पंथ इत्यादि का बराबर सम्मान करेंगे . 

१७.४ सभी महान अवतारों ने खुद से युद्ध करने की बात कही है ना की बाहर महाभारत करने को कहा है 

१७.५ हम इन अवतारों की बात को हमारी अल्पबुद्धि(अविकसित) से समझने के कारण संसार में बाहर आये दिन युद्ध कर रहे है और हमारा खुद का ही सर्वनाश कर रहे है . जब तक हम सत्य और अहिंसा के मार्ग पर नहीं चलेंगे तब तक हम खुद को नहीं जान पायेंगे.

१८. आप खुद तय करे की आप को साकार की साधना करनी है या निराकार की

१९. गृहस्थ के लिए साकार की साधना सर्वश्रेष्ठ होती है

२०. वीतरागी संत के लिए निराकार की साधना सर्वश्रेष्ठ होती है

२१. जैसी आप की मति होगी वैसी आप की गति होगी

२२. यदि आप बीमार है तो आप को पारंगत चिकित्सक से इलाज करवाना चाहिए यह कहता है क्रियायोग अभ्यास

२३. यदि आप वहमी है तो आप को अपनी श्वास के साथ योग करना चाहिए वहम से पर्दा उठ जायेगा

२४. यदि आप को चमत्कार देखने में बहुत आनंद आता है तो पहले यह चमत्कार देखे की आप शरीर नहीं हो और फिर भी अपने आप को शरीर मानकर दिन रात इस मायाजाल में फसते चले जा रहे हो .

२५. क्रियायोग के अभ्यास से आप को अनुभव होगा की आप खुद पूरा संसार हो .

प्रभु के इस लेख से यदि आप को फायदा होता है तो आप की यह नैतिक जिम्मेदारी बनती है की आप इस लेख को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक भेजे और हमारे इस सेवा मिशन में अपना अमूल्य योगदान देकर प्रभु के श्री चरणों में अपना स्थान सुनिश्चित करे . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .

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Saturday, September 28, 2024

क्रियायोग - आप के साथ भविष्य में होने वाली बुरी घटनाओं से कैसे बचे ?

आज मै आपको क्रियायोग के अभ्यास का वह राज बताने जा रहा हूँ जिसे आप खुद अभ्यास करके अनुभव कर सकते है और आप के साथ भविष्य में होने वाली बुरी घटनाओं से पूरी तरह बच सकते है .

जब आप नियमित रूप से पूर्ण श्रद्धा , भक्ति और विश्वास के साथ क्रियायोग का अभ्यास करते है तो आप को आप का भविष्य साफ़ साफ़ दिखाई देने लगता है . क्यों की इस अभ्यास से भविष्य और वर्तमान के बीच दूरी घटने लगती है और आगंतुक घटनाओं का पता वर्तमान में ही चलने लगता है . जब आप किसी शांत स्थान पर बैठकर अपने मन को आज्ञा चक्र पर लाकर फिर उस पर एकाग्र होकर वहाँ ध्यान करते है तो आप को धीरे धीरे आप के संचित कर्मो की जानकारी मिलने लगती है और ये संचित कर्म किस रूप में आप के सामने आगे चलकर फलित होंगे इसका भी ज्ञान आप को होने लगता है . पर शर्त यह है की आप को आज्ञा चक्र के साथ साथ कूटस्थ , रीढ़ और फिर सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र होकर फिर इन पुरे स्थानों पर ध्यान लगाना होता है . यह कार्य नियमित अभ्यास से ही संभव होता है . यदि आप समय के दायरे में रहकर अपना भविष्य जानना चाहते है तो फिर यह कार्य संभव नहीं है . क्यों की समय के पार जाकर ही आप भूत काल , वर्तमान काल और भविष्य काल को पूरी तरह जान सकते है . जब आप को यह ज्ञान होने लगता है की अमुक घटनाए आप के साथ बुरे रूप में भविष्य में होने वाली है तो इसके साथ ही आप को यह ज्ञान भी मिलने लगता है की पूरी तरह आप इन घटनाओं से कैसे बच सकते है . क्यों की हर समस्या के भीतर ही उसका समाधान छिपा होता है पर हम समस्या के पीछे के कारणों को सच्चे रूप में जानने का साहस ईश्वर में पूर्ण विश्वास की कमी के कारण नहीं जुटा पाते है .

जब आप क्रियायोग का अभ्यास करते है तो आप को आपका प्रारब्ध दिखाई देने लगता है और आप इस अभ्यास के माध्यम से निर्माण , सुरक्षा और परिवर्तन की शक्तियों से जुड़ने लगते है . इन शक्तियों की मदद से आप अपने पुराने संचित कर्मो के बीजों को परिवर्तित , अधिक सुरक्षित , या नए बीज निर्मित कर सकते है . अभ्यास नहीं करने के कारण ये शक्तियाँ हमारे जीवन के अंत के साथ ही सुब्ध अवस्था में दूसरे जन्म में नए शरीर से जुड़ जाती है . अर्थात हम इन शक्तियों से योग करने में सफल नहीं होने के कारण अपना प्रारब्ध भोग भोगते हुए यंत्रवत जन्म दर जन्म चलते रहते है और माया जाल में फसे रहते है और हमेशा दुखी ही बने रहते है .

इसलिए यदि आप भविष्य में आप के साथ होने वाली बुरी घटनाओं से पूर्ण रूप से बचना चाहते है तो आप को पूर्ण मनोयोग के साथ क्रियायोग का नियमित अभ्यास निम्न शर्तो के साथ करना बहुत आवश्यक है :

१. सबसे पहले आप जैसे भी है अपने आप को १०० % पवित्र मानकर स्वीकार करे

२. इसी पल से यह स्वीकार करे की आप के सुख दुःख का १०० % जिम्मेदार आप स्वयं है

३. अपनी हर एक हरकत पर एकाग्र रहकर उस पर ध्यान करे

४. संसार में अभी बाहर कम से कम देखे जब तक आप को सही से इस संसार को देखना नहीं आ जाता

५. हमेशा सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र होकर जीवन की सभी क्रियाये करे

६. कम से कम बोले

७. किसी की भी बात को बहुत ही ध्यान से सुने

८. अभी किसी से कैसा भी वादा करने से बचे

९. सत्य और अहिन्सा का पालन करे

१०. शरीर में होने वाले किसी भी परिवर्तन की निंदा ना करे

११. किसी से घृणा ना करे

१२. हर दृश्य को परमात्मा का साकार रूप देखने का अभ्यास करे

१३. अभी इस समय आप के पास क्या क्या स्त्रोत है उन्ही को संभाले

१४. घर में साफ़ सफाई को प्राथमिकता दे

१५. यह विश्वास करे की आप शरीर नहीं है बल्कि स्वयं परमात्मा आप की इस शरीर रचना के रूप में प्रकट हो रहे है .

१६. संतोषी सदा सुखी के भाव को विकसित करे और खुद के भीतर ईश्वर को खोजे

१७. आप के पिता परमात्मा से एकांत में बातचीत करे और तब तक करे जब तक परमात्मा प्रत्यक्ष उत्तर नहीं दे देते .

१८. केवल क्रियायोग का अभ्यास ही एकमात्र तरीका है जिससे आप अपना पूर्ण भविष्य जानकार उसे सुरक्षित कर सकते है . बाकी सभी तरीके आंशिक सत्य है और उनमे काफी लम्बी यात्रा करनी पड़ती है .

प्रभु का यह लेख यदि आप को फायदा पहुँचता है तो आप की यह नैतिक जिम्मेदारी बनती है की आप इस लेख को ज्यादा से ज्यादा लोगो तक भेजे और हमारे इस सेवा मिशन में आप अपना अमूल्य योगदान देकर प्रभु के श्री चरणों में अपना स्थान सुनश्चित करे . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .

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Thursday, September 26, 2024

क्रियायोग - आप जो सोचते है वह होता क्यों नहीं है ? भाग २

आज मै आपको भाग १ के आगे के ज्ञान को प्राप्त करने के लिए क्रियायोग का अभ्यास कैसे करे , वह समझाने जा रहा हूँ . अर्थात विचार क्या है ? , ये कैसे उत्पन्न होते है ? , विचार को साकार रूप में कैसे बदला जाता है ? इन सब का अभ्यास के माध्यम से ज्ञान समझाने जा रहा हूँ .

यह पूरा संसार ईश्वर का एक विचार मात्र है . कैसे ?. ईश्वर सर्वत्र उपस्थित है निराकार और साकार रूप में . जब आप अपने कान बंद करके सुनने का अभ्यास करते है तो आप को एक गुंजायमान ध्वनि सुनायी देती है . और जब आप लम्बे समय तक इस क्रिया का अभ्यास करते है तो आपको कई प्रकार की आवाजे सुनायी देने लगती है . जैसे आप किसी कमरे में या किसी बगीचे में यह अभ्यास करते है तो धीरे धीरे आप को कमरे के बाहर की आवाजे स्पष्ट रूप से सुनायी देने लगती है और जब आप इसका और गहरा अभ्यास करते है तो आप आवाजों के साथ एक होने लगते है . अर्थात आप को अपने शरीर का अलग से अनुभव नहीं होता है बल्कि आप को इस सच का अनुभव होता है की आप सभी जगह है . जब आप क्रियायोग का पूर्ण मनोयोग से अभ्यास करते है तो भूमध्य साधना से आपको अनुभव होने लगता है की आप के सिर के पीछे वाले भाग से प्रकाश तरंगे प्रवेश करती हुयी आज्ञा चक्र , बुद्धि , और फिर रीढ़ की हड्डी का आकार लेते हुए पुरे शरीर के रूप में प्रकट हो रही है .

अर्थात विचार इस ब्रह्माण्ड में ऊर्जा की सबसे सूक्ष्मतम इकाई के रूप में लगातार स्पंदित हो रहे है . ये विचार इलेक्ट्रान से भी कई गुना सूक्ष्म होते है . इसे मै आपको और आसान शब्दों में समझाने का प्रयास करता हूँ .

आप इसे इस प्रकार समझे की परमात्मा स्वयं इन विचारों के रूप में कम्पित हो रहे है . जब आप क्रियायोग का अभ्यास निम्न प्रकार से करते है तो आप धीरे धीरे इस सत्य को अनुभव करने लगते है :

किसी शांत स्थान पर बैठकर आँखे बंद करके मन को भूमध्य , कूटस्थ , रीढ़ की हड्डी , श्वास और इस प्रकार धीरे धीरे सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र करके फिर इन पर ध्यान करते है तो आप को धीरे धीरे अनुभव होने लगेगा की आप अब प्रभु के दिव्य इच्छा शक्ति के केंद्र से जुड़ने लग गए है और आप को यह समझमे आने लगता है की अनंत प्रकार के विचार आप के आज्ञा चक्र के सामने प्रकट हो रहे है . और आप किसी भी एक विचार को पसंद करके (आप कितने जाग्रत है इस समझ के अनुसार) उस विचार के अनुरूप इच्छाशक्ति को विकसित कर सकते है .

अर्थात जिस प्रकृति का विचार होगा आप उसी प्रकृति की इच्छाशक्ति पैदा कर सकते है . इसे और गहराई से समझाता हूँ . जैसे भूमध्य साधना से आप को पता चला की आप में एक बहुत ही श्रेष्ठ व्यवसाय करने की कला छिपी हुयी है . अर्थात आप को पता चल गया है की आप आगे चलकर दुनिया का सबसे श्रेष्ठ व्यापारी बनेंगे . मतलब आप जब लगातार भूमध्य साधना करते है तो आपको आपके आज्ञा चक्र पर बार बार व्यवसाय के ही विचार आते है और आप इन विचारों के साथ ध्यान में बहुत मग्न रहते है . जब भी आप ध्यान करने बैठते है तो आप के आज्ञा चक्र पर व्यवसाय के ही विचार बार बार आते है और जितना ज्यादा ये विचार आते है आप का ध्यान और गहरा होने लगता है और आप को इन व्यवसाय के विचारों के साथ रहने में परमानन्द की अनुभूति होती है .

अर्थात अब आप यह समझे की हकीकत में आप कर क्या रहे है ?. 

आप व्यवसाय के विचार को बार बार पसंद कर रहे है क्यों ?

क्यों की ईश्वर आप के शरीर के माध्यम से यह व्यवसाय करना चाहते है . अर्थात आप खुद ही ईश्वर है . ब्रह्मांडीय गतिविधियाँ प्रभु की इच्छा से ही चलती है हमारी खुद की कोई अलग से इच्छा नहीं होती है . आप को क्रियायोग के अभ्यास से अनुभव होने लगता है की आप के और परमात्मा के बीच दुरी शून्य है . इस के अभ्यास से ही आप को आप के लक्ष्य का पता चल जाता है . बिना इसके अभ्यास के आप अपने जीवन में आगे परमात्मा की इच्छा के अनुरूप अर्थात ईश्वर की योजना के तहत ही बढ़ते है पर अज्ञान के कारण(आप आत्मा के ऊपर प्रारब्ध रुपी प्रक्षेपण या संचित संस्कार पैटर्न या अवचेतन मन या आप की पुरानी आदते) आप को यह भान होता रहता है की आप एक शरीर है , आप का अहंकार आपको यह समझाता है की आप अलग है परमात्मा अलग है . आप के अज्ञान के कारण आप को जो यह दूरी (आप के और ईश्वर के बीच) अनुभव होती है , यही सभी कष्टों का कारण है . अहंकार के कारण ही आप को आप के शरीर का वजन अनुभव होता है , समय का अनुभव होता है और दो स्थानों के बीच दूरी का अनुभव होता है . जबकि सच यह है की समय , दूरी और द्रव्यमान का अस्तित्व ही नहीं है . केवल परमात्मा का ही अस्तित्व है .

क्रियायोग के अभ्यास से आप को यह अनुभव होने लगता है की एक ही विचार पर लगातार एकाग्र होकर उस पर ध्यान करने से वह विचार गुणित(विचार * विचार) होने लगता है . अर्थात बार बार मन में एक ही विचार पर ध्यान केंद्रित करने से ध्यान की शक्ति स्पंदनो के कारण उस विचार के रूप में एकत्रित होने लगती है जिससे एक कम्पन (वाइब्रेशन) पैदा होने लगता है . इन कम्पनों के कारण ऊर्जा पैदा होने लगती है और जब यह ऊर्जा बहुत ज्यादा मात्रा में एकत्रित होने लगती है तो फिर यह सघन रूप लेने लगती है . इसी क्रिया को महान व्येज्ञानिक आइंस्टीन ने ऊर्जा को द्रव्यमान में बदल सकते है का नियम संसार को दिया है .

अर्थात प्रभु से विचार प्रकट होता है , विचार से वाइब्रेशन , वाइब्रेशन से ऊर्जा , और ऊर्जा एकत्रित होकर सघन रूप लेकर द्रव्यमान में अर्थात साकार रूप में बदल जाती है .

आप जो सोचते है वह होता क्यों नहीं है ?.

क्यों की अभी आप क्रियायोग का पूर्ण श्रद्धा , भक्ति और विश्वास के साथ अभ्यास नहीं कर रहे है .

जैसे जैसे आप क्रियायोग का अभ्यास पूरी लगन , परमात्मा में सच्ची भक्ति , पूर्ण आत्मविश्वास से करेंगे तो आप जो सोचेंगे वही होने लगेगा .

प्रभु का यह लेख यदि आप को लाभ पहुँचाता है तो आप की यह नैतिक जिम्मेदारी बनती है की आप इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों तक भेजे और हमारे इस सेवा मिशन में आप अपना अमूल्य योगदान देकर प्रभु के श्री चरणों में आप का स्थान सुनिश्चित करे . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .

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Tuesday, September 24, 2024

क्रियायोग - आप जो सोचते है वह होता क्यों नहीं है ? भाग १

आज मै आप को क्रियायोग के अभ्यास से यह समझाऊंगा की आप जो सोचते है वह होता क्यों नहीं है ?.

आप को अभी ठीक से सोचना आता ही नहीं है . आप को यह सही से पता नहीं है की जो आप देख रहे है , सुन रहे है , बोल रहे है वह वास्तविक रूप में कितना सच है . आप हमेशा अपनी बुद्धि से , मन से , कल्पना से , या किसी से प्रभावित होकर सोचते है . जब आप पूरी श्रद्धा , भक्ति और विश्वास के साथ क्रियायोग का अभ्यास करेंगे तो आप को पता चलेगा की मन , बुद्धि , और शरीर का अस्तित्व है ही नहीं . यह सब माया से प्रकट होते है . अब आप ही अंदाजा लगा सकते है की जिसका अस्तित्व ही नहीं है उससे सोचेंगे तो चीज जो कुछ भी है आप को प्राप्त होगी कैसे ?.

आप को यह समझना पड़ेगा की मन , बुद्धि और शरीर के पीछे ऐसी कोनसी शक्ति है जिसके माध्यम से ये कार्य करते है . इस अभ्यास से आप को ह्रदय का वास्तविक स्वरुप पता चलने लगेगा . जैसे आप ने सोचा की मै इस अमुक व्यवसाय में सफल हो जाऊंगा और ५ वर्ष में मेरा व्यवसाय २ करोड़ का हो जायेगा . पर आप के साथ ऐसा हुआ नहीं . क्यों ?. क्यों की जो लक्ष्य आप ने बनाया था उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए जितनी प्राण ऊर्जा की आवश्यकता थी उतनी आप ने एकत्रित करि ही नहीं . इसका अर्थ यह होता है की आप जब कोई भी लक्ष्य बनाते है तो आप को अपने भीतर की सच्चाई का भी पता रखना चाहिए . जैसे कोई लक्ष्य साकार रूप धारण करने के लिए x  मात्रा में ऊर्जा चाहता है और वह आप उचित समय में एकत्रित नहीं कर पाते है तो आप ही समझ ले की आप को लक्ष्य की प्राप्ति कैसे होगी .

अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए इस ऊर्जा को कैसे प्राप्त करे ?

पूरी श्रद्धा , भक्ति और विश्वास के साथ निरंतर क्रियायोग का अभ्यास करके आप इसे बहुत ही आसानी से प्राप्त कर सकते है . जब आप नियमित रूप से क्रियायोग का अभ्यास करते है(प्राण ऊर्जा से जुड़ने की क्रिया) तो आप के मन , बुद्धि विकसित होने लगते है . अर्थात आप के सोचने समझने की क्षमता बढ़ने लगती है . आप को यह पता चलने लगता है की लक्ष्य को लेकर आप क्या क्या गलतियाँ कर रहे है . आप को धीरे धीरे यह पता चलने लगता है की जो आप सोच रहे है वह प्राकृतिक रूप से संभव भी है या नहीं है. अर्थात ब्रह्मांडीय गतिविधियाँ प्रभु की इच्छा से ही चलती है . यदि आप की इच्छा प्रभु की इच्छाओँ के समुच्य में नहीं आती है तो आप ऐसी इच्छा को फलित नहीं कर सकते है . अर्थात आप केवल सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलकर , उस इच्छा को फलित करने के लिए सच में मेहनत करते है , रात दिन आप यह महसूस करते है की आप लक्ष्य की और सही गति से आगे बढ़ रहे है . आप के लक्ष्य के मार्ग में जो भी बाधाएं आ रही है उन्हें आप परमात्मिक अनुभूति मानकर स्वीकार करके उन बाधाओं को आप के लक्ष्य के रूप में बदलने में सफल हो जाते है तो फिर आप अपने लक्ष्य की तरफ तीव्र गति से आगे बढ़ने लगते है .

लक्ष्य प्राप्ति में आने वाली बाधाओं को लक्ष्य के रूप में कैसे बदले ?

यह भी आप को क्रियायोग के और गहरे अभ्यास से पता चलने लगता है . जैसे आप अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए बाजार में कोई वस्तु लेने गए हो और आप के पास पैसे कम पड़ गए , तो आप अब क्या करेंगे ?.

यदि आप क्रियायोग का सही से अभ्यास करते है तो आप को यह अनुभव हो जायेगा की आप को अभी इस अमुक वस्तु की जरुरत नहीं है . और इस सच का पता आप को बाद में चलेगा की यदि मै यह वस्तु उस दिन लेकर आ जाता तो मेरे आगे के इतने सारे काम इस वस्तु या वस्तु में लगे पैसो के कारण अटक जाते . इससे आप को पता चलने लगेगा की लक्ष्य प्राप्ति के लिए परमात्मा आप की हर पल मदद किस किस रूप में आकर कर रहे है . जब आप पूर्ण मनोयोग से क्रियायोग का अभ्यास करेंगे तो आप को मन की कार्य प्रणाली समझ में आने लगेगी . आप को धीरे धीरे यह ज्ञान समझ में आने लगेगा की विचार को वास्तविक रूप में कैसे बदला जाता है . आप अपने मन का नये सिरे से निर्माण करने में सफल होने लगते है .

क्रियायोग कैसे आप की सोच(अर्थात आप के विचार को) को साकार रूप देता है ?

जब आप भूमध्य साधना करते है , कूटस्थ(मेडुला) पर ध्यान करते है और ठीक इसी प्रकार सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र होकर शरीर और मन  की और बाहर की सभी क्रियाओं से जुड़ने लगते है(अर्थात इन क्रियाओं में एकाग्र होकर इन पर ध्यान करना बहुत ही प्रसन्नता के साथ) तो आप को धीरे  धीरे अनुभव होने लगेगा की किस प्रकार परम चेतना ही मानवीय चेतना का रूप धारण कर रही है(अर्थात अब आप परमात्मा से प्राण ऊर्जा प्राप्त करते हुए अनुभव करने लगते हो) . आप को अनुभव होने लगेगा की आप का पूरा शरीर परमात्मा के प्रकाश से बन रहा है . आप हाड, मांश, चमड़ी , खून  नहीं हो . आप को कल्पना करना(अर्थात ठीक से सोचना) आने लगेगा . और कैसे कल्पना को साकार रूप दे इसका ज्ञान इस प्राण ऊर्जा में छिपा होता है जिसे अब आप पढ़कर, अनुभव करके अपनी सोच को साकार रूप देने में तीव्र गति से सफल होने लगेंगे.

आप को इस ज्ञान का पता चलेगा की आप किस प्रकार अपने प्रारब्ध को बदलकर लक्ष्य को प्राप्त करे .

अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में आवश्यक शर्ते :

किसी की निंदा ना करे .

किसी की बुराई ना करे.

किसी में दोष ना ढूंढे.

सत्य और अहिंसा का पालन करे .

सभी जीवों में परमात्मा का स्वरुप ही देखने का अभ्यास करे .

अपने सभी सुखो और दुखो की शत प्रतिशत जिम्मेदारी खुद पर ले .

आगे के भाग २ में मै आपको और गहराई से समझाऊंगा की विचार क्या है , ये कैसे उत्पन्न होते है , आप किसी इच्छित विचार को कैसे उत्पन्न करे और फिर कैसे इस विचार को साकार रूप दे . प्रभु का यह लेख यदि आपको लाभ पहुँचाता है तो आप की यह नैतिक जिम्मेदारी बनती है की आप इस लेख को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक भेजकर हमारे इस सेवा मिशन में आप का अमूल्य योगदान देकर प्रभु के श्री चरणों में अपना स्थान सुनिश्चित करे . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .

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Sunday, September 22, 2024

क्रियायोग - नास्तिक और आस्तिक को गहराई से समझे

आज मैं आपको क्रियायोग के माध्यम से नास्तिक और आस्तिक के वास्तविक स्वरुप को समझा रहा हूँ .

पहले मैं आस्तिक के बारे में बात कर रहा हूँ . आस्तिक का सही अर्थ होता है की कोई भी व्यक्ति जो किसी भगवान, मंदिर , पूजा , पाठ, मस्जिद , गुरुद्वारा , चर्च , मूर्ति ऐसे अनेक माध्यमों में आस्था रखकर , उनमे  विश्वास करके परमात्मा से जुड़ने की क्रिया करता है . अर्थात ऐसा व्यक्ति परमात्मा को मानता है और कहता है की इस संसार को परमात्मा किसी ना किसी रूप में आकर चला रहे है .

अब मैं नास्तिक के बारे में समझा रहा हूँ.

नास्तिक व्यक्ति कहता है की ना भगवान होते है , ना देवता होते है , ना अल्लाह होते है , ना परमात्मा होते है अर्थात कुछ भी नहीं होता है . नास्तिक किसी को भी नहीं मानता है . ना वह दान पुण्य को मानता है और ना ही पूजा पाठ को . नास्तिक किसी अन्य लोक को भी नहीं मानता है . वह हमेशा तर्क वितर्क करता है , वह जैसे किसी कुर्सी का निर्माण करता है तो कहता है की यह कुर्सी मेने बनाई है , मैंने मेहनत की है इसलिए इस पर मेरा ही अधिकार है . मेरे से इस कुर्सी को कोई छीन नहीं सकता (जब तक मै नहीं चाहु या पैसे में नहीं बेच दू ) है . अर्थात नास्तिक व्यक्ति भौतिक वस्तुओं को ही सच मानता है , वह एक व्येज्ञानिक की तरह सोच रखता है , वह इस संसार को तार्किक रूप से देखता है . विज्ञानं परमाणु की बात करता है जबकि सच यह है की परमाणु का अस्तित्व है ही नहीं (यह आप क्रियायोग के अभ्यास से ही अनुभव कर सकते हो ) . पर यही कुर्सी जब एक आस्तिक व्यक्ति बनाता है तो वह कहता है की मैंने मेरा कर्म किया है अब फल देना परमात्मा के हाथ में है . अब यह कुर्सी वही जाएगी जहा इसका जाने का योग है.

पर जब आप क्रियायोग के अभ्यास से जानेंगे की नास्तिक और आस्तिक में क्या अंतर् है ? तो आप को चमत्कारिक जवाब मिलेगा .

क्रियायोग के अभ्यास से आपको अनुभव होगा की नास्तिक और आस्तिक दोनों एक ही होते है इनमे कोई अंतर् नहीं होता है .

ऐसा क्यों ?. क्यों की आप गौर करे की नास्तिक व्यक्ति भी उन्ही चीजों को भोगकर जिन्दा है जिन्हे आस्तिक व्यक्ति भोगकर जिन्दा है . जैसे नास्तिक भी श्वास ले रहा है , पानी पी रहा है , खाना खा रहा है , काम कर रहा है, नींद ले रहा है , शादी कर रहा है , बच्चे पैदा कर रहा है . अर्थात जीवन के सभी सुख भोग रहा है . यह जो भोग की वस्तुए है जैसे पानी नास्तिक ने नहीं बनाया पर पी रहा है , फल उसने नहीं उगाया पर खा रहा है . यदि नास्तिक सोचे की मेने तो पैसे से फल खरीदे है . तो वह क्या करेगा जब फल उसको पचेगा नहीं. वह आगे दिमाग लगाएगा की मुझे पाचनतंत्र को ठीक करना है . इसके लिए वह किसी चिकित्सक के पास जाता है और कहता है की साहब मेरा पाचनतंत्र सही से काम नहीं कर रहा है , मै जो भी खा रहा हूँ वह पच नहीं रहा है . अब यह चिकित्सक कहता है की आप थोड़ा इन्तजार करे मै अगरबत्ती करलु उसके बाद आपको देखता हूँ. जब यह आस्तिक चिकित्सक अगरबत्ती करता है तो परमात्मा से यही तो प्रार्थना करता है की हे परमात्मा मुझे ऐसा ज्ञान दीजिये जिससे मै मेरे मरीजों का सही इलाज कर सकू और मेरे ये मरीज पूर्ण स्वस्थ हो जाये . अर्थात इस आस्तिक चिकित्सक ने इस नास्तिक मरीज के लिए भी परमात्मा से ही प्रार्थना करी है . और इस आस्तिक चिकित्सक से इस नास्तिक मरीज का इलाज हो जाता है . अब यदि यह नास्तिक मरीज भीतर से परमात्मा को नहीं मानता तो आस्तिक चिकित्सक वाले परमात्मा इस नास्तिक को ठीक क्यों करते ?. और यदि हम यह सवाल इस नास्तिक मरीज से करेंगे तो वह कहेगा की मै तो चिकित्सक की दवा से ठीक हुआ हूँ . परमात्मा ने थोड़े ही मुझे ठीक किया है ?. और जब आस्तिक चिकित्सक से पूछेंगे तो वह आस्तिक चिकित्सक जवाब देगा की मेने तो दवा दी है बाकी ठीक करना नहीं करना परमात्मा के हाथ में है . अर्थात आस्तिक चिकित्सक खुद कह रहा है की मेने इस नास्तिक मरीज को ठीक नहीं किया है बल्कि परमात्मा ने मेरे माध्यम से इस नास्तिक मरीज को ठीक किया है . अब यह नास्तिक मरीज अपने अहंकार के कारण यह सच स्वीकार नहीं करे की उसका इलाज परमात्मा  ने किया है तो इसमें दूसरा कौन क्या कर सकता है . परमात्मा अपना खुद का अहसास कराने के लिए इस नास्तिक मरीज को दवा से भी ठीक नहीं करते है . जब यह सभी उपाय करने के बाद थक हार के मोत को स्वीकार कर लेता है तब अंत में इसे अहसास होता है यह सब मै पुरे जीवन बकरी की तरह मै मै कर रहा था , मेरा अलग से कोई अस्तित्व नहीं है . मै तो परमात्मा की ही संतान हूँ . नास्तिक को अंत में समझ में आ जाता है की परमात्मा के अलावा कुछ भी नहीं है .

परमात्मा ऐसा भेद क्यों करते है ?

अपनी लीला को चलाने के लिए परमात्मा यह माया रचते है . जिसमे एक व्यक्ति से कहलवाते है की वह आस्तिक है और दूसरे से कहलवाते है की वह नास्तिक है . इसका अनुभव आपको जब आप पूर्ण श्रद्धा , भक्ति और विश्वास से क्रियायोग का अभ्यास करते है  तो होने लगता है . और एक समय आता है जब आप पूर्ण सत्य से जुड़ जाते है और पता चलता है की परमात्मा के अलावा सब कुछ धोखा है . परमात्मा ही अलग अलग देवी देवताओं, राक्षसों , मनुष्यो , जीव जंतुओं, कीट पतंगों , नदी पहाड़ों, भूत प्रेतों कुल मिलाकर पूरा संसार परमात्मा का साकार रूप है . परमात्मा ही  दृश्य जगत और अदृश्य जगत दोनों रूपों में अपने आपको व्यक्त कर रहे है .

आप को यह नास्तिक और आस्तिक का सच तभी सही सही समझ आएगा जब आप क्रियायोग का नियमित अभ्यास करेंगे . बिना अभ्यास के आप लाख समझने का प्रयास करना समझ में नहीं आने वाला .

प्रभु का यह लेख यदि आपको फायदा पहुँचाता है तो आप की यह नैतिक जिम्मेदारी बनती है की आप इस लेख को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक भेजकर आप हमारे इस सेवा मिशन में अपना अमूल्य योगदान देकर प्रभु के श्री चरणों में स्थान पाकर धन्य हो जाए . परमात्मा आपको हमेशा ओजस्वी रखे . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .

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क्रियायोग - हमे सुख और दुःख की अनुभूति क्यों होती है ?

आज मै आप को यह गहराई से समझाने जा रहा हु की हमे सुख और दुःख की अनुभूति क्यों होती है . हमे सुख और दुःख की अनुभूति परमात्मा के माध्यम से जो...