मेरे सभी मित्रो को मेरा ह्रदय से नमन . आज में आप को परमात्मा के इस रहस्य को बताने जा रहा हु की पूरी दुनिया में कुछ बिरले लोग ही अपने भाग्य को पूर्णतया बदलने में सक्षम होते है और ज्यादातर मेरे मित्र खुद के भाग्य को क्यों नहीं बदल पाते है . हमारा शरीर हमारे ही कर्मो की छाया है . जो हम अनंत समय से कर्म करते आ रहे है और हर पल करते जा रहे है उन्ही का यह परिणाम है . आज वर्तमान क्षण मे आप जिस प्रकार का यह शरीर लेकर घूम रहे है यह आप के संचित कर्मो का परिणाम है . जब आप कोई बाह्य इच्छा प्रकट करते है जैसे नया घर बनाना या नयी कार लेना तो यह इच्छा फलित होना आसान है . पर जब आप किसी असाध्य रोग से छुटकारा पाने की इच्छा प्रकट करते है तो इस इच्छा का पूर्ण होना बहुत मुश्किल होता है ऐसा क्यों ?. ऐसा इसलिए होता है की किसी बाह्य नयी वस्तु का निर्माण करना , शरीर में गहरी जमी किसी असाध्य बीमारी से छुटकारा पाने की तुलना में आसान होता है . क्यों की नए निर्माण में हम शिव की शक्ति का प्रयोग करते है और हमे विष्णु शक्ति के विरोध का सामना बहुत ज्यादा नहीं करना पड़ता है . परन्तु जब हम किसी पुराने घर को नए घर में बदलने के लिए काम शुरू करते है तो पहले हमे उस घर को बहुत ही सावधानी से बिखेरना होता है , उस समय हमारे मन में कई विचार आते है जैसे क्या पुरे घर को मलबे में बदले, या इसका कुछ भाग नए घर में कई स्थानों पर काम में ले ऐसे तमाम प्रकार के विचार हमारे मन में उठने लगते है . ठीक इसी प्रकार जब हम हमारे भाग्य को बदलने का संकल्प लेते है तो हमारे संचित कर्म इसका विरोध करते है . जैसे हम झूठ बोलने की आदत से हमेशा के लिए छुटकारा पाने का संकल्प लेते है और इस पर काम शुरू कर देते है . तो यदि हम शादीशुदा है और हम महिला है और किसी बात को लेकर पति से कहते है की मै आज से झूठ नहीं बोलूंगी . और आपका पति से मन मुटाव चल रहा है तो तुरंत पतिदेव कहेंगे की आप झूठ बोलना छोड़ने की बात कर रही हो आप ने तो ऐसा कोई काम अब छोड़ा ही नहीं जिसमे आप ने झूठ नहीं बोला हो . इतना कहते ही आप के तन बदन में आग लग जाती है . क्यों की आप के पति झूठ के रूप में आप के शरीर और मन का हिस्सा बन चुके है और आप इस हिस्से को काटकर बाहर फेंकना चाहते है तो अब आप के पति को कष्ट होता है , उन्हें दर्द होता है विष्णु शक्ति के कारण . या आप इसे ऐसे समझे जैसे आप का बच्चा चार फिट लम्बा और रंग गौरा है और उसकी शक्ल आपको बहुत पसंद है . अब यह बच्चा अपनी भक्ति से तुरंत अपनी लम्बाई तीन फिट और रंग काला कर लेता है तो क्या आप इस नए बच्चे को स्वीकार करेंगी . कभी नहीं . इसे और गहराई से समझे की हमारे कर्म हमे किस प्रकार से बांधकर रखते है . जैसे आप आज बहुत ही स्वादिष्ट पकवान खा रहे है और मन में कल्पना कर रहे है की मुझे ऐसा भोजन हर रोज मिले . तभी अचानक आप के बच्चे के पेट में दर्द हो जाता है तो क्या आप खाने का स्वाद लेते रहेंगे या खाना छोड़कर पहले बच्चे को संभालेंगे . अवश्य आप खाना छोड़ेंगे और बच्चे को संभालेंगे . तो आप के पकवानो का स्वाद गायब हो जायेगा. अर्थात जो आप ने इच्छा प्रकट करी वह पूरी नहीं हुयी, आप और बच्चे के बीच जो आप ने कर्म बंधन बाँध रखा है उसके कारण से . और यह कर्म बंधन जितना प्रगाढ़ होगा इसे बदलना उतना ही कठीन होगा . इसीलिए परमात्मा कहते है की सभी प्रकार के कर्मो को आप मुझे समर्पित करते चलो यदि आप अपने भाग्य को बदलना चाहते है तो . किसी भौतिक वस्तु को बदलना आसान होता है मन को बदलने की तुलना में . क्यों की मन की गति सबसे तीव्र होती है . आप मन की शक्ति से कुछ भी कल्पना कर सकते है . पर उस कल्पना को मूर्त रूप देना आप के कर्मो के ऊपर निर्भर करता है . इसीलिए क्रियायोग का अभ्यास आप के संचित कर्मो को पूर्णतया बदलने की शक्ति रखता है . हम जहाँ कही भी जा रहे है हमारे कर्म हमे वहाँ ले जा रहे . इसलिए हमे हर क्षण जाग्रत होने की जरुरत है कही हम गलत जगह तो नहीं जा रहे है यदि हम सच में हमारे भाग्य को बदलना चाहते है तो . जिस इंसान के कर्म प्रकृति के विरुद्ध बहुत ज्यादा मात्रा में होते है उस इंसान को अपने भाग्य को बदलने के लिए उतना ही ज्यादा तपना पड़ता है . इसके लिए परमात्मा ने हमे कई तरीके बताये है . कर्म योग, ज्ञान योग , भक्ति योग इत्यादि . पर यदि इंसान यह पूर्ण विश्वास के साथ ठान ले की मै अपने भाग्य को बदलकर ही रहूँगा तो वह एक दिन अवश्य ही अपने भाग्य को पूर्णतया बदलने में सफल होता ही होता है . क्यों की इस संसार में कुछ भी काम असंभव नहीं है . बस हमे श्रद्धा , भक्ति , विश्वास और कर्म करने की आवश्यकता है . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .
केवल परमात्मा का अस्तित्व है. परमात्मा सर्वव्यापी है परमात्मा कण कण में विराजमान है. परमात्मा का हर गुण अनंत है जैसे परमात्मा का एक गुण यह भी है की वे एक से अनेक रूपों में प्रकट होते है. निराकार से साकार रूप में प्रकट होना है : सृष्टि की उत्पति अर्थात निराकार से साकार रूप में प्रकट होना ,असंख्य जीव अर्थात एक से अनेक होने का गुण. मानव का लक्ष्य केवल परमात्मा को जानना है , खुद के स्वरूप को जानना है , परमात्मा और हमारे बीच दूरी शून्य है इसका अनुभव करना है , हर पल खुश कैसे रहे इसका अभ्यास करना है
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परमात्मा की महिमा में आप सभी का हार्दिक अभिनन्दन है