यदि आप को यह डर है की कही मेरे हार्ट अटैक नहीं आ जाए , मेरा यह कैंसर ठीक होगा या नहीं , मेरी गठिया की बीमारी ठीक होगी या नहीं , ऐसे किसी भी बीमारी का डर यदि आप को रात दिन परेशान कर रहा है तो आप प्रभु के इस लेख को बहुत ही ध्यान से पढ़े और फिर इसमें बताये अभ्यास को श्रद्धा , भक्ति , और विश्वास के साथ करे .
आप को बीमारी से डर तभी लगेगा जब आप उस बीमारी को दूर हटाना चाहते है , अर्थात बीमारी से घृणा करते है , बीमारी से दूरी मानते है . जबकि सच यह है की बीमारी होती ही नहीं है . जो नहीं है और आप मानेंगे तो डर ही तो लगेगा . हम शरीर नहीं है पर खुद को शरीर मानते है इसीलिए तो हमे तरह तरह के डर लगते है . आप आत्मा है , परमात्मा की संतान है . फिर आप का मन यह स्वीकार क्यों नहीं करता है की उसका अस्तित्व नहीं है . ऐसा बेवकूफ कौन होगा जो खुद का अस्तित्व ही मिटाना चाहेगा . मन खुद को कभी भी बेवकूफ नहीं मानेगा और मन ही नहीं इस संसार में कोई भी खुद को गलत नहीं मानेगा . यही तो आपका अहंकार है . यही माया है . फिर आप के साथ ऐसा क्यों हो रहा है . क्यों की आप क्रियायोग का अभ्यास पूरी श्रद्धा , भक्ति और विश्वास के साथ नहीं करते है .
बीमारी के डर को हमेशा के लिए शक्ति में बदलने के लिए आप क्रियायोग का अभ्यास निम्न प्रकार से करे :
१. सबसे पहले आप अपने शरीर को उस स्थिति में लाये जिसमे लाने पर आप अपने शरीर में एकाग्र हो सके .
२. अब आप यह स्वीकार करे की हाँ मेरे यह बिमारी है और फिर इस बीमारी में एकाग्र होकर इस बीमारी वाले क्षेत्र पर ध्यान करे
३. पता करे बीमारी कहा है , आप इससे बात करे और पूछे हे बीमारी भगवान् आप कैसे है ?.
४. पूर्ण पवित्र ह्रदय से बीमारी को नमन करे और कहे हे बीमारी भगवान् आपको समझने में मुझे देर हो गयी थी , मैंने आप का ध्यान नहीं रखा इसलिए आपने यह रूप धारण कर लिया.
५. जैसे जैसे बीमारी में एकाग्र होने लगेंगे तो आपको पता लगेगा की यह तो ज्ञान का साकार रूप है , शक्ति है , शांति है .
६. आप को ज्ञान होगा की किन अप्राकृतिक कार्यो के कारण आप के प्रभु आप से नाराज हो गए है और आप के शरीर और मन के भीतर यह बीमारी का रूप करके बैठे है .
७. जैसे यदि आप रात दिन यह चिंता करते है की मेरा बुढ़ापा कैसे होगा , मै बुढ़ापे में कितना दुःख पाऊंगा तो बुढ़ापा तो पता नहीं कब आएगा लेकिन बुढ़ापा भगवान का आपके मन में आगमन हो चूका है .
८. और मन में यही चिंता का विचार बार बार दोहराने के कारण (विष्णु शक्ति के कारण) आप समय से पहले ही बूढ़े होने लगेंगे .
९. आप को बीमारी में एकाग्र होने से और फिर उस पर ध्यान करने से अनुभव होने लगेगा की अब मुझे इस बीमारी से धीरे धीरे मुक्ति मिलना शुरू हो गयी है .
१०. क्यों की क्रियायोग का अभ्यास आप के पुरे शरीर को फिर से नए शरीर में बदलने लगता है .
११. पर जब आप बीमारी को अस्वीकार करते है तो बीमारी अब आप का पीछा नहीं छोड़ेगी . क्यों की किसी चीज को आप हटाने का प्रयास कर रहे है . अब वह चीज है ही नहीं तो हटाएंगे किसे . आप की यह सोच ही बीमारी का वहम बन जाती है और यह वहम ही धीरे धीरे साकार रूप लेने लगता है .
१२. क्यों की आप जब सत्य का मार्ग छोड़कर असत्य का मार्ग पकड़ लेते है तो आप तो जानते ही है की असत्य के मार्ग पर हमेशा गलत आहार क्रिया , गलत व्यवहार क्रिया , लोभ , लालच , राग द्वेष , निंदा , बुराई , चुगली , घृणा , झूठ , पाखंड ऐसे तमाम प्रकार के मायावी उपद्रव प्रकट होते रहते है .
१३. बीमारी को स्वीकार करने का मतलब यह नहीं है की आप ने हार स्वीकार कर ली . क्यों की हार जीत होती ही नहीं है . हार या जीत तो तब होती जब हार और जीत इन दो शब्दों का अलग अलग अस्तित्व होता . हार और जीत दोनों एक ही है . केवल परमात्मा का अस्तित्व है . परमात्मा ही हार और जीत के रूप में प्रकट होते है .
१४. यदि आप बीमारी को अस्वीकार कर देंगे तो बीमारी आप के जीवन को सुधारने के लिए जो संकेत दे रही थी वे संकेत आप को नहीं मिलेंगे और आप एक दिन अचानक बड़े खतरे में फंस जायेंगे .
१५. जैसे आप रोज तेज मिर्च मशालों वाला भोजन करते है और आप का शरीर यह सोचकर की कही मेरा मालिक डर नहीं जाए मै मेरे मालिक को पाइल्स रोग का अनुभव नहीं कराऊंगा या में तो गुदा द्वार में दर्द , जलन का अनुभव नहीं कराऊंगा तो आप लगातार ऐसे भोजन का सेवन करते रहेंगे . पर प्रभु की प्रकृति का यह नियम है की यह प्रकृति सभी के लिए समान नियम लागू करती है . अर्थात प्रकृति की यह जरुरत है की इन मशालों का जो प्रभाव है वह किसी भी रूप में अनुभव में आना चाहिए . इसीलिए आप का यह भोजन किसी गाँठ का निर्माण करने लगेगा जिसका शुरू में आप को पता नहीं चलेगा .
१६. और एक समय आएगा जब इस गाँठ को भी बाहर निकलना पड़ेगा .
१७. तो क्यों ना आप यह करे की किसी भविष्य में बड़े खतरे को मोल लेने के बजाय आप अभी वर्तमान में ही अपनी गलतियों को स्वीकार कर उनको सुधारने में लग जाए . अर्थात क्रियायोग का अभ्यास शुरू कर दे .
आप से विनम्र निवेदन है की आप हमारे इस सेवा कार्य में इस लेख को ज्यादा से ज्यादा आगे भेजे और वीडियो को भी भेजे ताकि किसी पीड़ित के जीवन में हर पल ख़ुशी आने का रास्ता खुल सके. ऐसा करके आप अपने प्रभु को प्रसन्न करे. धन्यवाद जी . मंगल हो जी .
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परमात्मा की महिमा में आप सभी का हार्दिक अभिनन्दन है