आज परमात्मा की कृपा से मै आप को मन को एकाग्र करने का वह एकमात्र सच्चा तरीका बताने जा रहा हूँ , जिसे यदि आप अपनाते है तो फिर आप का मन एकाग्र होकर ही मानेगा . हमारा मन एकाग्र क्यों नहीं रहता है ? . क्यों की हम खुद से झूठ बोलते है . हम भीतर से चाहते ही नहीं है मन को एकाग्र करना . हम तो मन को एकाग्र करने की बात तब करते है जब हम किसी परेसानी में फ़स जाते है या किसी बीमारी से पीड़ित हो जाते है . जब हम बहुत खुश रहते है तब हमे यह होश ही नहीं रहता है की उस समय हमारा मन एकाग्र है या नहीं . अर्थात हम पीड़ा के समय ही मन को एकाग्र करने की बात करते है . जैसे हमारा कोई परिचित मर जाता है और हम शमशान में जाते है तो उस समय वहाँ किसी से भी पूछ ले सब यही कहेंगे की केवल परमात्मा सत्य है बाकी सब झूठ है . वहाँ हम कहते है की लड़ाई झगड़ों में क्या रखा है केवल यह प्रेम ही साथ जायेगा . ऐसे तमाम प्रकार के उपदेश हम गंभीर बीमारी के समय , किसी बड़े संकट में फंसने के समय बहुत सुनते है . और जैसे ही हम किसी बड़ी मनोरंजन करने वाली पार्टी में होते है या हमारे हाथ कोई बड़ी रकम हाथ लगती है तब हमे यह होश ही नहीं रहता है की यह सब मै जो भोग भोग रहा हूँ वह परमात्मा की जीवन शक्ति के माध्यम से ही भोग पा रहा हूँ . प्रभु की शक्ति के बिना आप सोच ही नहीं सकते अर्थात कुछ भी नहीं कर सकते है . इसलिए यदि आप सच में अपने मन को एकाग्र करना चाहते है तो निम्न कार्यो के बारे में पहले चिंतन करे :
१. यदि आप से कोई कर्जा मांगता है तो पहले उससे सुलझे .
२. उस को सच सच बतादे की आप उसका कर्जा कब तक लोटा देंगे
३. आप खुद घर में कितना काम कर सकते है जिससे आप का घर पूर्ण साफ़ सुथरा रह सके .
४. यदि आप का काम आप किसी और से करवायेंगे तो वह काम तो कर देगा पर भीतर से तपेगा और इस तपन की आंच आप को भी लगेगी . और आप एक नए कर्म बंधन में फंस जायेंगे .
५. यदि आप फैक्ट्री चलाते है तो आप पहले यह निश्चित करे की आप खुद शांत रह कर कितने व्येक्तियों को लीड कर सकते है .
६. यदि आप किसान है तो पहले यह तय करे की बिना इस धरती माता को केमिकल पेस्टीसाईड से नुक्सान पहुचाये कितना अन्न पैदा कर सकते है जिससे आप का और आप के परिवार के अलावा कितने लोगों का पेट भर सकता है .
७. यदि आप नौकरी करते है तो पहले यह तय करे की आप मालिक का बताया हुया काम कर लेंगे या नहीं . क्यों की नौकरी में संस्था आप के हिसाब से नहीं बल्कि मालिक के हिसाब से चलेगी .
८. यदि आप व्यापारी है तो पहले यह तय करे की कही रोज रोज ज्यादा मुनाफे का लालच आप को और आप के परिवार को बीमारियों की तरफ तो नहीं ले जा रहा है .
९. यदि आप बीमार है तो पहले आप को कैसे भी करके आप से भी ज्यादा बीमार व्येक्तियों के दर्शन कर लेने चाहिए .
१०. यदि आप का मन एकाग्र नहीं रहता है तो इसका मतलब यह है की आप इस दुनिया को दिखाने के लिए वे सब काम कर रहे है जिनको करने की आप के वश की बात नहीं है . जैसे आप को बेटी की शादी करनी है . अब ईमानदारी से तो आप के पास मेहनत की कमाई के ५ लाख रूपए ही है पर अपने अहंकार के कारण आप लोगों से उधार लेकर शादी में २० लाख खर्च कर देते है और आप की घर , परिवार और सब जगह वाही वाही होती है . पर कुछ समय बाद आप से आप को दिया उधार मांगने आते है तो अब आप की नींद उड़ने लगती है . फिर इस नींद को जबरदस्ती लेने के लिए आप झूठ पर झूठ बोलने लगते है और आप ऐसे करके कर्म बंधन के जाल में फंस जाते है . अब आप ही बताईये आप का मन एक समय पर एक काम पर कैसे लगेगा आप ने तो खुद और लोगों को झूठा आश्वासन दे रखा है .
११. क्या कहेंगे लोग यही रोग . इसका मतलब यह नहीं है आप रोड पर नंगे चलने लग जाए . इसका मतलब यह है की आप को आप की खुद की समझ को विकसित करना होगा .
१२. यदि आप दुनिया में सबसे अमीर बनना चाहते है तो अमीर बनने के लिए परमात्मा की जो शर्ते है अर्थात प्रकृति के जो नियम है उनका आप को पालन करना ही पड़ेगा .
१३. जब आप धीरे धीरे खुद के पास आने लगते है और खुद को गहराई से जानने लगते है तो आप को पता चलने लगेगा की मेरी महत्वाकांक्षाए मेरे मन को एकाग्र नहीं होने दे रही है .
१४. जैसे आप ने आप के खुद के बड़े स्वार्थ के लिए बड़े हरे पेड़ों को काट दिया और एक पल भी यह नहीं सोचा की इन पेड़ों की बदौलत ही मै जिन्दा हूँ. अब उन पेड़ों की समय से पहले मृत्यु होने के कारण (अप्राकृतिक रूप से जीवन चक्र समाप्त करना)जो चीत्कार निकलेगी वह सवेंदना आप के मन को एकाग्र कैसे होने देगी . ठीक इसी प्रकार हम किसी भी प्रकार की हिंसा कर रहे है और फिर चाहते है की हमारा मन एकाग्र हो जाए . अर्थात आप यह चाहते है की आप किसी की पीटाई भी करदे और उसको रोने भी ना दे तो अब आप ही समझले की उस जीव का गुस्सा आप के ऊपर किस रूप में और किस समय निकलेगा . क्यों की वह जीव आपका हिस्सा है .
१५. इसलिए इन सब कर्म बंधनो से हमेशा के लिए मुक्ति का एक ही उपाय है क्रियायोग ध्यान करना .
१६ . जब आप हर पल सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र होकर जीवन की सभी क्रियाये करने लगते है तो आप जाग्रत होने लगते है और आप को अनुभव होता है की आप के और परमात्मा के बीच दूरी शून्य है . इसलिए निरंतर सेवा कार्यो में लगे रहे . सेवा करना ही आपका लक्ष्य हो . सबसे पहले खुद की सेवा करे . जैसे समय पर सोये , समय पर उठे , खुद के काम खुद करे , अपना कमरा साफ़ करे , अपने कपडे धोये, अपने बर्तन साफ़ करे , पानी से योग करने के लिए स्नान करे . ऐसे अनंत तरीके है इस क्रियायोग ध्यान में जिनको अपनाने से आप हमेशा के लिए मन को एकाग्र कर पाएंगे . आप जैसे भी है पहले अपने आप को स्वीकार करे . फिर काम शुरू करदे . बहुत ही धैर्य के साथ यह अभ्यास करना होता है . किसी पारंगत गुरु के सानिध्य में क्रियायोग ध्यान करने से सफलता तीव्र गति से मिलने लगती है . बिना ऋण चुकाए गुरु से ज्ञान नहीं मिलता है इस सत्य को याद रखे . परमात्मा की इच्छा है की आप को यदि इस लेख से फायदा होता है तो यह आप की नैतिक जिम्मेदारी बनती है की आप इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों तक साझा करे . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .
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परमात्मा की महिमा में आप सभी का हार्दिक अभिनन्दन है