सबसे पहले हमें परिवार का अर्थ समझना चाहिए . परिवार का मतलब होता है जहाँ हमारी परवरिश हुयी है और उसी परवरिश की वजह से आज हम यहां तक पहुंचे है . जब हम पैदा हुये थे तो हमे भूख लगने पर हम खुद चलकर खाना नहीं खा सकते थे . हमे जिसने भी खाना खिलाया , पानी पिलाया , चलना सिखाया , हमारे मल मूत्र साफ़ किये , बीमार होने पर हमारा इलाज कराया अर्थात कुल मिलाकर आज हम जो जिन्दा घूम रहे है वह उसी सरंक्षण की वजह से है . क्या हम उस सरंक्षण का बिना ऋण चुकाए उस परिवार से बगावत कर सकते है. करेंगे तो हम खुद को ही खतरे में डालेंगे . हमारा मन हमेशा कुछ अच्छा ही चाहता है . जो मन को अच्छा नहीं लगता उसको यह दूर हटाना चाहता है . पर जब हम क्रियायोग ध्यान करते है तो हमे मन की कार्यप्रणाली धीरे धीरे समझमे आने लगती है .
हम परिवार वालो से शिकायत क्यों करते है ?.
क्यों की जिन आँखों से हम देखते है और जिन कानो से हम सुनते है और जिस जीभ से हम स्वाद लेते है यह सब अभी ठीक से विकसित नहीं हुए है . इसलिए अभी हमे भौतिक चीजों पर ही ज्यादा विश्वास होता है बजाय इसके की भौतिक चीजों का स्त्रोत क्या है . जो कुछ भी हमारे साथ परिवार में घटनाये घट रही है वे सब हमारे माध्यम से भीतर जो सोचा जा रहा है उसका ही कर्म फल है . हमे क्रियायोग ध्यान से यह पता लगता है की मुझे परिवार में रहना चाहिए या नहीं . जब आप पूर्ण मनोयोग से क्रियायोग का अभ्यास करते है तो आप को केवल खुद का परिवार ही नहीं पूरा ब्रह्माण्ड आप का घर लगने लगता है . इस अभ्यास से परिवार वालो से आप की जो कटुता है वह धीरे धीरे प्रेम में बदलने लगती है . आप की परिवार ने जो सेवा की है वह अब आप महसूस करने लगते है .
हम परिवार का भला करना चाहते है तो घर वाले हमारी बात क्यों नहीं मानते है ?
क्यों की घर वालो में अभी हमारे भीतर ऐसा कुछ प्रभावित करने वाला भाव दिखा नहीं है जिससे वे आप पर भरोसा कर सके .
परिवार वाले हमारी स्वतंत्रता का ध्यान क्यों नहीं रखते ?
क्यों की उनको आप में वह क्षमता दिखाई देती है जिससे वे खुद स्वतंत्र हो सके . अर्थात वे आप के साथ जीना चाहते है . जिस दिन आप सच में अपने जीवन को समाप्त करने का संकल्प ले लेंगे वे आप को हमेशा के लिए स्वतंत्र कर देंगे . अब यह निर्णय आप को लेना है की अभी आप जीना चाहते है या निराकार परमात्मा में मिलना चाहते है .
परिवार से अलग कब होना चाहिए ?
जब आप को क्रियायोग के अभ्यास से यह अनुभव होने लग जाए की परमात्मा खुद आप की प्रार्थनाओं का प्रत्यक्ष उत्तर दे रहे है और वे कहते है की आप को मेरे इस हुक्म के पालन के लिए अभी आप के इस परिवार को छोड़ना पड़ेगा और माँ धरती के इस अमुक स्थान से जीवों की सेवा करना है . अर्थात जब आप खुद को जानने के लिए और सभी जीवों की सेवा के लिए परिवार छोड़ते है तो परिवार वाले अपने आप ही समझ जाते है की इसका बाहर या हमारे से अलग रहना बहुत उचित है क्यों की यह सभी जीवों के कल्याण की कामना के लिए अपने लक्ष्य पर आगे बढ़ रहा है .
परिवार में माता एक पुत्र को ज्यादा प्रेम और एक को कम प्रेम क्यों करती है ?
जिस पुत्र में माता को आत्मविश्वास की कमी दिखेगी , माता को लगेगा की मेरा पुत्र मेरे बिना आगे नहीं बढ़ सकता , या माता खुद मोह के जाल में फसी है तो इस मोहवश वह अपने पुत्र को भी अन्धकार की तरफ ले जाने के कारण या वह पुत्र खुद अपने पुराने संचित कर्म के कारण उस माता के माध्यम से यह कृपा प्राप्त करता है . इसलिए आप को परिवार में जितने कष्ट उठाने पड़ते है यदि आप इन्हे बहुत ही धैर्य के साथ सहन कर लेते है तो आप सोने की तरह कुंदन बनकर हमेशा के लिए सुखी हो जाते है .
मैं कहता हूँ की सब कुछ आप ही कर रहे हो तो फिर मैं बार बार माता , पिता और दूसरे लोगों की बात क्यों करता हूँ ?
इसका जवाब भी क्रियायोग के अभ्यास से ही मिलता है . हम सब एक ही सागर की बुँदे है . पर यदि हम अभी हमारे सांसारिक जीवन का अस्तित्व रखना चाहते है तो फिर प्रभु की इस माया लीला में अपना किरदार पूरी ईमानदारी से निभाना है . हमे प्रभु से पूर्ण स्वतंत्रता मिली है की हम चाहे तो अभी पानी में कूदकर अपनी जान गवा दे , या किसी बिजली के करंट से चिपक जाए या फिर अपने स्वरुप का दर्शन करके ही दम ले , अर्थात माया के इस खेल को पूर्ण रूप से समझ जाए . इसलिए मुझे इस संसार के अलग अलग लोगों को समझाने के लिए अलग अलग तरीके अपनाने होते है . मेरा लक्ष्य आप सभी को हरपल खुश रखना है .
परिवार में अपनी बात को कैसे रखे ?
१. जब आप क्रियायोग का अभ्यास करते है तो इसका सही जवाब मिलने लगता है .
२. आप अभी कम से कम बोले
३. ज्यादा से ज्यादा अभ्यास करे जैसे अपने घर की सफाई करे , कमरे की सफाई करे , छत की सफाई करे , बाथरूम की सफाई करे ऐसे घर में बहुत से काम होते है जिनको आप अकेले खुद ही सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र होकर बहुत ही आसानी से कर सकते है .
४. जब आप के स्वभाव में मिठास आने लगेगी , आप में सेवा भाव जगेगा, आप खुद के साथ साथ परिवार के लिए भी समय निकालेंगे तो घरवालों का भी आप के प्रति प्रेम जगने लगेगा .
५. अर्थात आप सच्चे अर्थो में खुद को प्रेम करेंगे तभी आप के परमात्मा आप को प्रेम करेंगे . परमात्मा आप के परिवार वालो के रूप में भी प्रकट हो रहे है .
६. अपने आप को प्रभु के हवाले कर दे और केवल उनके हुक्म का पालन करे . एक समय आएगा जब आप हर पल खुश रहने लगेंगे .
यदि आप को प्रभु के इस लेख से फायदा होता है तो यह आप की नैतिक जिम्मेदारी बनती है की आप इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों तक भेजे ताकि मेरे प्रिये मित्र के जीवन में हरपल आनंद का मार्ग हमेशा के लिए खुल जाए . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .
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परमात्मा की महिमा में आप सभी का हार्दिक अभिनन्दन है