आज मै आपको भाग १ के आगे के ज्ञान को प्राप्त करने के लिए क्रियायोग का अभ्यास कैसे करे , वह समझाने जा रहा हूँ . अर्थात विचार क्या है ? , ये कैसे उत्पन्न होते है ? , विचार को साकार रूप में कैसे बदला जाता है ? इन सब का अभ्यास के माध्यम से ज्ञान समझाने जा रहा हूँ .
यह पूरा
संसार ईश्वर का एक विचार मात्र है . कैसे ?. ईश्वर सर्वत्र उपस्थित है निराकार और साकार रूप में . जब आप
अपने कान बंद करके सुनने का अभ्यास करते है तो आप को एक गुंजायमान ध्वनि सुनायी
देती है . और जब आप लम्बे समय तक
इस क्रिया का अभ्यास करते है तो आपको कई प्रकार की आवाजे सुनायी देने लगती है .
जैसे आप किसी कमरे में या किसी बगीचे में यह अभ्यास करते है तो धीरे धीरे आप को
कमरे के बाहर की आवाजे स्पष्ट रूप से सुनायी देने लगती है और जब आप इसका और गहरा
अभ्यास करते है तो आप आवाजों के साथ एक होने लगते है . अर्थात आप को अपने शरीर का
अलग से अनुभव नहीं होता है बल्कि आप को इस सच का अनुभव होता है की आप सभी जगह है .
जब आप क्रियायोग का पूर्ण मनोयोग से अभ्यास करते है तो भूमध्य साधना से आपको अनुभव
होने लगता है की आप के सिर के पीछे वाले भाग से प्रकाश तरंगे प्रवेश करती हुयी
आज्ञा चक्र , बुद्धि , और फिर रीढ़ की हड्डी का
आकार लेते हुए पुरे शरीर के रूप में प्रकट हो रही है .
अर्थात विचार इस ब्रह्माण्ड में ऊर्जा
की सबसे सूक्ष्मतम इकाई के रूप में लगातार स्पंदित हो रहे है . ये विचार
इलेक्ट्रान से भी कई गुना सूक्ष्म होते है . इसे मै आपको और आसान शब्दों में
समझाने का प्रयास करता हूँ .
आप इसे इस प्रकार समझे की
परमात्मा स्वयं इन विचारों के रूप में कम्पित हो रहे है . जब आप क्रियायोग
का अभ्यास निम्न प्रकार से करते है तो आप धीरे धीरे इस सत्य को अनुभव करने लगते है
:
किसी शांत स्थान पर बैठकर
आँखे बंद करके मन को भूमध्य , कूटस्थ , रीढ़ की हड्डी , श्वास और इस प्रकार धीरे धीरे सिर से लेकर पाँव
तक में एकाग्र करके फिर इन पर ध्यान करते है तो आप को धीरे धीरे अनुभव होने लगेगा
की आप अब प्रभु के दिव्य इच्छा शक्ति के केंद्र से जुड़ने लग गए है और आप को यह
समझमे आने लगता है की अनंत प्रकार के विचार आप के आज्ञा चक्र के सामने प्रकट हो
रहे है . और आप किसी भी एक विचार को पसंद करके (आप कितने जाग्रत है इस समझ के
अनुसार) उस विचार के अनुरूप इच्छाशक्ति को विकसित कर सकते है .
अर्थात जिस
प्रकृति का विचार होगा आप उसी प्रकृति की इच्छाशक्ति पैदा कर सकते है . इसे और गहराई से समझाता हूँ . जैसे भूमध्य साधना से आप
को पता चला की आप में एक बहुत ही श्रेष्ठ व्यवसाय करने की कला छिपी हुयी है .
अर्थात आप को पता चल गया है की आप आगे चलकर दुनिया का सबसे श्रेष्ठ व्यापारी
बनेंगे . मतलब आप जब लगातार भूमध्य साधना करते है तो आपको आपके आज्ञा चक्र पर बार
बार व्यवसाय के ही विचार आते है और आप इन विचारों के साथ ध्यान में बहुत मग्न रहते
है . जब भी आप ध्यान करने बैठते है तो आप के आज्ञा चक्र पर व्यवसाय के ही विचार
बार बार आते है और जितना ज्यादा ये विचार आते है आप का ध्यान और गहरा होने लगता है
और आप को इन व्यवसाय के विचारों के साथ रहने में परमानन्द की अनुभूति होती है .
अर्थात अब आप यह समझे की
हकीकत में आप कर क्या रहे है ?.
आप व्यवसाय के विचार को बार बार पसंद कर
रहे है क्यों ?
क्यों की ईश्वर आप के शरीर के माध्यम से
यह व्यवसाय करना चाहते है . अर्थात आप खुद ही ईश्वर है . ब्रह्मांडीय गतिविधियाँ
प्रभु की इच्छा से ही चलती है हमारी खुद की कोई अलग से इच्छा नहीं होती है . आप को
क्रियायोग के अभ्यास से अनुभव होने लगता है की आप के और परमात्मा के बीच दुरी
शून्य है . इस के अभ्यास से ही आप
को आप के लक्ष्य का पता चल जाता है . बिना इसके अभ्यास के आप अपने जीवन में आगे
परमात्मा की इच्छा के अनुरूप अर्थात ईश्वर की योजना के तहत ही बढ़ते है पर अज्ञान
के कारण(आप आत्मा के ऊपर प्रारब्ध रुपी प्रक्षेपण या संचित संस्कार पैटर्न या अवचेतन
मन या आप की पुरानी आदते) आप को यह भान होता रहता है की आप एक शरीर है , आप का अहंकार आपको यह समझाता है की आप
अलग है परमात्मा अलग है . आप के अज्ञान के कारण आप को जो यह दूरी (आप के और ईश्वर
के बीच) अनुभव होती है , यही सभी कष्टों का कारण है . अहंकार के कारण ही आप को आप के शरीर का वजन अनुभव
होता है , समय का अनुभव होता है और दो स्थानों के बीच दूरी का अनुभव होता है . जबकि सच
यह है की समय , दूरी और द्रव्यमान का अस्तित्व ही नहीं है . केवल परमात्मा का ही अस्तित्व है
.
क्रियायोग के अभ्यास से
आप को यह अनुभव होने लगता है की एक ही विचार पर लगातार एकाग्र होकर उस पर ध्यान
करने से वह विचार गुणित(विचार * विचार) होने लगता है . अर्थात बार बार मन में एक
ही विचार पर ध्यान केंद्रित करने से ध्यान की शक्ति स्पंदनो के कारण उस विचार के
रूप में एकत्रित होने लगती है जिससे एक कम्पन (वाइब्रेशन) पैदा होने लगता है . इन
कम्पनों के कारण ऊर्जा पैदा होने लगती है और जब यह ऊर्जा बहुत ज्यादा मात्रा में
एकत्रित होने लगती है तो फिर यह सघन रूप लेने लगती है . इसी क्रिया को महान
व्येज्ञानिक आइंस्टीन ने ऊर्जा को द्रव्यमान में बदल सकते है का नियम संसार को
दिया है .
अर्थात प्रभु
से विचार प्रकट होता है , विचार
से वाइब्रेशन , वाइब्रेशन
से ऊर्जा , और ऊर्जा
एकत्रित होकर सघन रूप लेकर द्रव्यमान में अर्थात साकार रूप में बदल जाती है .
आप जो
सोचते है वह होता क्यों नहीं है ?.
क्यों की अभी आप
क्रियायोग का पूर्ण श्रद्धा , भक्ति और विश्वास के साथ
अभ्यास नहीं कर रहे है .
जैसे जैसे आप क्रियायोग
का अभ्यास पूरी लगन , परमात्मा में सच्ची भक्ति , पूर्ण आत्मविश्वास से करेंगे तो आप जो सोचेंगे वही होने लगेगा .
प्रभु का
यह लेख यदि आप को लाभ पहुँचाता है तो आप की यह नैतिक जिम्मेदारी बनती है की आप इसे
ज्यादा से ज्यादा लोगों तक भेजे और हमारे इस सेवा मिशन में आप अपना अमूल्य योगदान
देकर प्रभु के श्री चरणों में आप का स्थान सुनिश्चित करे . धन्यवाद जी . मंगल हो
जी .
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परमात्मा की महिमा में आप सभी का हार्दिक अभिनन्दन है