आज मै आपको क्रियायोग के अभ्यास का वह राज बताने जा रहा हूँ जिसे आप खुद अभ्यास करके अनुभव कर सकते है और आप के साथ भविष्य में होने वाली बुरी घटनाओं से पूरी तरह बच सकते है .
जब आप नियमित रूप से पूर्ण श्रद्धा , भक्ति और विश्वास
के साथ क्रियायोग का अभ्यास करते है तो आप को आप का भविष्य साफ़ साफ़ दिखाई देने
लगता है . क्यों की इस अभ्यास से भविष्य और वर्तमान के बीच दूरी घटने लगती है और
आगंतुक घटनाओं का पता वर्तमान में ही चलने लगता है . जब आप किसी शांत स्थान पर
बैठकर अपने मन को आज्ञा चक्र पर लाकर फिर उस पर एकाग्र होकर वहाँ ध्यान करते है तो
आप को धीरे धीरे आप के संचित कर्मो की जानकारी मिलने लगती है और ये संचित कर्म किस
रूप में आप के सामने आगे चलकर फलित होंगे इसका भी ज्ञान आप को होने लगता है . पर
शर्त यह है की आप को आज्ञा चक्र के साथ साथ कूटस्थ , रीढ़ और फिर सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र
होकर फिर इन पुरे स्थानों पर ध्यान लगाना होता है . यह कार्य नियमित अभ्यास से ही
संभव होता है . यदि आप समय के दायरे में रहकर अपना
भविष्य जानना चाहते है तो फिर यह कार्य संभव नहीं है . क्यों की समय के पार जाकर
ही आप भूत काल , वर्तमान काल और भविष्य काल को
पूरी तरह जान सकते है . जब आप को यह ज्ञान होने लगता है की अमुक घटनाए
आप के साथ बुरे रूप में भविष्य में होने वाली है तो इसके साथ ही आप को यह ज्ञान भी
मिलने लगता है की पूरी तरह आप इन घटनाओं से कैसे बच सकते है . क्यों की हर समस्या
के भीतर ही उसका समाधान छिपा होता है पर हम समस्या के पीछे के कारणों को सच्चे रूप
में जानने का साहस ईश्वर में पूर्ण विश्वास की कमी के कारण नहीं जुटा पाते है .
जब
आप क्रियायोग का अभ्यास करते है तो आप को आपका प्रारब्ध दिखाई देने लगता है और आप
इस अभ्यास के माध्यम से निर्माण , सुरक्षा और परिवर्तन की शक्तियों से
जुड़ने लगते है . इन शक्तियों की मदद से आप अपने पुराने संचित कर्मो के बीजों को
परिवर्तित , अधिक सुरक्षित , या नए बीज निर्मित कर सकते है . अभ्यास नहीं करने के कारण ये शक्तियाँ हमारे
जीवन के अंत के साथ ही सुब्ध अवस्था में दूसरे जन्म में नए शरीर से जुड़ जाती है . अर्थात हम इन
शक्तियों से योग करने में सफल नहीं होने के कारण अपना प्रारब्ध भोग भोगते हुए
यंत्रवत जन्म दर जन्म चलते रहते है और माया जाल में फसे रहते है और हमेशा दुखी ही
बने रहते है .
इसलिए यदि आप भविष्य में आप के साथ होने वाली
बुरी घटनाओं से पूर्ण रूप से बचना चाहते है तो आप को पूर्ण मनोयोग के साथ
क्रियायोग का नियमित अभ्यास निम्न शर्तो के साथ करना बहुत आवश्यक है :
१. सबसे पहले आप जैसे भी है अपने आप को १०० % पवित्र मानकर
स्वीकार करे
२. इसी पल से यह स्वीकार करे की आप के सुख दुःख का १०० %
जिम्मेदार आप स्वयं है
३. अपनी हर एक हरकत पर एकाग्र रहकर उस पर ध्यान करे
४. संसार में अभी बाहर कम से कम देखे जब तक आप को सही से इस
संसार को देखना नहीं आ जाता
५. हमेशा सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र होकर जीवन की सभी
क्रियाये करे
६. कम से कम बोले
७. किसी की भी बात को बहुत ही ध्यान से सुने
८. अभी किसी से कैसा भी वादा करने से बचे
९. सत्य और अहिन्सा का पालन करे
१०. शरीर में होने वाले किसी भी परिवर्तन की निंदा ना करे
११. किसी से घृणा ना करे
१२. हर दृश्य को परमात्मा का साकार रूप देखने का अभ्यास करे
१३. अभी इस समय आप के पास क्या क्या स्त्रोत है उन्ही को
संभाले
१४. घर में साफ़ सफाई को प्राथमिकता दे
१५. यह विश्वास करे की आप शरीर नहीं है बल्कि स्वयं
परमात्मा आप की इस शरीर रचना के रूप में प्रकट हो रहे है .
१६. संतोषी सदा सुखी के भाव को विकसित करे और खुद के भीतर
ईश्वर को खोजे
१७. आप के पिता परमात्मा से एकांत में बातचीत करे और तब तक
करे जब तक परमात्मा प्रत्यक्ष उत्तर नहीं दे देते .
१८. केवल क्रियायोग का अभ्यास ही एकमात्र तरीका है जिससे आप
अपना पूर्ण भविष्य जानकार उसे सुरक्षित कर सकते है . बाकी सभी तरीके आंशिक सत्य है
और उनमे काफी लम्बी यात्रा करनी पड़ती है .
प्रभु का यह लेख यदि आप को फायदा पहुँचता है तो
आप की यह नैतिक जिम्मेदारी बनती है की आप इस लेख को ज्यादा से ज्यादा लोगो तक भेजे
और हमारे इस सेवा मिशन में आप अपना अमूल्य योगदान देकर प्रभु के श्री चरणों में
अपना स्थान सुनश्चित करे . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .
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परमात्मा की महिमा में आप सभी का हार्दिक अभिनन्दन है