सबसे पहले प्रभु की इस बात को समझे की शिकायत का सही अर्थ क्या होता है ?. जब हम प्रकृति के विरुद्ध जाकर किसी में दोष ढूंढकर उसकी गलती को केवल किसी और को ही अपना सच्चा साथी मानकर बताते है और भीतर से यह कामना करते है की यह व्यक्ति हमारी बात को ही सही माने और उस व्यक्ति को हम जैसा भीतर से चाहते है वैसी ही सजा दे तो इसे शिकायत कहते है और इसका अंतिम परिणाम दुखों के रूप में हमे ही भोगना पड़ता है . परन्तु जब हम किसी भी व्यक्ति की शिकायत उसके खुद के हित में करते है , या उससे हम भीतर से गहरा प्रेम करते है , प्राकृतिक रूप से उसका भीतर से कल्याण करना चाहते है , हम सच में उसको बहुत खुश देखना चाहते है , कुल मिलाकर हम सच में उस व्यक्ति से दूरी का अनुभव नहीं करते है और हम भीतर से यह अनुभव करते है की वह व्यक्ति तो सच्चे अर्थो में हमारा परम मित्र है पर उसके संचित कर्मो के कारण वह रास्ता भटक गया है और सच्ची ख़ुशी से दूर जा रहा है अर्थात हमे यह अनुभव हो जाए की वह सच में प्रभु के मार्ग से भटक गया है तो फिर यह हमारी नैतिक जिम्मेदारी बनती है की कैसे भी करके उसको सत्य और अहिंसा के मार्ग पर लेकर आया जाए . यदि हमारा उद्येश्य पवित्र है तो परमात्मा इसे शिकायत करना नहीं कहते बल्कि यह नैतिक धर्म कहलाता है . और ऐसे काम में हमे सफलता मिलती ही मिलती है .इस काम को शिकायत नहीं कहते है . अर्थात बच्चे को उंगली पकड़कर चलाना हमे ही सिखाना होता है . और बच्चा इसका बहुत ज्यादा विरोध करे तो माँ उसको पीटती भी है और भीतर से उसको बहुत प्रेम करती है .
अब प्रश्न आता है की क्या पूर्ण शिकायत मुक्त जीवन जीना संभव है ?
इसका जवाब यह है की यह व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है की वह सच में कैसा जीवन जीना चाहता है . यदि वह अपने स्वरुप का दर्शन करना चाहता है , प्रभु से एकता स्थापित करना चाहता है , खुद को जानना चाहता है तो फिर पूर्ण शिकायत मुक्त जीवन जीना अनिवार्य शर्त है . क्यों की कण कण में केवल परमात्मा का ही अस्तित्व है . इसलिए यदि एक कण भी छूट गया तो पूर्ण प्रभु की अनुभूति नहीं होती है . प्रभु के इस लेख से यदि आप को फायदा हुआ है तो इसे ज्यादा से ज्यादा साझा करे और हमारे इस सेवा मिशन में आपका अमूल्य योगदान दे . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .
No comments:
Post a Comment
परमात्मा की महिमा में आप सभी का हार्दिक अभिनन्दन है