क्रियायोग यह कहता है की आप खुद पूरा संसार है . इसे ऐसे समझे जैसे आप विपश्यना ध्यान करते है और अब आपका जीवन बहुत शांतिपूर्ण हो गया है तो आप यह ना समझे की केवल विपश्यना ध्यान ही इस संसार में सबसे सही ध्यान विधि है . आप के किसी अन्य मित्र को ब्रह्माकुमारी राजयोग से फायदा हुआ है तो आप के मित्र के लिए राजयोग विधि सबसे सही है . पर यदि आपका मित्र यह कहता है की संसार में केवल राजयोग ध्यान विधि ही सबसे सही है तो आप के मित्र को समझलेना चाहिए की उन्हें अभी पूर्ण ज्ञान की प्राप्ति नहीं हुयी है . ठीक इसी प्रकार ओशो ने जो विचार व्यक्त किये है वे ओशो के लिए पूर्ण सही है पर यह जरुरी नहीं है की ओशो की बाते पुरे संसार के लोगों को सही लगे . महावीर ने कहा है की छह फ़ीट से ज्यादा आगे मत देखो तो उनकी बात भी उनके लिए सही है . पर यह जरुरी नहीं है की महावीर की बात संसार के सभी लोगों पर लागू हो . जिद्दू कृष्णमूर्ति ने कहा है की आप ही द्रष्टा और आप ही दृश्य हो . अब यह जरुरी नहीं है की सभी लोग इसे समझ सके . जो लोग कृष्णमूर्ति को नहीं समझ सकते उनके लिए कृष्णमूर्ति की बाते गलत है . यह जो संसार में विविधता दिखाई पड़ती है इसी के कारण इस संसार का अस्तित्व बना हुआ है . हमारे शरीर का अस्तित्व बना हुआ है . हमारे शरीर के अस्तित्व की रक्षा के लिए ही इस शरीर में कई प्रकार के परिवर्तन हर समय हो रहे होते है . और यदि किसी समय किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं होता है तो हमे जाग्रत होक इसमें परिवर्तन प्रकट करना चाहिए . जैसे कोई काम करना चाहिए , शरीर को दबाना चाहिए , इसमें दर्द प्रकट करना चाहिए , फिर आराम प्रकट करना चाहिए . जैसे हमे भूख नहीं लग रही कई दिनों से तो हमे हमारे विवेक और ज्ञान का प्रयोग करके कुछ ऐसा काम करना चाहिए जिससे भूख का जन्म हो . पर ध्यान रहे जब भूख को संतुष्ट करने के लिए आप भोजन करे तो भोजन इतना करे की हमारी भूख मरे नहीं . अर्थात हमेशा थोड़ा भूखा रहे . किसी को भी मारकर हम सत्य और अहिंसा के मार्ग का पालन नहीं कर सकते . यदि संसार में सभी लोगों के विचार एक हो जाए तो फिर दृश्य जगत का अस्तित्व नहीं रहेगा . यह तभी संभव है जब प्रभु स्वप्न देखना बंद कर दे . अर्थात पूरा संसार प्रभु की छाया है , प्रभु का स्वप्न है और हम सब के रूप में खुद परमात्मा यह स्वप्न देख रहे है . इस पुरे संसार में कोई भी व्यक्ति जो भी योग ध्यान विधि अपना रहा है वह सही रूप में क्रियायोग का आंशिक रूप ही पालन कर रहा है . अर्थात जैसे कोई मनो चिकित्सक या मनो व्येज्ञानिक या मोटिवेशनल स्पीकर , या मन का ज्ञान देने वाले , या किसी के मन को समझाने वाले , या जो केवल बाते करके किसी का इलाज कर रहे है ऐसे सभी प्रकार के व्यक्ति आंशिक क्रियायोग का अभ्यास ही कर रहे है . क्रियायोग यह कहता है की केवल इस क्षण का अस्तित्व है . दूसरा क्षण तो माया है . अर्थात समय ,दूरी और द्रव्यमान का अस्तित्व नहीं होता है . केवल परमात्मा का अस्तित्व है . इसलिए कोई भी व्यक्ति जो यह मानता है की केवल वह ही सही है और दूसरे गलत है तो उस व्यक्ति को समझलेना चाहिए की वह अभी परमज्ञान से दूर है . जैसे मेरे लिए कण कण में केवल परमात्मा है . परन्तु अभी मुझे इसकी पूर्ण अनुभूति नहीं हुयी है . मै मेरे कर्मो के कारण राग द्वेष जगाता हूँ , किसी से ईर्ष्या करता हूँ. पर भीतर से मुझे पता है की जिसे मै मेरा शत्रु मानता हूँ वह तो मेरा सच्चा मित्र है . लेकिन मेरे अज्ञान के कारण किये गए कर्मो का प्रभाव इतना ज्यादा होता है की कई बार तो मै वह हरकत कर देता हूँ जिसे करने के बाद बहुत पश्चाताप होता है . पर साथ ही मुझे यह भी याद है की अब मै क्रियायोग के अभ्यास से धीरे धीरे सत्य और अहिंसा के मार्ग पर आगे बढ़ रहा हूँ . यदि मै सत्य और अहिंसा के मार्ग पर आगे बढ़ सकता हूँ तो आप क्यों नहीं बढ़ सकते . आप भी क्रियायोग के अभ्यास से हर पल खुश रह सकते है .
मै आपको क्रियायोग कैसे करना होता है उसके बारे में अभी जितना मेरे से संभव होगा उतना बताने जा रहा हूँ .
जब आप कोई काम कर रहे हो तो याद रखे आप के पैर कहा है , सिर कहा है , गर्दन कहा है अर्थात सिर से लेकर पाँव तक के सभी अंगो की स्थिति को अनुभव करते रहे . फिर पता करे इस क्षण में आप की श्वास कैसे चल रही है , आप के पेट में क्या हो रहा है , आप अनुभव करे इस क्षण में पुरे शरीर में कैसा अनुभव हो रहा है, आप के कान क्या सुन रहे है , आपकी त्वचा कैसा महसूस कर रही है . और जब आप देखे तो भूमध्य याद रखे . भूमध्य पर एकाग्र रहते हुये सामने वाले व्यक्ति के भूमध्य को भी देखे . उसे भीतर से यह माने की आप अपने परम मित्र को ही देख रहे है . आप जब बैठे तो अनुभव करे की आप के पैरो में क्या हो रहा है . आप हमेशा अपने मन में यह सत्य याद रखे की आप शरीर नहीं है आप परमात्मा की संतान है , हर समय आप यह याद रखे की परम चेतना (जीवन शक्ति , प्राण शक्ति , प्रकाश) ही सिर के पीछे वाले भाग से(मेडुला, सहस्त्रार ,कूटस्थ , प्रभु के प्रेम का केंद्र) आती हुयी पुरे शरीर के रूप में फ़ैल रही है और यही जीवन शक्ति लगातार आप के एक ही विचार के कारण सघन रूप ले रही है जिसे आप शरीर कहते है . कई बार जब आप खड़े होंगे तो इस शक्ति की तीव्रता के कारण आप से खड़ा भी नहीं हुआ जायेगा और आप समझेंगे की आप को अभी थकान है , या शरीर में कमजोरी है . ऐसा नहीं होता है . आप तो खुद ईश्वर है आप थक कैसे सकते है . पर आप के संचित कर्मो के कारण आपका मन आपको यह बार बार विश्वास दिलाता है की आप थक गए हो , आप कमजोर हो गए हो , आप बीमार हो गए हो . मेरे सभी प्रिये मित्रो से मेरा विनम्र अनुरोध है की यदि आप को मेरे माध्यम से परमात्मा के द्वारा इस ज्ञान से फायदा हो रहा है तो यह आप की नैतिक जिम्मेदारी बनती है की आप इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों तक भेजे . मेरे जिस किसी भी मित्र को कैसी भी पीड़ा हो उसमे यह स्वरूपदर्शन लेख और यूट्यूब वीडियो लाभ पहुचायेंगे ही पहुचायेंगे. इससे आप में सेवा भाव विकसित होगा और आप हर पल खुश रहने लगेंगे . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .
No comments:
Post a Comment
परमात्मा की महिमा में आप सभी का हार्दिक अभिनन्दन है