Sunday, September 8, 2024

बच्चे माता पिता का कहना क्यों नहीं मानते है ?

आज मै आप को इसके वास्तविक कारण के बारे मे बताऊंगा और इसका इलाज भी बताऊंगा . आप माता पिता है और यदि आप ने यह तय कर रखा है की इस संसार मे हम हमारे बच्चो के साथ जीवन बिताना चाहते है तो आप को भी उनकी भाषा सीखनी पड़ेगी . क्यों की जिस तरह आप के सपने होते है ठीक उसी प्रकार आप के बच्चो के भी सपने होते है . अब आप की चिंता यह है की यदि आप का बच्चा गलत रास्ते पर जा रहा है और आप उसे ठीक रास्ते पर लाना चाहते है और इसके लिए आप उसे समझाते है . और सभी तरीके अपनाते है जैसे शाम ,दाम ,दंड, भेद . पर वह इसका विरोध करता है . क्यों ?. क्यों की आप का बच्चा आप ही का कर्मफल है . और किसी भी कर्मफल को (यहां आपका बच्चा) बदलने के लिए उस फल से बिना शर्त प्रेम करना पड़ता है . बिना शर्त प्रेम करने का मतलब है आपका बच्चा जैसा भी है ,पहले उसे आप पूर्ण रूप में स्वीकार करे(क्रियायोग के अभ्यास से यह संभव है) और इस सत्य को स्वीकार करे की मेरा बच्चा इस समय 100 % सही है अब मुझे इसे जीवन में आगे उन्नति करने के लिए इसके भीतर उचित परिवर्तन करने है . अर्थात बच्चा आपके समक्ष समर्पण तभी करेगा जब आप बच्चे को बिना शर्त सच्चा प्रेम करेंगे . जैसे हम किसी ख़राब घड़ी को ठीक कराने के लिए इसके मिस्त्री को देते है तो जब मिस्त्री(क्रियायोग के अभ्यास से यह घड़ी का सही मिस्त्री बन गया है) घड़ी को खोलकर ठीक करने लगता है तो हम बीच बीच में कुछ नहीं बोलते और मिस्त्री घड़ी जिस भी अवस्था में है उसी में पहले स्वीकार करता है और अपना आगे का काम शुरू करता है . जैसे नया सेल डालना है , नया शीशा लगाना है इत्यादि . हमने भी घड़ी को मिस्त्री के आगे समर्पित कर दिया है . यदि घड़ी ठीक करने के दौरान हम भी बीच बीच में हमारी कानूनी लगाएंगे और मिस्त्री अपनी कानूनी लगाएगा तो घड़ी के लिए खींचमतान मचेगी और घड़ी टूट कर बिखर जाएगी . अर्थात एक मरीज और दो चिकित्सक , अब मरेगा मरीज . अब आप के मन में यह प्रश्न आएगा की यदि घड़ी का मिस्त्री घड़ी ठीक करने के लिए गलत तरीका अपना रहा है तो हमे उसको रोकना तो पड़ेगा . इसका मतलब यह मिस्त्री पारंगत नहीं है . और यदि आप सही कह रहे है तो वह आप की बात अवश्य सुनेगा . ठीक इसी प्रकार आप का बच्चा भी आप को बहुत अच्छे से रोज नोट(आप की गतिविधिया) करता है . जैसे जैसे आपके प्रेम का प्रभाव बढ़ने लगेगा आप का बच्चा यदि आप का बताया रास्ता प्राकृतिक है तो वह अवश्य ही मानेगा . क्यों की इस संसार में गलत रास्ते पर कोई नहीं जाना चाहता है . सभी को हर पल ख़ुशी चाहिए . इसलिए आप रोज अपने बच्चो के साथ समय बिताये . उनकी पसंद नापसंद को समझने का प्रयास करे . यदि आप का बच्चा कोई ऐसा काम करना चाहता है जो सामाजिक रूप से अनैतिक है तो उसे बहुत ही प्रेम से समझाना पड़ेगा . प्रेम से तो देवता भी वश में हो जाते है . भगवान केवल प्रेम से प्रसन्न होते है . और कण कण में केवल भगवान का अस्तित्व है . इसलिए आप का बच्चा भी भगवान ही है और आप भी भगवान् ही है . और दोनों भगवानों के बीच दूरी शून्य है . इसलिए लड़ाई झगड़ा कैसा ?. जैसे आप का पैर अभी चल नहीं पा रहा है और आप चलना चाहते है तो क्या आप अपने पैर को काटकर फेंक देते है ?. नहीं ना . आप स्वीकार करते है आज नहीं तो कल चलेगा और कल नहीं तो परसो , या महीने बाद या सालभर बाद या अगले जन्म में . कभी न कभी तो आप को इस शरीर रुपी रथ के माध्यम से अपने धाम लौटना ही पड़ेगा . अर्थात अपने धाम (आत्मा का परमात्मा से पूर्ण मिलन) जाने के लिए इस शरीर रुपी रथ का स्वस्थ रहना बहुत जरूरी है . दुखी होकर मरना , किसी और को मारना , चिंता करना , डरना , फालतू सोचना किसी भी समस्या का समाधान नहीं होता है . बल्कि निरंतर प्रभु का ही चिंतन करना ही सभी समस्याओं का समाधान है . इसलिए पहले आप खुद अपने लक्ष्य को पहचाने . इसके लिए मै क्रियायोग ध्यान सिखाता हूँ . और कैसे माता पिता और बच्चों में सही संवाद हो इसी का अभ्यास सिखाता हूँ . बिना इस अभ्यास के सीखे सफलता असंभव है . बिना शर्त प्रेम कैसे करे यह अभ्यास मै सिखाता हूँ . सामने वाला आपको कैसे समझे इसका अभ्यास सिखाता हूँ . मै आपको आपके स्वरुप का दर्शन करना सिखाता हूँ . इसके लिए शर्त यह है की आप में पारंगत गुरु के प्रति सच्ची श्रद्धा , समर्पण , पूर्ण भक्ति भाव होना चाहिए . किसी को भी जानने के लिए पहले उस वस्तु, व्यक्ति के आगे समर्पण करना जरुरी होता है . तभी उस वस्तु , व्यक्ति के गुण आप में आते है . अभी आप का अहंकार भाव ही आप और आप के बच्चों के बीच में दीवार बना हुआ है . अर्थात दो आत्माओं के बीच माया रुपी अहंकार का पर्दा है इसलिए दोनों आत्माये एक दूसरे को नहीं पहचान पा रही है . अर्थात माता पिता और बच्चे अभी एक दूसरे को सही से नहीं समझ पा रहे है माया के प्रभाव के कारण. अपने शरीर के अस्तित्व को बचाये रखने के लिए अहंकार जरुरी है पर समता भाव में . अर्थात देवता भी रहे और राक्षस भी रहे . हमारे शरीर में दोनों प्रकार के जीव मौजूद है . पर जैसे ही किसी भी एक पक्ष के जीवों की संख्या बढ़ने या घटने लगती है हम बीमार हो जाते है . यह बात तो हुयी हमारे एक शरीर के स्वास्थ्य की . और परिवार में भी एक भी व्यक्ति गलत रास्ते पर जाने लगता है तो पूरा परिवार इससे प्रभावित होता है . केवल अभ्यास सीखने के लिए संपर्क करे . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .

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