मुख्य रूप से मन एक ही होता है और केवल इस क्षण का अस्तित्व है . अर्थात अब है तो सब है . इसी क्षण से पूरा संसार प्रकट हो रहा है और यदि आप इस क्षण में पूर्ण जाग्रत हो जाते है तो आपको अनुभव होगा की पूरा संसार आप ही का दृश्य स्वरुप है जिसकी सूक्ष्म इकाई आप का यह भौतिक शरीर है . परमात्मा की माया से यह मन प्रकट होता है और इसी माया के प्रभाव के कारण हमे दो मन समझ में आने लगते है . एक मन वह शक्ति है जिसकी सहायता से हम जो इस क्षण में जीते हुए कुछ भी अनुभव करते है उसमे से जिस अनुभूति को हम दुबारा अनुभव करना चाहते है उसे यह मन सुरक्षा की शक्ति अर्थात अवचेतन मन की शक्ति के माध्यम से हमारी चेतना में जमा कर लेता है . अर्थात जिस शक्ति के माध्यम से हमारे शरीर में अपनेआप अब क्रियाये चल रही है उसे अवचेतन मन कहते है या संचित कर्मो का समूह या प्रारब्ध कहते है . और जिस शक्ति के माध्यम से हम इस क्षण में जाग्रत रहते है उसे चेतन मन कहते है . यदि चेतन मन की शक्ति हम क्रियायोग ध्यान के माध्यम से बढ़ाते चले जाए तो इसे ही परिवर्तन की शक्ति अर्थात शिव की शक्ति या तीसरी आँख कहते है . समस्या तब आती है जब हमारे अवचेतन मन की शक्ति नकारात्मक दिशा में बढ़ी हुयी होती है . अर्थात यदि हमारे संचित कर्म प्रकृति के विरुद्ध हुये है और बहुत ज्यादा मात्रा में है तो इसका मतलब हमारा अवचेतन मन नकारात्मक दिशा में बहुत शक्तिशाली है और इसे बदलने के लिए इससे भी ज्यादा चेतन मन की शक्ति को प्राप्त करना होता है . इसीलिए बीमार व्यक्ति या नकारात्मक मनोदशा वाले व्यक्ति को परिवर्तित करना कठीन होता है जबकि जो पहले से ही दृढ़ इच्छा शक्ति रखता है और अपने आप को पूर्ण रूप से बदलना चाहता है उसको परिवर्तित करना आसान होता है . जैसे आँखों की पलकों का झपकना , श्वास का चलना , नाड़ी का चलना या वे सभी क्रियाये जो हमारे शरीर में निरंतर हमारे बिना नियंत्रण के चल रही है अवचेतन मन की शक्ति के माध्यम से होती है . जब हम क्रियायोग ध्यान करने लगते है तो हमारा अवचेतन मन परिवर्तित होने लगता है और जैसा परिवर्तन हम करना चाहते है वैसा ही हमारा अवचेतन मन बनने लगता है . अब बात यह आती है की हम हमारे अवचेतन मन को पूर्ण रूप से क्यों नहीं बदल पाते है ?. इसके कई कारण हो सकते है जैसे हमारे संचित कर्म बहुत ही गहरे रूप में उलझे हुए है , खुद में विश्वास की कमी , इच्छा शक्ति की कमी , गलत संगत , अप्राकृतिक कार्य करना , गलत आहार , गलत विहार , गलत आचरण , दृष्टि दोष , वाणी दोष , स्वर्ण दोष , अत्यधिक राग द्वेष , अति कामुकता , अधिक लोभ लालच , अधिक मान सम्मान की भूख , अत्यधिक क्रोध , झूठ पाखंड करना , हिंसा करना, बहुत गरीबी , बहुत अमीरी ऐसे और भी बहुत से कारण होते है जिनकी वजह से हम सच्चे रूप में क्रियायोग ध्यान नहीं कर पाते है . आपका शरीर आपके अवचेतन मन का ही साकार रूप है . इसलिए जब आप क्रियायोग ध्यान करते है तो अवचेतन मन के बदलने के कारण आपका शरीर भी बदलने लगता है . और इसलिए त्वचा बदलने लगती है , खून बदलने लगता है , हड्डिया बदलने लगती है और इस बदलाव का सुरक्षा की शक्ति (विष्णु शक्ति) विरोध करती है और परिवर्तन की शक्ति समर्थन करती है . इसी विरोध और समर्थन से शरीर में घर्षण पैदा होता है जैसे हाथ पैरो में दर्द होना , थकान होना , आलस छाना , नींद आना , जी मिचलाना , चक्कर आना , डर लगना , चिंता होना , बीमारी का भय होना , अविश्वास आना , पेट दर्द होना , गैस बनना, कब्ज रहना ऐसे अनेक प्रकार के परिवर्तन होते है जिन्हे हम सहन नहीं कर पाते है और क्रियायोग का अभ्यास छोड़ देते है . परन्तु यदि हम सच में हर पल खुश रहना चाहते है तो फिर आत्मबल , खुद में विश्वास , प्रभु में भक्ति , सच्ची श्रद्धा , सही धारणा, लक्ष्य पर अटल ऐसे भावों में पूर्ण विश्वास रखने के कारण हम क्रियायोग के अभ्यास में आगे बढ़ने लगते है . अपने अवचेतन मन को वे व्यक्ति ही पूर्ण रूप से बदल पाते है जिन्होंने अपने जीवन में बहुत ही गहरे घाव झेले है और जिनका इस संसार पर से विश्वास उठ गया हो . क्यों की भीतर में बिना गहरी चोट लगे अर्थात जब तक माया की गहरी चोट नहीं लगती इंसान माया के ही पीछे फिर से भागने लगता है . चोट लगने के बाद वह बदलने को राजी होता है . क्रियायोग के अभ्यास से व्यक्ति को माया और ब्रह्म दोनों के साथ रहना आ जाता है . वह स्वतंत्र हो जाता है . आज तक आप ने भी इतिहास में पढ़ा होगा की जिनके असाध्य रोग हुए हो या बहुत ही बढ़ी गरीबी जिसने झेली हो उसी ने इतिहास रचा है . अब मै आपको अवचेतन मन को बदलने के कुछ तरीके बता रहा हूँ . जैसे यदि आप क्रियायोग ध्यान खुद से करने मेँ अभी समर्थ नहीं हो और आप केवल स्वस्थ रहना चाहते हो और संसार मेँ सामान्य जीवन जीना चाहते है पर आप के पास पैसे की कमी है . तो आप सबसे पहले यह स्वीकार करे की आप के पास पैसे की कमी है . इसका मतलब यह है की आप किसी को भी प्रभावित करने के लिए यह झूठ नहीं बोले की मेरे पास पैसे की क्या कमी है . और ऐसा कोई काम ना करे जिसके लिए आप को किसी से पैसा उधार लेना पड़े . इससे यह होगा की आप सच्चे रूप मेँ अपनी गरीबी का सामना कर पाएंगे और गरीबी को बहुत ही गहराई से समझ पाएंगे और गरीबी पर बहुत ही ध्यान पूर्वक एकाग्र होने से आप को इसी गरीबी के भीतर इससे मुक्त होने का जवाब मिल जायेगा . और फिर इस जवाब के आधार पर आप कार्य करना शुरू कर देंगे और देखते देखते आप की गरीबी अमीरी मेँ बदलने लगेगी . यदि आप को यह जानकारी लाभकारी लगी है तो यह आपकी नैतिक जिम्मेदारी बनती है की इस लेख को आप ज्यादा से ज्यादा जरूरतमंद व्येक्तियों के साथ साझा करे . यदि आप के कोई भी प्रश्न हो तो हमे लिखे . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .
केवल परमात्मा का अस्तित्व है. परमात्मा सर्वव्यापी है परमात्मा कण कण में विराजमान है. परमात्मा का हर गुण अनंत है जैसे परमात्मा का एक गुण यह भी है की वे एक से अनेक रूपों में प्रकट होते है. निराकार से साकार रूप में प्रकट होना है : सृष्टि की उत्पति अर्थात निराकार से साकार रूप में प्रकट होना ,असंख्य जीव अर्थात एक से अनेक होने का गुण. मानव का लक्ष्य केवल परमात्मा को जानना है , खुद के स्वरूप को जानना है , परमात्मा और हमारे बीच दूरी शून्य है इसका अनुभव करना है , हर पल खुश कैसे रहे इसका अभ्यास करना है
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परमात्मा की महिमा में आप सभी का हार्दिक अभिनन्दन है