Friday, October 18, 2024

क्रियायोग - विचारों और भोजन में सम्बन्ध

आज मै आप को वह सच बताने जा रहा हूँ जिसे आप ने आज तक इस प्रकार से नहीं समझा है . भोजन विचार का ही घनीभूत रूप है . इसलिए यदि हम मांसाहार करते है और यह मन में विचार करे की यह भोजन सात्विक आहार में बदल जाए अर्थात हमे शक्ति प्रदान करे और हमारे स्वास्थ्य को ठीक रखे तो यह कितना प्रतिशत बदलेगा या नहीं बदलेगा या पूर्ण रूप से बदल जायेगा इस प्रश्न का जवाब मै आप को समझाने जा रहा हूँ .

जिस प्राणी का मांस हम खाते है वह चेतना के किस स्तर पर जी रहा है और हम चेतना के किस स्तर पर जी रहे है यह दोनों पैमाने यह निर्धारित करेंगे की बदलाव किस दिशा में होगा . जैसे जब हम यह मांस पकाते है उस समय हमारे विचार कैसे है और यही भोजन करते समय कैसे है . ठीक इसी प्रकार हमारे परिवार के और सदस्यों के इसी भोजन के प्रति विचार कैसे है और हमारी थाली में इसी भोजन के प्रति और लोगो के विचार कैसे है . अब आप ही सोचिये की जब एक ही विचार को इतनी बार दोहराये की वह पशु या अन्य प्राणी का मांश बन जाए और हम केवल भोजन करते समय यह विचार करे की यह सात्विक आहार में बदल जाए . कितना ज्यादा हम खुद को ही मुर्ख बनाते है . यह हमारा मन हमारे साथ धोखे का खेल खेलता है . आप देखा करो जब हमे किसी विशेष प्रकार के भोजन में अत्यधिक रूचि होती है और हम भूखे होते है और उसी समय वह भोजन हमारे सामने हमारे लिए आ जाये तो हम अत्यधिक प्रसन्न हो जाते है और बड़ी बड़ी ज्ञान की बाते और कई प्रकार के वादे करते है और उस समय हमे कोई जाग्रत व्यक्ति देखे तो वह तुरंत हमारी इस मूर्खता पर भीतर ही भीतर हँसता है और सोचता है की देखो यह अमुक व्यक्ति मन के जाल में किस प्रकार से फंसता जा रहा है .

अर्थात हमारे विचार भोजन को अवश्य प्रभावित करते है और जहरीले भोजन को अमृत में बदलने की शक्ति रखते है पर यह हमारी आत्मशक्ति पर निर्भर करता है की हम परमात्मा से कितना ज्यादा गहरा जुड़ाव महसूस करते है . एक पारंगत संत किसी मांसाहार को सात्विक आहार में तुरंत बदल सकता है पर एक सामान्य व्यक्ति ऐसा करने में बहुत कम सफल हो पाता है.

इसलिए हमारे शरीर और मन को भोजन की प्रकृति अवश्य प्रभावित करती है . इसीलिए तो ग्यानी जन कहते है की परमात्मा में भक्ति बढ़ाने के लिए पहले शरीर का स्वस्थ रहना बहुत जरुरी है और मानव शरीर तभी पूर्ण रूप से स्वस्थ रह पाता है जब इस शरीर को मानव से महामानव बनने के लिए जो परमात्मा ने आहार निर्धारित किया है उसी का हम सेवन करे .

प्रश्न यह आता है की मुझे सही भोजन करने की आदत कैसे विकसित करनी चाहिए या कैसे पता करू की मै भोजन सही कर रहा हूँ या नहीं जबकि मै अपने आप को शारीरिक रूप से पूर्ण स्वस्थ महसूस करता हूँ ?.

क्रियायोग का पूर्ण मनोयोग से जब आप पूरी निष्ठा , सच्ची श्रद्धा , भक्ति और विश्वास के साथ अभ्यास करते है तो आप के भोजन का सही प्रबंध प्रकृति स्वयं करती है . आप को ना तो मांसाहार छोड़ना है और ना ही मांसाहार पकड़ना है . आपको केवल और केवल क्रियायोग का अभ्यास करना है .

जैसे जैसे आप अभ्यास में गहरे उतरेंगे आप सम भाव में जीने लगेंगे . और विचारों और भोजन के बीच जो वास्तविक सम्बन्ध है उसको अनुभव के आधार पर महसूस कर लेंगे , सच जान जायेंगे .

प्रभु का यह लेख आप को यदि फायदा पहुँचाता है तो आप की यह नैतिक जिम्मेदारी बनती है की आप इस लेख को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक भेजकर हमारे इस सेवा मिशन में आप का अमूल्य योगदान देकर प्रभु के श्री चरणों में अपना स्थान सुनिश्चित करे . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .

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Wednesday, October 16, 2024

क्रियायोग - मै गलत हूँ या आप ?

आज मै आप को परमात्मा के उस गहरे राज को समझाने जा रहा हूँ जिसे यदि आप ने भीतर उतार लिया तो फिर मेरे और आप के बीच जो यह सही गलत का अज्ञानरूपी पर्दा है , वह हमेशा के लिए हट जायेगा .

जब आप पूर्ण मनोयोग से सच्ची श्रद्धा , भक्ति और विश्वास के साथ क्रियायोग का अभ्यास करते है तो आप को अनुभव हो जायेगा की मै और आप दो अलग अलग व्यक्ति है ही नहीं . मै और आप इस प्रकार से जुड़े है जैसे सागर से लहर और पानी से बूँद . अर्थात मै और आप माया के कारण दो भौतिक शरीरों के रूप में दिखाई देते है , परन्तु इन दोनों दिखाई देने वाले शरीरों और अदृश्य इनके मनो के पीछे सयुक्त रूप से एक ही शक्ति (प्राण , परमात्मा की शक्ति , जीवन शक्ति )   कार्य कर रही है जिससे इनके अस्तित्व सुरक्षित है . पर जिस प्रकार से एक ही प्रकार की विद्युत फ्रीज़ में पानी को ठंडा कर देती है और गीजर में पानी को गर्म कर देती है , ठीक इसी प्रकार से परमात्मा की शक्ति इन दोनों व्येक्तियों के चेहरे , विचार , सोच , याददास्त , रंग रूप , कद काठी इत्यादि अलग अलग प्रकट कर रही है .

अर्थात मेरे और आप के रूप में खुद परमात्मा ही प्रकट होकर अपनी माया लीला का आनंद ले रहे है और यह जो हमे सुख दुःख की अनुभूति होती है यह भी माया ही है . पर परमात्मा की यह माया लीला एक नियम के तहत चलती है ताकि कभी यह नहीं हो जाये की सत्य की जगह या सत्य के साथ साथ असत्य का भी अस्तित्व दिखाई देने लग जाए . केवल सत्य का ही अस्तित्व है .

जैसे मुझे इस पुरे संसार में सभी जीव मेरे ही अंश नज़र आते है पर कई बार मै खुद भी मेरे संचित कर्मो के कारण माया को सच मान बैठता हूँ और किसी मेरे ही प्रिये में दोष देखने लगता हूँ . पर भीतर से मुझे यह अहसास रहता है की मेरा अहंकार ही इन सभी कष्टों का कारण है . इसलिए मै परमात्मा से हर पल यही प्रार्थना करता हूँ की मेरे माध्यम से मेरे सभी मित्रों को परमात्मा से जुड़ने का अवसर मिले ताकि वे सभी हमेशा के लिए हरपल खुश रहने लग जाए . प्रभु का यह लेख यदि आपको फायदा पहुंचाता है तो यह आप की नैतिक जिम्मेदारी बनती है की आप इस लेख को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक भेजकर प्रभु के श्री चरणों में अपना स्थान सुनिश्चित करे . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .

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Monday, October 14, 2024

क्रियायोग - मन को वश में कैसे करे ?

आज मै आपको परमात्मा का वह राज बताने जा रहा हूँ जिस पर यदि आप ने विश्वास कर लिया तो फिर आप का मन आप के वश में होकर ही मानेगा .

सबसे पहले मै यह समझाता हूँ की मन क्या है ?.

इस प्रश्न का उत्तर मै आप को कई प्रकार से दूंगा ताकि आप मन को सही से समझ सके . यह पूरा संसार मन का साकार रूप है . आप का शरीर मन का साकार रूप है . इसके अलावा मन के सूक्ष्म रूप जैसे हमारी भावनाएँ, विचार , स्वाद , गंध , स्पर्श , सुख दुःख की अनुभूति ऐसे अनेक अदृश्य रूप भी मन के ही है .

मन परमात्मा की छाया है . सच तो यह है की मन होता ही नहीं है . फिर हम मन के बारे में इतनी बाते क्यों करते है ?.

परमात्मा की माया के कारण. मन माया है . मन ही कर्ता है और मन ही भोक्ता है . मन ही स्वाद लेता है , मन ही देखता है , मन ही सुनता है , मन ही सबकुछ अनुभव करता है .

हमारा मन इतना चंचल क्यों होता है और यह स्वतंत्र क्यों होना चाहता है या मन को बंधन पसंद क्यों नहीं होते है ?.

क्यों की मन परमात्मा की छाया है और परमात्मा कण कण में द्रश्य और अदृश्य रूप में व्याप्त है . अब आप ही बताइये जो वस्तु कण कण में अर्थात सर्वयापी है तो उसकी छाया किस जगह नहीं होगी ?.

अर्थात हमारा मन भी सर्वव्यापी है . जब मन ही सर्वव्यापी है तो फिर यह मन किसी एक जगह पर कैसे उपस्थित रह सकता है . अर्थात हम यह चाहते है की हमारा मन जब हम ऑफिस में हो तो यह घर पर नहीं होना चाहिए . ऐसा तभी संभव होता जब मन सर्वव्यापी नहीं होता और हमारा घर से कोई कर्म बंधन नहीं होता . आप इसे ऐसे समझे की आप का मन जब ऑफिस में होता है तो यह किसी अनजान व्यक्ति के घर पर नहीं होता है . यह उन उन जगहों पर ही होता है जिन जिन जगहों से आप ने जाने अनजाने में कर्म बंधन बाँध रखे है (अर्थात अभी आप को यह पता नहीं है की आप पूर्व जन्म में क्या थे ).

तो सबसे पहले तो आप यह निश्चित करे की आप को किन किन लोगों से रिश्ता रखना है , कौन कौन से दृश्य आप को पसंद है , किन किन जगहों को आप पसंद करते है , आप जीवन में क्या क्या चाहते है इत्यादि को पहले अपनी इच्छाओं में सम्मलित करे . अर्थात आप कैसा जीवन जीना चाहते है इसे पहचाने और अपने लक्ष्य में इसे सम्मलित करे .

अब यदि आप थोड़े से भी अपने विवेक का इस्तेमाल करेंगे तो आप को पता चलेगा की जब आप मन को ऑफिस समय में ऑफिस में ही रखना चाहते है और शाम को घर में आकर परिवार के साथ सुकून से समय बिताना चाहते है अर्थात आप अपने घर और परिवार को बहुत चाहते है तो आप क्या करेंगे जब अचानक आप के घर पर आप के ऑफिस टाइम में कोई अनहोनी घटना घट जाए जो आप यदि समय पर घर पहुंच जाते तो वह घटना टल सकती थी . अर्थात आप को प्रकृति कैसे संकेत देगी जब आप ऑफिस समय में घर से सम्बन्ध रखना ही नहीं चाहते. या इसे ऐसे समझे की आप ने किसी को ५००० रूपए उधार दिए और अब वह अमुक व्यक्ति पैसे लौटाने आप के पास आया तो क्या आप उससे कहेंगे की मुझे आप किस बात के पैसे दे रहे हो ?.

यह बात आप तभी कहेंगे जब या तो आप की यादास्त चली गयी हो या आप वीतरागी संत बन गए हो . यदि आप इस संसार में एक सामान्य व्यक्ति के जैसा जीवन जीना चाहते है जिसकी सोच महान है तो फिर आप को उधार दिए गए रूपए किसी न किसी माध्यम से आप के मन में याद रखना पड़ेगा . जैसे या तो आप उधार दी गयी रकम को किसी बहीखाते में लिखेंगे या तकनीक के माध्यम से कही और रूप में लिखेंगे .

आप के मन को याद है की आप एक शरीर के माध्यम से कार्य कर रहे है और अपने विवेक से यह सोच रहे है की मेरा मन मुझे बहुत परेशान करता है मै इसे वश में करना चाहता हूँ . अब यदि यही मन आप के शरीर में लगे पैरो को भूल जाए तो क्या आप को पता है जब आप ऑफिस में कुर्सी पर से खड़े होंगे तो आप तुरंत निचे गिर जायेंगे . इसलिए पहले यह समझने का प्रयास करे की मन को वश में करने का प्रश्न ही अप्राकृतिक है .

 अर्थात आप अप्राकृतिक रूप से मन को वश में करना चाहते है जो असंभव है .

तो फिर हम क्या करे की हमारा मन हमारे वश में हो जाये ?.

मन को वश में करने का सही अर्थ है परमात्मा को वश में करना .जो ना कभी संभव था , ना है और ना ही कभी होगा .

मन परमात्मा की शक्ति से कार्य करता है . इसलिए आप को मन को वश में करने के बजाय इसे सही दिशा में कैसे लेकर आया जाए ?.

इसका सही समाधान क्रियायोग का अभ्यास है . जब आप पूर्ण मनोयोग से सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र होकर हर एक क्रिया के प्रति सजग होने लगते है तो आप को मन की कार्य प्रणाली समझ में आने लगती है . आप को इस अभ्यास से समझ में आने लगता है की ९ बजे क्या काम करना है और इस काम के बाद कोनसा काम करना है . आप का मन आप को आप के माध्यम से किये गए संचित कर्मो के हिसाब से नाच नचाता है . पर जब आप क्रियायोग का अभ्यास करते है तो आप के संचित कर्म परमात्मा के प्रकाश में इस प्रकार से पिघलने लगते है की आप के जीवन की गाड़ी पटरी पर आने लगती है . यदि आप ने झूठ बोलने के कर्म किये है तो अब धीरे धीरे झूठ बोलने की आदत सच बोलने में रूपांतरित होने लगती है . आप को कोई बीमारी है तो वह स्वास्थ्य में रूपांतरित होने लगती है .

कुलमिलाकर आप को मन को वश में करने की बजाय मन की शक्ति से सेवा कार्य , कई प्रकार के रचनात्मक कार्य करते हुए (अर्थात इस मन रुपी छाया को पकड़ते हुए इसके मालिक परमात्मा के साथ एक होना है) अपने स्वरुप का दर्शन करना है , खुद से मिलना है , खुद को जानना है , आत्म ज्ञान प्राप्त करना है , प्रभु के दर्शन करना है , जीते जी मोक्ष को प्राप्त करना है .

प्रभु का यह लेख यदि आप को फायदा पहुँचाता है तो आप की यह नैतिक जिम्मेदारी बनती है की आप इस लेख को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक भेजे और हमारे इस सेवा मिशन में आप का अमूल्य योगदान देकर प्रभु के श्री चरणों में अपना स्थान सुनिश्चित करे . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .

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Saturday, October 12, 2024

क्रियायोग - सबकुछ आप के हिसाब से कैसे हो ?

आज मै आप को परमात्मा का वह राज बताने जा रहा हूँ जिस पर यदि आप विश्वास करके अभ्यास शुरू कर दे तो फिर हर काम आप के मन मुताबिक होने लगेगा . जब सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र होने का अभ्यास करते है तो आप को धीरे धीरे सर्वव्यापकता का अनुभव होने लगता है . अर्थात जब आप श्वास के साथ एकता स्थापित करने में सफल होने लगते है तो आप को धीरे धीरे यह समझमे आने लगता है की आप की यह श्वास ही इस दृश्य जगत के रूप में प्रकट हो रही है . आप के लगातार भूमध्य पर एकाग्र होकर ध्यान करने से और सिर के पीछे वाले भाग मेडुला में एकाग्र होने से और फिर धीरे धीरे शरीर के हर एक अंग में एकाग्र होकर ध्यान करने से आप को दूसरे के विचार पढ़ने में मदद मिलने लगती है . और धीरे धीरे आप को यह अनुभव होने लगता है की जो विचार आप के मन में लगातार चल रहा है वही विचार आप के सामने किसी व्यक्ति के माध्यम से प्रकट कर दिया जाता है .

अर्थात आप जब क्रियायोग का गहरा अभ्यास करते है तो आप को यह अनुभव होने लगता है की आप के सामने जितने भी लोग आ रहे है या जीव जंतु आप को दिखाई दे रहे है ये सब आप के अवचेतन मन के विचार ही है जो लगातार कई जन्मों से चलने के कारण अब आप के सामने घनीभूत होकर आप की आँखों के माध्यम से आप को दिखाई दे रहे है .

इसे मै आप को और आसान करके समझाने का प्रयास करता हूँ . जब आप क्रियायोग का गहरा अभ्यास करते है तो आप को यह साफ़ साफ़ दिखाई देने लगता है की पुरे ब्रह्माण्ड में प्रकाश है और यही प्रकाश आप के सिर के पीछे से प्रवेश करता है और शरीर रूप में गोल गोल घूमता हुआ घनीभूत हो रहा है और फिर इसी शरीर से चारो और विभिन्न रचनाओं के रूप में घनीभूत हो रहा है . अर्थात आप पुरे ब्रह्माण्ड के इस प्रकाश से इस तरह से जुड़े हो जैसे सागर से बूँद या समुद्र से लहर.

अब यदि आप चाहते है की आप के पास बंगला, गाड़ी, बड़ी खुद की कंपनी , अच्छा स्वास्थ्य , सुकून भरा परिवार , पूरी दुनिया में आप भ्रमण करे इत्यादि हो .

क्रियायोग से आप उपरोक्त इच्छा को निम्न प्रकार से पूरी कर सकते हो :

सबसे पहले आप आज से ही यह विश्वास करना शुरू करे की मै सब चीजे पढूंगा , सबकी बात सुनुँगा , सब दृश्य देखूंगा , सभी प्रकार के व्यंजनो का स्वाद लूंगा अर्थात एक बहुत ही साधारण मासूम बच्चे की तरह जीवन जीना शुरू करूँगा बिना किसी तर्क वितर्क के , बिना किसी सोच विचार के , बिना किसी वहम के इत्यादि पर शर्त यह है की हर क्रिया मै, सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र होकर करूँगा .

जब आप सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र होकर गीता पढ़ेंगे , कुरान पढ़ेंगे , बाइबिल पढ़ेंगे , महाभारत देखेंगे , रामायण पढ़ेंगे तो आप को इन सबके पीछे जो सत्य छिपा है उसका ज्ञान होने लगेगा . फिर आप को जैसे किसी ने कहा की राम ने रावण को मारा था तो इसका सही अर्थ समझ जायेंगे की इसका सही अर्थ है की मुझे मेरे भीतर के रावण से एकता स्थापित करनी है . आप को यह सच पता चल जायेगा की ये सभी ग्रन्थ मेरे भीतर से प्रकट हो रहे है .

अब आप किसी भी विचार को साकार रूप देने में सफल होने लगेंगे . क्यों की क्रियायोग से आप जाग्रत होने लगते है जिससे आप के मन , बुद्धि विकसित होने लगते है और आप अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण रखने में धीरे धीरे कामयाब होने लगते है . आप को यह समझ आने लगता है की जब आप बंगले की इच्छा को पूरी करने में मेहनत कर रहे हो तो इसी दरमियान गाड़ी की इच्छा को पूरी कब और कैसे करना है . अर्थात अलग अलग इच्छाओं के विचार आप को परेशान नहीं कर पायेंगे. क्यों की अब आप की दृष्टि उज्जवल होने लग गयी है . आप को पहले ही पता चल जाएगा की अमुक इच्छा के साथ साथ दूसरी कोन कोन सी इच्छाओं को फलित किया जा सकता है .

क्रियायोग के गहरे अभ्यास से आप को यह अनुभव होने लगता है की जैसे आज आप को कंपनी में जाकर कोई बड़ा निर्णय लेना है पर अचानक आप के पेट में तेज दर्द शुरू होकर यह संकेत दे देता है अभी आप कंपनी ना जाए क्यों की अभी परमात्मा की इच्छा नहीं है . और आप को कुछ समय बाद पता चल जायेगा की उस दिन कंपनी नहीं आये तो बहुत अच्छा रहा .

क्रियायोग का गहरा अभ्यास आप को इस सच का अनुभव करा देता है की आप के और परमात्मा के बीच दूरी शून्य है और आप की सभी इच्छाये परमात्मा की इच्छाये ही होती है . अर्थात आप को यह क्षमता मिली ही नहीं है की आप प्रभु की इच्छा से अलग कोई अन्य इच्छा जाहिर कर सके . इसलिए क्रियायोग कहता है की ब्रह्मांडीय गतिविधियाँ प्रभु की इच्छा से ही चलती है .

प्रभु का यह लेख यदि आप को फायदा पहुँचाता है तो आप की यह नैतिक जिम्मेदारी बनती है की आप इस लेख को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक भेजकर हमारे इस सेवा मिशन में अपना अमूल्य योगदान देकर प्रभु के श्री चरणों में अपना स्थान सुनिश्चित करे . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .

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Thursday, October 10, 2024

क्रियायोग - क्रियायोग का अभ्यास कैसे करे ?

आज मै आपको ऑनलाइन माध्यम से जितना अभ्यास के बारे में समझा सकता हूँ उतना समझाने का प्रयास कर रहा हूँ ताकि मेरे जो मित्र मुझसे अभी संपर्क नहीं कर पा रहे है उनको भी परमात्मा से जुड़ने में मदद मिल सके .

सबसे पहले अपने आप को उस स्थिति में लेकर आये जिसमे आने पर आप को इस लेख को पढ़ने में रूचि आने लग जाये . अब आप पहले इस लेख को पढ़ते हुए अपने मन को भूमध्य पर लाये अर्थात यह पता करे की आँखों के बीच का वह क्षेत्र जहा महिलाएँ बिंदी लगाती है और पुरुष टीका लगाते है . ललाट के इस क्षेत्र को आज्ञा चक्र , भूमध्य , तीसरी आँख , दिव्य इच्छा शक्ति का केंद्र , शिव नेत्र ऐसे अनेक नामों से देश विदेश में जाना जाता है . जब आप यह क्रिया या कोई अन्य कार्य कर रहे है या किसी शांत स्थान पर बैठे है तो इस स्थान पर मन को एकाग्र करे और फिर इस जगह पर ध्यान करे . आप आँखे बंद भी कर सकते है या बंद करने में अभी असहज महसूस होता है तो फिर आँखों को आंशिक रूप से खोले , गर्दन सीधी हो , कमर सीधी हो , एकदम सामने देखते हुए धीरे धीरे दोनों आँखों से भूमध्य को देखने का प्रयास करे . फिर अपने मन को धीरे धीरे इसी क्षेत्र के साथ साथ श्वास पर भी लाने का अभ्यास करे . आप को सिर्फ आती जाती श्वास को अनुभव करना है . यह कार्य इतनी सहजता और प्रसन्नता से करना है की आप यह मान ले की सबकुछ यही है . अर्थात इस क्रिया के दौरान आप पहले यह विश्वास करे की परमात्मा खुद आप के रूप में यह क्रिया कर रहे है ताकि कोई भी अन्य विचार आपको लुभा नहीं सके . लगातार भूमध्य पर एकाग्र होकर ध्यान करने से वहाँ के सोये हुए केंद्र जगने लगते है , अपने आप ही आप का ध्यान सधने लगता है और आँखे बंद होने लगती हैं . अगर अभी आँखे बंद नहीं होती है तब भी कोई बात नहीं . आपको इस क्षेत्र में प्रकाश दिखाई देने लगेगा .

अब आगे धीरे धीरे अपने मन का विस्तार करते हुए मन को सिर के पीछे वाले भाग पर लेकर आने का प्रयास करे . इस क्षेत्र को कूटस्थ , मेडुला , प्रभु का मुख , प्रेम का केंद्र , परमात्मा की वेदी ऐसे अनेक नामों से जाना जाता है . यही वह क्षेत्र है जहाँ से परमात्मा की शक्ति अर्थात प्राणशक्ति , जीवन शक्ति , परमधन सबसे ज्यादा मात्रा में प्रवेश करके सबसे पहले आज्ञा चक्र का निर्माण करती है फिर हमारे दिमाग का (भौतिक दिमाग) निर्माण करती है और फिर रीढ़ की हड्डी का निर्माण करती है और फिर रीढ़ से जाने वाली सभी शाखाओं का निर्माण करती है . अर्थात हमारा शरीर एक वटवृक्ष की भाति बना हुआ है जिसमे सिर के रूप में जड़े ऊपर और शाखाएँ नीचे की तरफ होती है . वटवृक्ष में जड़े जमीन में और शाखाएँ ऊपर और हर शाखा में जड़े होती है . तभी तो वटवृक्ष में बुढ़ापा नहीं आता है . और वैसे भी बुढ़ापे का सही अर्थ वृहद होना अर्थात ज्ञान की दिशा में आगे बढ़ना होता है ना की बूढ़ा होकर मर जाना . यदि हम भी क्रियायोग का पूर्ण मनोयोग से अभ्यास करे तो बुढ़ापे पर विजय प्राप्त कर सकते है . क्यों की क्रियायोग प्राण से जुड़ने की विद्या है . और जब हम प्राण को ही शरीर रूप में बदलने में सफल हो जाते है तो फिर यह जड़ शरीर रहता ही नहीं है . अभी हमारे इस शरीर में जड़ता अधिक होने के कारण ही तो हमे सभी प्रकार के डर लगते है . जब हम धीरे धीरे शरीर की सिर से लेकर पाँव तक की एक एक क्रिया में एकाग्र होकर वहाँ ध्यान करने लगते है तो उस अमुक क्षेत्र की जड़ता समाप्त होने लगती है और हमे साफ़ साफ़ अनुभव होने लगता है की हमारा शरीर प्रकाश से बना हुआ है .

हमारे शरीर में जड़ता अर्थात आलस्य क्यों आता है ?

जड़ता या आलस्य के अनेक कारण होते है . जैसे मृत भोजन करना अर्थात जिसमे पोषक तत्व ना के बराबर हो . जैसे पुराने पैक्ड खाद्य पदार्थ , कई प्रकार के पेय पदार्थ , किसी जीव की हत्या करके ऐसे दुर्बल जीव का भक्षण करना , बार बार पकाया हुआ भोजन , मिलावटी भोजन , रसायनो युक्त भोजन , उदासी या नकारात्मक भावनाओं से बनाया हुआ भोजन हमेशा शरीर में जड़ता को बढ़ाता है जिससे शरीर के माध्यम से कोई भी काम करने में हमे थकान , घबराहट , बेचैनी , निद्रा , आलस्य , डर , असहजता जैसे अनेक परिवर्तनों का सामना करना पड़ता है .

जड़ता के अन्य कारण हमारे संचित कर्म , हमारे आस पास का वातावरण , हमारी खुद की सोच , हमारी साइकोलॉजी , प्रभु में विश्वास की कमी , अधिक लोभ लालच , अत्यधिक कामनाये , विलासिता पूर्ण जीवन , अत्यधिक स्वादिष्ट पकवानो की आदत , अत्यधिक अरुचिकर खाद्य पदार्थो की आदत , जीवन के लक्ष्य की अस्पष्टता , संसार से मोहभंग होना , शरीर से घृणा करना , खुद को स्वीकार नहीं करना , जो है उसमे राजी नहीं होना , सोचने समझने की शक्ति खो देना , कोई पुराना सदमा , किसी चीज से अत्यधिक लगाव रखना ऐसे अनेक कारण है जिनसे हमारे शरीर में जड़ता और आलस्य का विस्तार होता है और हम परमात्मा से धीरे धीरे दूर होते चले जाते है और अंत में हमारा ही हम खुद सर्वनाश कर लेते है .

इसलिए क्रियायोग अभ्यास में हर समय अपनी श्वास को याद रखे , पैरो में क्या क्या परिवर्तन हो रहे है उनको प्रेम करे , पेट में क्या हो रहा है उसे महसूस करे . ज्यादा से ज्यादा समय अपनी रीढ़ को अनुभव करे , सामने वाले व्यक्ति से उसके भूमध्य और खुद के भूमध्य को ध्यान में रखकर बात करे . इन सभी क्रियाओं से योग करने में बहुत ही धैर्य की आवश्यकता होती है . आप को अपने धैर्य को अनंत करना है क्रियायोग का अभ्यास . जब आप किसी एक स्थिति में अभ्यास करते हुए असहज महसूस करने लग जाए अर्थात अब शरीर में परिवर्तन सहन नहीं कर पा रहे है तो अपनी स्थिति को बदल दे .

चलते हुए क्रियायोग का अभ्यास कैसे करे ?

जब आप चल रहे हो तो अनुभव करे पैर कैसे उठ रहे है और कैसे जमीन पर रखे जा रहे है और इस दौरान आप को पैरो में क्या क्या परिवर्तन महसूस हो रहे है . इन सभी परिवर्तनों को आप परमात्मिक अनुभूति कहकर बहुत ही प्रसन्नता से स्वीकार करने की आदत विकसित करे . मै इस अभ्यास को आगे के लेखो में और गहराई से समझाऊंगा .

प्रभु का यह लेख यदि आप को फायदा पहुँचाता है तो आप की यह नैतिक जिम्मेदारी बनती है की आप इस लेख को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक भेजकर हमारे इस सेवा मिशन में अपना अमूल्य योगदान देकर प्रभु के श्री चरणों में अपना स्थान सुनश्चित करे . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .  

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Monday, October 7, 2024

क्रियायोग - अपने दिमाग को हर समय शांत कैसे रखे ?

आज मै आप को परमात्मा की कृपा से प्रभु का वह राज बताने जा रहा हूँ जिस पर यदि आप ने विश्वास कर लिया और फिर अभ्यास शुरू कर दिया तो आप हर समय शांत रहने लगेंगे .

आप के दिमाग में इतने सारे आलतू-फालतू के विचार आते ही इसलिए है की आप भीतर से अभी यह अनुभव नहीं कर रहे है की केवल परमात्मा का ही अस्तित्व है . कण कण में केवल परमात्मा का ही अस्तित्व है . आप किसी भी महान दार्शनिक की बात को सुनते तो है पर उसे गहराई से समझ नहीं पाते है . जैसे आज आप ने किसी किताब या यूट्यूब पर लॉ ऑफ़ अट्रैक्शन के बारे में सुन लिया , देख लिया और अब आप  किसी वस्तु को प्राप्त करने के लिए यह लॉ ऑफ़ अट्रैक्शन की तकनीक को आजमाते है . और ज्यादातर मामलों में आप के लिए यह कार्य नहीं करती है . और आप हताश होकर फिर दूसरी किताब पढ़ते है या कोई दूसरा वीडियो जैसे महान दार्शनिक ओशो का देख लेते है . फिर इनके बताये अनुसार आप किसी वस्तु को प्राप्त करने के लिए या अपने अवचेतन मन को बदलने के लिए तकनीक का इस्तेमाल करते है . जैसे ओशो ने एक जगह कहा है की यदि आप अपने अवचेतन मन में प्रवेश करके कुछ भी फलित करना चाहते है तो आप निम्न प्रयोग करे :

किसी शांत स्थान पर बैठकर अपनी श्वास को पूरा बाहर निकाल दे और तब तक रुके जब तक शरीर का रोया रोया जीने के लिए नहीं तड़प उठे . अर्थात आप का दम घुटने लगेगा . ऐसी परिस्थिति में आप का अवचेतन मन कहेगा मुझे श्वास लेने दो वरना मै मर जाऊंगा . तो आप कहेंगे की मुझे यह वस्तु लाकर दो तभी श्वास मिलेगी . तो आप का अवचेतन मन कहता है की ठीक है मै ला दूंगा पर मुझे श्वास लेने दो . ऐसा अभ्यास बार बार करने से आप का अवचेतन मन उस अमुक वस्तु को श्वास के माध्यम से आप के सामने लाकर ही दम लेता है . क्यों की अवचेतन मन के पास खुद का कोई विज्ञानं नहीं होता है . वह केवल आप की कल्पना को साकार रूप देना जानता है .

पर जब आप क्रियायोग का अभ्यास करते है तो आप को इसके पीछे के सच का पता चलने लगता है . आप को समझ में आने लगता है की ओशो की यह बात आंशिक रूप से ही सत्य है . क्यों की सभी व्यक्ति इस तकनीक को नहीं अपना सकते . जैसे कोई ह्रदय का मरीज यह क्रिया नहीं कर सकता . जैसे आप विपस्सना वाले साधक से बात करेंगे तो वह ओशो की बात में कमीया बताएगा और आप यदि ओशो का अनुसरण करने वाले से बात करेंगे तो वह विपस्सना में कमी बताएगा . ऐसा क्यों ?. क्यों की यह सब क्रियाये आंशिक रूप से ही सत्य है . केवल क्रियायोग(केवल परमात्मा ही सत्य है बाकी सब धोखा है) ही वह साधना है जो इन सभी तकनीकों को खुद में समेटे हुए है  और इन सभी तकनीकों का बराबर सम्मान करती है .कैसे ?.

जब आप श्वास रोक देते है और अवचेतन मन से कहते है की मुझे अमुक वस्तु लाकर दो नई तो मै आप को श्वास नहीं लेने दूंगा . इसका मतलब यह है की आप अवचेतन मन को डराकर इससे काम कराना चाहते है . पर याद रखे हर काम आप डराकर नहीं करा सकते है . या आप देखाकरो  जब किसी व्यक्ति के गर्दन में दर्द होता है तो वह सुबह अपने किसी परिचित से गर्दन में धागा बंधवाने के लिए पहले दिन ही कहकर जाता है और यह भी कहता है की हम दोनों को ही सुबह बोलना नहीं है . इसका मतलब यह होता है की धागा बांधने की क्रिया के माध्यम से एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के अवचेतन मन में यह विचार प्रवेश करा रहा है की अब आप का गर्दन का दर्द ठीक हो गया है . अर्थात जैसे ही इस व्यक्ति के गर्दन में धागा बंध जाता है तो यह विचार बार बार दिमाग में चलता है की अब मेरा गर्दन का दर्द ठीक हो रहा है . पर यदि इस अमुक व्यक्ति को इस टोटके पर विश्वास नहीं है तो फिर इसकी गर्दन का दर्द इस टोटके से ठीक नहीं होगा . अब यदि आप को क्रियायोग पर विश्वास नहीं है और इस टोटके पर विश्वास है तो आप की गर्दन का दर्द ठीक हो जायेगा . पर शायद आप अब परमात्मा के इस चमत्कार को नहीं समझे . यह टोटका भी क्रियायोग का ही अभ्यास है . अर्थात कोई व्यक्ति गोली को गुड़ में लपेटकर ले रहा है और कोई व्यक्ति सब्जी में मिलाकर गोली ले रहा है . पर भीतर गोली ही ले रहा है . इसलिए सभी महानुभाव अपने अपने अनुभव साझा कर रहे है जो वास्तविक रूप में क्रियायोग ही है . पर अपने अहंकार के कारण ये सभी इनके अनुभवों को अलग अलग नाम दे रहे है . यही तो परमात्मा की लीला है . अर्थात जब आप क्रियायोग का पूर्ण मनोयोग से अभ्यास करते है तो आप जाग्रत होने लगते है और विचारों के ये पंछी आप के दिमाग में से हमेशा के लिए उड़ने लगते है . क्रियायोग आप को यह स्वतंत्रता देता है की किस विचार को आप अपने दिमाग में रखना चाहते है और किसे नहीं . क्यों की जब आप परमात्मा से ही जुड़ जाते है तो आप खुद परमात्मा बन जाते है और संसार के इस रहस्य को जान जाते है . पर याद रखे इस अवस्था में आने के बाद आप को परमात्मा के हुक्म का पालन करने का सही अर्थ समझ में आ जाता है और आप को यह पता चल जाता है की इस शरीर योनि में आप को संसार में रहकर क्या क्या कार्य करने है . इसलिए आप का दिमाग हर समय तभी शांत रहेगा जब आप हर समय क्रियायोग का अभ्यास करेंगे . वरना आप को आज यह मेनिफेस्टेशन तो कल दूसरा मेनिफेस्टेशन इस विचारों के जाल में फॅसाये रखेगा और आप कभी भी पूर्ण रूप से शांत नहीं रह पाएंगे . इसलिए सबकुछ परमात्मा को समर्पित करदे और केवल परमात्मा के हुक्म का पालन करे अर्थात क्रियायोग का हर समय अभ्यास करे . एक समय आएगा जब आप अपने स्वरुप के दर्शन कर लेंगे . प्रभु का यह लेख यदि आप को लाभ पहुँचाता है तो आप की यह नैतिक जिम्मेदारी बनती है की आप इस लेख को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक भेजकर हमारे इस सेवा मिशन में आप अपना अमूल्य योगदान देकर प्रभु के श्री चरणों में अपना स्थान सुनिश्चित करे . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .

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Saturday, October 5, 2024

क्रियायोग - लॉ ऑफ़ अट्रैक्शन कैसे काम करता है ?

आज मै आप को यह समझा रहा हूँ की लॉ ऑफ़ अट्रैक्शन कैसे काम करता है ?.

यह पूरा संसार ऊर्जा से निर्मित हो रहा है और प्रतिक्षण यह ऊर्जा रूपांतरित हो रही है . आप का मन भी ऊर्जा ही है जिसके पीछे परमात्मा की शक्ति कार्य कर रही है . जब आप क्रियायोग का अभ्यास करते है तो आप को यह भी पता चलने लगता है की आप की श्वास ही आप के शरीर के रूप में बदल रही है . आप जो श्वास लगातार ले रहे है वह आप के अवचेतन मन की प्रोग्रामिंग के अनुसार शरीर रूप में और आप के पुरे वातावरण के रूप में बदल रही है . अर्थात जैसी आप की अवचेतन मन की प्रोग्रामिंग होगी आप के लिए पूरा संसार इस प्रोग्रामिंग का आउटपुट होगा .

जैसे आप एक प्रयोग करके देख सकते है की यदि आप को इसी क्षण बहुत खुश होना है बल्कि अभी आप असहज महसूस कर रहे है तो आप निम्न प्रकार से इस प्रयोग को करके देखे और हाथोहाथ इसका परिणाम आप खुद महसूस करेंगे :

आप किसी शांत स्थान पर बैठे या जैसी भी स्थिति में आप को सहजता महसूस हो वैसी स्थिति में आ जाए . अब आप पहले धीरे धीरे अपनी श्वास से जुड़ने का अभ्यास करे अर्थात आप की श्वास जैसी भी चल रही है आप को पूर्ण सजगता से इस श्वास के साथ एक हो जाना है . अब आप अभी खुश होना चाहते है तो आप पहले अपने मन में अपनी ख़ुशी को साफ़ साफ़ कल्पना के माध्यम से अर्थात अपनी रूचि अनुसार इसका बिलकुल साफ़ दृश्य बनाये . अर्थात आप का लक्ष्य सबसे पहले पूर्ण रूप से साफ़ होना चाहिए इसमें संदेह नहीं होना चाहिए . मेने मान लिया है की आप ने अमुक प्रकार की ख़ुशी का दृश्य अपने मन की कल्पना शक्ति से अपने मन के भीतर बना लिया है .

अब आप इतनी देर से श्वास के प्रति जाग्रत थे . अब आप अपनी पूरी श्वास को बाहर निकाल दे और श्वास लेने की क्रिया को रोक दे . थोड़ी देर में आप का दम घुटने लगेगा . आप अपनी पूरी क्षमता के साथ यह क्रिया करे . जब आप ने श्वास को रोक रखा है तो आप का अवचेतन मन जो इतने समय से आप की श्वास को आप को बिना बताये ले रहा था अब इसकी एक एक कोशिका आप से इसी श्वास की मांग कर रही है . यह सभी कोशिकाएं श्वास लेने के लिए तड़प रही है और आप से प्रार्थना कर रही है की हमे श्वास चाहिए नहीं तो हम मर जायेंगे . अब बाजी आप के हाथ में है . आप को यह तो पता चल ही गया है की आप का अवचेतन मन ही आप की श्वास को दृश्य रूप में या किसी भी अहसास के रूप में बदल रहा है . तो रुकी हुयी श्वास के दौरान अब आप अपने अवचेतन मन से कहे की मुझे अभी खुश करो . बार बार यह अभ्यास करे . तो आप का अवचेतन मन कहेगा की ठीक है मै आप को अभी ख़ुशी का अहसास करा दूंगा पहले मुझे श्वास तो लेने दीजिये . उसी श्वास से तो मै आप को खुश करूँगा . ठीक इसी प्रकार आप कोई अन्य इच्छा साकार कर सकते है . इन सब क्रियाओं में बहुत ही धैर्य की आवश्यकता होती है . आप का लक्ष्य स्पष्ट होना चाहिए . पहले आप यह पता करले की आप चाहते क्या है ?. इन सबमे कितना समय लगेगा ?.

यह आप की दृढ़ इच्छाशक्ति , लगन , नियमितता , पवित्रता , गोपनीयता , श्रद्धा , भक्ति और विश्वास पर निर्भर करता है .

यह पूरा संसार लॉ ऑफ़ अट्रैक्शन पर ही कार्य कर रहा है . आप जाने अनजाने में लॉ ऑफ़ अट्रैक्शन का प्रयोग ही कर रहे है .

प्रभु का यह लेख यदि आप को फायदा पहुँचाता है तो आप की यह नैतिक जिम्मेदारी बनती है की आप इस लेख को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक भेजकर हमारे इस सेवा मिशन में आप का अमूल्य योगदान देकर प्रभु के श्री चरणों में अपना स्थान सुनिश्चित करे . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .

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Friday, October 4, 2024

क्रियायोग - हर पल परमात्मा से कैसे जुड़े रहे ?

आज मै आप को परमात्मा के इस रहस्य को समझाने जा रहा हूँ जिसे यदि आप ने विश्वास करके समझकर भीतर उतार लिया तो फिर आप धीरे धीरे हरपल परमात्मा से जुड़े रहेंगे और इसी जीवन काल में आप को यह सफलता शत प्रतिशत मिलेगी यदि आप को खुद पर शत प्रतिशत विश्वास है तो .

जब आप क्रियायोग का पूर्ण मनोयोग से अभ्यास करते है तो आप को आप के इस लक्ष्य को हांसिल करने में सफलता मिलती ही मिलती है . क्यों ?. क्यों की जैसे ही आप सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र होने की शुरुआत करते है तो इसका अर्थ है की अब आप अपने आप को शरीर नहीं मान रहे हो. बल्कि जो अहसास आप को अनुभव हो रहा है उसे ही आप ने परमात्मा का अनुभव स्वीकार कर लिया है . अब मान लीजिये आप अपना उधार वसूल करने किसी व्यक्ति के पास गए है और उसने पैसे वापस देने से मना कर दिया है . तो यदि आप यह अभ्यास कर रहे है तो आप को अनुभव होगा की आप ऐसी क्या गलती कर रहे है जिसके कारण यह अमुक व्यक्ति आप के पैसे देने से मना कर रहा है . आप को अवश्य ही आप की गलती का अहसास हो जायेगा की यातो आप ने इस व्यक्ति से कभी अभद्रता का व्यवहार किया है या इसके प्रति गलत भावों को पनपने का आप ने अवसर प्रदान किया है . आप संचित कर्मो के वशीभूत होकर या अपने अहंकार के कारण आप इसे सबके सामने नीचा दिखाना चाहते है या आप अपना धैर्य खो रहे है या आप पैसे अपनी ताकत के बलबूते पर लेना चाहते है . वैसे ये सभी बाते एक ही है . पर मुझे सभी साधकों को अलग अलग तरीके से समझाना होता है .

जब आप हर समय सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र होकर हर एक क्रिया पर ध्यान रखते हुए उसे संपन्न करने का अभ्यास करते है तो आपको अनुभव होने लगता है की आप यह कार्य खुद कर ही नहीं रहे है . बल्कि किसी अदृश्य शक्ति के माध्यम से आप यह कार्य करने में सफल हो रहे है . यह अदृश्य शक्ति ही परमात्मा है . पर इसकी तीव्रता और स्वरुप अलग अलग होने के कारण कोई हमे मित्र नज़र आता है तो कोई हमे दुश्मन नज़र आता है .

आप एक प्रयोग करके देखे की जब आप को पेट में दर्द हो तो उस दर्द में एकाग्र होकर उस पर बहुत खुश होकर ध्यान करना आप को भीतर से चमत्कारिक जवाब मिलने लगेंगे . जैसे आप को पता चलने लगेगा की आप को पेट में दर्द क्यों हो रहा है . आप को भीतर से जवाब मिलने लगेगा की आप को किस प्रकार की चिकित्सा करवानी चाहिए . आप को पता चल जायेगा की यदि किसी गलत आदत के कारण यदि आप को पेट में दर्द होता है तो नियमित क्रियायोग के अभ्यास से आप को उस अमुक आदत की गुलामी से हमेशा के लिए मुक्ति मिलने लगेगी .

जैसे आप चाहते है की किसी काम को करने के दौरान परमात्मा से कैसे जुड़े रहे ?

आप को इसके लिए उस अमुक काम को निम्न प्रकार से करने का अभ्यास करना चाहिए :

सबसे पहले अपने शरीर की स्थिति को याद करे . याद करके अनुभव करे की उस समय आप के पैर कहाँ है , हाथ कहाँ है , सिर कहाँ है , पेट कहाँ है , मन को भूमध्य पर लाकर वहाँ एकाग्र होकर ध्यान करे , सिर के भीतर पीछे वाले भाग अर्थात मेडुला को याद करते हुए अनुभव करे और शर्त यह है की सभी अनुभवों को परमात्मिक अनुभव ख़ुशी के साथ स्वीकार करने की कोशिस करे. यदि कोई परिवर्तन सहन नहीं हो रहा है तो अमुक काम के करने के तरीके को बदल दे ताकि आप परिवर्तनों को सहन कर सके . यह क्रिया आप को बहुत ही धैर्य के साथ करनी होती है . क्यों की इस क्रिया के अभ्यास से आप के मस्तिष्क के भीतर कोशिकाओं में परिवर्तन होने लगता है और साथ ही धीरे धीरे पुरे शरीर की सरंचना में परिवर्तन होने लगता है . अर्थात आप के मन के रूपांतरित होने से आप के भौतिक शरीर में रूपांतरण शुरू होने लगता है . जब आप इन रूपांतरणों का विरोध करते है तो इसका मतलब आप परमात्मा से दूरी कायम कर रहे है . जबकि सत्य यह है की आप के और परमात्मा के बीच दूरी शून्य है , पर आप के कर्मो के कारण आप को इस दूरी का अनुभव होता है . और यह दूरी ही अलग अलग रूपों में प्रकट हो रही है .

दूसरी शर्त यह है की आप को इस दूरी का सम्मान भी करना अनिवार्य है यदि आप अपने मन का अस्तित्व रखना चाहते है तो(जैसे किसी भी व्यक्ति से भीतर से उसे आत्मा के रूप में(ब्रह्म रूप) देखे और बाहर से आप जैसा आप का उससे रिश्ता है वैसा व्यवहार करे (माया रूप)) . अर्थात आप पहले यह सुनिश्चित करे की आप इस संसार में रहकर हरपल  परमात्मा से जुड़े रहना चाहते है या अपने मन को मिटाकर अर्थात भौतिक शरीर को नष्ट करके निराकार में विलीन होना चाहते है . परमात्मा ने आप को जीवन और मृत्यु में से कोई एक चुनने का अधिकार दिया है . जब आप पूर्ण रूप से इन्द्रियों की क्रियाविधि से परिचित हो जाते है तो आप के लिए जन्म और मृत्यु होता ही नहीं है . पर आप का मन आप से हमेशा यही कहता रहेगा की जन्म और मृत्यु दो है . जबकि केवल एक परमात्मा का अस्तित्व है दूसरी तो माया है . अब यह आप ही तय करे की आप को रोटी में नमक कितना खाना है . ज्यादा नमक खाकर अपने शरीर को समाप्त करदे या उचित मात्रा में नमक खाकर नमक खाने की आदत को जीवित रखे . अर्थात किसी भी आदत को मारिये मत . जब आप क्रियायोग का अभ्यास करेंगे तो नयी नयी आदते जन्म लेगी और आप को उनका पोषण इस प्रकार से करना है की जिससे उस आदत की हत्या ना हो . जैसे आप ने बहुत शारीरिक मेहनत की है और आप को प्यास लगने लग गयी है . अर्थात प्यास लगने की आदत का जन्म हुआ है . तो आप को इतना पानी पीना है की आप की प्यास मरे नहीं . अर्थात हमेशा थोड़ा प्यासा रहे . आप का शरीर परमात्मा की छाया है , जब आप इस छाया को पकड़ने में कामयाब होने लगेंगे तो आप धीरे धीरे परमात्मा को पकड़ने में कामयाब होने लगेंगे . क्यों की ब्रह्म और माया अर्थात परमात्मा और उसकी छाया हमेशा साथ साथ रहते है . वस्तु से छाया को अलग नहीं कर सकते . किसी वस्तु की छाया तभी समाप्त होती है जब वह वस्तु पूर्ण प्रकाश की उपस्थिति में विराजमान हो . ठीक इसी प्रकार जब आप पूर्ण ज्ञानी हो जाते है तो आप के (आत्मा) ऊपर से यह माया रुपी छाया हमेशा के लिए समाप्त हो जाती है . फिर आप माया को प्रकट कर सकते है , वापस गायब कर सकते है . पर यह सब कार्य आप प्रकृति के नियमों के अधीन रहकर ही कर सकते है . अर्थात परमात्मा के हुक्म के विरुद्ध आप एक कदम भी नहीं चल सकते है .

प्रभु का यह लेख यदि आप को फायदा पहुँचाता है तो आप की यह नैतिक जिम्मेदारी बनती है की आप इस लेख को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँचाकर हमारे इस सेवा मिशन में अपना अमूल्य योगदान देकर प्रभु के श्री चरणों में अपना स्थान सुनिश्चित करे . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .

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क्रियायोग - हमे सुख और दुःख की अनुभूति क्यों होती है ?

आज मै आप को यह गहराई से समझाने जा रहा हु की हमे सुख और दुःख की अनुभूति क्यों होती है . हमे सुख और दुःख की अनुभूति परमात्मा के माध्यम से जो...